विद्यालयी स्तर पर रंगोली तथा अल्पना बनाने का वर्णन करो।

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वे दोनों ही कार्य रंगों से संबंधित होते हैं। इसमें विविध तरह के रंगीले रंग तथा पदार्थों का प्रयोग किया जाता है । इसमें विविध तरह के गुलाल तथा रंगों के चूर्ण को उपयोग में लाया जाता है। यह भी विशेष की कला है। इसका प्रयोग विविध तरह के कार्यक्रम तथा शुभ अवसरों पर किया जाता है। विद्यालय में इस तरह के कार्यक्रम सामान्य रूप से होते रहते हैं। प्रशिक्षुओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने प्रशिक्षण काल में ही सभी रंगोली एवं अल्पना बनाने के कार्य को सीख लेंजिससे कि वह अपने शैक्षिक जीवन में भी इसका उपयोग अपने विद्यालय में विभिन्न अवसरों पर कर सकें। इसमें रंगों के चूर्ण से मनमोहक चित्र तथा डिजाइन बनायी जाती हैंजिसका उद्देश्य कार्यक्रम को आकर्षक बनाना होता है। विविध रंगों के माध्यम से कार्यक्रम के विशेष उद्देश्यों को भी प्रदर्शित किया जा सकता है । इस तरह रंगोली चित्रकला का ही एक पक्ष हैजो कि विविध अवसरों पर कार्यक्रम निर्माण की व्यवस्था को प्रभावी तथा रुचिपूर्ण बनाने में सहयोग करता है

रंगोली तथा अल्पना बनाने के लाभ- रंगोली तथा अल्पना बनाने की योग्यता के विकास से प्रशिक्षुओं को विभिन्न तरह के लाभ होते हैंजिनका उपयोग वे अपने भावी शैक्षिक जीवन में अपनी कक्षा तथा विद्यालय के छात्रों को रंगोली तथा अल्पना बनाना सिखाकर करते हैं। इसके प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लाभों का वर्णन अग्रलिखित रूप में किया जा सकता है –

(1) रंगोली के निर्माण की प्रक्रिया से प्रशिक्षुओं को इस तथ्य का ज्ञान होता है कि रंगों का प्रयोग किस तरह करना चाहियेकिस तरह के रंगों का अनुबन्ध उचित रूप में होगाइससे भविष्य में प्रशिक्षु उचित समन्वयवादी परम्परा के आधार पर रंगों का प्रयोग करके अपने शैक्षिक जीवन में रंगोली का निर्माण कर सकेंगे।

(2) रंगोली तथा अल्पना निर्माण की योग्यता प्राप्त करने के बाद प्रशिक्षु इसका उपयोग विद्यालय के सजाने में ही नहीं बल्कि अपने घर-परिवार। में होने वाले अनेक मांगलिक कार्यों में कर सकेंगे।

(3) रंगोली तथा अल्पना के निर्माण की योग्यता प्राप्त करने के बाद प्रशिक्षु अपने भावी जीवन में प्राचीन परम्परा को जीवित रख सकेंगे क्योंकि यह भारतीय कला की एक प्राचीन परम्परा के रूप में स्वीकार की जाती है ।

(4) रंगोली तथा अल्पना भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता का प्रतीक है क्योंकि प्राचीनकाल में मांगलिक अवसरों पर इन सभी कार्यों के माध्यम से घर द्वारों तथा भवनों को सजाया जाता था।

(5) रंगोली तथा अल्पना के माध्यम से विविध तरह के मांगलिक प्रतीकों का अंकन किया जाता हैजिन्हें किसी भी कार्यक्रम के लिए शुभ माना जाता है एवं यह समझा जाता है कि इन प्रतीकों पर कार्यक्रम की सफलता निर्भर करती है ।

(6) रंगोली तथा अल्पना अप्रत्यक्ष रूप में चित्रकला से सम्बन्धित होती है। इसमें प्रशिक्षुओं को सामान्य रूप से चित्रकला से सम्बन्धित विविध पक्षों का ज्ञान सम्भव हो जाता है । इसके माध्यम से विविध तरह के चित्रों को चित्रित किया जा सकता है

(7) रंगोली तथा अल्पना के माध्यम से विविध तरह के मांगलिक प्रतीकों का अंकन किया जाता है। ये प्रतीक हमारी सभ्यता तथा संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं

रंगोली तथा अल्पना बनाने में सावधानियाँ- रंगोली तथा अल्पना बनाने की योग्यताका विकास प्रशिक्षुओं में करने के मूल में एक उद्देश्य छिपा होता है । इस उद्देश्य की प्राप्ति तभी सम्भव हो सकती हैजबकि इस कार्य का सम्पादन सावधानीपूर्वक किया जाये।

इस सोपान की प्रमुख सावधानियाँ निम्नलिखित रूप में हैं –

(1) रंगोली बनाते समय उसके आकार का ध्यान अवश्य रखा जाये । जब किसी बड़े हॉल में रंगोली बनायी जा रही है तो उसका आकार बड़ा होना चाहिये तथा छोटे कक्ष हेतु आकार बड़ा होना चाहिए एवं छोटे कक्ष हेतु आकार छोटा होना चाहिये।

(2) रंगोली बनाते समय रंगों का चुनाव भी अवसर की स्थिति के अनुसार करना चाहियेजिससे कि उस अवसर का भी संकेत मिल सके। धार्मिक अवसरों पर शान्त रंगों से रंगोली बनानी चाहिये एवं बाल दिवस पर गहरे रंगों से रंगोली तथा अल्पना का निर्माण करना चाहिये ।

(3) रंगोली का निर्माण करते समय यह ध्यान रखा जाये कि जनता के लिये प्रभावशाली सन्देश जाये अर्थात् रंगोली तथा अल्पना का निर्माण सार्थक रूप में होना चाहियेजैसे-यज्ञ कुण्ड तथा वैज्ञानिक प्रयोग आदि ।

(4) रंगोली बनाते समय भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का ध्यान रखना चाहिये अर्थात् रंगोली तथा अल्पना में भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता से सम्बन्धित तथ्यों का समावेश करना चाहिये ।

(5) रंगोली तथा अल्पना एक प्राचीन परम्परा है। अतः वर्तमान में इसका स्वरूप प्राचीन तथा आधुनिकता के समन्वित रूप में होना चाहियेजिससे समाज अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति से सम्बद्ध रहे ।

(6) रंगोली जिस अवसर पर बनायी जा रही है। उस उद्देश्य की पूर्ति करने वाली होनी चाहिये क्योंकि अवसरों के अनुसार ही रंगोली तथा अल्पना का स्वरूप निर्धारित किया जाता है।

उक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि रंगोली तथा अल्पना का सम्बन्ध भारतीय संस्कृतिसभ्यताप्राचीन परम्पराओं तथा कला शिक्षा से होता है। वर्तमान समय में शिक्षा के व्यापक उद्देश्यों की पूर्ति को ध्यान में रखते हुए प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण काल में ही इस कला के क्षेत्र में प्रशिक्षित किया जाता हैजिससे वे एक तरफ प्रत्येक कार्यक्रम को प्रभावशाली तथा आकर्षक बनाने में सफल हों वहीं दूसरी तरफ शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रदान कर सकें।

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