कला में परीक्षण एवं मूल्यांकन का वर्णन कीजिए।

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मापन का अर्थ किन्हीं निश्चित इकाइयों में वस्तु या गुण के परिमाण का पता लगाना ।

मापन के दो रूप हैं –

1. परिमाणात्मक

2. गुणात्मक ।

परिमाणात्मक मूल्यांकन में वस्तु का मापन स्थिर एवं निरपेक्ष रहता है और मापन के यंत्र पर समान इकाइयाँ समान परिमाण को होती हैंकिन्तु गुणात्मक मापन आत्मनिष्ठ एवं अनिश्चित होता हैजिसमें मूल्यांकन की इकाइयाँ सापेक्ष होती हैं। कला का मूल्यांकन परिमाणात्मक किया जाना सम्भव नहीं हैक्योंकि यह मानव मन की अभिव्यक्ति है और मापन करने वाला भी मानव मन ही है.कोई वैज्ञानिक यंत्र नहीं । अतः कला का मूल्यांकन केवल गुणात्मक हो हो सकता हैजिसमें हमें निर्णय लेते समय किसी प्रतिमान को आधार बनाना पड़ता है और यह सदैव सम्भव नहीं है कि हमारा प्रतिमान उचित ही हो। इसलिए कलाकृति के मूल्यांकन हेतु विशेष सावधानी को आवश्यकता है संशोधन का मूल्य मूल्यांकन को परिभाषित करते हुए श्री जयदेव आर्य ने लिखा है कि बालक के अर्जित ज्ञानविषय शिक्षण उद्देश्यों की पूर्ति को परख तथा बालक के व्यवहार के विषय में शिक्षण द्वारा हुए और स्तर निर्धारित करना मूल्यांकन कहजाता है।‘ इसलिए मूल्यांकन हेतु जिन प्रश्न-पत्रों को रचना की जाएवे अपने उद्देश्य को पूर्ति में सफल होने चाहिए। इसके लिए उनमें निम्न गुणों का होना अपरिहार्य है.

1. व्यापकता- व्यापकता से तात्पर्य है कि प्रश्न-पत्र में पाठयक्रम का अधिकाधिक समावेश होना चाहिए। पाठ्यक्रम के विभिन्न अंगों व क्षेत्रों से संबंधित प्रश्नप्रश्न-पत्र में रखे जाने चाहिए। व्यापकता के संबंध में निर्णय प्रश्न-पत्र निर्माता को सूझ-बूझकुशाग्र बुद्धि और प्रश्न-पत्र निर्माण की क्षमता पर निर्भर है।

2. विभेदकारिता- एक प्रश्न-पत्र विभेदकारी तभी होता हैजब वह सुयोग्य और अयोग्य छात्रों में विभेद कर सके। प्रश्न-पत्र में इस गुण को उत्पन्न करने के लिए प्रश्नों का कठिनाई स्तर विभिन्न होना चाहिए। कुछ प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनका उत्तर केवल मेधावी छात्र हो दे सकें तथा कुछ प्रश्न ऐसे बनाए जाने चाहिएजिनका उत्तर अधिकांश योग्य छात्र दे सकेंकिन्तु अधिकांश अयोग्य छात्र न दे सकें।

3. वस्तुनिष्ठता- वस्तुनिष्ठता से तात्पर्य है कि पूछे गए प्रश्न का केवल एक ही निश्चित उत्तर होना चाहिए। ऐसे प्रश्नों की भाषा एवं व्याकरण शुद्ध होनी चाहिए तथा प्रश्न द्वैयार्थक नहीं होने चाहिएअन्यथा प्रश्न-पत्र रचयिता और उत्तरदाता दोनों उनका अलग-अलग अर्थ लगा सकते

4. विश्वसनीयता- किसी परीक्षण की विश्वसनीयता का अर्थ है कि उसे बार-बार प्रयुक्त करने पर परिणाम एक समान प्राप्त हो । अत: एक प्रश्न-पत्र को विभिन्न अवसरों पर अथवा एक ही स्तर के विभिन्न प्रश्न-पत्रों में यदि किसी छात्र को एक समान अंक प्राप्त होते हैं तो उस परीक्षण को विश्वसनीय कहा जाएगा। विश्वसनीयता का सम्बन्ध मापन को यथार्थता से है। प्रश्न-पत्रों की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए उनकी लम्बाई अधिक रखनी चाहिए. अधिक योग्यता-स्तर एवं आयु-स्तर पर प्रयुक्त किये जाने चाहिएअनुमानित उत्तर वाले प्रश्न नहीं रखे जाने चाहिए तथा विकल्प प्रत्युत्तरों की संख्या अधिक रखी जानी चाहिए।

5. वैधता- कोई परीक्षण उस समय वैध माना जाता है जबकि वह उसी योग्यता का मापन करता हैजिसके लिए उसे बनाया गया है। एक परिस्थिति के लिए बनाए गए प्रश्न-पत्र दूसरी परिस्थिति के लिए अवैध होंगे। अत: जिस आयु और बौद्धिक स्तर के लिए प्रश्न-पत्र बनाया गया हैवह उन्हीं के लिए प्रयुक्त होना चाहिए। उदाहरणार्थ कला के प्रश्न-पत्रों को बनाते समय छात्रों की आयु के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि रूपांकन के ज्ञान के परीक्षण में मूर्तिकला सम्बन्धी प्रश्न न रखे जाएं।

इस आधार पर परीक्षण की योजना बनाते समय सर्वप्रथम अपना ध्येय निश्चित करना चाहिएउसके पश्चात् पाठ्यक्रम का विश्लेषण करना चाहिए। प्रश्न-पत्र के पदों की रचना करते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उनकी भाषा सरल होउनका सम्भावित उत्तर एक ही हो. प्रश्न पाठ्यक्रम के अधिकांश भाग से लिए गए होंउन्हें कठिनाई के आरोही क्रम में रखा गया होपरीक्षण का उचित शीर्षक डाला गया होनिर्देश स्पष्ट हों तथा प्रत्येक प्रश्न के अंक निर्धारित हों।

प्रश्न-पत्रों की रचना- छात्रों के कार्य के मूल्यांकन हेतु तीन प्रकार के प्रश्न-पत्र बनाए जाते हैंजिनमें एक निबन्धात्मक तथा दूसरे वस्तुनिष्ठ प्रश्नों पर आधारित होते हैं और तीसरे क्रियात्मक या अशाब्दिक प्रश्न-पत्र होते हैं। निबन्धात्मक प्रश्न-पत्रों में कुछ निश्चित प्रश्न दिये जाते हैं और परीक्षार्थी उनके उत्तर अपने दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए विस्तार से देता है। वस्तुनिष्ठ प्रश्न-पत्रों में कुछ छोटे-छोटे पद दिये होते हैंजिनका एक निश्चित उत्तर होता है। छात्र को कम समय में अनेक पदों का उत्तर देना होता है। क्रियात्मक प्रश्न-पत्रों में द्वि-आयामी अथवा त्रि-आयामी चित्रांकन अथवा वस्तु-निर्माण कराया जाता है और छात्र के हस्त-कौशल अथवा प्रयोगात्मक योग्यता की जानकारी प्राप्त की जाती है ।

कुछ वर्ष पूर्व लेखन परीक्षा में मात्र निबन्धात्मक प्रश्नों के माध्यम से छात्र की योग्यता का मापन किया जाता थाकिन्तु इन परीक्षाओं में कुछ कमियाँ पाई गईक्योंकि इनमें रटने पर अधिक बल दिया जाता थाप्रश्न-पत्रों में विश्वसनीयता और वैधता का अभाव रहता थाकुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्न तैयार करने वाले छात्र अधिक अंक पा लेते थेजबकि उन्हें पूरे पाठ्यक्रम की जानकारी नहीं होती थी तथा मूल्यांकन पर परीक्षक के व्यक्तिगत विचारोंरुचियों एवं रुझानों का प्रभाव पड़ता था। इन कमियों के कारण परीक्षण में निबन्धात्मक परीक्षा को सीमित कर दिया गया है। आजकल एक या दो प्रश्न ही निबन्धात्मक रखे जाते हैंजिससे विद्यार्थी की शाब्दिक अभिव्यक्तिसाहित्यिक शैली और व्यवस्थित प्रस्तुति जैसे गुणात्मक पक्षों का मूल्यांकन किया जा सके । अन्य प्रश्न लघु-उत्तरीय तथा वस्तुनिष्ठ होते हैं । लघु-उत्तरीय प्रश्नों का उत्तर छात्र की संक्षिप्त एवं सारगर्भित (लगभग 100 शब्दों में) देना होता है तथा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का उत्तर मात्र एक शब्द में ही होता हैइन प्रश्न-पत्रों का उत्तर छात्र को संक्षिप्त एवं सारगर्भित् (लगभग 100 शब्दों में) देना होता है तथा वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का उत्तर मात्र एक शब्द में ही होता हैइन प्रश्न-पत्रों का मूल्यांकन भी वस्तुनिष्ठ होता हैजिसकी गणना कम्प्यूटर द्वारा ही सम्भव है। इन प्रश्नों में व्यापकता होती हैक्योंकि पाठ्यक्रम का अधिकांश भाग प्रश्नों के दायरे में आ जाता है। कला के प्रश्न-पत्रों में चार प्रकार के प्रश्नों का प्रयोग किया जाता है-

1. निबन्धात्मक

2. लघु-उत्तरीय

3. वस्तुनिष्ठ

4. रचनात्मक ।

1. निबन्धात्मक प्रश्न कला के इतिहाससिद्धान्तोंसंगठन और संरचनात्मक तत्त्वों आदि से सम्बन्धित होते हैं।

2. लघु-उत्तरीय प्रश्न कुला की किसी एक विधा अथवा पक्ष को स्पष्ट करने से सम्बन्धित होते हैंजैसे-रूपांकन,प्रमाणरंगभावप्रतीकबनावटप्रकाशस्थान आदि।

3. वस्तनिष्ठ प्रश्नों में कई प्रकार के प्रश्न रखे जाते हैंजैसे-सत्य/असत्यबहुविकल्पीय पदमिलान पदवर्गीकरण पदसरल प्रत्यास्मरण पदपूर्ति पद आदि । इन प्रश्नों का उदाहरण निम्नवत है

(क) सत्य/असत्य पद

1. छाया प्रकाश की दिशा में दिखाई पड़ती है। (सत्य/असत्य)

2. लाल और नीले रंग के मेल से बैंगनी रंग बनता है। (सत्य/असत्य)

कला में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के समान रचनात्मक परीक्षण भी सम्भव हैजैसे-सत्य/असत्य के परीक्षण हेतु निम्न चित्र दिया जा सकता है –

पूर्ति पदों हेतु अधूरे चित्रों को दिया जा सकता है, उदाहरणार्थ निम्न पक्षियों की चोंच बनाइए –

(ख) बहुविकल्पीय पद

1. सूर्य के प्रकाश में__रंग होते हैं। (3, 5, 7, 9)

2. एलिफेन्टा की गुफाओं की चित्रकारी- काल की है। (जैनबौद्धवैदिक)

(ग) मिलान पद- निम्न कोणों की सही माप का मिलान करें

समकोण 180° से अधिक

ऋजु कोण 90°

वृहत् कोण 180°

(घ) वर्गीकरण पद- निम्न शब्दों में एक शब्द अन्य से असम्बन्धित हैउसे ढूँढ़िएअजन्ताबाघबीकानेरजोगीमारा।

यामिनी रायकालीदासरवीन्द्रनाथ टैगोरनन्ललाल बसु ।

(ङ) सरल प्रत्यास्मरण पद- नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर उनके सामने कोष्ठों में लिखिए

1. उत्तर प्रदेश राज्य ललित अकादमी कहाँ स्थापित है?        (   )

2. आधुनिक कला के जन्मदाता कौन हैं?       (  )

(च) पूर्ति पद

1. न्यून कोण __ का होता है।

2. नन्दलाल बसु के चित्रों में मूल रूप से __ का अंकन हुआ है।

4. रचनात्मक परीक्षण- रचनात्मक योग्यता परीक्षण हेतु विद्यार्थियों को सामग्री प्रदान करके कुछ रचना करने हेतु निर्देश दिया जाता हैउदाहरणार्थ –

प्रश्न 10 से.मी. के समबाहु त्रिभुज में आलेखन बनाइए और उसे तीन रंगों से सजाइए।

अथवा एक ग्रामीण परिवेश की सीनरी बनाइए जिसमें प्रात:काल का दृश्य हो । इसी प्रकार त्रि-आयामी वस्तुओं के निर्माण हेतु विविध प्रकार की सामग्रीजैसे-गत्ताकागजमिट्टीलकड़ीकपड़ा आदि देकर धनात्मक अथवा बहुआयामी वस्तुओं को निर्मित कराया जाता हैजैसे-डिब्बेपर्सबेलेंखिलौने आदि ।

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