दृश्य कला क्या है? दृश्य कला में इन सामग्रियों के प्रयोग पर प्रकाश डालिए- (1) पैस्टल, (2) पोस्टर, (3) पेन और स्याही, (4) रंगोली, (5) मिट्टी

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 कला को हॉबल ने इस रूप में परिभाषित किया है- रेखाआकृतिरंगताल तथा शब्द यथा रेखाचित्ररंजनकलामूर्तिकलानृत्यकलासंगीत कलाकविता एवं साहित्य के रूप में मानव प्रवृत्तियों की बाह्य अभिव्यक्ति कला है । टालस्टाय के अनुसार- किसी अनुभूति के फलस्वरूप जब किसी के मन में कोई भावना उठे तब गतिरेखाओंरंगोंध्वनियोंरूपाकारों तथा शब्दों में उसे इस प्रकार अभिव्यक्त करना कि दूसरे भी उस भावना की अनुभूति कर सकें-कला का कार्य है।” उत्तर कला को इन तीन भागों में विभक्त किया जाता है

(i) दृश्य कला (उदाहरण – चित्रकलामूर्तिकला)

(ii) श्रव्य कला (उदाहरण – संगीतकाव्य पाठ)

(iii) दृश्य श्रव्य कला (उदाहरण – नृत्यनाटक)

दृश्य कला कला का वह रूप है जो मुख्यत: दृश्य प्रकृति का होता है जैसे रेखाचित्रचित्रकलामूर्तिकलावास्तुकला आदि । इस कला में आकृति तथा रंग-संयोजन महत्त्वपूर्ण होता। दृश्य कलाओं में कलाकार कई सामग्रियों के उपयोग से आकृति तथा रंगों का प्रयोग करता है।

प्रमुख सामग्रियों के प्रयोग का वर्णन निम्नानुसार है –

(1) पैस्टल- सरल रूप में पैस्टल भिन्न तरह से अनुबद्ध रंगों की स्टिक्स (घड़ी) है जिनको कागज पर उपयोग करके पेंटिंग बनाते हैं । पैस्टल से पेंट करने की खास तकनीक होती है जो पारस्परिक पेंटिंग से भिन्न है । सब पैस्टल के गुण एक जैसे नहीं होते। इसलिए पैस्टल के साथ रंग भरने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के कागज का उपयोग करना होता है । पैस्टल्स कई रूप के होते हैं जैसे ऑयल पेस्टल्सहाई पैस्टल्ससॉफ्ट पैन्टल्म और पैस्टल्स पेंसिल । इन सबके उपयोग के विशिष्ट गुण होते हैं। आयल पेस्टल्स में मोम और अक्रिय तेल भी होता है।

भिन्न संरचना और वजन वाले पैस्टल्स पेपर बाजार में मिलते हैं। वे अक्सर एकेलिक और वाटरकलर पेंटिंग के लिए उपयोग किये जाने वाले कागज से ज्यादा खुरदुरे होते हैं क्योंकि पैस्टल को एकदम बराबर सतह पर चिपकाया नहीं जा सकता।

पैस्टल पेपर भिन्न रंगों में मिलते हैं। अपने रंग के अनन्त और परिपूर्णता की वजह से पैस्टल रंगीन कागज पर बहुत अच्छा काम करते हैं। पैस्टल पेपर को कभी-कभी लेड इम्पेक्ट के साथ बनाते हैं। यानी उसके एक ओर का ग्रेन पास-पास पंक्तियों से बना होता है और कागज की दूसरी ओर की सतह हल्की-सी चित्तीदार होती है। एक प्रकार का पैस्टल पेंटिंग करने का कागज कार्बरंडम (गीला और सूखा) या मोटे रेगमाल के समान होता है। ये सब प्रयोग करने के लिए उपयुक्त होता है।

सॉफ्ट पैस्टल्सहार्ड पैस्टल्स और पेंसिल पैस्टल्स को एक-दूसरे की जगह उपयोग नहीं कर सकते पर एक पेंटिंग में उनको साथ में इस्तेमाल करना संभव है। पर ऑयल पैस्टल्स को अन्य प्रकार के पैस्टल्स के साथ मिलाना या ब्लेंड करना मुश्किल होता है ।

ऑयल पैस्टल्सहार्ड पेस्टल्स और सॉफ्ट पैस्टल्स व पेंसिल पैस्टल्स के अलग-अलग गुण होते हैं। इनके प्रयोग कर इनके बारे में पता लगाया जा सकता है। अगर आप कागज के टुकड़े इस्तेमाल कर रहे हैं तो उनको मास्किंग टेप से नीचे चिपकाएं ताकि आपको उसे सही जगह पर पकड़ कर न रखना पड़े।

(2) पोस्टर- पोस्टर कागज पर बनाये जाने वाले चित्र जिन्हें केवल पोस्टर रंगों से बनाया जाता है जो अपारदर्शी होते हैं तथा आमतौर पर शीशियों में पाये जाते हैं। इन अपारदर्शी रंगों को सघनता से कागज पर लगाया जाता है। आमतौर पर पोस्टर बनाते समय विद्यार्थी साधारण कागज का प्रयोग कर लेते हैं जिससे चित्रों की गम्भीरता तथा सुन्दरता नहीं आ पाती है। पोस्टर का अर्थ होता है किसी भी वस्तु का विज्ञापन करना जो दूर से भी दिखाई दे । पोस्टर रंगों को लगाने के लिए उत्तम प्रकार के कागजआइवरीआर्ट कागज अथवा चिकने कागजों का प्रयोग करना चाहिए । सेबल हेयर के बने गोल तथा चीनी तूलिका कैलीग्राफी के लिए लगाना चाहिए। आमतौर पर विद्यार्थी चित्र और पोस्टर में अन्तर नहीं कर पाते हैं। चित्र में कोई स्लोगन नहीं लगतापोस्टर में स्लोगन अवश्य लगता है किन्तु पोस्टर रंगों से अत्यन्त सुन्दर चित्रों की भी रचना होती है।

चित्रण विधि- कागज पर लेखांकन करपोस्टर रंगों को अधिकतर बिना छाया के दिखायेसपाट रंगों से चित्रित करके अन्त में लगे हुए रंगों पर गहरे रंग से चित्रण कर रंगों को पूर्णता देकर चित्र समाप्त करना चाहिए ।

(3) पेन और स्याही- इंक पेन अनेक प्रकार के होते हैं । इंक पेनों का इस्तेमाल आउट लाइनों और छाया के लिए किया जाता है।

उत्तम किस्म के पेन टेक्निकल पेन कहलाते हैं जो काफी कीमती होते हैं। सस्ते पेनों में आजकल प्लास्टर टिप वाले पेन भी उपलब्ध हैंजिनके द्वारा फाइन रेखाएं खींची जा सकती । आउट लाइन और छाया प्रकाश के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।

इनके अलावा फ्रो-हैण्ड लैटरिंग के लिए विभिन्न प्रकार के स्पीड बॉल पेन भी आवश्यक हैं। ये डिप-इन-इंक टाइप के होते हैं जिनको पेन होल्डर में लगाकर इस्तेमाल किया जाता है। अन्य प्रकार के पेनों में फाउण्टेन पेन बिल्ट-इन-इंक‘ भी हैं। इनमें इंक भरी जाती है या इंक कार्टिज प्रयोग किए जाते हैं। ये विभिन्न आकारों और प्रकारों में इण्टरचेंजेबल चित्रों के साथ उपलब्ध होते हैं ।

राइटिंग पेनबाल-पाइंट पेनफेल्ट-टिप्ड पेनबॉड-टिप्ड फेल्ट पेन अब वाटर प्रूफ रंगों के भी उपलब्ध हैंजो सस्ते और चलने में रुकते नहीं तथा किसी भी पेपर सर्फेस पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं। सामान्यतः पारदर्शक रंगों (इंक्स) के लिए आइवरी कार्ड या स्कॉलर पेपर प्रयोग करते हैं।

पोस्टर कलर की ड्राइंगों में रेखाएं खींचने के लिए विशेष रूप से रूलिंग पेन का प्रयोग किया जाता है। इसमें ब्रश द्वारा पोस्टर कलर भरकर प्रयोग करते हैं।

(4) रंगोली- रंगोली‘ भारतीय प्राचीन परम्परा के अन्तर्गत आज तक लोक-प्रचलित। प्रायः धार्मिक एवं मांगलिक अवसरों पर आंगन को रंगोली से सुसज्जित किया जाता है। प्रायः गृहिणी इस कार्य को करती है जो इस कला को परम्परागत तरीके से दादी नानी से सीखती हैं तथा आने वाली पीढ़ी को सिखाती हैं स्त्रियाँ आम तौर पर इस कला में बहुत दक्ष होती हैं । रंगीन बुरादेआटाहल्दीचावलचूरासफेदीरोलीगुलालपिसी हुई खड़िया आदि में धरातल पर बनाई जाती है रंगोली-रंगीन सूखे रंगों से बनी हुई कला है जो विशेषकर महाराष्ट्र में बनाई जाती है । दक्षिण भारत में भी चावल के सूखे चूर्ण से इसे बनाया जाता है। संस्कार भारती के दादा योगेन्द्र ने इस कला को बहुत प्रोत्साहित किया । बड़े-बड़े आयोजनों में रंगोली को सजाया जाता है । महाराष्ट्र से चलकर यह कला एक देश-विदेश में पहुंच गई है। रंगोली सूखे रंगों से बनती है जिनमें प्राय: कालेचाकलेटीमोरपंखी अथवा बैंगनी रंगों की प्रमुखता रहती है। रंगोली में ज्यामितिक चिह्न वृत्ताकारआयताकारमध्यमा से प्रारम्भ होकर पूर्ण होती है।

रंगोली हेतु आवश्यक साधन निम्नलिखित हैं –

1.रस्सी

2.चॉक

3. सफेद व रंगीन रंगोली

4. छन्नी आटा छानने की जिसमें बीच में पत्तियाँ न होंएवं

5. रद्दी कपड़ा।

रंगोली के लिए आवश्यक निर्देश 

1. निर्माण स्थल स्वच्छ और समतल हो। यदि कच्चा है तो गोबर से लीपा हो अथवा टाइल्स या फर्श भी उपयुक्त हो।

2. सर्वप्रथम रंगोली प्रारम्भ करने में पूर्व कागज में रचना तैयार कर लेना चाहिए।

दोनों पैरों में निश्चित अन्तर रखकर खड़े होना चाहिए । कमर से झुककर सामने की ओर रंगोली बनाना चाहिए ।

चुटकी में रंगोली लेकर बनाने के स्थान पर पाँचों उंगलियों का प्रयोग करना चाहिए तथा एक ही चिन्ह को कम से कम 25 बार अभ्यास करना चाहिए । प्रत्येक बार चिन्ह बनाते समय अपनी दिशा भी बदलते रहना चाहिए । प्रत्येक चिन्ह सामने की ओर ही बनेऐसा अभ्यास करना चाहिए ।

बड़े से बड़े रंगोली का केन्द्र निश्चित करके उसके चारों ओर रस्सी और चांक से गोला बनाना चाहिए । रंगीन रंगोली पर छलनी से छानते हुए सफेद रंगोली से चिन्ह बनाते रहना चाहिए।

सर्परेखा बनाते समय चारों अंगुलियों को जमीन पर टिकाकर हाथ में रंगोली लेकर टेढ़ी-मेढ़ी रेखा द्वारा उसे हाथ हिलाते हुए आगे बढ़ाना चाहिए ताकि बीच की दूरी भी बनी रहे और सर्पाकार भी बन जाएं ।

(5) मिट्टी- घरेलू उद्योग-धन्धों में मिट्टी का काम भी एक उद्योग है । छात्रों की रचनात्मक प्रवृत्ति को जाग्रत करने एवं सरल रूप से भाव प्रकाशन करने के लिये मिट्टी का काम छात्रों को है। बड़ा प्रिय होता है। मिट्टी से खेलने वाले छा। खेलते खेलते ही खिलौने बनाने लगते हैं। खिलौनों का व्यवसाय मी संसार में विकसित हो चुका है। मिट्टी के कार्य के लिये छात्र को अधिक व्यय नहीं करना पड़ता है।

मिट्टी की संरचना- सिलिकॉन और एल्यूमिनियम के ऑक्साइड से मिलकर मिट्टी बनी है। किसी-किसी मिट्टी में लोहाचूना तथा मेरिया आदि oil अधिकतर मिले रहते हैं। इससे मिट्टी में विभिन्न प्रकार के रंग और चिकनाहट पायी जाती है। मिट्टी के कार्य के लिये छात्र को अधिक व्यय नहीं करना पड़ता। मिट्टी अनेक प्रकार की होती है कालीपीलीलाल तथा दोमट आदि किन्तु वर्तनखिलौने आदि बनाने में चिकनी और काली मिट्टी ही प्रयोग की जाती है । यह लसदार तथा मुलायम होती है। इसमें रेत का अंश नहीं रहता जिससे इसके बर्तन चटकते नहीं हैं।

मिट्टी के काम में आने वाले औजार- मिट्टी के काम के लिये हाथ की अंगुलियाँ ही मुख्य औजार हैं। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित औजारों की आवश्यकता पड़ती है –

1. लकड़ी की मौगरी

2. मुड़ा हुआ तार;

3. मिट्टी की नॉदः

4. पटरी;

5. लोहे का तवा या तसला;

6. तारों की चलनीः

7. पैमानाः

8. स्पंज का टुकड़ाः

9. परकार:

10. लकड़ी के कलम ।

मिट्टी के मॉडल निम्नलिखित पाँच प्रकार से तैयार किये जाते हैं –

1. स्वतन्त्र दृश्य द्वारा।

2. चाक द्वारा।

3. मिट्टी की पट्टियों से।

4. साँचों द्वारा।

5. बत्ती द्वारा या कुण्डली विधि से

उपयोग विधि तथा निर्माण कार्य- चिकनी मिट्टी खूब पीट-पीटकर पानी के साथ मिलाकर लुगदी तैयार करते हैं इसके उपरान्त बत्ती बना-बनाकर उसके आधार पर अपने बर्तन तथा खिलौने के रूप में लगाकर चाकू और छोटी मौगरी की सहायता से बनाते हैं। इसके बाद आग में पकाकर उनकी गोंद मिले रंग से सजावट करते हैं।

ठोस विधि द्वारा सेण्टीमीटर से 15 सेण्टीमीटर तक के बर्तन बनाये जाते हैं। इस ठोस प्रणाली विधि में पैदा तथा गर्दन के अतिरिक्त शेष भाग पहले से ठोस बना लिया जाता हैफिर किसी मुड़े हुए तार तथा कील आदि से ठोस पिण्ड को पीला कर लेते हैं। इसके बाद उसमें पेंदीगर्दनमुँह तथा हैण्डिल आदि जोड़ देते हैं। इस प्रणाली से फूलदानदवातपेपरवेट तथा कलमदान आदि बनाये जाते हैं ।

अंगूठ तथा अंगुलियों से बर्तन बनाना– इस विधि से पाँच सेण्टीमीटर से छोटे मांडल बनाये जाते हैं। अंगूठे तथा अंगुलियों से मिट्टी को एक-सा फैलाकर मिट्टी की शक्ल बनानी पडती है। यह मिट्टी के काम का मुख्य तरीका है। इस प्रकार वस्तु में सौन्दर्यता पैदा की जा सकती है। उपरोक्त विधियों के अतिरिक्त दो अन्य विधियाँ भी हैंजिनके प्रयोग में विशेष है। सावधानी और अभ्यास की आवश्यकता साँचे द्वारा मिट्टी के मॉडल बनाना- साधारण बर्तनघड़े या गमले आदि का आधा हिस्सा लेकर उसके साँचे बनाते हैं। जिस बर्तन को बनाना होता है उसके साँचे के बाहर की ओर राख लगा दी जाती है और उसकी ऊपर मिट्टी की पतली तह जमा दी जाती है। बाद में उसे साँचे से पृथक कर लिया जाता है। मिट्टी को साँचे में इस प्रकार दबाना चाहिये ताकि मिट्टी सतह में अच्छी तरह मिल जाये । बर्तन तैयार हो जाने पर निकलती हुई मिट्टी को छीलकर पानी का हाथ लगाकर एक-सा कर दिया जाता है।

मिट्टी के बर्तन पकाने की विधि – स्कूल के मैदान के किसी कोने में या किसी अन्य उचित स्थान पर गोल आकृति का एक गड्ढा बनाकर उसकी तह को टूटे मिट्टी के बर्तनों के टुकड़ों से ढंक देना चाहिये। इसके बाद सूखे पत्ते तथा राख को उसके ऊपर बराबर बिछाकर उपलों की तह लगाकर बड़े बर्तन नीचे और छोटे बर्तन ऊपर चिनकर रख दिये जाते हैं। बिना तली के बर्तन ऊपर-नीचे लगा दिये जाते हैं। इसमें से चिमनी की तरह धुआं निकलेगा। जितने बर्तन हैंउनको चिनकर बीच-बीच में उपले लगायें। इस प्रकार सभी बर्तन लगाने के बाद इन सभी के ऊपर उपलों की पूरी तह लगाकर सूखी पत्तियाँ आदि बिछाकर गीली मिट्टी से लेप कर देना चाहिए । लेप करने से इधर-उधर कम से कम चार छेद छोड़ दिये जाते हैं। इन सुराखों को इंटों में खोलने और बन्द करने का भी प्रबन्ध होता है। अब चिमनी वाले छेद में आग लगाकर कम से कम तीन दिन के लिये छोड़ दें। इतने समय के बाद पके हुए बर्तनों को निकालकर काम में लाया जा सकता है।

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