विभिन्न आउटपुट डिवाइसों का वर्णन कीजिये।

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इस क्रियाविधि के अंतर्गत परिणामों को मनुष्य की पहुँच तथा समझने योग्य बनाया जाता है। यह कार्य इकाई के द्वारा संपन्न होता है जिसे आउटपुट इंटरफेस कहा जाता है।

संक्षिप्त में एक आउटपुट इकाई द्वारा निम्न कार्य किये जाते हैं।

1. यह कंप्यूटर द्वारा उत्पन्न अथवा निर्मित परिणामों को ग्रहण करता है एवं इन्हें बायनरी कोड में परिवर्तित कर देता है। इसलिए इसे प्रायः मनुष्य समझ नहीं सकता है।

2. इन बायनरी कोड को आउटपुट डिवाइसेस मनुष्य के पढ़ने के योग्य बना देता है |

3. यह परिवर्तन परिणामों को  मॉनिटर तथा प्रिंटर पर भेज देता है।

कुछ महत्वपूर्ण आउटपुट डिवाइस निम्न हैं–

1. लाइन प्रिंटर, 2.  मॉनीटर, 3. प्लॉटर, 4. फ्लॉपी डिस्क, 5. सी डी. रोम, 6. लेजर प्रिंटर, 7. ऑडियो स्पीकर, 8. ऑप्टिकल प्रिंटर, 9. टेप ड्राइव्स, 10. वीडियो टेप्स ।

कंप्यूटर हार्डवेयर के अंतर्गत कंप्यूटर के सभी भागों को जो कि आंखों द्वारा देखे तथा हाथों द्वारा स्पर्श किये जा सकते हों, हार्डवेयर कहलाते हैं । सामान्यतः हार्डवेयर डिवाइस जैसे मदरबोर्ड, पॉवर सप्लाय,  मॉनिटर, हार्डडिस्क तथा फ्लॉपी डिस्क ड्राइव आदि को शामिल किया जाता है। हार्डवेयर के अंतर्गत उन भागों को शामिल करते हैं जो कि कंप्यूटर द्वारा जुड़े होते हैं, उन्हें पेरिफेरल्स कहा जाता है। पेरिफेरल्स वह डिवाइस है जो कि कंप्यूटर से जुड़े होते हैं जैसे मदरबोर्ड । इसके अतिरिक्त प्रिंटर, की–बोर्ड, माउस एवं मानिटर्स इत्यादि भी पेरिफेरल्स कहलाते हैं। कंप्यूटर हार्डवेयर के अंतर्गत कंप्यूटर के निर्माण कंप्यूटर असेंबलिंग उसके रख–रखाव तथा कंप्यूटर को सुधारना आदि कार्य शामिल किये जाते हैं।

1. सी.आर.टी. (Cathode Ray Tube)–

यह एक निर्वात ट्यूब होती है जो कि टेलीविजन की पिक्चर ट्यूब के समान कार्य करती है। इसका उपयोग कंप्यूटर में इनपुट डिवाइस के रूप में पिक्टोरियल (चित्रांकित) तथा ग्राफिकल सूचनाओं को दर्शाने में होता है। यह एक इलेक्ट्रॉन गन के द्वारा निर्मित होती है जो कि इलेक्ट्रोमेग्नेट्स द्वारा नियंत्रित की जाती है, जिससे ऐरो बीम इलेक्ट्रॉन्स पर निर्देशित रहती है। यह ऐरो बीम एक विशिष्ट क्षेत्र में फ्लूरोसेंट स्क्रीन पर प्रकाश ग्राफिक्स सतह पर मूव करती है अथवा गति करती है जिसे कि विशेष तौर पर वीडियो डिस्प्ले यूनिट ( V.D.U.) भी कहा जाता है । इससे एक की–बोर्ड भी लगा होता है, जिसके द्वारा सूचनाओं को कंप्यूटर में भेजा जाता है। सूचनाओं की जाँच तथा सत्यापन को स्क्रीन पर इस डिवाइस के द्वारा अपने आप देखा जा सकता है। यह डिवाइस अत्यंत ही खर्चीली तथा महँगी है । इस प्रकार की डिवाइस सामान्यतः माइक्रो कंप्यूटर के साथ संलग्न रहती है, जो कि सेकंडरी स्टोरेज डिवाइस की तरह कार्य करती है |

इस डिवाइस में स्क्रीन की आकृति 8 से 20 इंच तक होती है, जो कि 20 से 30 लाइनों को एक साथ दिखा सकती है एवं इसमें 32 से 80 शब्द आ सकते हैं। ग्राफिकल सूचनाओं को कंप्यूटर में कैथोड–रे ट्यूब द्वारा भी पहुँचाया जाता है किसी अन्य डिवाइस के साथ, उदाहरण हेतु अल्फान्यूमेरिक की–बोर्ड आदि ।

2. प्रिंटर-

प्रिंटर को आउटपुट डिवाइस भी कहा जाता है जो कि कंप्यूटर में अलकान्यूमेरिक शब्दा को कंप्यूटर पेपर पर अंकित कर सकता है। यह इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल अथवा संदेशों को कंप्यूटर से मनुष्य के पढ़ने योग्य बनाता है एवं यह परिणामों के प्रिंट आउट अथवा डाटा को तुरंत ही कागज पर अंकित कर देता है।

प्रिंटर का निर्माण हार्डवेयर डिवाइस के द्वारा होता है। जिसे केरीयेज कंट्रोल भी कहा जाता है । इस केरीयेज कंट्रोल के द्वारा कंप्यूटर पेपर पर पूर्व निर्धारित स्थिति पर निर्धारित लाइनों अर्थात् क्षैतिज लाइनों को व्यवस्थित किया जा सकता है।

प्रिंटर के प्रकार– (अ) इम्पेक्ट प्रिंटर, (ब) नान–इंपेक्ट प्रिंटर

(अ) इंपेक्ट प्रिंटर– यह एक प्रिंटिंग डिवाइस है जिसमें कि शब्दों को मेटेलिक हेड्स . पर इंक रिबन तथा पेपर की उपस्थिति में अंकित अथवा प्रिंट कर लिया जाता है । यह दो तरह के होते हैं–लाइन प्रिंटर एवं सीरियल प्रिंटर।

(ब) नॉन–इंपेक्ट प्रिंटर– यह एक प्रिंटिंग डिवाइस है जो कि कंप्यूटर के आठटपुट यूनिट में कार्य करती है। इसके द्वारा शब्दों को कई बिन्दुओं के द्वारा या पूर्णतः बगैर बिन्दुओं से निर्मित शब्दों को प्रिंटर की मदद से कागज पर अंकित किया जाता है । इसमें एक ही समय में इलेक्ट्रिकल, रासायनिक, ऊष्मीय, लेजर तथा फोटोग्राफिक कंडक्टर के द्वारा शब्दों को कागज पर प्रिंट कर लिया जाता है। मेटेलिक हेड्स इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रिंटर्स, लेजर प्रिंटर्स, थर्मल प्रिंटर्स, इलेक्ट्रोमेग्नेटिक प्रिंटर तथा इंक जेट आदि नान–इम्पेक्ट प्रिंटर के उदाहरण हैं।

इंपेक्ट प्रिंटर्स के प्रकार

(I) डाट मेटिक्स– यह एक महत्वपूर्ण प्रकार का सीरियल प्रिंटर है जिसके द्वारा एक समय में एक ही शब्द को प्रिंट किया जाता है । यह प्रिंटर टाइपराइटर के समान कार्य करता है । इसमें प्रिंट हेड का निर्माण सात सुइयों द्वारा होता है । यह सुई या पिन एक उर्ध्वाधर तथा पाँच क्षैतिज लाइनों में लगी होती है।

इस प्रिंटर में एक समय में कंप्यूटर मैमोरी से प्रिंटर की मदद से एक ही शब्द को प्रिंट किया जाता है। प्रिंट हेड में उपस्थित सुई आगे की तरफ मूव (गति) करके कार्बन रिबन की मदद से कागज पर शब्दों का निर्माण करती है । कई डॉट मेट्रिक्स प्रिंटर द्वि–दशीय या द्वि–निर्देशीय होते हैं. अर्थात इनमें बायें से दायें एवं दायें से बायें दोनों ही दिशा में प्रिंट करने की क्षमता होती है |

लाभ–

1. यह कम खर्चीला एवं सस्ता होता है।

2. इस प्रिंटर के द्वारा शब्दों से किसी भी भाषा में प्रिंट किया जा सकता है।

3. इस प्रिंटर की मदद से दोनों ही दिशाओं में अग्र एवं पश्च अर्थात बायें से दायें और दायें से बायें शब्दों को कागज पर प्रिंट किया जा सकता है।

कमी–

1. इस प्रिंटर की कागज पर प्रिंटिंग अथवा छपाई निम्न गुणवत्ता वाली होती है।

2. इस प्रिंटर को एक समय में सिर्फ 3 से 4 घंटे तक ही चलाया जा सकता है। इसी कारणवश इसे “लाइट ड्यूटी प्रिंटर्स” के नाम से जाना जाता है।

3. इस प्रिंटर के द्वारा सामान्यत: 50 से 300 शब्दों को एक सेकंड में प्रिंट किया जाता है, जो कि अन्य शब्दों की गति की तुलना में बहुत ही कम है।

(II) लाइन प्रिंटर– यह एक समय में एक ही लाइन को प्रिंट करता है। इसकी कागज पर छापने या प्रिंट करने की गति अत्यंत ही तीव्र होती है अर्थात् यह एक मिनट में 150 से 2500 लाइनों को प्रिंट कर सकता है एवं 15 इंच की लाइन में 96 से 160 शब्दों को प्रिंट कर सकता है।

लाइन प्रिटर्स दो तरह के होते हैं–

(अ) ड्रम प्रिंटर– इसका निर्माण एक सिलिंड्रिकल अथवा बेलनाकार ड्रम के द्वारा होता है। यह शब्दों को कागज पर उभरे हुए रूप में प्रिंट करता है। प्रत्येक स्थिति में एक लाइन पर शब्दों का एक संपूर्ण सेट प्रिंट किया जाता है, जो कि उभरा हुआ होता है । इस तरह इस प्रिंटर के द्वारा 132 लाइनों में प्रति लाइन 96 शब्दों के हिसाब से अर्थात् 132 x 96 = 12672 शब्दों को प्रिंट किया जा सकता है।

ड्रम प्रिंटर में सभी शब्दों के कोड्स को एक लाइन में प्रिंट कर कंप्यूटर मेमोरी में स्थानांतरित कर प्रिंटर की स्टोरेज यूनिट (संग्रहण इकाई) में भेज दिया जाता है । इस स्टोरेज यूनिट को प्रिंटर बफर रजिस्टर भी कहा जा सकता है तथा इसमें प्रायः 132 शब्दों को स्टोर्ड किया जा सकता है । इस प्रिंटर में जैसे ही ड्रम तीव्र गति से घूमता है तो इसमें लगे हैमर के द्वारा शब्दों को प्रिंट किया जाता है जो कि कुछ ही समय में सक्रिय होकर प्रिंट कर देता है । इस. ड्रम के एक घुमाव से एक लाइन प्रिंट होती है, जिसे कि आन द फ्लॉय भी कहा जाता है । जब कभी अगर हैमर प्रिंट करते समय निश्चित स्थिति पर नहीं होता है तो कागज पर लहरदार तथा हल्की धुंधली लाइन प्रिंट हो जाती है । यह बहुत ही खर्चीला होता है अर्थात् इसके द्वारा प्रिंट करना बहुत महंगा होता है।

(ब) चेन प्रिंटर– ड्रम प्रिंटर की मुख्य कमी यह है कि इनकी साइज तथा फोंट्स में कोई Variety अथवा भिन्नता नहीं होती है । इस प्रिंटर के द्वारा सिर्फ एक ही तरह के शब्दों को प्रिंट किया जा सकता है जो ड्रम पर उपस्थित होते हैं। अगर हमें इस प्रिंटर में नई वेराइटी अथवा अलग तरह की प्रिंटिंग अथवा छपाई प्राप्त करना हो तो इसमें संपूर्ण ड्रम को ही बदलना पड़ता है, जो कि एक समय दुरुपयोग एवं महँगा साधन है जिसके लिए हमें एक–दूसरे तरह के प्रिंटर की जरूरत होती है, जिसे हम चेन प्रिंटर भी कहते हैं। चेन प्रिंटर में ड्रम के स्थान पर एक छोटी चेन अथवा पट्टिका लगी होती है।

इस चेन प्रिंटर में स्टील की पट्टिका लगी होती है, जिस पर शब्दों का सेट उभरा होता है। इसमें 64 शब्दों के 4 सेट्स होते हैं जो कि एक लाइन में व्यवस्थित होते हैं। यह सभी शब्द मेमोरी से प्रिंटर बफर रजिस्टर में भेज दिये जाते हैं। इस प्रिंटर में जैसे ही पट्टिका तीव्र गति से घूमती है तो प्रिंटर में लगा हैमर सक्रिय होकर शब्दों को प्रिंट करने लगता है।

लाइन प्रिंटर का अथवा चैन प्रिंटर का प्रमुख लाभ यह है कि इसमें लगी चेन को बदला जा सकता है। जब कभी हैमर प्रिंट करते समय सक्रिय नहीं होता है तो प्रिंटिंग लाइन लहरदार व टेढ़ी–मेढ़ी नहीं होती है।

(III) डेजी व्हील प्रिंटर– डॉट मेट्रिक्स प्रिंटर के द्वारा पैदा शब्द सीमित बिन्दुओं के द्वारा निर्मित होते हैं, जो कि प्रिंटिंग अथवा छपाई अच्छी गुणवत्ता वाली नहीं होती है एवं यह देखने में सुंदर अथवा अच्छी नहीं होती है। इसलिए सुंदर एवं आकर्षक प्रिंटिंग अथवा छपाई के लिए जिसमें कि शब्दों का निर्माण सतत या लगातार (अर्थात् कोई भी शब्द बिन्दु–बिन्दु से नहीं बना होता है) होता है । इस तरह से प्रिंट करने की तकनीक को डेजी व्हील प्रिंटर कहा जाता है। डेजी व्हील प्रिंटर में चपटी प्लास्टिक की पट्टी या मेटल डिस्क लगी होती है जिस पर सभी शब्द उभरे हुए होते हैं । यह पट्टी या डिस्क बायें से दायें जा सकती है एवं उसी स्थान पर घूम भी सकती है । इस प्रिंटर में शब्द एक निश्चित क्रम में प्रिंट किये जाते हैं। यह शब्द प्रिंटर रिबन के ठीक सामने लगे होते हैं । यह प्रिंटर इलेक्ट्रॉनिक टाइपराइटर के सिद्धांत पर कार्य करता है ।

इस प्रिंटर का प्रमुख लाभ यह है कि इसके द्वारा बहुत ही अच्छी गुणवत्ता वाली प्रिंट को प्राप्त किया जाता है। इसमें डेजी वहील को सरलता से बदला भी जा सकता है एवं इसकी मुख्य हानि यह है कि यह बहुत धीमी गति से कार्य करता है।

नॉन–इम्पेक्ट प्रिंटर्स

(i) लेजर प्रिंटर– यह प्रिंटर यांत्रिकीय गति वाला एवं उच्च गति वाला होता है, क्योंकि इनमें उच्च जड़ता वाले यांत्रिकीय तत्व उपस्थित होते हैं। लेजर प्रिंटर को IBM द्वारा निर्मित किया गया है। लेजर प्रिंटर फोटोकॉपी मशीन की तरह कार्य करता है। लेजर प्रिंटर द्वारा लेजर पुंज अथवा बीम को पैदा किया जाता है एवं इसमें फोटोकंडक्टिव ड्रम लगा होता है । जिस पर लेजर बीम अथवा लेजर किरणें गिरती हैं। जब कभी संपूर्ण पेज को प्रिंट कमाण्ड. दी जाती है जिसके कारण कंप्यूटर मेमोरी में से संपूर्ण पेज को प्रिंटर बफर रजिस्टर में स्थानांतरित कर देता है। अब केरियेज कंट्रोल सभी शब्दों को पढ़कर प्रिंटर बफर रजिस्टर से संपूर्ण पेज को लेजर पुंज द्वारा फोटोकंडक्टिव ड्रम पर उतार देता है, जिससे ड्रम पर हर शब्द अंकित हो जाता है, क्योंकि लेजर पुंज उस हर क्षेत्र को जो कि ड्रम के संपर्क में आता है उसे वैसा का वैसा ही अंकित कर देता है । यह संपूर्ण क्रिया केरियेज कंट्रोल द्वारा पूर्ण कर उसे पेज की कॉपी अथवा नकल ड्रम पर कर देता है । इसके बाद ड्रम इंक को आकर्षित कर उस क्षेत्र को प्रकाशित कर देता है तथा तब यह इमेज अथवा छाया कागज पर पड़ती है, जो कि ड्रम के संपर्क में आता है । इस तरह कागज पर संपूर्ण छाया प्रिंट हो जाती है। अतः इस प्रकार लेजर प्रिंटर कार्य करता है ।

लेजर प्रिंटर बहुत तीव्र गति से कार्य करने वाला प्रिंटर होता है अर्थात् इसके द्वारा एक मिनिट में 10,000 लाइनों को एक समय में प्रिंट किया जाता है । यह प्रिंटर उच्च गुणवत्ता वाली प्रिंट देता है । इस प्रिंटर में रिबन में कोई हेड नहीं टकराता है । इसे नान–इंपेक्ट प्रिंटर कहा जाता है । इस प्रिंटर का उपयोग भारी छपाई में भी किया जाता है । इस प्रिंटर की प्रमुख कमी यह है कि यह बहुत ही महँगा होता है। अर्थात् इसकी कीमत 12,000 से 1,50,000 रुपये तक होती है |

(ii) इंक–जेट प्रिंटर– इस प्रिंटर को लेटर क्वालिटी प्रिंटर भी कहा जाता है । इस प्रिंटर का निर्माण प्रिंट हेड एवं स्माल होल्स अथवा नोजल्स के द्वारा होता है । इसमें हर होल्स को बहुत तीव्र गति से कुछ ही माइक्रो सेकंड में इंटीग्रेटेड सर्किट रजिस्टर द्वारा गर्म किया जा सकता है। जब रजिस्टर द्वारा इंक को गर्म किया जाता है तो यह वाष्पित होकर नोजल अथवा स्माल होल्स द्वारा कागज पर एक बिन्दु बनाती है। एक उच्च क्षमता वाले इंक जेट में लगभग 50 नोजल्स 7 m.m. की ऊंचाई में लगे होते हैं तथा इनके द्वारा एक इंच में 300 बिन्दुओं को प्रिंट किया जा सकता है एवं कागज पर हेड की गति बहुत ही तीव्र होती है । इस प्रिंटर में विभिन्न फोंटस को कागज पर प्रिंट करने हेतु पर्याप्त मेमोरी होती है । इसकी गुणवत्ता लेजर प्रिंटर के समान होती है। यह रंगीन प्रिंटर होता है जिसकी कीमत उचित एवं कम खर्चीली होती है।

3. प्लॉटर –

प्लाटर का उपयोग ड्राइंग एवं ग्राफ की डिजाइनिंग में होता है। प्लाटर्स दो तरह के होते हैं–

(1) ड्रम प्लॉटर– ड्रम प्लाटर में जिस कागज पर ग्राफ बनाना होता है उसे रोटेटिंग ड्रम पर माउंट करने के पश्चात् पेन चलाया जाता है अर्थात् यह पेन ड्रम के लंबवत् दिशा में घुमाया जाता है। यह ड्रम की सूई की दिशा अथवा घड़ी की सूई की विपरीत दिशा में घूम सकता है जिसके लिए ग्राफ को प्लॉट करने की सूचना अथवा निर्देश कंप्यूटर द्वारा भेजी जाती है। यह पेन बा से दायें व दायें से बायें एवं ऊपर–नीचे चल सकता है । यह गति अर्थात् पेन अथवा ड्रम की गति ग्राफ प्लॉटिंग प्रोग्राम द्वारा नियंत्रित की जाती है । इस तरह यह प्रोग्राम कई ग्राफों को निर्मित कर सकता है।

(2) फ्लेट बेड प्लॉटर– इस तरह के प्लॉटर में क्षैतिज प्लॉटिंग सतह होती है जिस पर पेपर लगा होता है । फ्लेट बेड प्लॉटर में एक केरियेज लगा होता है। जिस पर पेन उपस्थित होता है । इस पेन को x अथवा , किसी भी दिशा में घुमाया जा सकता है । इसकी मदद से हम ऐच्छिक तरह का जैसा चाहे वैसा ग्राफ डिजाइन कर सकते हैं।

4. माइक्रो फिल्म तथा माइक्रो–फाइकी–

इसका उपयोग बहुत बड़े डाटा को छोटे से रूप में संग्रहित करने में होता है। इस डाटा को उच्च क्षमता वाले कैथोड रे ट्यूब द्वारा लाइन प्रिंटर पर प्रिंट किया जाता है। इसे 33 mm की फिल्म में फोटोग्राफ्ड कर लिया जाता है। प्रिंटेड पेज के सत्यापन या Correction हेतु इसमें एक कैमरा भी लगा होता है। यह एक विशिष्ट तरह की माइक्रोफिल्म होती है। इसे पढ़ने हेतु एक माइक्रोफिल्म रीडर भी उपस्थित होता है जिसके द्वारा जीरोग्राफिक प्रक्रिया द्वारा हार्डकॉपी भी तैयार की जाती है।

कुछ सिस्टमों व माइक्रोफिल्म को माइक्रो–फाइकी में परिवर्तित करने की क्षमता होती है। यह माइक्रो–फाइकी 4”×6″ फिल्म की होती है जो कि 98 फेम द्वारा स्थापित रहती है। जिसमें 8″ × 11″ पेज की छाया को 24 गुना कम करने की क्षमता होती है।

5. वॉइस आउटपुट यूनिट–

यह एक स्पीच आउटपुट यूनिट है जो कि कंप्यूटर मेमोरी में उपस्थित शब्दों को बोलने वाले वाक्यों में परिवर्तित कर देती है। इस एक यूनिट को जिसमें कई लेटर्स के संयोग से स्पीच का निर्माण होता है, ‘0 फोनीम’ कहते हैं। इसमें एक इलेक्ट्रॉनिक चिप लगी होती है जो कि आस्की शब्दों को ग्रहण कर पूर्ण वाक्य बनाती है । शब्दों के छोटे–समूह के आपस में श्रृंखलाबद्ध फोनीम को Output Unit आउटपुट यूनिट एम्प्लीफाइस कर एक छोटे लाउड–स्पीकर को भेज देती है, जिसमें हमें आवाज सुनाई देती है।

6.  मॉनीटर

यह एक टीवी के समान स्क्रीन वाला उपकरण होता है ।  मॉनीटर को विजुअल डिस्प्ले यूनिट भी कहते हैं। मॉनीटर पर आकृति छोटे–छोटे बिन्दुओं से मिलाकर बनती है। ये बिन्द पिक्सेल कहलाते हैं । पिक्सेल स्क्रीन पर पंक्ति तथा कॉलमों में होते हैं। प्रायः पंक्तियों की संख्या 480 तथा कॉलमों की संख्या 640 होती है । पंक्ति एवं कॉलमों का गुणनफल रेजोलूशन कहलाती है |

मॉनीटर मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं– रंगीन तथा श्वेत श्याम ।

मॉनीटर के प्रकार–

1. सीजीए मॉनीटर– पर्सनल कम्प्यूटर का विकास होने के बाद CGA कार्ड–युक्त डिस्प्ले सिस्टम को पेश किया गया। इस सिस्टम में अक्षरों की क्वालिटी उच्चकोटि की नहीं थी, पर यह कार्ड  मॉनीटर पर ग्राफिक्स को प्रस्तुत करने में सक्षम था। क्योंकि इससे पूर्व विकसित MDA कार्ड ग्राफिक्स प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं था। पर MDA कार्ड की अक्षर दिखाने की तकनीक CGA कार्ड से बेहतर थी।

2. हरक्यूलिस ग्राफिक्स डिस्ले कार्ड युक्त मॉनीटर– इस कार्ड के अनुसार प्रत्येक सॉफ्टवेयर कम्पनियों ने अपने–अपने सॉफ्टवेयर विकसित किये एवं उनमें सुधार किया। इसी कारण यह डिस्प्ले कार्ड बहुत ज्यादा मात्रा में प्रयोग किया गया, तकनीकी की दृष्टि से इसकी अक्षर दिखाने की क्षमता अपने से पूर्व विकसित कार्यों से बहुत अच्छी किस्म की थी। इसके अलावा सॉफ्टवेयरों द्वारा सुधार किये जाने से इसकी ग्राफिक्स दिखाने की क्षमता भी बढ़ गई ।

3. इन्हेन्स्ड ग्राफिक्स कार्ड–युक्त मॉनीटर– मॉनीटर–  मॉनीटर की गुणवत्ता को बढ़ाने हेतु EGA कार्ड का विकास किया गया, इस कार्ड–युक्त  मॉनीटर का डिस्प्ले अत्यन्त उच्च क्वालिटी का था । इसलिये प्रारम्भ से इस कार्ड एवं मॉनीटर का प्रयोग प्रत्येक कम्प्यूटर के साथ किया गया, पर कुछ दिनों बाद इस कार्ड की कमियाँ सामने आने लगीं,क्योंकि यह कार्ड अत्यन्त कम रेजोल्यूशन का था एवं इसमें रंगों को अपने आवश्यकता के अनुसार प्रयोग नहीं किया जा सकता था।

4. VGA कार्ड युक्त मॉनीटर– आजकल प्रत्येक कम्प्यूटर के साथ बीजीए कार्ड का प्रयोग किया जाता है । यह कार्ड उपरोक्त वर्णित सभी कार्यों का मिश्रण हैं, इस कार्ड एवं मॉनीटर द्वारा हम उपरोक्त वर्णित समस्त कार्डों का रेजोल्यूशन प्राप्त कर सकते है, इस कार्ड में हम अपनी आवश्यकता के अनुसार रेजोल्यूशन प्राप्त करने हेतु रेम को घटा अथवा बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा यह कार्ड 16–बिट,32बिट एवं 64 बिट तीनों तकनीक में उपलब्ध है, जिसके कारण हम अपनी आवश्यकता के अनुसार अत्यन्त उच्चकोटि का डिस्प्ले रेजोल्यूशन प्राप्त कर सकते हैं।

अभी तक हमने डिस्प्ले कार्डों का अध्ययन किया, पर यह डिस्प्ले हम जिस वस्तु पर देखते है उसे  मॉनीटर कहते हैं। अभी तक विकसित 90 प्रतिशत  मॉनीटर कैथोड रे ट्यूब तकनीक पर आधारित हैं। यह समस्त मॉनीटर रास्टर ग्राफिक्स के सिद्धन्त पर कार्य करते हैं।

5. AGP डिस्प्ले– AGP का पूरा नाम एक्सीलिरेटेड ग्राफिक्स पोर्ट है । इसके अन्तर्गत ज्यादा कलर डेप्थ और वीडियो फंक्शन है। डाटा स्थानांतरित होते समय जब यह डिस्प्ले कार्ड उसे दर्शाता है तो वह वीडियो कार्ड की मेमोरी चिप तथा एक्सपेंशन बस के बीच बहुत शीघ्रता से स्थानान्तरित होता है । जहाँ सामान्य PCI स्लॉट 32–बिट ट्रांसमिशन क्षमता के साथ 33MHz गति का प्रयोग करते हैं वहीं AGP कार्ड में यह गति 132MBps हो जाती है।

6. 3–D वीडीयो डिस्ले– कम्प्यूटर की डिस्प्ले क्षमता को बढ़ाने हेतु वर्तमान समय में 3–डी वीडियो कार्डों को बहुत बड़ी मात्रा में रेम के साथ प्रयोग किया जाता है । इन 3–डी कार्डों के रूप में AGP8x कार्ड का प्रयोग 64 बिट के साथ किया जा रहा है । इसके लिये एक विशेष लम्बी स्लॉट की जरूरत होती है।

7. LCD  मॉनीटर – वर्तमान समय में इस तकनीक वाले मॉनीटरों का प्रयोग किया जाता है । इसका पूरा नाम लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले है । CRT की तुलना में यह ज्यादा सुरक्षित तथा कम बिजली प्रयोग करते हैं जिससे इन्हें बैटरी से भी चलाया जा सकता है। इसमें पतली फिल्म के कई फिल्टर प्रयोग किये जाते हैं जो अलग अलग रंगों को मिलाकर सही डिस्प्ले प्रदान करते हैं।

इस  मॉनीटर को हम VGA, AGP 3–D वीडियो कार्ड से जोड़ सकते हैं। इसका रेजोल्यूशन अत्यन्त उच्च क्वालिटी का होता है । इस कारण इमेज स्पष्ट दिखाई देती है।

मॉनीटर के मुख्य लक्षण–

एक मॉनीटर में निम्न लक्षण होते हैं–

(1) रेजोलूशन– डिस्प्ले डिवाइस ( मॉनीटर) का महत्वपूर्ण गुण – रेजोलूशन अथवा स्क्रीन के चित्र की स्पष्टता होता है। अधिकतर डिस्प्ले डिवाइसेस में चित्र स्क्रीन के छोटे–छोटे डॉट के चमकने से बनते हैं। स्क्रीन के ये छोटे–छोटे डॉट, पिक्सेल कहलाते हैं। यहाँ पिक्सेल शब्द पिक्चर एलिमेन्ट का संक्षिप्त रूप है। स्क्रीन पर इकाई क्षेत्रफल में पिक्सेलों की संख्या रेजोलूशन को व्यक्त करती है।

स्क्रीन पर जितने अधिक पिक्सेल होंगे, स्क्रीन का रेजोलूशन भी उतना ही अधिक होगा अर्थात् चित्र उतना ही स्पष्ट होगा। एक डिस्प्ले रेजोलूशन माना 640 x 480 है तो इसका अर्थ है कि स्क्रीन 640 डॉट के स्तम्भ तथा 480 डॉट की पंक्तियों से बनी है।

टैक्स्ट के अक्षर अथवा कैरेक्टर स्क्रीन पर डॉट मैट्रिक्स विन्यास से बने होते हैं।

प्राय: मैट्रिक्स का आकार 5×7 = 35 पिक्सेल या 7x 12 = 84 पिक्सेल के रूप में टैक्स्ट डिस्ले करने के लिए होता है । इस प्रकार एक स्क्रीन पर 65 कैरेक्टर की 25 पंक्तियाँ डिस्प्ले की जा सकती हैं। स्क्रीन पर हम इससे अधिक रेजोलूशन प्राप्त कर सकते हैं।

(2) रिफ्रेश दर–  कम्प्यूटर मॉनीटर मॉनीटर लगातार कार्य करता रहता है. हालांकि इसका अनुभव हम साधारण आँखों से नहीं कर पाते हैं। कम्प्यूटर स्क्रीन पर इ. ज बायें से दायें तथा ऊपर से नीचे इलेक्ट्रॉन गन के द्वारा परिवर्तित होती रहती है पर इसका अनुपन हम तभी कर पाते हैं जब स्क्रीन ‘क्लिक’ करती है । प्रायः स्क्रीन के रिफ्रेश होने का अनुभव हम तब कर पाते हैं जब स्क्रीन तेजी से परिवर्तित नहीं होती है।  मॉनीटर की रिफ्रेश रेट को हर्टज में नापा जाता है |

(3) डॉट पिच – डॉट पिच एक तरह की मापन तकनीक है जो यह दर्शाती है कि प्रत्येक पिक्सेल के मध्य उर्ध्वाधर अन्तर कितना है । डॉट पिच का मापन मिलीमीटर में किया जाता हैं। यह एक ऐसा गुण या विशेषता है जो डिस्प्ले  मॉनीटर की गुणवत्ता को स्पष्ट करता है। एक कलर मॉनीटर जो. पर्सनल कम्प्यूटर में प्रयोग होता है, उसकी डॉट पिच की रेंज 0.15 mm से 0.30 mm तक होती है।

डॉट पिच को फॉस्फर पिच भी कहते हैं ।

(4) इन्टरलेस्ड या नॉन–इन्टरलेस्ड– इन्टरलेसिंग एक ऐसी डिस्प्ले तकनीक है जो कि एक  मॉनीटर को इस योग्य बनाती है कि वह डिस्प्ले होने वाले रेजोलूशन की गुणवत्ता में और वद्धि कर सके । इन्टरलेसिंग मॉनीटर के साथ इलेक्ट्रॉन गन केवल आधी लाइन खींचती थी क्योंकि इन्टरलेसिंग मॉनीटर एक समय में सिर्फ आधी लाइन को ही रिफ्रेश करता है। यह मॉनीटर प्रत्येक रिफ्रेश साइकिल पर दो से अधिक लाइनों को प्रदर्शित करता था।

दूसरी तरफ इन्टरलेसिंग वही रेजोलूशन प्रदान करता है जो कि नॉन–इन्टरलेसिंग प्रदान करता है लेकिन यह कम खर्चीला होता है। बस इन्टरलेसिंग की यह कमी होती है कि इसका प्रतिक्रिया समय धीमा होता है। जिससे कि वह प्रोग्राम जो तेज रिफ्रेश रेट की माँग करते हैं जैसे (एनीमेशन तथा वीडियो) की फ्लिकरिंग को कम करना पड़ता है। इन दोनों प्रकार के मॉनीटरों में देखा जाये जो दोनों ही एक समान रेजोलूशन प्रदान करते हैं परन्तु नॉन–इन्टरलेसिंग  मॉनीटर ज्यादा अच्छा होता है।

(5) बिट मैपिंग– प्रारम्भ में डिस्प्ले डिवाइसेस सिर्फ कैरेक्टर एड्रेसेबल होती थीं जो केवल टेक्स्ट को ही डिस्प्ले करती थी। स्क्रीन पर भेजा जाने वाला प्रत्येक कैरेक्टर समान आकार और एक निश्चित संख्या के पिक्सेलों के ब्लॉक (समूह) का होता था। ग्राफिक्स डिस्प्ले डिवाइस की माँग बढ़ने पर  मॉनीटर निर्माताओं ने बहुत उपयोगी डिस्प्ले डिवाइसेस विकसित की जिनमें टेक्स्ट तथा ग्राफिक्स, दोनों डिस्प्ले हो सकें।

ग्राफिक्स आउटपुट डिस्प्ले करने हेतु जो तकनीक काम में लायी जाती है, वह बिट मैपिंग कहलाती है। इस तकनीक में बिट मैप ग्राफिक्स् का प्रत्येक पिक्सेल ऑपरेटर द्वारा स्क्रीन पर नियंत्रित होता है। इससे ऑपरेटर किसी भी आकृति की ग्राफिक्स स्क्रीन पर बना सकता हैं|

विडियो मानक या डिस्प्ले पद्धति–

पर्सनल कम्प्यूटर की विडियो तकनीक में दिन प्रतिदिन सुधार आता जा रहा है। वीडियो स्टेण्डर्ड के कुछ उदाहरण निम्न हैं–

(1) कलर ग्राफिक्स अडैप्टर– इसे संक्षेप में सी.जी.ए. कहते हैं। इसका निर्माण 1981 में इन्टरनेशनल बिजनेस मशीन नामक कम्पनी ने किया था। यह डिस्प्ले सिस्टम चार रंगों को प्रदर्शित करने की क्षमता रखता था एवं इसकी प्रदर्शन क्षमता 320 पिक्सेल क्षैतिज तथा 200 पिक्सेल उर्ध्वाधर थी। यह डिस्प्ले प्रणाली विण्डोज के साधारण खेलों के लिये प्रयोग में आती थी। यह सिस्टम डेस्कटॉप पब्लिशिंग तथा अन्य ग्राफिक्स इमेज के लिये उपयुक्त नहीं था।

(2) इन्हैन्स्ड ग्राफिक्स अडैप्टर– इसका निर्माण भी इन्टरनेशनल बिजनेस मशीन ने सन 1984 में किया था। यह डिस्प्ले सिस्टम 16 अलग–अलग रंगों को प्रदर्शित प्रदान करता था। इसकी प्रदर्शन क्षमता सी.जी.ए. की अपेक्षा अधिक बेहतर यानि 640 पिक्सेल क्षैतिज तथा 350 पिक्सेल उर्ध्वाधर थी। इस सिस्टम ने अपनी प्रदर्शन क्षमता को सी.जी.ए. से और अधिक बेहतर बनाया। यह डिस्प्ले सिस्टम टैक्स्ट को CGA की अपेक्षा अधिक आसानी से पढ़ सकता था। इसके बावजूद ई.जी.ए. अधिक क्षमता वाली ग्राफिक्स तथा डेस्कटॉप पब्लिशिंग के लिये उपयुक्त नहीं था।

(3) विडियो ग्राफिक्स ऐरे– वी.जी.ए. डिस्प्ले सिस्टम का निर्माण आईबी.एम. कम्पनी ने सन् 1987 में किया था। आजकल बहुत सारे वी.जी.ए.  मॉनीटर प्रयोग में लाये जा रहे हैं। वी.जी.ए.  मॉनीटर का रेजोलूशन इसमें प्रयोग होने वाले रंगों पर निर्भर करता था। आप 16 रंग 640 x 480 पिक्सेल पर या 256 रंग 320 x 200 पिक्सेल पर छाँट सकते हैं । सारे आई.बी.एम. कम्प्यूटर वी.जी.ए. डिस्प्ले सिस्टम पर कार्य करते हैं।

(4) इक्स्टेण्डेड ग्राफिक्स ऐरे– इक्स्टेण्डेड ग्राफिक्स ऐरे डिस्प्ले सिस्टम का निर्माण इन्टरनेशनल बिजनेस मशीन ने सन् 1990 में किया था। यह डिस्प्ले सिस्टम वी.जी.ए. का उत्तरवर्ती था जो 4814/A डिस्प्ले था। इसका अगला संस्करण XGA–2 16 लाख रंगों में 800 × 600 पिक्सेल का रेजोलूशन तथा 65536 मिलियन रंगों में 1024 × 768 पिक्सेल का रेजोलूशन प्रदर्शित करता था।

(5) सुपर विडियो ग्राफिक्स ऐरे– आजकल सारे कम्प्यूटर ग्राफिक्स डिस्प्ले सिस्टम के रूप में बिक रहे हैं । वास्तव में एस.वी.जी.ए. का अर्थ वी.जी.ए. से परे है परन्तु यह एक अकेला मानक नहीं है। नये युग में वीडियो इलेक्ट्रॉनिक्स स्टेण्डर्डस एसोसियेशन द्वारा एक स्टैण्डर्ड प्रोग्रामिंग इन्टरफेस को प्रस्तावित किया गया है । जोकि पर्सनल कम्प्यूटरों में एस.वी.जी.ए. एक डिस्प्ले सिस्टम को अधिकार देता है । इसको वैसा बॉयस विस्तारक कहते हैं।

एस.वी.जी.ए. डिस्प्ले सिस्टम 16,000,000 तक रंगों का प्रदर्शन करता है । छोटे आकार के एस.वी.जी.ए.  मॉनीटर 800 पिक्सेल क्षैतिज तथा 600 पिक्सेल उर्ध्वाधर प्रदर्शित करते हैं तथा बड़े आकार के एस.वी.जी.ए.  मॉनीटर 1280 × 1024 या 1600 × 1200 पिक्सेल रेजोलूशन प्रदर्शित करते हैं।

मॉनीटर का लाभ यह है कि जब हम की– बोर्ड से टाइप करते हैं तो यह टाइप किये गये अक्षरों को स्क्रीन पर दिखाता रहता है। इससे टाइप करने में यदि कोई गलती हो तो वह हमें तुरन्त मालुम हो जाती है । इसके अतिरिक्त कम्प्यूटर की अधिकतर क्रियाओं को यह लगातार स्क्रीन पर दिखाता रहता है।

7. कम्प्यूटर आउटपुट माइक्रोफिल्म

यह कम्प्यूटर आउटपुट को माइक्रोफिल्म माध्यम पर उतारने की तकनीक है। माइक्रोफिल्म माध्यम एक माइक्रोफिल्म रील अथवा एक माइक्रोफिश्च कार्ड के रूप में प्रयुक्त होता है। माइक्रोफिल्म तकनीक के प्रयोग से कागज की लागत तथा संग्रह–स्थल की बचत होती है। उदाहरणार्थ, एक 4 × 6 इंच के आकार के माइक्रोफिश्च कार्ड में करीब 270 छपे हुए पृष्ठ के बराबर स्थान होता है । COM तकनीक उन कार्यालयों में ज्यादा उपयोगी होती है जहाँ डाटा एवं सूचना की फाइलों में संशोधन नहीं होता है और फाइलों की संख्या बहुत ज्यादा होती है। माइक्रोफिल्म अथवा माइक्रोफिश्च तैयार करने की तकनीक ऑफ लाइन होती है। ये एक off line COM यनिट में तैयार की जाती है। पहले कम्प्यूटर आउटपट को एक संग्रह–माध्यम मैग्नेटिक टेप पर संग्रहीत करता है। इसके बाद COM यनिट प्रत्येक पष्ठ का प्रतिबिम्ब स्क्रीन पर दिखाती है तथा माइक्रोफिल्म के फोटोग्राफ तैयार करती है। COM यूनिट को कम्प्यूटर में जोड़कर ऑन लाइन भी किया जा सकता है।

माइक्रोफिल्म एवं माइक्रोफिश्च को पढ़ने के लिए मिनी कम्प्यूटर में एक अलग डिवाइस होती है जो आउटपुट को अलग–अलग फ्रेम्स में दिखाती है।

8. फिल्म रिकॉर्डर

फिल्म रिकॉर्डर एक कैमरा के समान डिवाइस है जो कम्प्यूटर से पैदा उच्च रेजोलूशन के चित्रों को सीधे 35 mm की स्लाइड, फिल्म एवं ट्रांसपेरेन्सी पर स्थानान्तरित कर देता है। कछ वर्षों पहले यह तकनीक बड़े कम्प्यूटरों में ही संभव थी पर अब यह माइक्रोकम्प्यूटर्स में भी उपलब्ध है।

विभिन्न कम्पनियाँ अपने उत्पादों की जानकारी देने हेतु प्रस्तुतीकरण तैयार करती हैं। दन प्रस्ततियों को बनाने हेतु फिल्म रिकॉर्डिंग तकनीक का प्रयोग किया जाता है ।

9. साउन्ड कार्ड तथा स्पीकर

साउन्ड कार्ड एक तरह का विस्तारण बोर्ड होता है जिसका प्रयोग साउन्ड को संपादित सात निर्गत करने में होता है । कम्प्यूटर पर गाना सुनने, फिल्में देखने अथवा फिर गेम्स खेलने हेतु साउन्ड कार्य का आपके कम्प्यूटर में लगा होना आवश्यक है। आज के आधुनिक पर्सनल कम्प्यूटर का मुख्य बोर्ड जिसे मदर बोर्ड कहते हैं, में साउन्ड कार्ड पूर्व–निर्मित होता है ।

साउन्ड कार्ड एवं स्पीकर कम्प्यूटर में एक दूसरे के पूरक होते हैं । साउन्ड कार्ड की मदद से ही स्पीकर ध्वनि उत्पन्न करता है, माइक्रोफोन की मदद से इनपुट किये गये साउन्ड को संग्रहीत करता है एवं डिस्क पर उपलब्ध साउन्ड को संपादित करता है।

प्रायः सभी साउन्ड कार्ड मीडी को सपोर्ट करते हैं । मीडी संगीत को इलेक्ट्रॉनिक रूप में व्यक्त करने हेतु एक मानक है । इसके अतिरिक्त, ज्यादातर साउन्ड कार्ड साउन्ड ब्लास्टर संगत होते हैं, अर्थात् ये साउन्ड ब्लास्टर कार्ड के लिए लिखे गये निर्देशों पर प्रक्रिया कर सकते हैं जो पर्सनल कम्प्यूटर साउन्ड हेतु वास्तविक मानक हैं। साउन्ड कार्ड दो बुनियादी विधियों से डिजिटल डाटा को एनालॉग ध्वनि में रूपांतरित करते हैं

– फ्रीक्वेन्सी मॉडलूयेशन सिन्थेसिस पूर्व–निर्मित फॉर्मूला के अनुसार विभिन्न वाद्य यंत्रों की नकल करते हैं।

– वेवटेबल सिन्थेसिस वास्तविक यंत्रों के रिकॉर्डिंग पर निर्भर कर ध्वनि पैदा करते हैं। वेवटेबल सिन्थेसिस ज्यादा शुद्ध ध्वनि पैदा करते हैं लेकिन यह महंगे होते हैं।

10. इयरफोन

इयरफोन हेडफोन, इयर बड्स, स्टीरियो फोन्स, हेडसेट्स अथवा केनस् के नाम से जाने जाते हैं। ये कान में लगाने वाला का जोड़ा जाता है जो विद्युतीय संकेतों को मीडिया प्लेयर अथवा रिसीवर द्वारा रिसीव करता है एवं कानों के बहुत नजदीक ही स्पीकर का प्रयोग होता है। अतः इसका नाम इयरफोन होता है। इसका प्रयोग संकेतों को सुनने लायक ध्वनि तरंगों में परिवर्तित करने हेतु होता है। दूरसंचार के सन्दर्भ में हेडसेट का साधारणतया हेड फोन एवं माइक्रोफोन को जोड़ा समझा जाता है । हेडफोन एवं माइक्रोफोन को मिलाकर टू वे कम्यूनिकेशन में इसका प्रयोग उसी तरह किया जाता है जैसे किसी मोबाइल फोन में होता है।

11. प्रोजेक्टर

प्रोजेक्टरों का प्रयोग चित्र को एक प्रोजेक्शन स्क्रीन अथवा इसी तरह के सतह पर प्रदर्शित करने हेतु श्रोता को दिखाने के उद्देश्य से होता है। प्रोजेक्टर निम्न तरह के होते हैं–

(अ) वीडियो प्रोजेक्टर– वीडियो प्रोजेक्टर कोई वीडियो संकेत लेता है एवं लेस प्रणाली का प्रयोग कर प्रोजेक्शन स्क्रीन पर उसके अनुरूप इमेज को प्रोजेक्ट करता है। सभी वीडियो प्रोजेक्टर बहुत ही तेज़ रोशनी का प्रयोग इमेज को प्रोजेक्ट करते हैं और सभी आधुनिक प्रोजेक्टरों में मानवीय सेटिंग्स के माध्यम से वक्र अस्पष्ट तथा अन्य इनकासिसटेन्सीस को सुधारने की क्षमता होती है। वीडियो प्रोजेक्टरों का प्रयोग व्यापक रूप से कान्फ्रेन्स रूम प्रस्तुति, क्लास रूम प्रशिक्षण एवं होम थियेटर अनुप्रयोगों में होता है।

वीडियो प्रोजेक्टर एक केबिनेट में रिअर–प्रोजेक्शन स्क्रीन के साथ भी बनाया जा सकता है जो एक यूनीफाइड डिस्प्ले डिवाइस का निर्माण करता है एवं घरेलू थियेटर अनुप्रयोगों हेतु लोकप्रिय है।

पोर्टेबल प्रोजेक्टर हेतु सामान्य डिस्प्ले रेजोलूशन में एस.वी.जी.ए. (800 × 600 पिक्सेल), एक्स.जी.ए. (1024 × 768 पिक्सेल) और 720 पी. (1280 × 720 पिक्सेल) शामिल हैं।

(ब) मूवी प्रोजेक्टर– मूवी प्रोजेक्टर एक ऑप्टो–मेकेनिकल डिवाइस होता है जो चलचित्रों को प्रोजेक्शन स्क्रीन पर प्रोजेक्ट कर प्रदर्शित करता है। ज्यादातर ऑप्टिकल एवं मेकेनिकल तत्व इल्यूमिनेशन और ध्वनि यंत्रों को छोड़कर मूवी कैमरों में उपलब्ध होते हैं।

(स) स्लाइड प्रोजेक्टर– स्लाइड प्रोजेक्टर फोटोग्राफिक स्लाइडों को देखने हेतु एक ऑप्टो–मेकेनिकल डिवाइस होता है। इसमें चार प्रमुख तत्व एक, फेन–कुल्ड इलेक्ट्रिक बल्ब अथवा अन्य प्रकाश स्त्रोत, एक परावर्तक एवं कन्डेन्मिग लेन्स, प्रकाश के स्लाइड पर निर्देशित करने हेतु एक स्लाइड को पकड़ने वाला एवं एक फोकसिंग लेन्स होता है। एक उमा को अवशोषित करने वाला समतल शीशा प्रकाश मार्ग में कन्डेन्सिग लेन्म एवं स्लाइड के बीच स्थित होता है जो स्लाइड को नष्ट होने से बचाने के उद्देश्य से होता है। शीशा दृश्य तरंगदैर्घ्य को संचारित करता है । पर इन्फ्रारेड को अवशोषित कर लेता है। प्रकाश परादी स्लाइड एवं लेन्स से होकर गुज़रता है और परिणाम आकृति को बड़ा करके एक लम्बवत समतल स्क्रीन पर प्रोजेक्ट किया जाता है ताकि श्रोतागण इसके परावर्तन को देख पायें। विकल्प के रूप में, आकृति को एक पारभासी रिअर प्रोजेक्शन स्क्रीन पर प्रोजेक्ट किया जाता है, जो अक्सर निकट दशा क लगातार स्वचालित प्रदर्शन हेतु प्रयोग किया जाता है। इस तरह का प्राजक्शन श्राता के द्वारा प्रकाश किरण में बाधा को या प्रोजेक्टर के झटके को भी नजरअंदाज करता है।

स्लाइडं प्रोजेक्टर्स 1950 एवं 1960 के दशकों में मनोरंजन के रूप में सामान्य रूप से प्रचलित थे।


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