कम्प्यूटर का इतिहास बताइये।

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कम्प्यूटर के इतिहास का वर्णन इस प्रकार है–

बैबेज और कांउटेस :

1791 में इंग्लैण्ड में जन्मे चार्ल्स बैबेज एक आविष्कारक तथा गणितज्ञ थे। कुछ समीकरणों को हल करते समय उन्होंने पाया कि वे जिस गणित तालिका का प्रयोग कर रहे थे उसमें कई गलतियाँ थीं। उन्होंने तय किया कि एक ऐसी मशीन बनाई जाए जो समीकरणों के अंतर का हिसाब लगाकर उन्हें ठीक से हल कर सके। उन्होंने डिफरेंस इंजन नामक डेमोन्स्टेशन माडल तैयार करने की ठान ली। इस माडल की इतनी प्रशंसा हई कि प्रोत्साहित होकर 1830 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार के अनुदान की मदद से एक संपूर्ण कारगर संस्करण की तैयारी प्रारम्भ कर दी।

बैबेज को लगा कि इस मशीन की छोटी सी कमी भी इसकी असफलता का कारण बन सकती थी। बैबेज के सहकर्मी मानते थे कि वो एक निरर्थक मशीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अंततः बेवजह अपना पैसा बर्बाद करने के बाद सरकार ने अपनी वित्तीय सहायता वापस ले ली।

इस आघात के बावजूद बैबेज ने हार नहीं मानी । उन्होंने एनेलिटिकल इंजन नामक एक अन्य मशीन की रूपरेखा तैयार की । उन्हें आशा थी कि यह कई तरह के हिसाब कर पाएगी। हालांकि उनके जीते जी उसे तैयार नहीं किया जा सका लेकिन उनके बेटे ने एक माडल जरूर बनाया। यह अलग बात है कि 1891 में पहली बार ऐनेलिटिकल इंजन का कारगर संस्करण तैयार हो पाया तथा लंदन में इसे लोगों को प्रदर्शित करने के लिए रखा गया। इसमें आधुनिक कम्प्यूटर के पाँच मुख्य गुण थे–

– एक इनपुट उपकरण

– प्रोसेसिंग की प्रतीक्षा कर रही संख्याओं को संग्रहित रखने वाला स्टोरेज

– प्रोसेसर या नंबर कैल्कुलेटर

– कार्य का निर्देश देने तथा गणित को क्रमवार लगाने वाला एक कंट्रोल यूनिट

– एक आउटपुट उपकरण


अगर बैबेज कम्प्यूटर के पिता थे तो लवलेस की काउंटेस एड पहली कम्प्यूटर प्रोग्रामर थीं। अंग्रेजी कवि लार्ड बायरन तथा गणितज्ञ मां की बेटी एड ने ऐनेलिटिकल इंजन पर कम्प्यूटेशन करने हेतु निर्देश तैयार करने में सहयोग दिया। लेडी लवलेस के योगदान को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। उन्हें लगा कि बैबेज का सैद्धान्तिक दृष्टिकोण तर्कसंगत था, साथ ही उनकी अपनी रुचि ने भी उन्हें काफी प्रोत्साहन दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने टिप्पणियों की एक श्रृंखला का भी प्रकाशन किया जिससे कई लोगों को वैसा कुछ कर दिखाने में मदद मिली जो स्वयं बैबेज भी नहीं कर पाए।

हर्मन हालरिथ : नई किस्म की जनगणना

1880 में अमेरिका में हाथों से की गई जनगणना में सात वर्ष लगे थे। 1890 में संयुक्त राष्ट्र की जनगणना की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के तरीके ढूंढने के उद्देश्य से एक प्रतियोगिता भी आयोजित की गई थी। इसमें हर्मन हालरिथ की टैबुलेटिंग मशीन सर्वश्रेष्ठ घोषित की गई थी। उनकी बताई प्रक्रिया अपनाने की वजह से 1890 की जनगणना के मात्र छः सप्ताह के बाद ही (62,622,250) के परिणाम की घोषणा कर दी गई थी। हालरिथ तथा बैबेज की मशीनों में मूल अंतर यही था कि हालरिथ की मशीन में यांत्रिक शक्ति की बजाय इलेक्ट्रिक का प्रयोग किया गया था। हालरिथ जानते थे कि उनकी मशीन व्यावसायिक तौर पर भी काफी सफल साबित हो सकती थी। उन्होंने 1896 में टैबुलेटिंग मशीन कम्पनी की स्थापना की, जो 1924 में दो अन्य कम्पनियों के साथ मिलकर इंटरनेशनल बिजनेस मशीन्स कारपोरेशन–आईबीएम बन गई।

आईबीएम के वाटसन

1924 से 1956 तक 30 से अधिक वर्षों तक थामस जे. वाटसन सीनियर ने आईबीएम पर सुदृढ़ राज किया। झगड़ालू तथा तानाशाह होने के बावजूद वाटसन एक सुपर सेल्समैन थे जिन्होंने बिजनेस मशीन्स मार्केट में पहले एक कैल्कुलेटर सप्लायर, फिर कम्प्यूटर डेवलपर के रूप में आईबीएम की खासी पहचान बनाई।

कम्प्यूटर के क्षेत्र में आईबीएम के प्रवेश का गौरव हार्वर्ड में गणित के युवा प्रोफेसर हार्वर्ड आईकेन को जाता है। 1936 में लेडी लवलेस की टिप्पणियाँ पढ़कर आईकेन को लगा कि ऐनेलिटिकल इंजन का आधुनिक समकक्ष बनाया जा सकता है । चूँकि भरपूर वित्त तथा स्त्रोतों वाली कंपनी आईबीएम पहले से ही बिजनेस मशीन मार्केट में अपना लोहा मनवा चुकी थी अतः आईकेन ने एक बढ़िया प्रस्ताव बनाया एवं थामस वाटसन से मिला। अपने आर–पार वाले निर्णयों हेतु प्रसिद्ध वाटसन ने उन्हें एक मिलियन डालर दिया। इसी की वजह से हार्वर्ड मार्क 1 का बाजार में आना हुआ।

वाटसन का नुस्खा – जब कम्प्यूटर का व्यापार आसमान की ऊँचाइयाँ छू रहा था तभी दूसरे महायुद्ध के बादल भी मंडराने लगे थे। लेकिन थामस वाटसन सीनियर ने अपने कर्मचारियों को महज दुःख से भरा अलविदा नहीं कहा वरन् उन्हें पुरस्कृत किया। सभी को उनकी वार्षिक आय का एक–तिहाई भाग बारह मासिक किस्तों में दिया गया। पूरे महायुद्ध के दौरान उन्हें चैक मिलते रहे । हर महीने सभी पुराने कर्मचारी आईबीएम तथा इसके संस्थापक की दरियादिली के बारे में सोचा करते थे। परिणाम ? युद्ध के बाद इन कर्मचारियों में से ज्यादातर आईबीएम लौट आए। वाटसन को उसके कर्मठ कार्यकर्ता बिल्कुल पहले ही की तरह वापस मिल गए। बाकी आईबीएम इतिहास है।

मील का पत्थर मार्क–1

मार्क–1 से पहले ऐसी मशीन कभी नहीं बनी थी। यह 8 फुट ऊँची तथा 55 फुट लंबी स्ट्रीमलाइन्ड स्टील एवं शीशे से बनी थी और प्रोसेसिंग के समय इसमें से ऐसी आवाज आती थी जेसे एक कमरे में कई वृद्धाएँ स्टील के काटों पर बुनाई कर रही हों। 1944 में आया मार्क 1 काफी कुशल नहीं था लेकिन बड़े पैमाने पर इसके प्रचार से कम्प्यूटर विकसित करने के प्रति आईबीएम की प्रतिबद्धता को काफी प्रोत्साहन मिला। इस बीच, तकनीक किसी दूसरे ही लक्ष्य की तरफ बढ़ी चली जा रही थी।

अमेरिकी सैन्य पदाधिकारियों ने पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय के डाक्टर जान माक्ली से एक ऐसी मशीन तैयार करने का अनुरोध किया जो तेज गति से तोप तथा मिसाइलों की प्रक्षेपण क्षमता का हिसाब लगा सके। माक्ली एवं उनके छात्र जे.प्रेस्पर एकर्ट ने आयोवा राज्य विश्वविद्यालय में भौतिकी विज्ञान के प्रोफेसर डा.जान वी. एटानासोफ के कार्य को अपना आधार बनाया। 1930 के उत्तरार्द्ध में एटानासोफ अपने छात्रों की गणित संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक कैल्कुलेटिंग उपकरण बनाने में काफी समय लगा रहे थे।

वे तथा उनके सहायक क्लिफोर्ड बेबी पहला इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर तैयार करने में सफल हो गए। उन्होंने इसका नाम एबीसी, एटानासोफ–बेरी कम्प्यूटर रखा। मॉक्ली ने 1941 में एटानासोफ तथा बेरी से मिलने के बाद में एबीसी का प्रयोग कम्प्यूटर विकास के क्षेत्र में अगले कदम के रूप में किया। इस संबंध में बाद मॉक्ली द्वारा बनाई मशीन के व्यावसायिक संस्करण का पेटेंट हासिल करने के बाद खासी मुकदमेबाजी भी हुई। इस मुकदमेबाजी का निर्णय 1974 में हुआ, जब अमेरिका के एक संघीय न्यायालय ने आदेश दिया कि एटानासोफ ही इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर को वास्तव में काम करने योग्य बनाने वाली योजना के असली जनक थे । (कुछ कम्प्यूटर इतिहासकार न्यायालय के इस निर्णय से सहमत नहीं हैं।) मॉक्ली तथा एकटे ने एबीसी का अवधारणा के आधार पर ही इएनआईएसी–इलेक्ट्रानिक न्यूमेरिकल इंटिग्रेटर एंड कैल्कुलेटर बनाया था। ईएनआईएसी पहला आम तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला कम्प्यूटर था, यह यूएनआईवी एसी–1 नामक व्यावसायिक तौर पर पहली बार बिके कम्प्यूटर का अग्रज था।

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