भारतीय शिल्पकला का परिचय दीजिए और शिक्षा में इसकी प्रासंगिकता बताइए।

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भारत में बहुत प्रकार की शिल्प पाई जाती है। जो आज के समय में बहुत प्रचलित है। शिल्प के इतिहास में ध्यान दिया जाए तो यह शिल्प प्राचीन समय से लेकर अब तक चलती आ रही है जो कि देश विदेश में बहुत प्रसिद्ध रही है।

1. मिट्टी का काम- मिट्टी किसी भी काल्पनिक प्रगटावे को दर्शाने के लिए संभावी रास्ता है बच्चा किसी भी प्रगटावे को तब समझना शुरू करता है जब उससे वह करवा कर देखा जाता है या फिर उसमें कोई बदलाव किया जाता है। यह किसी भी आकार को सीखने का मापन बनता है। प्रत्येक बालक को शिल्प कला एवं बुत्त आदि देखने का मौका देना चाहिए। यदि संभव हो तो छूने की भी आज्ञा देनी चाहिए। पेपर मैशे भी विचार प्रकट करने का बढ़िया साधन हैं।

यह वह मूर्तियाँ होती हैं जो उभारू होती हैं जिससे भाव ऐसी मूर्तियों से है जिन्हें हम केवल सामने से ही देख सकते हैं पीछे से नहीं। यह मूर्तियाँ अधिकतम दीवारों के ऊपर उभरी हुई बनाई जाती हैं। इन मूर्तियों में अधिकतम पशुपक्षियों और मुँह जोड़ कर खड़े जोड़ों को बनाया जाता है । मूर्तियों को पुराने समय में दीवारों पर लगाया जाता था। यह मूर्तियाँ पीछे से चपटी और आगे से उभरी होती हैं। पुराने समय में बच्चों की तरफ से मिट्टी के खिलौने बनाये जाते थे और बच्चे बहुत आनन्द लेते थे। आज भी मिट्टी के खिलौनेबर्तन और मूर्तियाँ प्रचलित

2. पत्थर का काम- अन्य प्राथमिक सामग्री जिसमें ज्यादा तरीकों एवं तकनीक की जरूरत नहीं होती वह है पत्थर का कार्य । अलग-अलग प्रकार के पत्थरों में कई बहुत कीमती पत्थर होते हैं। जैसे कि रत्न को भिन्न प्रकार की बनावटबुत्त एवं गहनों आदि में प्रयोग किया जाता है । पत्थर का कार्य जो कई सालों से चलता आ रहा हैको अलग-अलग पहलुओं से जान लेना जरूरी है।

3. धातु शिल्प- धातु के कई प्रकार हैं जिसमें तकनीक मुख्य भूमिका निभाती है। काफी गिनती में शिल्पकला संस्थाएं धातु की बनी चीजों से अभ्यास करती रही हैं जिसमें तकनीकी जानकारीदेसी तकनीकउसे तरीके के साथ अंतिम रूप एवं चमक दी जाती है । चाहे U.P. का मुरादाबाद होबस्तर का कोनटा गाँव या उड़ीसा का चुटक होयह प्रांत हैं जहाँ धातु के कार्य को सैंकड़ों सालों से सम्भाल कर रखा गया है।

4. धागे की बुनाई- प्राकृतिक रेशे जैसे कि घासबाँसजूटपत्ते आदि अलग-अलग तरीकों के साथ प्रयोग किया जाता है जैसे कि बालियाँझाडूछतमैटंकपड़े आदि बनाने के लिए काम आता है । यह संस्थाओं को छत एवं आमदन प्रदान करता है। बहुत सारी संस्थाओं को इस कला का काफी अभ्यास है और जिसके साथ औरतें घरों में आम प्रयोग में आने वाली वस्तुएं बनाती हैं जहाँ और भी बहुत सारे कारखाने जूट से सामान बनाते हैं। यह अधिकतम उत्तर पूर्व में फैला हुआ है जहाँ बाँस का और डांगों का कारोबार है।

5. पोशाक कपड़ा- पोशाक मनुष्य की तीन जरूरतों में से एक है रोटीकपड़ा एवं मकान । जहाँ अधिकतम कपास की फसल पैदा होती हैकच्चे माल से शुरुआत होती है जिसमें बुनाईढाईछपाईपेंटकढ़ाईआदि का काम किया जाता है। लोगों के जीवन को देखा जाए तो पता चलता है कि प्रत्येक देशप्रदेश के वातावरणआर्थिक अनुसार कपड़ा नजर आता है। ठण्डे स्थान पर गर्म कपड़ा पड़ता है। गर्म स्थान पर ठण्डे कपड़े पहने जाते हैं। भारत के लोग जीवन में दुपट्टापजामाधोतीलंगोटचोलीकुड़ताअंगरखाचुनरी आदि के नाम हैं। पुराने समय में स्त्रियाँ स्वयं चरखे पर कताई करके कपड़ा जुलाई से बनवाती थीं। आज के समय में पहना जाने वाला कपड़ा पुराने समय की ही देन है ।

6. गहने– भारतीय स्त्रियाँ स्वयं का श्रृंगार करने के लिए गहने पहनना पसंद करती हैं। यह रीत प्राचीन काल से ही चली आ रही है। यह गहनेसोनेचाँदीपीतलताँबेपत्तियाँमंडकों के पत्थर के हो सकते हैं। जिस स्त्री ने अधिक गहने डाले होते हैं वह अमीरी की निशानी होती है । सगी फूला,टीकापट्टी,बुलाककंगनझुमकेपिप्पल पत्तियाँहमेले,मछलीलोंग कोकाकैंठासिल्लीहंसकड़ामुंदरीबाजू बंधघड़ी-चूड़ीपायलस्टड आदि गाँवों की औरतें डालती थीं। यह गहने सुनार द्वारा बनाए जाते थे फूल ।

चित्र- पहला प्रभाव जिसके साथ मनुष्य की आरंभिक भावनाओंजरूरतोंमानवीय जीवनदीवारोंछत्तोंफर्शपत्तोंलकड़ीकपड़े या अन्य समान पेंटिंग के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें शिल्प का भी कार्य होता है। बंगाल में अल्पना पर भी की जाती है। कई बार यह पेंटिंग त्यौहारविवाह पर भी कला की जाती है। पेंटिंग भारतीय कला एवं शिल्प दोनों में बहुत प्रसिद्ध है। प्राचीन समय में स्त्रियाँ कच्चे घरों की दीवारों पर घर को सुन्दर बनाने के लिए गोबर एवं मिट्टी के साथ-साथ पोछा करती थी।

9. कागज एवं कागज शिल्प- यह शिल्प बहुत सुन्दर कला है। कागज के साथ अलग-अलग वस्तुएं दृश्यपशुपक्षीफूलजहाजकिश्तीखिलौने आदि को बहुत खूबसूरत ढंग से बनाया जाता है। यह काम पेपर और पेपर मैशे से बनता है। J&K से केरल तक अलग-अलग वस्तुएं बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

10. रंगमंच शिल्प- मंच भी कला के रूप में प्रयोग होता हैइसमें कई प्रकार का कार्य किया जाता है। जैसे लकड़ी का कार्यमूर्तिकलापेंटिंग आदि जिसमें गहनेमुखौटे या अन्य परम्पराओं के अनुसार कला का प्रयोग किया जाता है

11. लकड़ी का काम- लकड़ी का कार्य भी शिल्प में डाला जाता है। लकड़ी से बना कार्यगहनेश्रृंगार का बक्सामनियारीखिलौनेलकड़ी की मूर्तियाँ बनाना लकड़ी की पेंटिंगपेपरवेट पैन स्टेंड बर्तनबटनपक्षीजानवरचाबियों का स्टैंड आदि लकड़ी का काम देखा जा सकता है

12. टोकरी बनाना– शिल्पकला में टोकरी बनाना भी एक कला माना जाता है। तूत की छटियों के द्वाराबाँस द्वारातिनकों द्वाराधागों के द्वारा बनाया जाता है ।

13. दरियाँ बुनना- प्राचीन समय से ही दरियाँ बुनना एक प्रसिद्ध रिवाज था। स्त्रियों द्वारा हाथ की कला द्वारा दरियाँ बुनी जाती थीं । दरियाँ बुनने के लिए सूत का प्रयोग होता है ।

14. हाथी के दाँत- हाथी के दाँतों की कला भी शिल्पकला मानी जाती है। हाथी के दाँतों द्वारा चूड़ियाँकंगलदाँतमालाजानवरपक्षीमूर्तिश्रृंगारबक्साबर्तन आदि बनाये जाते हैं।

15. खिलौने बनाना- हाथों की कला द्वारा कपड़े के खिलौने भी शिल्पकला का ही एक हिस्सा हैं। पुराने समय में स्त्रियाँ अपने बच्चों को अपने हाथों से कपड़े के खिलौने बना कर देती थीं। आज भी यह खिलौने प्रचलित हैं। बस आकार बदल गया है ।

16. पंखी बनाना- पंखी पंजाबी सभ्याचार में देखने को मिलती है। पंखों को धागे के द्वारा एक परंपरागत डिजाइन के द्वारा तैयार किया जाता है । तीज त्यौहार में भी स्त्रियाँ इकट्ठी होकर पंखियाँ बनाती हैं।

17. नाले बनाना- हाथों से नाले भी बनाए जाते हैं। नालों को अड्डे पर बनाया जाता है इसे शिल्प में देखा जा सकता है ।

18. पीढ़ी बुनना- पीढ़ी भी पंजाबी सभ्याचार में देखने को मिलती है । पीढ़ी को त्रिझंड में बैठकर बुना जाता है । पीढ़ी सूत नवार का प्रयोग करती है।

19. फुलकारी- फुलकारी को स्त्रियाँ तीज में निकालती हैं। यह शगुन के लिए प्रयोग होती है।

20. ईनू बनाना- इनू बनाना भी शिल्पकला में आ जाता है यह कपड़ों के टोटे द्वारा बनाया जाता है ।

शिक्षा में अनुकूलता :

1. कल्पना शक्ति का विकास- शिल्पकार का कल्पना शक्ति का विकास होता है। अलग-अलग द्वारा शिल्पकार आकृतियों को बनाता है। शिल्पकार की कल्पना शक्ति में वृद्धि होती है। नमूने चित्र आदि मनुष्य कल्पना द्वारा बनाता है ।

2. मानसिकता का विकास- शिल्प मानसिक जज्बोंभावनाओं एवं मन में अंकित भावनाओं को बाहर निकाल कर पेश करने का सर्वोत्तम साधन है जिससे कारीगर का मानसिक विकास होता है ।

3. निरीक्षण का विकास- शिल्पकार प्रकृति पदार्थों का निरीक्षण करते हुए सच की खोज करने और ज्ञान को स्पष्ट एवं मजबूत बनाने वाली शक्तियों का विकास होता है

4. अनुभव के उद्देश्य- शिल्पकार के अन्दर अनुभवों के उद्देश्य पैदा होते हैं। शिल्पक उसके ज्ञान में वृद्धि करता है। एक आकृति अनुभव कर करके ही सीखता है। अनुभव ही इतनी मेहनत के पश्चात सफलता मिलती है।

5. सभ्यता का विकास- हस्त शिल्प के द्वारा ही सभ्यता देखने को मिलती है। प्राचीन सभ्याचार जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आया वह शिल्प के द्वारा ही समाज के सामने आता है। आज के समय में भी बुद्ध काल एवं आदि काल की कलाकृतियाँ सुरक्षित हैं। शिक्षा के शिल्प द्वारा सभ्याचार सुरक्षित पड़ा है जिसकी झलकियाँ आज के समय में देखने को मिलती है।

6. व्यावसायिकता का उद्देश्य– शिल्पकला मनुष्य का व्यवसाय है जिससे मनुष्य अपनी आजीविका कमाता है। कलात्मक क्रियाकृतियाँ शिल्प हैं जिसमें चित्रकारीनृत्यकलामूर्तिकलानाटक खेलना आदि कलाकृतियाँ शिल्प में आती हैं जिससे मनुष्य को आजीविका कमाने एवं शोहरत कमाने का मौका मिलता है।

7. रस्म-रिवाज- शिक्षा में शिल्प के द्वारा हमें कई रस्मों-रिवाजों का पता चलता शिल्पकार ऐसी आकृतियों द्वारा हमारे समक्ष सभी रस्मों-रिवाज पेश करते हैं।

8. ट्रेनिंग कुशलता- शिक्षा में शिल्प की प्रशिक्षण दी जाती है ताकि बढ़िया-बढ़िया आकृतियाँकलाकृति समाज के सामने पेश कर सके जिससे उसे लाभ मिल सके जान डालती है।

9. कला पर निर्भर- शिल्प कला पर निर्भर है। कला ही शिल्प में शिल्प में कला का बहुत योगदान है । बनी हुई मूर्ति पर यदि कला की जाए तो वह बहुत बढ़िया जाती है जो कि देखने वाले का दिन जीत सके।

10. अन्य कलाएं- शिल्पकला में अन्य कलाएं भी आती हैं जैसे काठ कलाकलाताँबा कलापत्थर कलालोहा कला आदि कलाएं आती हैं।

11. धार्मिक भावनाओं का विकास- त्यौहारों एवं अन्य रीति-रिवाजों में शिल्प एक बढ़िया साधन है जिसमें विद्यार्थी का धार्मिक विकास होता है। लोक शिल्प तो धर्म की इकाई है जिसमें लोगों की धार्मिक भावनाएं

12. मनोरंजन- शिल्प का कार्य कभी-कभी मनोरंजन भी होता है। जब शिल्पकार का दिल नहीं लगता तब वह अपने मनोरंजन के लिए कार्य करता है। अध्यापक के लिए एक बढिया ढंग है। वह सुबह उनकी क्लासिस लगा कर बाद में काम करवा कर उनकी रुचि एवं प्रेरणा स्रोत बनता है।

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