भारतीय त्यौहार तथा उनकी कलात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।

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 जहाँ आज के युग में मनुष्य भौतिक जीवन के सुख को प्राप्त करने की चेष्टा में व्यस्त हैं वहीं हिन्दू या भारतीय त्यौहारों में अपने आनन्द को प्राप्त करते हैं एवं भारत की अखण्ड संस्कृति को भी सुरक्षित रखते हैं। भारतीय आत्मा को जोड़ने के सेतु का कार्य करते हैं-भारतीय व्रत तथा त्यौहार । यहाँ हम भारत में होने वाले त्यौहारों का विस्तृत वर्णन करेंगे।

1. बसन्त पंचमी  जब समस्त खेत सरसों की पीली चादर ओढ़ लेते हैं तो देवी सरस्वती का पूजन इस दिवस पर किया जाता है। बच्चों की प्रथम पठन पाठन यानि पट्टी पूजन भी इसी दिन किया जाता है। 12 बजे देवी को पुष्पांजलि चढाकर सब प्रसाद ग्रहण करते हैं । कलाकार अपने कलम दवाततूलिका का पूजन इस दिन करते हैं । फरवरी माह के पंचम दिवस पर बसन्त पंचमी मनाई जाती हैं। देवी सरस्वती के हाथ में वीणा होती है। हर भारतीय हेतु यह त्यौहार उत्साहवर्द्धक होता है। इस दिन सब पीले वस्त्रपीला भोजन एवं पीला ही अलंकरण करते हैं ।

2. बैसाखी- अप्रैल माह के 13 वें दिन पंजाब में यह त्यौहार विशेषकर सिक्खों द्वारा बड़े उत्साह से मनाया जाता है। नई उपज के स्वागत तथा खुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है । इस दिन किसानों को जिन्हें अन्नदाता‘ कहा जाता हैका सम्मान किया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्यौहार को युगदी‘, असम में बोहाग बिहु‘ कहा जाता है।

3. बलराम जयन्ती- भाद्रपद कृष्ण शुक्ल षष्ठी के दिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम के जन्मदिवस के अवसर पर मनाया जाता है। बलराम का प्रमुख अस्त्र हल‘ हैं। यही कारण है कि इस त्यौहार को हल षष्ठी‘, ‘हर छठ‘, ‘ललही छठ‘ भी कहते हैं। हालांकि भारत एक कृषि प्रधान देश है अतः यहाँ पर हल का बहुत महत्त्व है । यही ऐसा त्यौहार है जो सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है एवं इसके द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण के जीवन में बलराम का क्या महत्त्व थादर्शाता है। इस दिन गाय दुग्धउससे बनी मिठाइयों एवं नई उपज का सेवन किया जाता है। सिर्फ भैंस बकरी के दूधं का प्रयोग किया जाता है । नई उपज का बेर की झाड़ी तथा पलाश से बदला पेड़ की झाड़ी से पूजन किया जाता है। ऐसी कथा है कि तारा तथा सलोनी नामक दो महिलाओं ने व्रत रखा एवं बाद में भोजन बनाकर बड़े से बर्तन में ठण्डा होने के लिए रखा। इतने में दो कुत्ते आ जाते हैं तथा भोजन खाने लगते हैं। तारा ने कुत्ते को इतना मारा कि वह मरणासन्न हो गया तथा अगले जन्म में तारा की कोख से जन्म लेने की कामना की ताकि वह तारा ले सके। इसी सोनम ने तारा को भोजन ग्रहण करवायाप्रेम से। इसलिए इस श्वान ने सोनम के पेट से जन्म लेने की कामना की। तत्पश्चात् कई बार तारा ने पुत्रों को जन्म दिया लेकिन हर बार उनकी मृत्यु हो जाती थी । इसलिए हर छठ‘ के दिन रात्रि में तारा को दिव्यस्वप्न आया तथा आज्ञा हुई कि अब आपको पश्चात्ताप हो रहा है इसलिए आज के दिन आप दूधदही एवं नई उपज का सेवन न करके और जानवरों के प्रति सद्भावना का व्रत रखेंगी तो आपको पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी तथा वह हर छठ‘ का त्यौहार बहुत उत्साहपूर्वक मनाया जायेगा।

4. बाली यात्रा- महानदीउड़ीसा के तट पर कटक में मनाया जाता है। पूर्णमासी के दिनं प्राचीन काल के नाविकों की याद में मनाया जाता है। जब जावासुमात्रा एवं बाली की खोज की गई थी। इस दिन प्रात:काल में ही सब महानदी‘ में जाते हैंस्नान करते हैंकई डुबकियाँ लगाने के बाद छोटी-छोटी नावों में बैठकर नौका-विहार के लिए जाते हैं। नदी के किनारे बहुत बड़ा मेले का आयोजन किया जाता है ।

5. भीष्म अष्टमी- माघ शुक्ल अष्टमी में भीष्म से बदला लेने की भावना से यह त्यौहार मनाया जाता है। महाभारत की कथानुसारशान्तनु एवं गंगा के पुत्र भीष्म ने प्रतिज्ञा की थी कि वे आजीवन अविवाहित रहकर कौरवों के राज्य हस्तिनापुर की सुरक्षा करेंगे। कुरुक्षेत्र के बीच जब कौरवों की हार होने लगी तो भीष्म ने कृष्ण द्वारा प्रयोग में लाने वाले समस्त हथियारों की शैय्या बनाकर उस पर लेट गये । अन्त में श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्ति दिलाने हेतु सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया। भीष्म की याद में यह त्यौहार मनाया जाता है।

6. ब्रह्मोत्सव (तिरुमला)- दस दिवसीय नवरात्रि के समय सितम्बर-अक्टूबर में यह त्यौहार बहुत शान-ओ-शौकत से मनाया जाता है। ब्रह्मा ने स्वयं श्री वैंकण्टाचलन महात्यम् में इस उत्सव का वर्णन किया है । ध्वजारोहण से शुरू होकर पुष्पयज्ञम् में यह उत्सव अत्यन्त नियमबद्ध होकर ब्रह्मा द्वारा श्रीनिवास की आराधना के लिए किया जाता है । राजकुमारी समावनी ने स्वर्ण एवं भूमि देकर पल्लव वंश में सात दिनों तक इस पूजा की घोषणा यह कहकर की थी जब तक सूर्य तथा चन्द्र रहेगा यह ब्रह्मोत्सव मनाया जायेगा।

इसके पश्चात् 1300 शताब्दी के साथ ही दो त्यौहार इसी तरह से विजयनगर काल से मनाया में भी बनाये जाने लगे। त्रिपति/त्रिमला में यह त्यौहार 10 दिनों तक बड़ी धूमधाम जाता है जो बालाजी वेंकटेश्वरम् के नाम से विश्वविख्यात है।

7. राम नवमी- रामचन्द्र के जन्मदिवस चैत्र शुक्ल मार्च-अप्रैल को मनाया जाता है । आज ही के दिन दशरथ-कैकेई ने भगवान् राम को जन्म दिया जो विष्णु के अवतार थे। इसी दिन तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। रामचन्द्र के जन्मदिवस के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है ।

8. नवरात्रि- चेत्र शुक्ल प्रतिपदा एवं अश्विनी शुक्ल प्रतिपदा में दिन लगातार नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। निरंतर दिन तक सब व्रत रखती है एवं रात्रि को गुजरात एवं अन्य प्रदेशों में मध्य में गेहूं का घड़ा रखकरदीपक जताकर चारों तरफ डांडिया नृत्य करते हैं। देवी शक्ति की आराधना में यह त्योहार बड़ी ही धूमधाम से समस्त विश्व में मनाया जाने लगा है |

9. शिवरात्रि भारतीय धर्म तथा संस्कृति का सर्वप्रिय त्यौहार शिवरात्रि बहुत धूमधाम से समस्त भारत में मनाया जाता है । इस दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। शिव मुक्तेश्वर हैं,पापकाटेश्वर हैंपापों से मुक्ति दिलाते हैं । आबदार दानी हैं । फरवरी-मार्च में माघ फागुन के समय में रात्रि में महाशिवरात्रि मनाया जाता है । अमावस्या के समय कलयुग के आगमन पर शिव अवतरित होते हैं। संसार को तमोगुण से बचाने हेतु हर‘ का स्वरूप लेकर प्रकाशमय होकर प्रकट होते हैं। राम तथा कृष्ण को आशीर्वाद देते हैं । इस रात्रि को शिव लिंगोद्भव‘ के रूप में पूजे जाते हैं।

10. भाई दूज- भाईदूज का त्यौहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन बहनें बेरी-पूजन भी करती हैं । इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा-यमुना में स्नान करना चाहिए। अगर यह सम्भव न हो तो बहन के घर जाकर नहाना चाहिए । बहन भाई को भोजन कराकर तिलक लगाकर गोला देती है। इस दिन बहिन के घर भोजन करने से भाई को अकाल मृत्यु का भय नहीं होता।

कथा- भगवान सूर्यदेव की पत्नी का नाम छाया था। उसकी कोख से यमराज एवं यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती थी कि वह उसके घर आकर भोजन करेंलेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे । कार्तिक भाई यमराज को भोजन करने हेतु बुलाया। शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने बहिन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष-विभोर होकर भाई का स्वागत-सत्कार किया एवं भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मॉँगने को कहा। बहिन ने भाई से कहा-” आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आया करेंगे एवं इस दिन को बहिन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे।”

यमराज तथास्तु‘ कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमपुरी को चले गये। ऐसी मान्यता है कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहिनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं उन्हें यम का भय नहीं रहता।

यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष को द्वितीया को मनाते हैं। इससे यम तथा उसकी बहन यमुना की कहानी कही जाती है। इसमें स्त्रयाँ दीवारों पर अलंकरण करती है जिसमें यह- यमीसगुन चिरेहयायमुनागायबैलसॉँपबिच्छूबाघभाई-बहनसूर्य-चाँदशिव-पार्वतीकलशदीपकसतियाकुम्हार का आवाकमलूआदि बनती हैं |

11. बुद्ध जयन्ती- वैशाख त्यौहार बुद्ध को समर्पित समस्त संसार में मनाया जाता है बुद्ध जन्मबुद्धि दिव्य ज्ञानपरिनिर्वाण ये अत: इसे वैशाख (अप्रैल-मई) नामक त्यौहार मनाया जाता है। बुद्ध अनुयायी घरों को सुसज्जित करते हैं एवं सड़कों पर प्रभात फेरी करते हैं । बौद्ध गयाराजगीरश्रीलंकाजापान आदि में यह त्यौहार अत्यन्त उत्साह से मनाया जाता है। सब केवल बुद्ध के जीवन में एक ही दिन हुआ था।

12. छठ पूजा- दिवाली के बाद छठवें दिन सूर्यदेव को समर्पित छठ पूजा विशेषकर बिहार में बहुत उत्साह से मनाया जाता है। नवीन उपजफलसब्जीसूर्यदेव को समर्पित किया है । निर्जला व्रत रखा जाता है एवं सन्ध्या समय सूर्यदेव की पूजा के बाद व्रत का उद्यापन किया जाता है 

13. दीपावली- कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व पूरे देश में बड़ी से मनाया जाता है। इसे रोशनी का पर्व कहना भी ठीक लगता है।

इस दिन लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने हेतु पहले से घरों की सफाई करके साफ-सुथरा कर लिया जाता है । कहा जाता ह कि कार्तिक अमावस्या को भगवान् श्रीरामचन्द्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर रावण को मारकर अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने श्रीरामचन्द्रजी के धूमधाम है लौटने की खुशी में दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था।

इस दिन उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। विक्रमी संवत् का आरम्भ तभी से माना जाता है। इसलिए यह नववर्ष का प्रथम दिन हैं।

आज के दिन व्यापारी अपने बहीखाते बदलते हैं एवं लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।

दीपावली पर जुआ खेलने की भी प्रथा है। इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर में भाग्य की परीक्षा करना है|

कथा- एक साहूकार था। उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी। पीपल पर लक्ष्मीजी का वास था। एक दिन लक्ष्मीजी ने साहूकार की बेटी से कहा तुम मेरी सहेली बन जाओ। उसने लक्ष्मीजी से कहा में कल अपने पिता से पूछकर उत्तर दूँगी। पित को जब बेटी ने बताया कि पीपल पर एक स्त्री मुझे अपनी सहेली बनाना चाहती है तो पिताश्री ने हाँ कर दी ।

दूसरे दिन साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया। एक दिन लक्ष्मीजी साहकार की बेटी को अपने घर ले गई। लक्ष्मीजी ने उसे ओढ़ने हेतु शाल दी एवं सोने की चौकी पर बिठाया। सोने की थाली में उसे कई तरह के व्यंजन खाने को दिये । जब साहूकार की बेटी खा-पीकर अपने घर को लौटने लगी तो लक्ष्मीजी बोलीं तुम मुझे अपने घर कब बुला रही हो।

पहले सेठ की पुत्री ने आनाकानी की लेकिन फिर तैयार हो गई। घर जाकर व रूठकर बैठ गई। सेठ बोले तुम लक्ष्मीजी के घर आने का निमन्त्रण दे आयी हो तथा स्वयं उदास बैठी हो । तब उसकी बेटी बोली लक्ष्मीजी ने मुझे इतना दिया है तथा बहुत सुन्दर भोजन कराया है। में उन्हें किस तरह खिलाऊंगी। हमारे घर में उसकी अपेक्षा कुछ भी नहीं है।

तब सेठ ने कहा जो अपने से बनेगा वह खातिर करेंगे। तू फौरन गोबर की चौक लगाकर सफाई कर दे तथा चार मुख वाला दीपक जलाकर लक्ष्मीजी का नाम लेकर बैंठ जा।

इसी समय एक चील किसी रानी का नौलखा हार उसके पास डाल गयी। साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर सोने की चौकीसोने का थालशाल तथा कई तरह के भोजन तैयार कर लिये ।

थोड़ी देर बाद गणेश और लक्ष्मीजी उनके घर पर आ गये। साहूकार ने बैठने हेतु सोने की चौकी दी लक्ष्मीजी ने बैठने से मना किया । तब साहूकार की बेटी ने लक्ष्मीजी को जबरदस्ती चौकी पर बिठा दिया। लक्ष्मीजी की उन्होंने बहुत खातिर की । इससे लक्ष्मीजी बहुत प्रसन्न हुई तथा उसे अमीर बना दिया। बहुत कार्तिक की अमावस्या को प्रकाश पर्व पर दीपावली पड़ती है ।

इस दिन भाँति-भाति के चौक तथा भित्ती चित्रों से घर को सजाया जाता है। पूजा की चौक बनाते हैं एवं गणेशलक्ष्मीकलशसूर्यचाँदहाथीमोरसतरेज दिये घरों में स्वास्तिक आदि के चित्र बनते हैं।

14. दशहरा (दुर्गा पूजा) – दशहराविजयलक्ष्मी-दसवीं विजय को विजयादशमी भी कहते हैं जो दसवें अश्विनी शुक्ल को मनाया जाता है। श्रीराम रावण को मारकर श्रीलंका में विजय प्राप्त करके परिवार सहित अयोध्या वापस आये थे । उनके स्वागत में नगरवासियों ने दीप जलाए थे। उन्हीं की याद में यह त्यौहार मनाया जाता है । गणेश लक्ष्मी की पूजन कर नये बहीखाते खोले जाते हैं एवं बंगाल में महिषासुरमर्दिनी के रूप में देवी दुर्गा की भव्य पूजा का जाती है। अच्छाई की बुराई पर जीत । अब यह त्यौहार सिर्फ भारत में ही नहीं मिश्रटकीईरानअसीरियाचीन में भी मनाया जाता है। इस दिन रावण का पुतला भी जलाया जाता है ।

15. गणगौर- मार्च माह के बीच में जयपुर में ग़़णगौर पूजन बहुत उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। माँ गौरी (पार्वती) से महिलाएं इस त्यौहार में अपने पति की दीर्घायु की कामना करता । कुंवारी कन्याएं अच्छे वर को कामना करती हैं । 18 दिन चलने वाले इस त्योहार से शिव-पार्वती की पूजा की जाती है । लकड़ी के बने शिव-पार्वती की पूजन होली के पश्चात् मनाया जाता है। अठारहवें दिन गौरा-गौरी को सजाकर नृत्य करते हुए नदी में विसर्जित कर दिया जाता है –

16. गोवर्धन- मध्य प्रदेश में दिवाली के दूसरे दिन पड़वा पर गोवर्धन पूजा के अवसर पर विविध तरह के गोवर्धनधारी कृष्ण की लीलाओं को लोककला में चित्रित किया जाता है । मध्य प्रदेश के बुन्देली शहर में कोई दिन या तिथि ऐसी नहीं होती है जब घर आंगन में चौक नहीं पूरते हैं। इस तरह मध्य प्रदेश में भूमि अलंकरण का बहुत महत्त्व है ।

17. होली- फागुन के  माह में कृष्ण द्वारा मधु कैटभ‘ राक्षस के वध के बाद संसार के जाने वाला त्यौहार है । बुराई पर अच्छाई की जीत को रंगों द्वारा इजहार किया जाता है । इस दिन राधा कृष्ण गोप गोपिकाओं द्वारा यह त्यौहार एक-दूसरे पर रंग डालकर शुरू किया गया था जो अब तक बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है । होलिका दहन करकेहोली अल्पना करके दो दिन तक यह त्यौहार पहले दिन सूखी दूसरे दिन गीले रंग से खेली जाती है। बहुत रंग-बिरंगा यह त्यौहार अब विदेशियों को भी बहुत भाने लगा है।

18. होला मोहल्ला- पंजाब के निहंगों द्वारा मनाया जाने वाला यह त्यौहार निहंगों की मार्शल कला को दर्शाता है। दसवें गुरु गोविन्द सिंह से दीक्षित यह पन्थ अपनी मार्शल कला के करतबों हेतु मशहूर हैं। 1699 में गुरु के निश्चित किया होली के रंगों के साथ यह उत्सव मनाया जाये । नीली वर्दी में सजीधनी सम्पूर्ण औजारों एवं बड़ी-सी पगड़ी में लैस गुरु गोविन्द सिंह की यह सेना सौष्ठवशौर्य तथा वीरोचित गुणों से भरपूर देश-विदेश में बड़े उत्साहपूर्वक मनाया जाता है । फरवरी एवं मार्च में होली के बाद आनन्दपुर साहेब पंजाब में यह त्यौहार मनाया जाता है । बसन्त के आगमन पर रंगों तथा खुशियों का इजहार करता यह त्यौहार ठीक होली के दूसरे दिन मनाया जाता है। रंग-बिरंगे वस्त्रोंअस्त्रों से सुसज्जित बोले सो निहालसत श्री अकाल‘ के नारे लगाता हुआ गुलाल तथा रंगों को बिखेरता यह त्यौहार अपने आप में अनूठा होता है । घुड़सवारीतलवारतीर कमानआदि से लैस यह त्यौहार शक्ति का प्रदर्शन करता है तथा अन्त में सब एक समय लंगर (भोज) लेते हुए त्यौहार का समापन करते हैं ।

19. जगन्नाथ यात्रा- ओडिशा के पुरी के रथ मन्दिर कोणार्क के मन्दिर के देव कृष्णबलरामसुभद्रा तीनों भाई बहन साल में एक बार यात्रा करने यानि रथ यात्रा‘ हेतु मन्दिर से बाहर आते हैं। रथ यात्रा से पहले दिव्य स्नान, 15 दिन विश्रामतत्पश्चात् तीन अत्यन्त बड़े रथों में सवार होकर अपने गर्मी के विश्राम गृह में जाते हैं जहाँ उन्हें उनके भक्तगण रथों को खींचकर ले जाते हैं। पुरी के राजा स्वयं आते हैं सर्वप्रथम वे स्वयं उस राह को साफ करते हैं जहाँ से कृष्णबलरामसुभद्रा की सवारी निकलती है । राजा बहुत सुसज्जित हाथियों पर सवार होकर आते हैं। यह समस्त त्यौहार एक सप्ताह तक मनाया जाता है जो अन्त में एक सप्ताह के बाद जब रथ वापस आते हैं तो यह त्यौहार खत्म होता है। सन्दल को चन्दन की खुशबू में नहाकर नाव की यात्रा करने के बाद उन्हें पुरुषोत्तम जिले में सम्पूर्ण पूजन के बाद स्थापित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस समय उनमें पूर्ण जीवन होता है वे जाग्रत होते हैं। इम्फाल में हिन्दुओं का यह द्वितीय सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। अब यह रथ यात्रा सम्पूर्ण भारत एवं विश्व में मनाया जाने लगा है । हरे रामाहरे कृष्णा के अनुयायी इस्कान‘ संस्था इसे सम्पूर्ण विश्व में मनाती है।

20. महावीर जयन्ती- जैनियों के सर्वाधिक पवित्र स्थान पारसनाथ में अप्रैल माह में पूर्ण शान से इस त्यौहार को मनाया जाता है । सहस्त्राब्दी गम्भीर नदी के तीर पर जयपुर से 140 किमी दूरी पर महावीर जयन्तीजैनियों के 24वें तीर्थंकर की जन्मतिथि को मनाया जाता है। अन्तिम दिन रथयात्रा होती है । मीणा जनजाति के लोग अपनी पारम्परिक वेशभूषा में इस कार्यक्रम में भाग लेते हैं। भारत सरकार की तरफ से यह सार्वजनिक अवकाश माना जाता है एवं जैनी इसे समस्त मन्दिरों में मनाते हैं।

21. माउण्ट आबू त्यौहार- माउण्ट आबू राजस्थान के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित है । पद्मपुराण में एक कथानुसार वशिष्ठ मुनि की गाय एक जंगल में गुम गई थी। शिव पूजन के बाद पवित्र सरस्वती नदी में अपना जल उस जंगल में छोड़ा तथा गाय नदी में तैरकर बाहर आ गई। इस तरह वशिष्ठ मुनि के आग्रह पर यह स्थान हराभराजल से परिपूर्ण हो गया । ब्रह्म कुमारी अकादमी द्वारा यहाँ पर समस्त बुद्धिजीवीचित्रकारसंगीतज्ञों का मान-सम्मान कर प्रतिवर्ष इस त्यौहार को मनाया जाता है।

22. पोंगल- पोंगल का अर्थ है नये चावल गुड़ में पके हुए‘ । नई फसल के स्वागत में यह त्यौहार तमिलनाडु के ग्रामीण अंचल में मनाया जाता है लेकिन अब चेन्नई एवं अन्य स्थानों पर मनाया जाता है । मकर संक्रान्ति के मध्य में यह त्यौहार समस्त दक्षिण भारत में अत्यन्त उत्साहपूर्वक मनाया जाता है । गऊ एवं अन्य घरेलू पशुओं को भी इस दिन सुसज्जित किया जाता है।

23. रक्षा बन्धन- श्रावण माह (जुलाई-अगस्त) में भाई-बहनों का यह त्यौहार है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के हाथ में रक्षासूत्र बाँधकरएक-दूसरे के प्रति अपनी आस्था तथा विश्वास दर्शाते हैं। रक्षा बन्धन को विष तोड़क‘, ‘पाप नाशक‘ भी कहा जाता है। शिव के आशीर्वाद से भाई-बहनों पर कोई कष्ट नहीं आता है।

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