लोक संगीत का वर्णन करो।

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 भारतीय संगीत के अन्दर सुगम‘ अर्थात् शास्त्रीय संगीत की जटिलता से दूर रहकर सरल मन-मन्दिर में सुगमता से इष्ट अपने प्रियजन को अधिष्ठित कर जो गीत गाये जाते हैंउसे सुगम संगीत कहते हैं। इसके अन्तर्गत लोक गीतभक्ति गीतदेशभक्ति गीतजनजाति रजवाड़ी गीत आते हैं।

1. लोक गीतु– भारत के हर महिला के मन आंगन पर राज करने वाले ये गीत शुभ घड़ी में गाये जाते हैं। चूंघट की ओट में जब गाँव की नववधू अपने प्रीतम को याद करके अथवा देवर को छेड़ते हुए कोई गीत गाती है अथवा विवाह के अवसर पर अपनी प्यार भरी फूल गेंदवा मारती है तो कोई भी चित्रकार अपनी तूलिका को तथा संगतराश अपनी छैनी को नहीं रोक है । राजस्थानपंजाबगुजरातमद्रास सभी स्थान पर गाये जाते हैं।

राजस्थान के लोक गीतों में लोक धुनों का बहुत समावेश होता है । इनके गीत आदिम जातियों द्वारा गाये जाते हैं एवं स्वरों तथा शब्दों की बहुत सादगी होती है ।

कँकू झेली वाली ए. कँकू आम्बारी रखवाली ए,

हियो हियो करलो रे वणजारिया हो

बोल रहे बणजारा थारी बालद क ए यू भरी।

पंजाब में बड़ा-सा परान्दालम्बी चोटीचुस्त सलवारकुर्ताकोटी के साथ साजो-श्रृंगार के साथ जब वहाँ की युवतियाँ लोक गीत गाती हैं तो वातावरण झूम उठता है। ऐसा ही एक लोक गीत प्रस्तुत है –

काला डोरिया, कुंडे नाल अड़ियाई आए

छोटा देवरा भाभी नाल लडिआई आए

छोटा देवर तेरी दूर भलाई ए

कुकड़ो और लैणी जेड़ी अण्डे देंदी ए

सौरे नई जागा सस ताने देंदी ए

कुकड़ी ओ लैणी जेड़ी बड़ी सयानी ए

सौरे नई जाणा, अजे उमर नयानी ए

सुथनां छींट दिया मुलतानी आइया ने

ससो परछाइयाँ ने जिना लकी नवाइयां ने

सुथनां छींट दिया ऐ दिल्लियां आइयां ने

मावां आपणिया जिनां रीजा लाइयां ने।

तरह लोक गीतों की मिठास, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तर बिल्कुल मांटी की सोंधी महक सी महकाती हैं।

2. भक्ति संगीत- धार्मिक गीतों को भक्ति गीत कहा जाता है। वैष्णवशैवशाक्त धर्म से सम्बन्धित गीतों को भक्ति संगीत कहा जाता है। इसके अन्तर्गत वन्दनाभजनकीर्तनआदि आते हैं। भारत मातासरस्वती वन्दना को आधार माना जाता है । कुछ उत्कृष्ट गीत यहाँ उद्धृत हैं। मीरा का भजन पायो री मैंने‘ या मेरे तो गिरधर गोपाल‘, सूरदास का मेरो मन अन्नत कहाँ सुख पायो‘, आदि उत्कृष्ट भक्ति गीत हैं।

सरस्वती वन्दना :

वर दे वीणावादिनि वर दे।

प्रिय स्वतन्त्र रव अमृत मंत्र नव,

भारत में भर देभर दे ! भर दे_

काट अन्ध उर के बंधन-स्तर,

वहा जननिज्योतिर्मय निर्झर।

कलुष-भेद-तम हरप्रकाश

जगमण जग कर देकर दे ! वर दे_

नव गतिनव लयताल-छन्द नव,

नवल कंठनव जलद मन्द्र रव ।

नव नभ के नव विहंगवृन्द को

नव पर नव स्वर दे । वर दे_

आरती कसरस्वती मातुहमारी हो भव भय हारी हो ।

हंस वाहन पद्मासन तेराशुभ वस्त्र अनुपम है तेरा ।

रावण का मन कैसे फेरावर मांगत मन गया सवेरा ॥

यह सब कृपा तिहारीउपकारी हो मातु हमारी हो ।

तमोज्ञान नाशक तुम रवि होहम अम्बुजन विकास करती हो ।

मंगल भवन मातु सरस्वती होबहुमूकन वाचाल करती हो।

विद्या देने वाली वीणाधारी हो मातु हमारी ॥

तुम्हारी कृपा गणनायकलायण विष्णु भए जग के पालक ।

अम्बा कहाई सृष्टि ही कारणभये शम्भु संसार ही घालक ॥

बन्दो आदि भवानी जगसुखकारी हो मातु हमारी ।

सद्बुद्धि विधायक मोही दीजैतुम अज्ञान हटा रख लीजै

जन्मभूमि हित् अर्पण कीजेकर्मवीर भस्महिं कर जीजे।

ऐसी विनय हमारी भवभयहारीमातु हमारी हो ।

ओ३म् जय जगदीश हरे :

3म् जय जगदीश हरेस्वामी जय जगदीश हरे,

भक्त जनों के संकटपल में दूर करे ॥ ओ3म् ॥

जो ध्यावे फल पावेदुःख बिनसे मन का ॥ प्रभु ॥

सुख सम्पत्ति घर आवैकष्ट मिटे तन का ॥ ओ3म् ॥

मात-पिता तुम मेरेशरण गहूँ किसकी ॥ प्रभु ॥

तुम बिन और न दूजाआस कहूँ मैं किसकी ॥ ओ3म् ॥

तुम पूरण परमात्मातुम अन्तर्यामी ॥ प्रभु ॥

पारब्रह्म परमेश्वरतुम सबके स्वामी ॥ ओ3म् ॥

तुम करुणा के सागरतुम पालन कर्ता ॥ प्रभु ॥

मैं मूरख खल कामी;पा करो भर्ता ।। 3म् ॥

तुम हो एक अगोचरसबके प्राणपति ॥ प्रभु ॥

किस विधि मिलूँ दयामयतुमको मैं कुमति ॥ ओ3म् ॥

दीन बन्धु दुःख-हर्तातुम रक्षक मेरे ॥ प्रभु ॥

अपने हाथ उठाओद्वार पड़ा तेरे ॥ ओ3म् ॥

विषय विकार मिटाओपाप हरो देवा ॥ प्रभु ॥

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओसन्तन की सेवा ॥ ओ3म् ॥

तनमन धन सब कुछ है तेरा ॥ प्रभु ॥

तेरा तुझको अर्पणक्या लागे मेरा ॥ ओ3म् ॥

आरती श्री कुंजबिहारी की :

आरती कुंजबिहारी की। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।

गले में वैजंती माला। बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवन में कुण्डल झलकाता। नंद के आनंद नंदलाला।

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की। गगन सम अंग काति काली।

राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े वनमाली।

भ्रमर सी अलक कस्तूरी तिलक । चंद्र सी झलक ।

ललित छवि श्यामा प्यारी की। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।

कनकमय मोर मुकुट बिलसै । देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सौं सुमन रासि बरसै।

बजे मुरचंग मधुर मिरदंग । ग्वालनी संग ।

अतुल रति गोप कुमारी की। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।

जहाँ ते प्रकट भई गंगा। कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।

स्मरन ते होत मोह भंगा।

बसी सिव सीस जटाके बीच । हरै अध कीच ।

चरन छवि श्रीबनवारी की। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।

चमकती उज्ज्वल तट रेनू । बज रही वृन्दावन बेनू ।

चहुँ दिसि गोपि ग्वाल धेनू ।

हंसत मृदु मंद चांदनी चंद । कटत भय फन्द ।

टेर सुन दीन भिखारी की। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।

आरती कुंज बिहारी। श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।

आरती भगवती महालक्ष्मी जी की :

3म् जय लक्ष्मी मातामैया जय लक्ष्मी माता।

3म् जय लक्ष्मी माताभैया जय लक्ष्मी माता।

तुमको निशिदिन सेवतहर विष्णु विधाता ॥ ओ3म् –

उमा रमाब्रह्माणीतुम ही जग-माता ।

सूर्य-चन्द्रमा ध्यावतनारद ऋषि गाता ॥ ओ3म् –

दुर्गा रूप निरंजनिसुख सम्पत्ति दाता ।

जो कोई तुमको ध्याताऋषि-सिद्धि पाता ॥ 3म् –

तुम पाताल निवासिनीतुम ही शुभ दाता ।

कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनिभव निधि की त्राता। 3म् –

में तुम रहतीसब सदगुण आता ।।

सब सम्भव हो जातामन नहीं घबराता ।। 3म् –

तुम बिन यज्ञं न होवेवस्त्र न कोई पाता।

खान-पान का वैभवसब तुमसे आता ॥ ओ3म् –

शुभ गुण मन्दिर सुन्दरक्षीरोदधि-जाता।

रत्न चतुर्दश तुम बिनकोई नहीं पाता। ओ3म् 

महालक्ष्मी जी की आरतीजो कोई नर गाता ।

उर आनन्द समातापाप उतर जाता ॥ ओ३म् –

बोलो भगवती महालक्ष्मी की जय ।

श्लोक  :

विष्णुप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं जगद्वते ।

आर्त हंत्रि नमस्तुभ्यं समृद्ध कुरु में सदा ।।

नमो नमस्ते माहामाय श्री पीठे सुर पूजिते ।

शंख चक्र गदा हरते महालक्ष्मी नमोस्तुते ॥

3. देशभक्ति गीत- राष्ट्र को समर्पित देश के आधार पर राष्ट्रीय भावनाओं को जाग्रत करने वाले गीतों को देशभक्ति गीत कहते हैं। भारत के राष्ट्रगान को विश्व का सर्वप्रिय तथा सर्वोत्कृष्ट गीत कहा गया है।

सारे जहाँ से अच्छा _

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा-हमारा।

हम बुलबुले हैं इसके ये गुलसिताँ हमारा-हमारा॥

परबत वो सबसे ऊंचा हमसाया आसमाँ का।

वो सन्तरी हमारा वो पासवाँ हमारा-हमारा।

सारे जहाँ से अच्छा _

गोदी में खेलती हैं इसकी हजारों नदियाँ।

गुलशन है जिनके दमन से रश्के-जना हमारा-हमारा ॥

सारे जहाँ से अच्छा _

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।

हिन्दवी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्ताँ हमारा-हमारा ।।

सारे जहाँ से अच्छा_

वन्दे मातरम् :

वन्दे मातरम् वन्दे मातरम् ।

सुजलां सुफलां मलयज-शीतलां शस्य-श्यामलां मातरम् ।

वन्दे मातरम् ॥

शुभ्रज्योत्स्नापुलकित यामिनीम्फुल्ल कुसमित द्रुमदल-शोभिनीम् ।

सुहासिनीम सुमधुर भाषिणीम् सुखदां वरदां मातरम् ।

वन्दे मातरम् ॥

सप्त कोटि कण्ठ कल-कल निनाद कराले,

द्विसप्त कोटी भुजैधत खरकरवाले ।

केवले मा तुमि अबले बहुबल धारिणीम् ।

नमानि तारिणीम्रिपुदल-वारिणीम्मातरम्वन्दे मातरम् ।

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषितां धरणी भरणी मातरम् ।

वन्दे मातरम् ॥

4. जनजाति गीत- भारत की विविध जनजातियों में उनके अपने स्थानीय यत्रों की मदद से गाये जाने वाले गीत जनजाति गीत‘ कहलाते हैं। भारत के विविध प्रान्तों के क्षेत्रीय प्रामों में गीतों का विशेष तीज-त्यौहार दिनचर्या के क्रिया-कलापों में गाये जाते हैं। ये जनजाति गीत कई तरह के हैं। इनके अनेकानेद रस एवं व्यवस्थाएं हैं लेकिन यहाँ कुछ का ही वर्णन किया जाएगा।

जनजाति गीतों में सोहर :

सोहर गीतों में पति-पत्नी के बीच हास-परिहास के प्रसंगों को बहुत सुन्दरता से गाया जाता है।

मोरे आंगन में निबिया बावरी।

मैं तोसे पूछाँ हैं बारी धनियाँ ।

मुँहवा तोर पीयर कैसे भये?

पोस्यों हरदिया छींटी परी ! मोरे_

मैं । तोसे पूछाँ हे बारी धनियाँ ।

अंगना में ललनवा केकर खेलैं?

काहे के राजा दिवाने भये हो,

सासू ननदिया दैके गई। मोरे_

तूं ताँ कमाया राजा रुपया से पैसा

हमहूँ कमायन रे लालनवाँ,

काहें क राजा मोरे बात छिपवों

देवरा से नजरिया लड़ गयी। मोरे_

5. रजवाड़ी गीत- रजवाड़ी गीतों को लाखों लोग गाते हैं तब ही इसे लोक गीत की श्रेणी में रखा गया है। ये रजवाड़ी गीत साधारण लोक गीत से ज्यादा परिष्कृत हैं। इन गीतों को सामन्त या विलासिता का गीत न समझकर शुद्ध लोक गीत मानना चाहिए। इन गीतों में प्रेमविलापमदिराशूरताशिकारआदि विषयों को लिया जाता है । इन गीतों का इतिहाससंस्कृतिसाहित्यराग सभी की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व है । रजवाड़ी लोक गीत भी दो वर्गों में एक तो पेशेवर गायक तथा दूसरा आम गृहणियों द्वारा गाये जाते हैं। पेशेवर गायक इसमें शास्त्रीय गायन का पुट डाल देते हैं। वाद्य वृन्द का भी सहयोग लेते हैं जिसमें ढोलनक्काराढोलकसितारसारंगीसिंधी सारंगी तथा कहीं-कहीं हारमोनियम को भी लिया जाता है । राजस्थान के जैसलमेर के पुराने नाम माढ़ पर राग माढ़ बना तथा वहाँ की बेटियाँ माढ़ेची‘ कहलाई। इसलिए इन गीतों में माढ़माढ़ेची शब्दों का खूब प्रयोग हुआ। राजस्थान में रजवाड़े पेशेवर गायक राणादमाचीलंघामांगणियारदाढ़ीसिरासीजांगड़नंगारची आदि कई जातियाँ हैं जो ये लोक गीत गाती हैं । इनकी स्त्रियाँ भी उच्च कोटि की गायिकाएं होती हैं । गबरी बाई,खुशहाली बाईमांगी बाईनराणी बाईतुलसी बाई,ललता बाईआदि कुछ मुख्य गायिकाएं हैं। सामूहिक रूप में बैठकर जब ये महिलाएं पाबूजीतीजगणगौरहिचकीकललीदारूड़ीसांवण चौमासाजच्चाझाला आदि गाती थी तो एक संस्कृति की झलक मिलती थी। इन रजवाड़ी गीतों में उर्दूफारसी शब्दों को भी चयनित किया जाता था जैसे आलीजाहरिजीमुजरा आदि।

इन गीतों में स्थापत्य कलाचीनी मिट्टी की तश्तरियाँसंगीत का आनन्दकविता सुननाआदि प्रमुख विषय होते थे। ओलगू लाखाखाजरूरिडमल आदि भी प्रिय विषय थे । रुसणा (रूठी रानी) का गीतमजनूकल्लालीझालोंम्हातूंवीरतापूर्ण गीतराती जग्गा (देवी-देवताओं के गीत) कई गीत हैं।

इन रजवाड़ी गीतों को विलुप्त नहीं होने देना चाहिए। विलुप्त होते इन गीतों को सुरक्षित करके हमें अपनी संस्कृति को जीवित रखना चाहिए ।

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