विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य तथा मूर्तिकला का वर्णन कीजिये।

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विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य तथा मूर्तिकला :

दक्षिण भारत में दिल्ली सुल्तानों के सैनिक अभियानोंयुद्धों तथा राज्य विस्तार से वहाँ के हिन्दुओं के राज्यधर्म एवं संस्कृति का जो विनाश हुआ उससे क्षुब्ध होकर हिन्दुओं ने इस्लाम विरोधी आन्दोलन किये। विजयनगर का अभ्युदय इसी धार्मिक तथा सांस्कृतिक आन्दोलन का परिणाम था । मुहम्मद तुगलक के समय जब दक्षिण में उसके विरुद्ध विद्रोह तथा अराजकता फैलीउस समय हरिहर एवं बुक्का दो भाइयों ने मुस्लिम विरोधी हिन्दू आन्दोलन को मूर्त रूप देने के लिए 1336 ई. में विजयनगर (विद्यानगर) की स्थापना की। विजयनगर साम्राज्य के शासक अपने कला-प्रेम के लिए विख्यात थे। उन्होंने बहुत से महलसार्वजनिक इमारतें तथा मन्दिर निर्मित कराये । मन्दिरों की अत्यधिक संख्या के कारण विजयनगर को मन्दिरों का नगर‘ भी कहा जाता था। विजय नगर साम्राज्य के स्थापत्य तथा मूर्तिकला का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

(i) स्थापत्य मन्दिर –

(a) विट्ठल मन्दिर- यह मन्दिर हम्पी में कृष्णदेव (1509-1530) के समय शुरू हुआ था तथा अच्युत (1530-1542 ई) के समय पूर्ण हुआ। यह आयताकर रूप में 152 मी. लम्बा तथा 94 मी. चौड़ा है । इसकी ऊंचाई 7.05 मी. है। इसका गर्भ स्तम्भों की कतारों से घिरा । कुल स्तम्भ 562 हैं। प्रत्येक स्तम्भ को छूने से उसमें अलग-अलग तरह के संगीत सुनाई। महामण्डप का देते हैं।‘ गर्भ गृह में विठ्ठल की मूर्ति है। इसमें अर्द्ध एवं महामण्डप भी भाग 30×18 मी. है। इसके स्तम्भों की बनावट विचित्र है। छुत खुदी हुई है तथा सुन्दर ढंग से तैयार की गई है। अर्द्धमण्डप में दो तरफ से आने का मार्ग है। चारों कोने में चार स्तम्भ हैजिन पर आधे मनुष्य तथा आधे दानव की आकृतियाँ है । गर्भ-गृह में जाने को एक मार्ग है। इस सीमा के भीतर कल्याण-मण्डप है। महामण्डप के सामने एक सुन्दर भवन है जिसे रथ‘ कहते हैं। बाहर से मन्दिर की सीमा में आने हेतु गोपुरम् के साथ तीन द्वार बने हैं।

(b) हजाराराम स्वामी का मन्दिर- इसे भी कृष्णदेव राय ने ही बनवाया था। इस मन्दिर में राजवंश के लोग पूजा करने आते थे। इसमें अर्द्ध मण्डुप से गर्भ गृह में जाने का एक चौड़ा मार्ग बना हुआ है। इसके स्तम्भ पूरी तरह से खुदे हुए हैं। इसमें अम्मान मण्डप (बिना शिखर का) एवं विमान अथवा रथ मण्डप (शिखर युक्त) अत्यन्त सुन्दर हैं । मन्दिर की छत में एक विशेष तरह का अलंकरण है। इसके बेल-बूटे द्राविड़ शैली में नवीनता पैदा करते हैं क्योंकि ये इंटसीमेण्ट एवं रंग के प्रयोग से तैयार किए गये हैं । मन्दिर की दीवारों पर रामचरित‘ प्रस्तर पर खुदा हुआ है । रामलीला समस्त दीवार पर स्पष्टतः देखी जा सकती है ।

(c) अन्य मन्दिर- विजयनगर राज्य के अन्य कई सुन्दर मन्दिर वेलोरकुम्भकोणमताडपत्री एवं श्रीरंगम में पाये जाते हैं। वेलोर के मन्दिर का कल्याण मण्डप सर्वप्रसिद्ध है । उसके स्तम्भों पर चित्र लिपिराक्षस तथा अन्य आकृतियाँ हैं । मन्दिर का गोपुरम विशाल है। कांची के वरदराज मन्दिर में 1000 स्तम्भ हैं । ताडपत्री के मन्दिर का गोपुरम सबसे ज्यादा सुन्दर है एवं अलंकृत है । श्रीरंगम् का मन्दिर द्राविड़ शैली का अद्भत नमूना है । इसके गर्भ गृह तक पहुँचने हेतु एक दिशा में गोपुरम से युक्त द्वार बने हैं। इसके अतिरिक्त पंपाथी का मन्दिर इंजीनियरी हुनर का कमाल है । जिज्जी के मन्दिर में स्त्री की मूर्ति गांधार तथा मथुरा की स्त्री मूर्ति के सादृश

(ii) मन्दिरों का अलंकरण –

विजयनगर के मन्दिरों के स्तम्भों तथा मेहराबों का अलंकरण इस तरह घना होता चला जाता है कि प्रस्तर में नाटक का भाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। स्तम्भों पर ज्यादातर घोड़े या किसी दैवी जानवर की आकृति होती हैं । स्तंभ नीचे घनाकार हैं और ऊपर आठ या सोलह कोण ले लेते हैं । वेलोर मंदिर में घोड़े के नीचे वामन पुरुषों को दबाया हुआ दिखलाया गया हैजो या तो किसी जंगली जाति पर विजय बतलाते हैं अथवा मुसलमानों की पराजय । विट्ठल मंदिर की गजसिंह तथा पीठिका पर बैठी अंकित सिंह आकृतियाँ बहुत सुन्दर हैं । कल्याण-मण्डप के स्तम्भों पर राजा रानी हैं। वर्गाकार स्तम्भों पर धार्मिकसामाजिक तथा काल्पनिक विषयों के दृश्य हैं। नीचे चारों कोनों में नागबंध हैं। मन्दिरों के द्वार पर हाथी अथवा द्वारपाल हैं।

(iii) महल एवं दुर्ग –

विजयनगर राज्य के ज्यादातर भवन पहाड़ों पर बने थे। उन्हें देखकर यह कहना कठिन है कि ये पत्थर खण्डों को जोड़कर बनाये गये थे अथवा पहाड़ों को ही काटकर बनाये गये थे दुर्गों के अवशेषों से उनके विशाल होने का पता चलता है । इनके सभा-भवनसिंहासन का स्थान तथा विजय-स्मारक स्थान विशेष सुन्दर बने थे।

(iv) स्थापत्य में नायकों की भूमिका –

विजयनगर के नायकों ने भी भवन एवं मन्दिर बनाने में पर्याप्त लगन दिखलाई । मदुरा का मीनाक्षी मन्दिर भारत के स्थापत्य का बेमिसाल नमूना है ।

(v) मूर्तिकला –

विजयनगर की मूर्तिकला मध्ययुग की कला का प्रतिनिधि मानी जाती है। मूर्तियों में अलंकरण भावों पर गहराया है। मूर्तियों के अंगों में अनुपात है। अधिकांश मूरतें शास्त्रीय सिद्धान्तों पर बनी हैं। गर्भगृह की मूरतों में बाहर से भीतर प्रकाश पहुँचाया जाता थाजिससे उनकी विलक्षण शक्ति बनी रहे । मन्दिरों की दीवारों पर कई तरह की मूर्तियाँ होती थीं । पार्श्वदेवता की बड़ी मूर्ति गर्भ गृह के मुख्य मार्ग के दोनों ओर बनी होती थी। दिकपालशालभंजिकाशार्दूल (आधा मनुष्यआधा जानवर)गुरु-शिष्यमिथुनसैनिकजानवर आदि की मूरतें आम थीं । प्रस्तर मूरतों के अलावा विजयनगर में धातु की भी कई मूरतें बनीं । शास्त्रीय ढंग के समावेश के कारण उनमें गंभीरता आ गई है।

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