कंप्यूटर तथा कंप्यूटर शिक्षा से आप क्या समझते हैं?

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कंप्यूटर शब्द अंग्रेजी के Compute शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ– गणना करना होता है। कंप्यूटर श्रम एवं समय बचाने वाले यंत्रों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं आधुनिक यंत्र है। कंप्यूटर चमत्कारी तीनता से हर प्रकार की गणना का कार्य कर देता है।

कंप्यूटर की उल्लेखनीय विशेषताएं हैं– शीघ्रता, शुद्धता, सहक्षमता, स्वयंचालिता एव व्यापकता। इसे संक्षिप्त में इस तरह व्यक्त कर सकते हैं –

(i) किसी भी कार्य को कंप्यूटर से अतिशीघ्रता से संपन्न किया जा सकता है। कंप्यूटर की गति प्रति सेकेण्ड लाखों में होती है।

(ii) कंप्यूटर की गणना सही होती है।

(iii) बार–बार किए जाने वाले कार्य को सुगमता से संपन्न करता है।

(iv) कार्य करने की क्षमता का हास नहीं होता है।

(v) इसकी मेमोरी बहुत अधिक होती है।

कंप्यूटर के प्रकार :

(1) एनॉलाग कंप्यूटर– इन कंप्यूटरों द्वारा भौतिक प्रतिक्रिया या राशि को विद्युत संकेतों में बदला जाता है। इनका प्रयोग, प्रयोगशाला में मात्रा मापने के कार्य में होता है।

(2) अंकीय (डिजिटल) कंप्यूटर– इनके परिणाम सदैव अंकों में प्रदर्शित किये जाते हैं।

(3) हाइब्रिड कंप्यूटर– ये उक्त दोनों कंप्यूटरों के गुणों से युक्त हैं।

कंप्यूटर के प्रमुख अंग

कंप्यूटर के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं –

1. CPU       –     सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट

2. Memory       –           मेमोरी

3. Input            –           इनपुट।

4.Output          –           आउटपुट

कंप्यूटर से लाभ

1. शुद्धता– कंप्यूटर विधि के प्रयोग से लेखांकन कार्य तथा गणना कार्य अधिकतम शुद्धता से किया जा सकता है।

2. शीघ्रता– कंप्यूटर विधि के प्रयोग में कार्य शीघ्रता से, कम समय में संपन्न किए जा सकते हैं जिस गणना के कार्य को करने में मानवीय श्रम के हजारों घंटे लगते हैं उसे कंप्यूटर मशीन मिनटों में पूर्ण कर सकती है।

3. मितव्ययिता– कंप्यूटर विधि का प्रयोग करने से गणना एवं लेखांकन कार्य कम समय में संपन्न किया जा सकता है इससे समय तथा श्रम में बचत होती है।

4. आकर्षक– इसके प्रयोग से सभी कार्य अत्यंत सफाई से संपन्न हो जाते हैं। क्लर्को की अस्पष्ट एवं गंदी लिखावट स्याही के प्रयोग आदि से छुटकारा मिल जाता है।

5. रोजगार की प्राप्ति– संगठक विधि के प्रयोग करने से प्रत्यक्षतः पढ़े लिखे तकनीकी व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है। संगणक विधि के प्रयोग से कार्य शीघ्रता से संपन्न होने के कारण उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा उत्पादकता में वृद्धि के फलस्वरूप अप्रत्यक्ष रूप में नए–नए लोगों को रोजगार मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

6. सूचनाओं की प्राप्ति– संगणक से व्यवसाय से संबंधित अनेक सूचनाएं तुरंत ही प्राप्त हो जाती हैं। ग्राहकों की संख्या, क्रय–विक्रय की मात्रा, व्यय की राशि की जानकारी इससे हो जाती है।

कंप्यूटर की प्रयोग विधि

कंप्यूटर मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं– डिजिटर और एनलॉग। डिजिटल कंप्यूटर गणित संबंधी कार्य करता है और एनलॉग अन्य प्रकार के साधारण कार्य । कंप्यूटर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है, जिसमें सूचनाओं को चुम्बकीय टेप में भरकर उनका विश्लेषण किया जाता है और प्राप्त परिणामों को उस विधि में प्रयुक्त किया जाता है, जिस विधि से मनुष्य उन सूचनाओं का उपयोग करना चाहता है। सन् 1869 में कंप्यूटर का व्यापारिक उत्पादन प्रारंभ हुआ, जिसमें निरंतर संशोधन होते जा रहे हैं। भारत में पहला व्यापारिक कंप्यूटर 1965 में दिल्ली क्लाथ मिल में लगाया गया था। मध्यप्रदेश में सर्वप्रथम इंदौर के हुकुमचंद मिल्स को कंप्यूटर से कार्य करने का श्रेय है।

कंप्यूटर के प्रमुख दो अंग होते हैं–

1. कठोराग और 2. कोमलांग । प्रथम भाग के तीन अंग होते हैं– (क) केन्द्रीय संसाधन इकाई (ख) निवेश एवं निर्गम इकाइयां तथा (ग) स्मृति इकाई।

कंप्यूटर का सबसे अधिक प्रभावी और उपयोगी भाग होता है इसका स्मृति एकक । यह कंप्यूटर का मस्तिष्क होता है । कंप्यूटर इलेक्ट्रॉनिक्स से कार्य करता है और इसमें असंख्य छोटे–बड़े तार होते हैं। जहां कंप्यूटर मशीन कार्य करती है, वहां का तापमान 70 डिग्री फैरनहाइट रखना पड़ता है और अत्यंत स्वच्छता आवश्यक होती है।

कंप्यूटर पर कार्य करने के लिए तीन मशीनें आवश्यक होती हैं– पंचिंग मशीन, वेरीफाय मशीन एवं मुख्य कंप्यूटर । सबसे पहले पंचिंग मशीन द्वारा सवाल या आंकड़ों को संकेत भाषा में कार्ड पर पंच करते हैं। इससे उन कार्यों पर विशेष प्रकार के छेद हो जाते हैं। ये पंच किये हए कार्ड वेरीफाय मशीन पर लगाये जाते हैं । यहीं गलत पंच किये हुए कार्ड एक ओर छट जाते हैं और सही कार्ड दूसरी ओर । इसके बाद अच्छे कार्यों को सार्टर और कोलेटर नामक दो मशीनों पर लगाते हैं। यहां कार्य करने वाले प्रोग्रामर कार्डों का प्रोग्राम बनाते हैं। अंत में ये कार्ड कंप्यूटर की मुख्य मशीन पर लगाये जाते हैं। यहां कार्ड रीडर में से टूल प्रोसेसिंग यूनिट और प्रिंटर नामक तीन मशीनें कार्य करती हैं। इन मशीनों को सब प्रकार का गणितीय कार्य करने की रीति मालूम है। ये तीनों मशीन एक साथ कार्य करती हैं। कार्ड रीडर एक मिनट में साढ़े चार सौ कार्ड पढ़ सकता है। प्रिंटर एक मिनट में साढ़े तीन सौ पंक्तियां टाइप कर सकता है। इससे कंप्यूटर की गति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। प्रश्न का हल प्रिंटर द्वारा कागज पर टाइप होता जाता है। भारत में आयबी.एम. नामक अमेरिकन कंपनी कंप्यूटर किराये पर देती है।

कंप्यूटर कई तरह के कार्य कर सकता है– जैसे जोड बाकी गणा.भाग आदि । उत्पादन की गति बढ़ाने,शुद्ध हिसाब रखने और प्रबंधकों को शीघ्र निर्णय करने में यह सहायक है । जिस काम को मनुष्य बड़े लंबे समय में व कठिनाई से कर सकता है, उसे कंप्यूटर चुटकी बजाते कर देता है, परंतु कंप्यूटर यंत्र का खर्च बहुत अधिक होता है।

कंप्यूटर शिक्षा का विकास

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में कंप्यूटर के कक्षा शिक्षण में प्रयोग पर प्रकाश डाला। गया है। अमेरिका एवं रूस जैसे विकसित देशों में कंप्यूटर शिक्षण का अनिवार्य अंग बन गया है। आठवें दशक में अमेरिकी शिक्षाविदों ने कंप्यूटरों की क्रांतिकारी भूमिका को स्वीकार करते हुए सोचा था कि आने वाले बीस वर्ष में कंप्यूटर शिक्षण के सभी स्तरों पर अपना प्रभाव स्थापित . कर लेंगे। आज वहाँ के ज्यादातर विद्यालयों में मल्टीपल–माइक्रो–कंप्यूटर हैं, कंप्यूटर लैब हैं तथा इनका पूरा जाल बिछा हुआ है। अमेरिकी शोधार्थियों ने शोध–सर्वेक्षणों से निष्कर्ष निकाले हैं कि विद्यालयों में कंप्यूटर लगाने से शिक्षण में कोई तात्विक अथवा आमूल–चूल परिवर्तन नहीं आ पाया। कई जगह ये व्यर्थ पड़े हैं, शिक्षक उन पर कार्य भी नहीं करना चाहता है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद् द्वारा लिये गये शैक्षिक नवाचार के मुख्य क्षेत्रों में से एक विद्यालयों में कंप्यूटर साक्षरता तथा अध्ययन परियोजना के अधीन विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में सूक्ष्म कंप्यूटरों का प्रारंभ किया है । एन.सीई.आरटी.को देश में फैले हुए 50 संदर्भ केन्द्रों के सहयोग से अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम छात्रों के पाठ्यक्रमों का विकास तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों के समन्वयन का दायित्व सौंपा गया है । यह शैक्षिक नवाचार के इस नये क्षेत्र में शिक्षा संबंधी सुगम साधनों का विकास करने हेतु भी है।

कंप्यूटर साक्षरता पाठ्यचर्या के विकास के लिए प्रथम राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित करने के बाद 700 से ज्यादा अध्यापक इस परियोजना से प्रशिक्षित किये गये हैं। विशेष अध्ययन करने के लिए पूरक सामग्री कंप्यूटर शिक्षा का अध्ययन भी करें।

कंप्यूटर द्वारा शिक्षा दिये जाने के लिए जो कार्यक्रम बनाये जाते हैं उन्हें ‘सॉफ्टवेयर’ कहते हैं । इस सॉफ्टवेयर के विकास हेतु 1975 में मुम्बई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च में एक राष्ट्रीय सॉफ्टवेयर विकास तथा कंप्यूटिंग तकनीकी केन्द्र स्थापित किया गया । कई प्रौद्योगिकी संस्थानों में छात्रों एवं अध्यापकों ने मिलकर स्कूल के बालकों को गणित, भौतिकी एवं भाषा साहितय सिखाने हेतु कई कार्यक्रम तैयार किये हैं।

कम्प्यूटर के उपयोग क्षेत्र (महत्त्व)

उपयोगिता के कारण ही कम्प्यूटर आधुनिक समाज का विशिष्ट यन्त्र बना हुआ है। गणन क्रियाओं को त्वरित गति से करने हेतु इस यन्त्र के मूल गुण बहुत शक्तिशाली तथा प्रभावा सिद्ध हुए हैं। जिस तरह कागज पर भाषा के विभिन्न शब्द लिखकर हम हर तरह की रचना कर सकते हैं, उसी तरह विभिन्न बाह्य यन्त्र एवं सामग्री को सृजित करके हम कम्प्यूटर का हर में उपयोग कर सकते हैं।

कम्प्यूटर के विभिन्न उपयोग क्षेत्र निम्न हैं –

1. शिक्षा– सर्वप्रथम कम्प्यूटरों का उपयोग गणित के बड़े तथा कठिन प्रश्नों को हल करने में होता था। फिर कम्प्यूटरों की उपयोगिता बढ़ती गई एवं कीमतें घटती गई, फलस्वरूप अब कम्प्यूटर की पढ़ाई प्राथमिक स्कूलों में शुरू हो गई है। उच्च शिक्षा के क्षेत्रों में तो इसका उपयोग हो ही रहा है, विद्यार्थियों को शिक्षा देने में भी कम्प्यूटर का सीधा प्रयोग हो रहा है। यहाँ कम्प्यूटर शिक्षक का पूरक होता है। शिक्षक द्वारा बनाए गए पाठों को विद्यार्थी कम्प्यूटर पर बार–बार देखकर, विश्लेषित कर विषय को भली–भांति समझ सकते हैं।

2. सरकारी प्रशासन– सरकार की उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत भारत में कम्प्यूटर के उपयोग तथा कम्प्यूटरीकरण की गति ने विगत कुछ वर्षों से काफी जोर पकड़ा है। सरकारी क्षेत्र के विभिन्न प्रतिष्ठान, जैसे–उद्योग, बैंक, जीवन बीमा, जल, वायु,रेल एवं सड़क परिवहन, विद्युत उत्पादन आदि में सभी जगह पर कम्प्यूटर का उपयोग हो सकता है।

इनके अतिरिक्त कई ऐसे भी क्षेत्र हैं, जिनसे सरकार का सीधा संबंध है, जैसे–कर निर्धारण, कर वसूली, जनसंख्या एवं प्रतिरक्षा आदि। इन जगहों पर भी कम्प्यूटर का उपयोग सरलता से हो सकता है।

(i) कर– प्रबंध– सरकार हेतु कर वसूली बहुत महत्वपूर्ण है । करदाताओं की सूची एवं प्रतिवर्ष दिए जाने वाले कर के विवरण कम्प्यूटर में दर्ज कर यह देखा जा सकता है कि कर की अदायगी समय से हुई कि नहीं। यदि नहीं हुई है, तो कम्प्यूटर जरूरी नोटिस तैयार कर सकता

(ii) जनसंख्या– सरकारी योजनाओं हेतु वर्तमान जनसंख्या का ज्ञान बहुत जरूरी है। पिछली जनगणना के विवरण कम्प्यूटर में संचित करने के बाद प्रतिदिन होने वाले जन्म, मृत्यु, प्रवास आदि को भी कम्प्यूटर में दर्ज कर सकते हैं । इन विवरणों के आधार पर हम कम्प्यूटर से वर्तमान जनसंख्या ज्ञात कर सकते हैं।

(iii) रोजगार– सरकारी नीति निर्धारण हेतु भी बेरोजगारों का ब्यौरा जरूरी है। रोजगार के हिसाब–किताब रखने में भी कम्प्यूटर का उपयोग हो सकता है । बेरोजगारों का शिक्षा–स्तर, कार्यानुभव कार्यक्षेत्र, कुशलता आदि व्यक्तिगत ब्यौरे कम्प्यूटर में संचित करके नियोजकों को सुलभ कराया जा सकता है।

(iv) प्रतिरक्षा– प्रतिरक्षा संबंधी सूचना सामग्री कम्प्यूटर भली–भाँति संचित कर उनका विश्लेषण हमें तुरन्त प्रदान कर सकता है। हमारा सैनिक बल, मारक शक्ति, अस्त्र–शस्त्रों का रख–रखाव आदि की तुलना दुश्मन देश की शक्ति से कर, कम्प्यूटर हमारी कमजोरियों को दर्शा सकता है। पनडुब्बी,नौ सैनिक,जहाज तथा वायुसेना के जहाजों में तो कम्प्यूटर बहुत ही निर्णायक भमिका निभाते हैं। अधिकांश प्रक्षेपास्त्र कम्प्यूटर नियंत्रित होते हैं। रक्षाकर्मियों का व्यक्तिगत ब्यौरा, वाहनों का रखरखाव, भण्डारण, सामग्री की खरीद, प्रशिक्षण आदि कई क्षेत्रों में कम्प्यूटर अपना योगदान दे रहे हैं।

3. परिवहन– भारत में परिवहन के प्रभाव साधन हैं–वायु परिवहन, रेल परिवहन एवं सड़क परिवहन ।

(1) वायु परिवहन– हवाई जहाजों में यात्री सीटों का आरक्षण कम्प्यूटर द्वारा ही होता है। हवाई अड़ों पर जहाजों को उतारने, उड़ाने आदि का नियंत्रण कम्प्यूटर की मदद से किया जाता है । आधुनिक एवं विशाल जम्बो जेट विमानों, एयर बसों को उड़ाने में भी कम्प्यूटर पायलट की सहायता करते हैं। हवाई अड्डों के प्रबंध का कार्य भी कम्प्यूटर भली–भाँति सम्हालते हैं।

(i) रेल परिवहन– रेलों का प्रबन्ध कार्य एवं आरक्षण का कार्य कम्प्यूटर की सहायता से किया जाता है। माल लादने वाली वैगनों के प्रबन्ध का कार्य भी कम्प्यूटर करते हैं। कम्प्यूटर में नियमित रूप से दर्ज सामनी से वैगनों की रवानगी, गन्तव्य, कौन–सा वैगन कहाँ रुका पड़ा है, आदि विवरण प्रबन्धक ज्ञात कर सकते हैं एवं जरूरी कार्यवाही कर सकते हैं।

(ii) सड़क परिवहन– ज्यादातर स्थानों पर माल की ढुलाई निजी ट्रकों द्वारा की जाती है । कुछ बड़ी ट्रांसपोर्ट कम्पनियाँ कम्प्यूटर का उपयोग कर अपने साधनों से बेहतर लाभ उठा रही हैं। अलग–अलग केन्द्रों पर जमा हुआ माल,उनका भार ट्रक में जरूरी स्थान, टूक की डीजल खपत, रख–रखाव के विवरण जैसे कार्य कम्प्यूटर कर सकते हैं।

4. संचार– कुछ वर्षों पूर्व दिल्ली में एक सूचना प्रणाली शुरू हुई है, जिसे टेलीटेक्स्ट कहते हैं । इस सुविधा के अन्तर्गत हम घरेलू टेलीविजन सेट का ही प्रयोग कर, एक केन्द्रीकृत कम्प्यूटर में संचित विवरणों को प्राप्त कर सकते हैं। टेलीटेक्स्ट के द्वारा रेलों का आवागमन, विमान सेवाओं का समय, प्रमुख कम्पनियों के अंश का भाव, विदेशी मुद्रा की विनिमय दर, बाजार में उपलब्ध ऋण–पत्र जैसे विवरण प्राप्त कर सकते हैं। हाल ही में मुख्य शहरों में इलेक्ट्रोनिक डाक सेवाएँ प्रारंभ की गई हैं। इसके अन्तर्गत लिखित समाचार एक जगह से दूसरी जगह पर भेजे जाते हैं। कम्प्यूटर के जरिए भेजे गए समाचार का एक कागजी प्रतिरूप वांछित स्थान की फैक्स मशीन पर तुरन्त हूबहू छप जाता है। इस विधि से भेजी गई डाक को पहुँचने में उतना ही समय लगता है, जितना कि टेलीफोन से बात करने में। अब तो टेलीफोन के इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज भी पूर्णतया कम्प्यूटर पर आधारित हो गए हैं।

5. व्यापक तथा वाणिज्य–

(i) बैंक– बैंकों में ग्राहक का खाता रखना, खातों में जमा राशि की सूचना देना, स्टेटमेण्ट बनाना, चैकों के क्लियरिंग आदि काम कम्प्यूटर करते हैं। विकसित देशों में अब धन निकालने हेतु खातेदार को बैंक नहीं जाना पड़ता है । वह निकट के बैंक टर्मिलन के पास जाकर अपना परिचय (क्रेडिट कार्ड) टर्मिनल के कम्प्यूटर को देगा तथा टर्मिनल वांछित रकम वांछित नोटों में भुगतान कर देगा, इसी तरह वह खाते में रकम जमा भी कर सकता है। कम्प्यूटर माइक्रोचिप पर लेन–देन के विवरण को अंकित कर देगा।

(ii) बीमा– जीवन बीमा निगम एवं सामान्य बीमा कम्पनियाँ भी अपने कार्य में कम्प्यूटर का उपयोग कर रही हैं। पॉलिसी होल्डरों को प्रीमियम के भुगतान का नोटिस भेजना, पॉलिसी तैयार करना आदि काम कम्प्यूटर से होता है।

iii) स्टॉक एक्सचेंज– वे दिन गए, जब अंशों के दलाल स्टॉक एक्सचेंज की रिंग में जाकर अंकों का क्रय–विक्रय करते थे। आज वे लोग कम्प्यूटर की सहायता से अपने कार्यालय में बैठकर बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज तथा नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के सौदे उपग्रह लिंक के द्वारा पूरे देश में कहीं भी बैठे दूसरे दलालों के साथ कर सकते हैं।

(iv) विद्युत– सभी राज्यों के विद्युत मण्डल राज्य में फैले लाखों विद्युत उपभोक्ताओं को कम्प्यूटर के माध्यम से बनाए गए बिलों का वितरण करते हैं।

(v) भण्डार गृह– किसी भी बड़े भण्डार गृह के सामान–सूची नियंत्रण में कम्प्यूटर बहुत उपयोगी होता है। भण्डार गृह में आये तथा वहाँ से दिये जाने वाले सामानों का विवरण प्रतिदिन कम्प्यूटर में दर्ज कर देने पर एक पूर्व निश्चित तादाद तक पहुँचते ही कायटर सचना दे देगा कि वह सामान फिर से मँगाना है।

6. कृषि– भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा देश की उन्नति कृषि को लाभकारी बनान पर ही सम्भव है। इसके लिए सम्भवतः सभी खेतों की मिट्टी को जाँचकर उसके लिये उपयुक्त फसल, उन्हें बोने का समय, सिंचाई के साधन, उपयुक्त बीज,खाद,सम्भावित रोग तथा उनका निवारण, फसल की कटाई का उपयुक्त समय एवं बाजार आदि विवरण कम्प्यूटर की स्मृति भण्डार में संचित कर एक डाटा बेस बना सकते हैं । इन विवरणों सहित कम्प्यूटर को ब्लॉक स्तर पर रखकर,जानकारियों को कृषकों तक पहुँचाया जा सकता है। इस तरह कम्प्यूटर एक कृषि विशेषज्ञ की भूमिका भी निभा सकता है।

7. चिकित्सा– चिकित्सा संबंधी कार्यों में कम्प्यूटर का उपयोग कई तरह से सम्भव है

(i) कैट स्कैन– इसकी सुविधा महानगरों के बड़े चिकित्सालयों में ही उपलब्ध है। इसके अन्तर्गत दिमाग अथवा शरीर के अन्य भाग के एक्स–रे चित्र कई जगहों एवं कोणों से लिये जाते हैं। इन सभी चित्रों को कम्प्यूटर द्वारा एकीकृत करके दिमाग में क्षतिग्रस्त नस, ट्यूमर आदि विकृतियों का पता लगाया जा सकता है।

(ii) अल्ट्रा–साउण्ड– इस कम्प्यूटरीकृत उपकरण के द्वारा पेट के अन्दर के भाग, जैसे–गुर्दा, लीवर आदि के रोगों का पता लगाया जा सकता है।

(iii) आपात चिकित्सा विभाग (I.C.U.)– इस विभाग में भर्ती गंभीर एवं चिन्ताजनक रोगियों की देख–रेख कम्प्यूटर द्वारा की जाती है। रोगी की जरूरी क्रियाओं जैसे–दिल की धड़कन, श्वसन, रक्तचाप आदि को कम्प्यूटरीकृत मॉनीटर पर लगातार देखा जाता है।

8. डिजाइन एवं उत्पादन– कम्प्यूटर से डिजाइनिंग का काम शीघ्रता एवं क्षमतापूर्वक हो सकता है। इसके द्वारा मशीन, इमारत, वाहन आदि के बाह्य रूप और अन्य विवरणों का डिजाइनिंग हो सकती है।

डिजाइनिंग के साथ–साथ उत्पादन में भी कम्प्यूटर का उपयोग होता है। इसे ‘कम्प्यूटर आधारित उत्पादन प्रणाली’ कहा जाता है। इसके अन्तर्गत डिजाइनिंग सूत्रों को लागू करते हुए वस्तुओं का उत्पादन होने लगता है। साथ में वस्तुओं की नाप–तौल, फिनौशिंग आदि की जाँच भी हो जाती है।

9. मनोरंजन– दूरदर्शन पर विभिन्न चैनलों पर दिखाने वाले मनोरंजक कार्यक्रमों को दिखाने का श्रेय भी कम्प्यूटर को ही जाता है ।कम्प्यूटरीकृत उपग्रहों के माध्यम से ही इनका प्रसारण किया जाता है । फिल्में के अविश्वसनीय दृश्यों एवं कार्टून्स का निर्माण कम्प्यूटर ग्राफिक्स के माध्यम से किया जाता है । संगीत की धुनें बनाने का काम भी कम्प्यूटर की सहायता से किया जाता है । कम्प्यूटर से पूरे गाने का प्रोग्राम कर उसे अलग–अलग रफ्तार में तथा विविध लय के साथ सुन सकते हैं।

10. खेल– कम्प्यूटर खेल तो अब बहुत लोकप्रिय हो चुके हैं। शतरंज, गोल्फ तथा क्रिकेट से लेकर अंकों को आपस में काटने तक के खेल हम कम्प्यूटर से खेल सकते हैं। कई खेलों में हम कम्प्यूटर को अपना प्रतिद्वन्द्वी बना सकते हैं।

11. ज्योतिष– ‘कम्प्यूटर से भविष्य जानिये’ जैसे विज्ञापन हम आजकल देखते–पढ़ते सुनते आ रहे हैं। इस हेतु राशि अथवा जन्मतिथि के आधार पर सम्भावित फल को ‘प्रोग्राम में बदलकर कम्प्यूटर के स्मृति भण्डार में संचित कर लिया जाता है। हम किसी भी व्यक्ति की जन्मतिथि दर्ज कर उसके अनुसार राशि अथवा भविष्य फल कम्प्यूटर के मुद्रक के द्वारा प्राप्त कर लेते हैं।

12. जीवन साथी का चयन– आजकल भावी वर–वधुओं को कम्प्यूटर से अपना जीवन साथी चुनने का भी अवसर सुलभ हो गया है। इसके लिये युवक एवं युवतियों के व्यक्तिगत विवरण, जैसे–शैक्षणिक योग्यता, नौकरी, आय, आयु, रंग, वजन, ऊँचाई,रुचि आदि कम्प्यूटर में संग्रहीत कर लेते हैं। फिर हम किसी विवाहेच्छुक व्यक्ति से उसके मनपसन्द जीवनसाथी का इच्छित विवरण जानकर कम्प्यूटर में दर्ज कर देंगे तथा उसे आदेश देंगे कि संचित सूची में दर्ज विवरणों से मिलते–जुलते व्यक्तियों को चुनकर बताएँ।

13. मुद्रण एवं प्रकाशन– मुद्रण की हैण्ड कम्पोजिंग प्रणाली अब बीते जमाने की बात हो गई है। अब जमाना है डी.टी.पी (Desk Top Publishing) का। इस प्रणाली में साधारण पर्सनल कम्प्यूटर का उपयोग होता है। इस प्रणाली में कम्प्यूटर ऑपरेटर पाण्डुलिपि को टाइप करता जाता है एवं टाइप की गई सामग्री को मॉनीटर पर देखता जाता है। वह प्रकाशक अथवा लेखक की इच्छानुसार अक्षरों को बड़ा या छोटा, सीधा या घुमावदार कर सकता है। सामग्री का चित्र द्वारा प्रदर्शन कर सकता है। पुस्तक के मुख पृष्ठ की डिजाइनिंग कर सकता है एवं जरूरी संशोधन के बाद प्रिण्टर द्वारा सिंपल पेपर बटर पेपर पर सामग्री को मुद्रित कर देता है।

इस मुद्रित सामग्री की नेगेटिव बनाई जाती है। तदुपरान्त कम्प्यूटरीकृत छपाई मशीन पर वांछित संख्या में पुस्तक की छपाई हो जाती है।

कम्प्यूटर का शिक्षा में प्रयोग

पिछले दशक में कम्प्यूटर का विभिन्न कार्यों तथा क्षेत्रों में तीन गति से विस्तार हुआ है। शुरू में कम्प्यूटर का प्रयोग ज्यादातर एक महासंगणक के रूप में था, जिसकी कि मदद से बड़े–बड़े आंकड़ों को आसानी से अल्प समय में सरलतम रूप में पेश किया जा सकता था, पर आज इसका प्रयोग अनेक शैक्षिक गतिविधियों में होने लगा। उनमें कुछ महत्वपूर्ण उपयोग निम्न है-

कम्प्यूटर महासंगणक के रूप में

कम्प्यूटर का शिक्षा के क्षेत्र में यह पहला तथा कुछ समय तक एकमात्र उपयोग था। इसमें कम्प्यूटर को अनुसंधान के क्षेत्र में आने वाली कठिनाइयों तथा ज्यादा समय लेने वाली गणनाओं का हल प्राप्त करने हेतु उपयोग में लाया जाता था। जैसे–जैसे कम्प्यूटर प्रणाली में सुधार आते गये, वैसे–वैसे इस क्षेत्र में इसका उपयोग भी बढ़ता ही गया तथा आज कम्प्यूटर विभिन्न विषयों के अनुसंधानों हेतु एक अनिवार्य अनुसंधान साधन हो गया है।

आज कम्प्यूटर का उपयोग सिर्फ वैज्ञानिकों तथा अनुसंधानकर्ताओं तक ही सीमित नहीं रह गया है, वरन् आज यह छात्र एवं अध्यापक के दैनिक जीवन का जरूरी अंग बन गया है। दैनिक जीवन में छात्र आज कम्प्यूटर का उपयोग प्राफ के ढलाव की गणना करने, आँकड़ों की सांख्यिकीय गणना करने, प्रयोगों के परिणाम ज्ञात करने जैसे कार्यों हेतु भी करते हैं।

शिक्षण–अधिगम की प्रक्रिया में कम्प्यूटर का उपयोग :

आजकल कम्प्यूटर का उपयोग शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया में काफी सीमा तक हो रहा है। कम्प्यूटर के शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया में इस तरह के उपयोग को कम्प्यूटर की मदद से अधिगम के नाम से जाना जाता है।

कम्प्यूटर को शिक्षण–अधिगम की प्रक्रिया में प्राय: दो तरह की परिस्थितियों में उपयोग किया जाता है। कभी–कभी उपरोक्त दोनों उपयोग एक साथ भी किये जाते हैं।

1. शिक्षक के प्रतिस्थापक के रूप में– इस रूप में कम्प्यूटर शिक्षक के स्थानापन्न का कार्य करता है एवं छात्र सीधे कम्प्यूटर से व्यवहार करता है । कम्प्यूटर को पहले से ही छात्रों के प्रश्नों के उचित उत्तर देने हेतु नियोजित (प्रोग्राम्ड) कर दिया जाता है। कम्प्युटर के माध्यम से छात्रों को अधिगम ज्ञान अथवा विषय–वस्तु क्रमवार पेश की जाती है एवं उस लघ विषय–वस्तु की जानकारी देने के बाद उस पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। अगर छात्र प्रश्न का सही उत्तर दे देता है, तो उसे अगली विषय–वस्तु प्रस्तुत की जाती है तथा अगर वह प्रश्न का उत्तर गलत देता है तो उसकी गलती पर ध्यान दिलाने हेतु एवं उसे सुधारने हेत अतिरिक्त उचित तथा आवश्यक विषय–वस्तु फिर प्रस्तुत की जाती है । जब तक छात्र अपनी गलती सधार नहीं लेता. तब तक उसे अतिरिक्त विषय–वस्तु पेश की जाती है।

जब कम्प्यूटर का उपयोग इस तरह के स्व-अध्ययन में किया जाता है तो छात्रों के उत्तरों का प्रकार कम्प्यूटर तथा कम्प्यूटर प्रोग्राम पर ज्यादा निर्भर करता है। एक सामान्य कम्प्यूटर प्रोग्राम छात्र को दिये प्रश्न का उत्तर देने हेतु बहुविकल्प के रूप में दिये गये उत्तरों में से एक उत्तर चुनने हेतु बाध्य कर सकता है। जबकि एक अन्य तरह का कम्प्यूटर प्रोग्राम छात्रों को अपने स्वयं के शब्दों में उत्तर देने के लिए बाध्य कर सकता है। ऐसी स्थितियों में कम्प्यूटर को मुख्य शब्द अथवा अंक ज्ञात करने हेतु प्रोग्राम कर दिया जाता है।

2. अनुकरणीय प्रयोगशाला के रूप में– इस रूप में कम्प्यूटर के उपयोग में कम्प्यूटर का सीधे शिक्षण साधन के रूप में ज्यादा उपयोग न करके, अधिगम साधन के रूप में ज्यादा उपयोग करते हैं। इस उपयोग हेतु कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के द्वारा प्रयोगात्मक परिस्थितियों को कम्प्यूटर में फीड कर दिया जाता है एवं छात्रों को इन प्रयोगात्मक परिस्थितियों पर अधिगम सहायता, सामग्री के रूप में प्रदान की जाती है। अनुकरणीय प्रयोगशाला के रूप में कम्प्यूटर का उपयोग उस समय ज्यादा उपयोगी हो जाता है जहाँ

(1) रूढ़िवादी व्यावहारिक प्रदर्शन या तो बहुत ज्यादा कठिन है अथवा असम्भव है।

(2) आवश्यक उपकरण अथवा मशीन शीघ्र उपलब्ध नहीं है या सामान्य कक्षा हेतु बहुत कीमती है।

(3) वास्तविक परिस्थिति की जाँच करने में अनावश्यक ज्यादा समय लगता है।अनुकरणीय प्रयोगशाला के रूप में कम्प्यूटर के उपयोग से वे अधिगम अनुभव भी प्राप्त किये जा सकते हैं, जो कि शायद वास्तविक परिस्थितियों में प्राप्त करना असम्भव है। उदाहरण के लिए–इसका उपयोग छात्र मानब जेनिटिक्स, सूक्ष्म अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र के क्षेत्र में अनुकरणीय प्रयोग कर सकता है।


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