ऑपरेटिंग सिस्टम का आशय स्पष्ट करते हुए उसके कार्यों एवं प्रकारों का वर्णन कीजिये।

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ऑपरेटिंग सिस्टम प्रोग्राम्स का एक ऐसा समग्र रूप है, जो सीपीयू के आपरेशन्स (प्रक्रियाओं) को प्रबंधित करता है, आउटपुट तथा इनपुट को नियंत्रित करता है,कंप्यूटर से संबंधित गतिविधियों को स्टोर करता है एवं कंप्यूटर के उपयोगकर्ताओं को विभिन्न सूचनायें प्रदान करता है और स्टोर करता है | ऑपरेटिंग सिस्टम का प्राथमिक उद्देश्य कंप्यूटर सिस्टम की उपयोगिता को बढ़ाना है। यह सर्वाधिक कुशल तरीके से संचालन के द्वारा संभव होता है जो मानवीय श्रम को कम करता है । यह प्रोग्राम की सामान्य प्रक्रियाओं को पूरा करने में जैसे कि नेटवर्क में प्रवेश, आंकड़ों की प्रविष्टि, फाइल्स को सेव व स्टोर्ड करना तथा आउटपुट को प्रिंट करना इत्यादि कार्यों में सहायता करता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर के संचालन में पाँच बेसिक कार्यों को करता है – (i) इंटरफेस, (ii) रिसोर्स मैनेजमेंट, (iii) टास्क मैनेजमेंट, (iv) फाइल मैनेजमेंट एवं (v) कंप्यूटर के उपयोग एवं संचालन प्रक्रियाओं को उपयोगकर्ताओं को प्रदान करता है।

एमएस डॉस (माइक्रोसॉफ्ट डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम) यह सर्वाधिक व्यापक उपयोग किया जाने वाला माइक्रो कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम है। यह एक सीमित क्षमता वाला सिस्टम है पर ग्रॉफिकल यूजर इंटरफेस तथा अन्य प्रक्रियाओं को इसमें जोड़कर इसकी क्षमता बढ़ाई गई है |

माइक्रोसॉफ्ट ने 1995 डॉस/विंडोज के स्थान पर (विंडोज 95) ऑपरेटिंग सिस्टम में, ग्राफिकल यूजर इंटरफेस मल्टीटास्किंग, नेटवर्किंग, मल्टीमीडिया और दूसरी क्षमतायें विकसित की हैं। माइक्रोसॉफ्ट ने 1998 के दौरान एक विकसित विंडोज 98 वर्शन तथा विंडोज एक्सपी एवं मिलेनियम एडिशन भी पेश किया है। कंजूमर पीसी कंप्यूटर 2000 को विंडोज एक्सपी वर्शन के साथ विकसित किया है।

माइक्रोसॉफ्ट ने 1995 में उसके ‘विंडोज एन टी’ ‘न्यू टेक्नोलॉजी’ को पेश किया। ‘विंडोज एन टी’ एक शक्तिशाली मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम है जो कि विभिन्न नेटवर्क सर्वरों तथा पर्सनल कंप्यूटरों एवं यूजर/सर्वर नेटवर्क की कंप्यूटिंग जरूरत को पूरा करता है। नये सर्वर तथा नये सिस्टम्स 1997 में जोड़े गये हैं। माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 98 तथा विंडोज एक्सपी को मिलाकर विंडोज 2000 पेश किया है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य

ऑपरेटिंग सिस्टम निम्न के लिए उत्तरदायी है–

मेमोरी प्रबंधन (मैमोरी मैनेजमेंट) – यह प्रोग्रामों तथा आंकडों की प्रथम एवं द्वितीय मेमोरी की व्यवस्था का प्रबंधन करती है। यह सूचना को मेमोरी में रखता है एवं इसे डिस्क से पुनः प्राप्त करता है । लेकिन मेमोरी को प्रदान करने से पूर्व, ऑपरेटिंग सिस्टम यह जाँच करता है कि इसके लिए मेमोरी उपलब्ध है अथवा नहीं एवं यदि उपलब्ध होती है तब कार्य के लिए उपलब्ध कराता है। एक बार जब कार्य पूरा हो जाता है, तब उस कार्य को मेमोरी से हटा दिया जाता है । यह मेमोरी अन्य कार्य के लिए उपलब्ध होती है।

प्रोसेसर मैनेजमेंट–सीपीयू मेनेजमेंट– यह प्रोसेसर के लिए सभी निर्देशों तथा प्रोग्रामों को कार्य–निष्पादन हेतु निर्देशित करता है । यह ‘सीपीय’ का कार्य होता है जो प्रक्रिया को दिये गये कार्य को पूरा करने के योग्य बनाता है। ऑपरेटिंग सिस्टम विभिन्न जॉब की प्रोसेसिंग समस्याओं को हल करता है। यह कार्य जॉब शिड्यूलिंग कहा जाता है। ऑपरेटिंग सिस्टम 3, सीपीयू 2 की गतिविधियों को निर्धारित करने में मदद करता है, ताकि ‘सीपीयू’ तथा कंप्यूटर की प्रक्रियाओं को पूरा कर सके।

डिस्क प्रबंधन–फाइल प्रबंधन– यह आंकडों को तथा प्रोग्रामों को फाइल में स्टोर करता है एवं इस फाइल में कई तरह से परिवर्तन किया जा सकता है। ऑपरेटिंग सिस्टम फाइल को संग्रह करने तथा फाइल्स की पुनप्राप्ति में सहायता करता है, जब इसकी जरूरत हो। एक यूजर के रूप में इस बात की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है किस तरह से आंकड़े अथवा फाइल स्टोरेज मीडियम पर स्टोर की जाती हैं एवं कहाँ स्टोर की जाती हैं तथा कहाँ इन्हें देखना होता है |

इनपुट/आउटपुट प्रबंधन– कंप्यूटर विभिन्न यंत्रों से जुड़ा रहता है जैसे कि की–बोर्ड, प्रिंटर, माउस, मोडेम इत्यादि। यह इनपुट अथवा आउटपुट कार्य को करते हैं। ये सूचनायें तथा डाटा कंप्यूटर से भेजते हैं एवं उनका विश्लेषण और नियंत्रण करते हैं।

यूजर इंटरफेस– बाहरी दुनिया तथा कंप्यूटर के बीच आपसी संबंध होता है, क्योंकि. कंप्यूटर () एवं 1 की भाषा समझता है ।

मशीन के द्वारा समझे जाने वाली भाषा तथा मानव के द्वारा समझी जाने वाली भाषा की दूरी ऑपरेटिंग सिस्टम कमांड इंटरप्रिटर की सहायता से पूरा करता है । यूजर इंटरफेस भाषा के बीच की दूरी को पूर्ण करने में सेतु की तरह सहायता करता है।

सुरक्षा प्रबंधन– यह यूजर से आंकड़ों की सुरक्षा को प्रदान करता है । जब कंप्यूटर सिस्टम पर वायरसेस का आक्रमण होता है, यह उस हमले के खिलाफ हमें समय पर सूचना देता है एवं बताता है कि किस तरह से एंटी–वायरसेस का प्रयोग करके कंप्यूटर सिस्टम से वायरस को हटाया जाये।

संयोजन प्रबंधन– ऑपरेटिंग सिस्टम विभिन्न उपकरण को आपस में जोड़कर कंप्यूटर सिस्टम को बनाता है । यह आंकड़ों तथा प्रोग्राम को संयोजित करता है ताकि आंकड़े आपस में कभी भी रुकावट न बनें।

प्रोसेस मैनेजमेंट – यह विभिन्न तरह की प्रक्रियाओं की सुविधाओं को प्रदान करता है जैसे कि मल्टी टास्किंग, बेच प्रोसेसिंग, मल्ली प्रोसेसिंग इत्यादि ।

संप्रेषण प्रबंधन– यह यूजर तथा कंप्यूटर के मध्य या कंप्यूटर का कंप्यूटर से कम्युनिकेशन की सुविधा प्रदान करता है जो नेटवर्किंग अथवा अन्य किसी सुविधा का उपयोग करते हैं। यह डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम से शुरू होता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम का वर्गीकरण

विभिन्न प्रकार के कम्प्यूटर सिस्टम को संचालित करने के लिए विभिन्न सुविधाओं • वाले ऑपरेटिंग सिस्टम की जरूरत होती है । कम्प्यूटर द्वारा डाटा प्रोसेसिंग के तरीकों के आधार पर ऑपरेटिंग सिस्टम्स को निम्न तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है–

(1) बैच प्रोसेसिंग – इसका प्रयोग पूर्व में मेनफ्रेम कम्प्यूटर्स पर किया जाता था। इसके अन्तर्गत डाटा को एक निश्चित समय तक संग्रहित किया जाता है, फिर उसे समूह (बैच) के रूप में प्रोसेस किया जाता है । इसके अन्तर्गत डाटा को पंचकार्ड में सुरक्षित रखा जाता है । पंच कार्ड में रखे डाटा को जॉब कन्ट्रोल कार्ड के निर्देशों की मदद से एक निश्चित समय के बाद प्रोसेस किया जाता है। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में सी.पी.यू. तथा अन्य इनपुट इकाइयों का समुचित उपयोग नहीं हो पाता था । व्यवसाय में पे–रोल आदि तैयार करने के लिए इस ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता है । इसके अन्तर्गत कर्मचारी के कार्य घंटे आदि का विवरण एक निश्चित समय तक एकत्रित कर फिर उसे एक साथ प्रोसेस किया जा सकता है । पे–रोल, विजली. पानी आदि के बिल तैयार करने के लिए अभी भी यह उपयोगी है । इस ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है ।

(2) मल्टीटास्किंग– इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर सिस्टम के सभी साधनों का निरन्तर तथा प्रभावी उपयोग किया जाता है । इसके अन्तर्गत सी.पी.यू.(CPU) इनपुट प्रोसेसिंग तथा आठटपुट के लिए एक कार्य से दूसरे कार्य पर हस्तान्तरित होता रहता है । इससे कम्प्यूटर सिस्टम एक साथ कई कार्य कर सकता है जिससे कम्प्यूटर साधनों का प्रभावी उपयोग सम्भव होता है । इसके अन्तर्गत मेमोरी को कई भागों में बाँट दिया जाता है जिससे कई कार्य एक साथ किये जा सकते हैं । मल्टी टास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम में दो विधियों का उपयोग किया जाता है–

(i) कॉ–ऑपरेटिव मलीटॉस्किग

(ii) प्रि–एम्पटिव मल्टीटास्किंग

कॉ–ऑपरेटिव मल्टीटास्किंग के अन्तर्गत जब यूजर कोई कार्य कर रहा होता है तब । ङ्केफम्प्यूटर अन्य कार्य कर रहा होता है, जैसे यूजर टाइप कर रहा है एवं कम्प्यूटर द्वारा प्रिंटिंग का कार्य किया जा रहा हो । प्रीएम्पटिव मल्टीटास्किंग के अन्तर्गत प्रोग्राम्स की एक सूची बना ली जाती है एवं उन्हें प्राथमिकता प्रदान कर दी जाती है। ऑपरेटिंग सिस्टम क्रियाशील प्रोग्राम को हटाकर उच्च प्राथमिकता वाला कार्य शुरू करवा देता है । इसके द्वारा मल्टीप्रोग्रामिंग भी सम्भव है जिसमें एक साथ एक से ज्यादा प्रोग्राम सी.पी.यू. द्वारा प्रोसेस किये जा सकते हैं।

(3) ऑन लाइन/रीयल टाइम सिस्टम– इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर संसाधनों का उपयोग लगातार किया जा सकता है । इसके अन्तर्गत विभिन्न टर्मिनल्स का उपयोग किया जाता है जो कि एक सी.पी.यू. से जुड़े होते हैं । टर्मिनल्स की मदद से ट्रांजक्शन होते ही उन्हें सी.पी.यू. को प्रेषित कर दिया जाता है जिसकी प्रोसेसिंग हो जाती है । टर्मिनल्स का उपयोग डाटा को इनपुट करने के अलावा पूछताछ के लिए भी किया जा सकता है । रेलवे तथा वायुयान आरक्षण,ई–बैंकिंग आदि में इस सिस्टम का काफी प्रयोग होता है। आने वाले समय में ई–कॉमर्स के विकास के साथ ऑन–लाइन ऑपरेटिंग सिस्टम्स का ज्यादा उपयोग होगा।

(4) टाइमशेयरिंग– इसके अन्तर्गत सभी यूजर्स को सी.पी.यू. एक निश्चित समय आवंटित कर देता है । इससे एक साथ कई यूजर एक ही कम्प्यूटर सिस्टम का उपयोग कर सकते हैं। सी.पी.यू. सभी यूजर्स के कार्यों को उनको आवंटित समय के अनुसार बारी–बारी से सम्पन्न करता है। इसके अन्तर्गत भी यूजर्स टर्मिनल्स का उपयोग करते हैं । प्रत्येक यूजर का टर्मिनल सी.पी.यू. से जुड़ा रहता है । इसके अन्तर्गत सभी यूजर्स को सी.पी.यू. इतना थोड़ा समय आवंटित करता है कि सभी यूजर्स को यह भ्रम रहता है कि सी.पी.यू. सिर्फ उनका ही कार्य कर रही है । सी.पी.यू. की प्रोसेसिंग गति इनपुट/आउटपुट इकाइयों से काफी ज्यादा होने के कारण ऐसा भ्रम होता है।

(5) मल्टी प्रोग्रामिंग– इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर एक साथ कई प्रोग्राम संचालित करता है। कम्प्यूटर को मेमोरी में कई प्रोग्राम संग्रहित होते रहते हैं । यद्यपि सी.पी.यू. वास्तविक रूप से एक समय पर एक ही निर्देश को प्रोसेस करता है पर सी.पी.यू. एक प्रोग्राम के एक निर्देश को प्रोसेस कर दूसरे प्रोगाम के निर्देश को इतनी तेजी से प्रोसेस करता है कि यूजर को ऐसा लगता है कि उसके सभी प्रोग्राम एक साथ प्रोसेस किये जा रहे हैं । इसके अन्तर्गत सी.पी.यू. एक प्रोग्राम को पूरा प्रोसेस न कर कई प्रोग्राम के निर्देशों को प्रोसेस करता है। इस प्रणाली का उपयोग मिनी कम्प्यूटर्स में काफी किया जाता है।

(6) मल्टी प्रोसेसिंग– इसमें कम्प्यूटर सिस्टम के अन्तर्गत एक साथ एक से ज्यादा सी.पी.यू. का उपयोग किया जाता है। इसे पैरेलल प्रोसेसिंग भी कहते हैं। मौसम पूर्वानुमान, परमाणु शोध, सिम्यूलेशन, इमेज प्रोसेसिंग आदि में जहाँ बहुत बड़ी मात्रा में डाटा की प्रोसेसिंग जरूरी है वहाँ एक से अधिक सी.पी.यू. की आवश्यकता होती है। इन सभी सी.पी.यू. को कार्य का बंटवारा कर दिया जाता है। सुपरकम्प्यूटर्स में इसी विधि का उपयोग किया जाता है । मिनी तथा मेनफ्रेम कम्प्यूटर्स में भी इसका उपयोग किया जाने लगा है। ऑपरेटिंग सिस्टम इनपुट, प्रोसेसिंग तथा आउटपुट की सूचीयन का कार्य करताा है।

(7) वितरित डाटा प्रोसेसिंग– इसके अन्तर्गत एक केन्द्रीय स्थान पर डाटाबेस रखा जाता है पर उनकी प्रोसेसिंग कई स्थानों पर की जा सकती है । इसमें कई यूजर्स एक ही एप्लीकेशन पैकेज का उपयोग करते हैं एवं सभी को डाटा को अपडेट तथा मेनिपुलेट करने का अधिकार होता है । इसके अन्तर्गत कई कम्प्यूटर्स का एक नेटवर्क विकसित किया जाता है । इससे डाटा का एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर को आदान–प्रदान भी सम्भव हो जाता है।

(8) ऑफ लाइन प्रोसेसिंग– इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर द्वारा डाटा को मेग्नेटिक डिस्क अथवा टेप पर इनपुट किया जाता है । इस डिस्क अथवा टेप की मदद से फिर सी.पी.यू. द्वारा डाटा को एक साथ प्रोसेस करवाया जाता है। इस प्रक्रिया का उपयोग डाटा को इनपुट करने के लिए किया जाता है । डिस्क या टेप पर इनपुट किये गये डाटा को फिर समूह में सी.पी.यू. द्वारा प्रोसेस किया जाता है । मिनी कम्प्यूटर्स का उपयोग ऑफ लाइन प्रोसेसिंग के लिए काफी किया जाता है।

कुछ प्रसिद्ध ऑपरेटिंग सिस्टम जो PC’s में अक्सर प्रयोग में लाये जाते हैं, निम्नलिखित हैं–

(1) CPM/80 (Control Programmes/Microprocessor)– CPM/80 डिजिटल रिसर्च द्वारा विकसित अक्सर प्रयोग होने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम हैं। यह (O.S.8 Bit सिस्टम पर प्रयोग किया जाता है तथा इसके लिये कई एप्लीकेशन सॉफ्टवेअर भी तैयार किये गये हैं। इसकी अत्यन्त उपयोगिता के कारण, 8 Bit मशीन में CPM/80 का प्रयोग हुआ। CPM/86, CPM/80 का ही विकसित रूप है, जिसे 16 Bit मशीन के लिये तैयार किया गया है।

(2) MS–DOS – MS–DOS का विकास माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन ने 16 Bit एवं 32 bit मशीनों के लिये किया। MS–DOS उन मशीनों के लिए स्टैण्डर्ड O.S. है, जिनमें इन्टेल माइक्रोप्रोसेसर्स होते हैं। IBM ने भी अपने PC’s के लिये MS–DOS को ही चुना। इसी कारण MS–DOS प्रसिद्धि की चरम सीमा तक पहुँचा।

(3) UNIX– UNIX Multiuser वह ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसे ज्यादा क्षमता वाली 16 Bit तथा 32 Bit की मशीन के साथ प्रयोग किया जाता है । UNIX का निर्माण AT & T’s Bell Laborataries ने किया। काफी समय तक Mutiuser O.S. मार्केट में UNIX का एकाधिकार रहा । सर्वप्रथम UNIX को एसेम्बली लैंग्वैज में लिखा गया। बाद में, 1973 ई. में इसको पुन: सी लैंग्वेज में लिखा गया, जिसकी वजह से इसे विभिन्न तरह की मशीनों पर प्रयोग किया जा सका ।

(4) विन्डोज़– विन्डोज़ एक अत्यन्त लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम है। विन्डोज़ का निर्माण माइक्रोसोफ्ट माइक्रोसोफ्ट कॉरपोरेशन ने किया। विन्डोज़ चित्र आधारित इण्टरफेस O.S. है |

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