कम्प्यूटर की विभिन्न पीढ़ियों का वर्णन कीजिए।

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कम्प्यूटर पीढ़ियाँ

अबेकस से शुरू हुई कम्प्यूटर की विकास यात्रा कई चरणों से गुजरते हुए वर्तमान डिजिटल कम्प्यूटर तक पहुंची। 1946 में विकसित ENIAC (Electronic Numerial Integrator and Calculator) को प्रथम इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर कहा जा सकता है । इसके बाद EDVAC, EDSAC आदि Vacuum Tube पर आधारित कम्प्यूटर्स आये। इसके बाद ट्रांजिस्टर, इंटिग्रेटेड सर्विस, LSI, VLSI सर्किट पर आधारित कम्प्यूटर्स विकसित होते गये ।

समय के साथ–साथ कम्प्यूटर की प्रोसेसिंग तथा संग्रहण क्षमता में वृद्धि होती गई एवं आकार और कीमतों में कमी होती गई। 1950 तक कम्प्यूटर्स का उपयोग सेना, इंजीनियरिंग तथा विज्ञान के क्षेत्रों तक ही सीमित था। 1950 के बाद इसका व्यावसायिक क्षेत्रों में उपयोग होना शुरू हुआ एवं 1995 के बाद तो इसका उपयोग घरेलू कार्यों तक में होने लगा है। कम्प्यूटर के इसी विकास–क्रम को निम्न पाँच पीढ़ियों के अन्तर्गत वर्णित किया गया है–

(I) प्रथम पीढ़ी (First Generation 1947–1959)

1946 में जे.पी. एकर्ट तथा जॉन मुचली द्वारा प्रथम इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर ENIAC (Electronic Numerial Integrator and Calculator) का अविष्कार पेनिसिलवेनिया विश्वविद्यालय की मर स्कल ऑफ इंजीनियरिंग में किया गया। इसका विकास मख्यत: कार्यों के लिए किया गया था। इसमें 18000 वैक्यूम ट्यूब्स का उपयोग किया गया था। यह दो संख्याओं को 200 माइक्रोसैकण्ड्स में जोड़ता था एवं 2000 माइक्रोसैकण्ड्स में गुणा करता था। यह लगभग 150 वर्गमीटर क्षेत्र घेरता था।

1945 में वॉन न्यूमैन ने ‘स्टोर्ड प्रोग्राम कम्प्यूटर’ का विकास किया। इसमें डाटा के साथ निर्देश भी स्टोर होते थे जिससे स्वचालित क्रियायें हो सकें । इसे EDVAC (Electronic – Discrete Variable Automatic Computer) कहा जाता है । इसमें सर्वप्रथम बाइनरी का प्रयोग हुआ। इसी विचारधारा के आधार पर ब्रिटेन के महाविद्यालय के मोरिस विल्कस् ने EDSAC (Electronic Delay Storage Automatic Calculator) का विकास किया । इसमें जोड़ 1500 माइक्रोसैकण्ड्स में एवं गुणा 4000 माइक्रोसैकण्ड्स में होता था। 1950 में रेमिंगटन रेंड कम्पनी द्वारा UNIVAC–1 का विकास किया गया। इसमें वैक्यूम ट्यूब्स का उपयोग होने से विद्युत खर्च काफी होता था एवं ट्यूब्स में उपयोग होने वाले फिलामेंट की आयु काफी कम होती थी। इसमें कार्यक्रम मशीन द्वारा (0–1) में लिखे जाते थे।

मुख्य विशेषताएँ– प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर्स की प्रमुख विशेषताएँ इस तरह थीं–

(1) अत्यधिक खर्चीली प्रणाली

(2) अधिक विशाल आकार

(3) धीमी गति

(4) मुख्य स्विचिंग डिवाइस–वेक्यूम ट्यूब

(5) संग्रहण डिवाइस– मैग्नेटिक ड्रम

(6) प्रोग्रामिंग भाषाएँ–मशीनी भाषा, एसेम्बली भाषा।

(II) द्वितीय पीढ़ी (Second Generation 1959–1965)

1947 में अमेरिका की बेल लेबोरेट्री में कार्यरत जोन बारडीन, वाल्टर ब्रेटेन तथा विलियम शॉकले द्वारा ट्रांजिस्टर का विकास किया गया । वैक्यूम ट्यूब्स में फिलामेंट का उपयोग होता था जिसका जीवनकाल काफी छोटा होता था जबकि ट्रांजिस्टर में जरमेनियम सेमीकण्डक्टर का उपयोग होता था जो कि काफी कम स्थान एवं विद्युत शक्ति का उपयोग करते हैं। इन कम्प्यूटर्स में प्रिंटेड सर्किट्स का उपयोग किया गया था। ICT 1300 एवं IBM 1401 इसके प्रमुख उदाहरण हैं । इन कम्प्यूटरों में लगभग 10,000 ट्रांजिस्टर्स का उपयोग होता था।

इसी काल में डाटा स्टोरेज के लिए मेग्नेटिक कोर का आविष्कार हआ। मेग्नेटिक कोर फेराइट की बनी हुई छोटी–छोटी रिंग्स होती हैं जो चुम्बकीकृत होती हैं । मेग्नेटिक डिस्क का आविष्कार भी इसी चरण में हुआ। इस तरह इस युग के कम्प्यूटर अधिक शीघ्र परिणाम देने वाले एवं प्रथम चरण के कम्प्यूटरों की अपेक्षा ज्यादा मेमोरी क्षमता वाले थे। इसी चरण में उच्चस्तरीय भाषाओं जैसे FORTRAN, COBOL, ALGOL आदि का विकास हुआ। इस चरण में व्यवसाय तथा उद्योग के क्षेत्र में कम्प्यूटरों के उपयोग में काफी वृद्धि हुई । IBM 605 इसका उदाहरण है।

मुख्य विशेषताएँ– द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर्स की प्रमुख विशेषताएँ इस तरह थीं–

(1) छोटा आकार

(2) शीघ्र गणन कार्य

(3) अधिक वाणिज्यिक उपयोग

(4) मुख्य स्विचिंग डिवाइस–ट्रांजिस्टर

(5) संग्रहण डिवाइस– मैग्नेटिक कोर मेमोरी, मेग्नेटिक टेप तथा मेग्नेटिक डिस्क

(6) प्रोग्रामिंग भाषाएँ– उच्चस्तरीय भाषाएँ जैसे–BASIC, COBOL एवं FORTRAN आदि।

(III) तृतीय पीढ़ी (Third Generation 1965–1975)

इस चरण में इंटीग्रेटेड सर्किट्स (Integrated Circuits) [IC] का आविष्कार हुआ। ” इसमें एक चिप पर हजारों की संख्या में ट्रांजिस्टर, रजिस्टर, कैपेसिटर्स को स्थित किया जा सकता है। इससे कम्प्यूटर का आकार काफी छोटा हो गया एवं सर्किट्स की स्विचिंग गति काफी बढ़ गई जिससे शक्तिशाली सी.पी.यू. का निर्माण होने लगा जो कि एक प्रति सैकण्ड 10 लाख निर्देशों । का पालन कर सकते हैं । इससे नेनों सैकण्ड्स जो कि माइक्रोसैकण्ड का एक हजारवां भाग हैं में कार्य होने लगा । IBM –360, ICL–1900 जैसे प्रमुख कम्प्यूटर इस चरण में विकसित हुए। कम्प्यूटर का आकार छोटा होने से इसकी पोर्टेबिलिटी बढ़ गई।

इसी चरण में विभिन्न तरह के इनपुट–आउटपुट उपकरणों का विकास हुआ। Optical scanner, MICR, Graph plotters आदि का विकास इसी चरण में हुआ। कम्प्यूटर्स का उपयोग नवीन क्षेत्रों जैसे उत्पाद किस्म, ग्राहक सेवा, वायुयान आरक्षण में होने लगा। इस चरण में उच्चस्तरीय भाषाओं में और सुधार हुआ। इसी चरण में प्रथम मिनी कम्प्यूटर का आविर्भाव हुआ।

मुख्य विशेषताएँ– तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर्स की प्रमुख विशेषताएँ इस तरह हैं–

(1) काफी छोटा आकार

(2) रख–रखाव खर्च में कमी

(3) वाणिज्यिक उत्पादन प्रारम्भ

(4) मुख्य स्विचिंग डिवाइस–इन्टीग्रेटेड सर्किट

(5) संग्रहण डिवाइस–उच्चस्तरीय मैग्नेटिक कोर

(6) प्रोग्रामिंग भाषाएँ SB–PL\1, COBOL 68 FORTRAN IV आदि ।

(IV) चतुर्थ पीढ़ी (Fourth Generation 1976–1990)

इस चरण में कम्प्यूटर्स में माइक्रोप्रोसेसर चिप्स का उपयोग होने लगा। ऐसा लार्ज स्केल इंटीग्रेशन (LSI) चिप्स के उद्गम से संभव हुआ। वर्तमान में LSI चिप्स कम्प्यूटर्स के दिमाग के रूप में कार्य करती है । इससे काफी छोटे तथा शक्तिशाली कम्प्यूटर्स का विकास संभव हुआ और कम्प्यूटर की लागतों में काफी कमी आई है। डिस्क मेमोरी की क्षमता मेगाबाइट्स की जगह गीगा बाइट्स (GB) में आने लगी है । फ्लापी डिस्क ने स्टोरेज को काफी सस्ता बना दिया एवं कम्प्यूटर नेटवर्क का विकास हुआ। कम्प्यूटर्स का उपयोग चिकित्सा, इंजीनियरिंग, डिजाइन आदि क्षेत्रों में काफी अधिकता से होने लगा है | ADA, Pascal, C आदि प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास इसी चरण में हुआ।

मुख्य विशेषताएँ– चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर्स की प्रमुख विशेषताएँ इस तरह थीं–

शैक्षिक तकनीकी तथा ICT / 33

(1) अत्यधिक छोटा आकार

(2) आसान पोर्टेबिलिटी

(3) अत्यधिक सस्ते उपकरण

(4) तीव्र प्रोसेसिंग

(5) मुख्य स्विचिंग डिवाइस–LSI सर्किट

(6) संग्रहण डिवाइस–सेमीकण्डक्टर मेमोरी

(7) प्रोग्रामिंग भाषाएँ–उच्चस्तरीय भाषाओं जैसे–C, Pascal, ADA का उपयोग।

(8) एयर कंडीशनिंग की आवश्यकता नहीं।

(V) पंचम पीढ़ी (Fifth Generation 1990 Onwards)

वर्तमान में वैज्ञानिकों का प्रयास कम्प्यूटर में कुछ मात्रा तक कृत्रिम बुद्धि डालना है जिससे कम्प्यूटर सिर्फ मानवीय निर्देशों पर ही निर्भर नहीं रहे। इस चरण में क्रमगत ढांचे की बजाय समानान्तर ढॉचे पर ज्यादा बल दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य कम्प्यूटर के उपयोग को डाटा प्रोसेसिंग से नोलेज प्रोसेसिंग की तरफ ले जाना है। जापान में विकसित Prolog Language कम्प्यूटर को मानवीय भाषा समझने की ओर अग्रसर कर रही है। अमेरिका में माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन इस दिशा में काफी कार्य कर रही है।

मुख्य विशेषताएँ– पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटर्स की प्रमुख विशेषताएँ इस तरह हैं–

(1) 32–बिट तथा 64–बिट का उपयोग

(2) नेटवर्किंग का उपयोग

(3) अत्यधिक तीव्र प्रोसेसिंग

(4) मुख्य स्विचिंग डिवाइस–VLSI सर्किट

(5) संग्रहण डिवाइस–ऑप्टिकल मेमोरी

(6) प्रोग्रामिंग भाषाएँ– अप्रक्रियागत भाषाओं,जैसे–Java, C+ + आदि का विकास।

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