रंजन या रंगांकन किसे कहते हैं? वर्ण या रंग नियोजन किन तथ्यों पर आधारित होता है ? तीन वर्ण रंजन सामग्रियों का वर्णन कीजिए।

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 रंजन या रंगांकन- मानव के जीवन में रंगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । रंग हमें आकर्षित करते हैं। प्रकृति के चित्रण तथा वास्तविक चित्रण हेतु हमें रंगों की जरूरत होती है । आज रंगों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा रहा है तथा रंगों से सम्बन्धित नये-नये प्रयोग किये जा रहे हैं। हर वस्तु में रंग दिखाई पड़ते हैं । व्यावहारिक दृष्टि से भी रंगों का विशेष महत्त्व होता है। छात्रों को रंग अत्यधिक आकर्षित करते हैं। रंगांकन अथवा रंजन के अन्तर्गत वर्ण के साथ-साथ बुशअलंकरण रचना एवं विधि को शामिल किया जाता है।

वर्ण या रंग नियोजन :

वर्ण अथवा रंग नियोजन अग्रलिखित तथ्यों पर आधारित होता है –

1. एकवर्णीय वर्ण नियोजन- जब किसी एक रंगत (रंग) में काले तथा सफेद रंग के मिलाने पर विविध तान का प्रयोग चित्र की रचना करते समय किया जाये तो उसे एकवर्णीय वर्ण नियोजन कहते हैं। इसमें सिर्फ एक रंग की तानों का प्रयोग किया जाता है

2. द्विवर्णीय वर्ण नियोजन- जब किसी चित्र में हम दो रंगों का प्रयोग करते हैं तो उसे द्विवर्णीय वर्ण नियोजन कहते हैं। इसमें वर्ण चक्र के आमने-सामने वाले रंगों को ही लिया जाता हैजैसे-लाल के सामने हरा तथा नीले के सामने पीला । इसे विरोधी रंगों की संगत भी कहते हैं। इसमें रंगों की तान के स्थान पर दूसरे रंग का प्रयोग ही करते हैं।

3. बहुवर्णीय वर्ण नियोजन- इस वर्ण योजना में हम कई रंगों को चित्र में भरते हैं अतः इसे बहुवर्णीय वर्ण नियोजन पद्धति कहते हैं। इस योजना में किसी चित्र में रंग भरना चित्रकार की क्षमता पर निर्भर करता है क्योंकि बहुवर्णीय वर्ण नियोजन में एक ही साथ सभी रंगों को सन्तुलित करना बहुत कठिन होता है।

4. वर्ण संगति- जिस वर्ण चक्र में रंगतें आसपास तथा एक ही परिवार की होती हैं उसे वर्ण संगति वाली वर्ण नियोजन पद्धति कहते हैंजैसे-पीलालालनारंगी अथवा हरानीलाहरा आदि तीन-तीन रंग एक चित्र में अलग-अलग भरे जायें ।

तीन वर्ण रंजन सामग्री- तीन वर्ण रंजन सामग्री अनलिखित हैं –

1. जल रंग- यह वे रंग हैंजिन्हें हम पानी के साथ प्रयोग करते हैं। यह रंग चित्र में पहले हल्के भरे जाते हैं। इसके बाद गहरे रंगों का प्रयोग किया जाता है । इसके लिये गोलचपटे सेविल हेयर के बुशों का प्रयोग किया जाता है। यह रंग चाकस्टिकट्यूब एवं सूखे रूप में बाजार में मिलते हैं।

2. सूखे रंग- यह वे रंग हैं जो हमें सूखे रूप में मिलते हैं। पानी में घोलकर जल रंग के समान ही इनका प्रयोग किया जाता है। दूसरे तरह के सूखे रंग चाक के रूप में प्राप्त होते हैं। इन्हें पेस्टिल कागज पर प्रयोग में लाया जाता है।

3. तैल रंग- दीर्घकाल तक चित्रण को सुरक्षित रखने हेतु तैल रंगों का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक तरीके से बनाये गये ये रंग आधुनिक समय में सबसे ज्यादा प्रयोग में लाये जाते हैं। आधुनिक चित्रकार इन्हें अधिकतर प्रयोग कर रहे हैं। इन रंगों से कपड़ेकैनवासलोहेपत्थरलकड़ी आदि सभी पर चित्रण कर सकते हैं। इन रंगों में पहले गहरा रंग भरा जाता है। इसके बाद हल्के रंगों को भरा जाता है। तैल रंग में जल रंग की उल्टी पद्धति प्रयोग में लायी जाती है। इसके लिए हौग हेयर (सूअरों के बालों) के बुशों को काम में लाया जाता है। इन रंगों को ब्लेडचाकूनाखूनलकड़ी एवं सीधे ट्यूब को कैनवास पर लगाकर प्रयोग में लाया जाता है। इन रंगों को अलसी का तेल एवं टरपनटायन ऑयल के साथ मिलाकर प्रयोग में लाया जाता है। इसके लिए चपटे बुशों को काम में लाया जाता है 

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