मध्यकालीन भारत में संगीत के विकास पर प्रकाश डालिये।

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सल्तनत काल में संगीत कला :

तुर्कों के साथ भारत में नवीन वाद्य यन्त्रों यथा रबाब तथा सारंगी एवं नवीन संगीत शैलियों का भी आगमन हुआ। सल्तनत काल में संगीत कला की विशेष प्रगति न हो सकी जबकि पुगल काल में इस कला को विशेष संरक्षण प्रदान किया गया। पर फिर भी सल्तनत काल में संगीत पूर्णतया उपेक्षित न था। बलबनजलालुद्दीन तथा अलाउद्दीन खिलजी तथा मुहम्मद बिन तुगलक जैसे सुल्तानों के द्वारा अपने दरबारों में संगीत के मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किये जाने के प्रमाण प्राप्त होते हैं। अलाउद्दीन खिलजी ने विजयनगर के प्रसिद्ध संगीतज्ञ गोपाल नायक को अपने दरबार में आमंत्रित किया था। सैय्यद सुल्तान मुबारकशाह ने भी संगीत कला को संरक्षण प्रदान किया। सूफी सन्तों ने भी संगीत के भक्ति स्वरूप पर बल दिया। इन सूफी सन्तों में अजमेर के मुइनुद्दीन एवं दिल्ली के निजामुद्दीन औलिया का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है । प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो एक महान् संगीतज्ञ तथा निजामुद्दीन औलिया का शिष्य था। खुसरों को संगीत के नायक‘ तथा विशेषज्ञ‘ की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अरबी तथा फारसी में विभिन्न रागों की रचना की एवं कव्वाली का प्रारम्भ किया। सितार के आविष्कार का श्रेय भी खुसरो को प्राप्त है।

जौनपुर के शर्की वंश द्वारा भी संगीत को संरक्षण प्रदान किया गया। जौनपुर का शासक सुल्तान हुसैन शर्की संगीत का महान् संरक्षक था। इस संरक्षण का महत्वपूर्ण परिणाम सन् 1375 में लिखी गई पुस्तक गुनयात-उल-मुन्या‘ थी। भारतीय संगीत पर लिखी गई यह प्रथम पुस्तक थी । इब्राहिम शाह शर्की के दरबार में संगीत शिरोमणि‘ का संकलन किया गया। इस पुस्तक के संकलन में मदद देने हेतु विभिन्न भागों के हिन्दू पण्डित तथा संगीत शास्त्री आमंत्रित किये गये। ख्याल‘ का आविष्कार भी सम्भवतः शर्की वंश के हुसैन शाह शर्की ने किया था।

जौनपुर के अलावा एक अन्य प्रान्तीय राज्य ग्वालियर द्वारा भी संगीत को पर्याप्त महत्व तथा संरक्षण प्रदान किया गया। ग्वालियर के राजा मान सिंह के संरक्षण में मान कौतूहल‘ नामक पुस्तक तैयार की गई। इस पुस्तक में मुस्लिमों द्वारा शुरू की गई संगीत की समस्त नवीन शैलियों का समावेश किया गया। अन्य प्रान्तीय राज्यों में मालवा तथा गुजरात के सुल्तानों ने भी संगीत को प्रोत्साहित करते हुए संगीत शास्त्रियों को संरक्षण प्रदान किया। मांडू के बाजबहादुर की संगीत कला के प्रति विशेष रुचि थी। कश्मीर के जैनउद्दीन (1420-1470 ई) तथा दक्षिणी राज्यों के भी कतिपय सुल्तानों ने संगीत के विकास में सहयोग प्रदान किया। स्पष्ट है कि सल्तनत काल में भी संगीत कला पूर्णतया उपेक्षित नहीं थी। इस काल में धीमी गति से संगीत का विकास हुआ।

मुगल काल में संगीत कला :

मुसलमान लोग प्रारम्भ से ही संगीत प्रेमी रहे हैं । यह कहना गलत होगा कि कुरान संगीत के विरुद्ध है। मुगल शासक इसके प्रति जागरुक थे। भारतीय संगीत मध्यकाल में मुगलों के द्वारा अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था। बाबर स्वयं संगीतकार था। उसे गजल ख्वानी से विशेष प्रेम था। कई युद्धों के समय लड़ाई से अत्यधिक थकावट के बादवह गाना गाकर अपनी थकान दूर कर लेता था । हुमायूँ को भी संगीत से प्रेम था। इसके काल में सप्ताह में दो बार संगीत सभाएं सोमवार तथा बुधवार को होती थीं। इन सभाओं में अच्छे-अच्छे गायक इकट्ठा होते थे तथा वादशाह उन्हें कई पुरस्कार देता था। अकबर के दरवार में 36 गीतकार थेजिनमें बैजू बावरातानसेनअब्दुर्रहीम खानखाना आदि प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे।

अबुल फजल के अनुसार, “अकबर को संगीत विद्या का इतना ज्यादा ज्ञान था जितना कि कुशल गवैये को भी नहीं होगा। वह नक्कारा बजाने में बहुत कुशल था।” अकबर ने लाल कुलवन्त अथवा मिर्जा लाल के निरीक्षण में हिन्दी का अध्ययन किया । मियाँ तानसेन अकवर के काल का सर्वश्रेष्ठ संगीतज्ञ थाउसने राजा मानसिंह द्वारा ग्वालियर में स्थापित संगीत विद्यालय में संगीत की शिक्षा प्राप्त की । तानसेन ने कई राग बनाये । दुर्भाग्यवश 1589 ई. में 34 वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु हो गयी ।

अकबर का काल संगीत की दृष्टि से मुगलों का स्वर्ण युग था। अकबर स्वयं संगीत प्रेमी था। उसके दार में हिन्दू तथा मुस्लिम संगीत पद्धतियों का सम्मिश्रण हुआ।

जहाँगीर ने भी अपने पिता को परम्परा को बनाये रखा । उसके युग में भी संगीत की बड़ी उन्नति हुई! जौनपुर के सुल्तान हुसैन ने ख्याल को जन्म दिया। लेकिन जहाँगीर की रुचि संगीत की बजाय चित्रकला की तरफ ज्यादा थी। विलियम फिच का मत है,“कई सौ गवैये तथा नाचने वाली दिन-रात हाजिरी में रहती थीं पर उनकी बारी सातवें दिन आती थी। जहाँगीर ने स्वयं हिन्दी में कई गीत लिखे । इस समय के प्रमुख गवैये जगन्नाथ तथा जनार्दन भट्ट थे।”

शाहजहाँ भी स्वयं एक अच्छा संगीतज्ञ था । उसका गला भी बड़ा मधुर था । यदुनाथ सरकार ने लिखा है कि, “कई शुद्धात्मासूफीफकीर एवं संसार से सन्यास लेने वाले साधु सन्त भी उसका (शाहजहाँ) गाना सुनकर सुध-बुध विसार देते थे तथा परमात्मा में लीन हो जाते थे।” शाहजहाँ ने संगीतज्ञों को प्रोत्साहित किया। उसके दरबार में जगन्नाथरामदास आदि प्रसिद्ध संगीतज्ञ थे। वह संगीतज्ञों को बड़े पुरस्कार भी देता था। एक बार वह जगन्नाथ से इतना प्रसन्न हुआ था कि उसने सोने में तोल दिया था एवं वह सोना उसे इनाम में दे दिया था।

औरंगजेब- वह संगीत को विलासिता की वस्तु एवं कुरान के विपरीत समझता था। उसने संगीत पर प्रतिवन्ध लगा दिया था। उसके बारे में ऐसा प्रचलित है कि एक बार लोगों ने औरंगजेब की इस नीति के प्रति विरोध प्रकट करना चाहा। उन्होंने एक अर्थी बनाकर सम्राट के महलों के नीचे जुलूस निकाला । औरंगजेब ने शोर सुनकर उसके बारे में जानकारी की। पता चला कि लोग संगीत रानी की अर्थी उठाये हुए हैं। वह बड़ा प्रसन्न हुआ तथा उसने आदेश दिया कि संगीत रानी को जमीन में इतना नीचे दफनाया जाये कि वह ऊपर न आ सके। इस घटना से संगीत के प्रति उसके दृष्टिकोण का पता चलता है । औरंगजेब के काल में भी संगीतज्ञ अन्य प्रान्तों में चले गये तथा संगीत साधना करने लगे।

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