कम्प्यूटर मेमोरी से क्या आशय है ? इसका वर्गीकरण करने हेतु विभिन्न प्रकारों को समझाइए।

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कम्प्यूटर मेमोरी

कम्प्यूटर मेमोरी में सूचनाएँ तथा कार्यक्रम संग्रहित किये जाते हैं । कम्प्यूटर मेमोरी कम्प्यूटर का अत्यन्त महत्वपूर्ण हिस्सा है । वे सभी सूचनाएँ जो इनपुट के लिए आवश्यक होती हैं एवं आवश्यक निर्देशों के बाद प्राप्त मध्यवर्ती एवं अन्तिम परिणाम आउटपुट यूनिट में जाने से पूर्व मेमोरी में संग्रहित होते हैं । मेमोरी सीपीयू से जुड़ी रहती है । मेमोरी अनेक सेल्स (Cells) से मिलकर बनी होती है प्रत्येक सेल में एक बिट (0 या 1) स्टोर करने की क्षमता होती है । सैल फ्लिपफ्लाप के रूप में बनाये जाते हैं, जो ‘ऑन’ के रूप में 1 तथा ‘ऑफ’ के रूप में 0 संग्रहित करते हैं।

मेमोरी दो तरह की होती है–

(1) प्राथमिक मेमोरी

(2) द्वितीयक मेमोरी

(I) प्राथमिक मेमोरी

यह कम्प्यूटर के सीपीयू (CPU) का एक आवश्यक भाग है । इसे आन्तरिक मेमोरी भी कहते हैं । कम्प्यूटर की क्षमता को आंकने में इस आन्तरिक मेमोरी की संग्रहण क्षमता का बहुत महत्व होता है । इस मेमोरी से किसी भी सूचना को किसी स्थान से प्राप्त किया जा सकता है। प्राथमिक मेमोरी की मेन मेमोरी भी कहा जाता है । कम्प्यूटर की मेन मेमोरी में सभी प्रोग्राम डाटा के साथ संग्रहित रहते हैं।

यह मेमोरी मुख्यतः दो तरह की होती है–

(1) रेण्डम एक्सेस मेमोरी (RAM ‘Random Access Memory’)– यदि सूचना को किसी भी पते पर भण्डारित किया जा सकता हो तथा किसी भी पते से सीधा पढ़ा जा सकता हो तो इसे RAM कहते हैं। यह कम्प्यूटर का प्रयोग करते समय सबसे अधिक काम में लाई जाने वाली मेमोरी है। कम्प्यूटर के बन्द किये जाने पर इस मेमोरी में संग्रहीत सूचनाएँ अपने आप नष्ट हो जाती हैं। अत: इस मेमोरी को अस्थायी मेमोरी कहा जाता है । कम्प्यूटर में इनपुट की जाने वाली सूचना सर्वप्रथम इसी मेमोरी में संग्रहीत होती है। इसे दो भागों में बाँटा गया हैं।

(i) स्टेटिक रेम– यह बायपोलर सेमी कन्डक्टर मेमोरी एवं मेटल ऑक्साइड सेमी कंडक्टर से मिलकर बना होता है। यह तीव्र गति से कार्य करने वाला एवं खर्चीला होता है। इसका घनत्व कम होता है।

(ii) डायनामिक रेम– यह Mosjet तथा केपेसिटर्स के द्वारा बना होता है । यह मध्यम गति से कार्य करता है एवं सस्ता होता है, इनमें घनत्व उच्च होता है।

(2) रीड ऑनली मेमोरी (ROM)– इस मेमोरी में सूचनाएँ स्थायी रूप से संग्रहित होती हैं । कम्प्यूटर निर्माण के समय ही इसमें सूचनाएँ संग्रहित कर दी जाती हैं, जिन्हें उपयोगकर्ता सिर्फ पढ़ सकता है, परिवर्तन नहीं कर सकता है। इसमें ऐसी सूचनाएँ संग्रहित हैं जो कम्प्यूटर के परिचालन के लिए जरूरी हैं। ये मेमोरी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट्स के रूप में होती हैं । कम्प्यूटर परिचालन के लिए विशेष प्रोग्राम जिन्हें माइक्रोप्रोग्राम्स कहते हैं, इसमें संग्रहित होते हैं।

(3) प्रोम (PROM)– वर्तमान में ऐसे रोम चिप उपलब्ध हैं जिन पर प्रयोगकर्ता आवश्यक विशेष प्रोग्राम अंकित कर सकता है । इसे प्रोम कहते हैं। एक बार प्रोग्राम अंकित करने पर वह स्थायी प्रकृति का (ROM) बन जाता है एवं उसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

(4) इप्रोम (Erasable Programmable Read Only Memory)– चकि प्रोम (PROM) में संग्रहित सूचना परिवर्तन नहीं की जा सकती अतः उपयोगकर्ता अपनी इच्छा से प्रोग्राम में परिवर्तन नहीं कर सकता। इसी कमी को दूर करने के लिए वर्तमान में इप्रोम (EPROM) चित्र उपलब्ध है, जिन पर संग्रहित सूचना को अल्ट्रा–वाइलेट लाइट द्वारा हटाया जा सकता है । इससे मेमोरी स्थान रिक्त हो जाता है जिस पर उपयोगकर्ता अपनी इच्छा के अनुसार पुनः प्रोग्राम अंकित कर सकता है । पुनः ये सूचनाएँ स्थायी प्रकृति की बन जाती हैं। शोध एवं अनुसंधान कार्यों में इस तरह की मेमोरी का अत्यधिक उपयोग होता है ।

(5) इइप्रोम (EEPROM) – इस प्रोग्राम के तहत निर्माताओं द्वारा चिप्स स्मार्टर का निर्माण किया जा रहा है। कई डिवाइसेस के द्वारा अब (EEPROMS) इलेक्ट्रिकली इरेजेबल Prom भी कार्य कर रहे हैं, जिन्हें कि कुछ ही वोल्टेज द्वारा रिप्रोग्राम्ड किया जाता है । इस तरह के माइक्रो कन्ट्रोलर्स का उपयोग मशीन टूल्स के लम्बे समय तक कार्य करने में होता है।

(II) द्वितीयक मेमोरी

प्राथमिक मेमोरी के अतिरिक्त कम्प्यूटर में एक और प्रकार की मेमोरी काम में लाई जाती है जिसे द्वितीयक अथवा सहायक मेमोरी कहते हैं। इस मेमोरी में डाटा अत्यधिक मात्रा में दीर्घावधि तक संग्रहित किया जा सकता है। प्राथमिक मेमोरी की संरचना सेमीकंडक्टर (अर्धचालित) पर आधारित होती है जो कि अत्यधिक लागत वाले होते हैं । यद्यपि सेमीकंडक्टर आधारित मेमोरी (प्राथमिक मेमोरी) अत्यधिक तीव्र गति से कार्य करती है पर अत्यधिक लागत के कारण इसका उपयोग एक सीमा तक ही किया जा सकता है । महँगी होने के कारण प्राथमिक मेमोरी की प्रति बिट (Bit) संग्रहण लागत ज्यादा होती है। सैकेण्डरी मेमोरी कम लागत में अत्यधिक सूचनाओं का संग्रहण तथा संरक्षण कर सकती है। वर्तमान में कम्प्यूटरों के बहुउपयोग को देखते हुए जिसमें प्रोग्राम के लिए बड़ी संख्या में सूचनाओं के संग्रहण की आवश्यकता हो सिर्फ प्राथमिक मेमोरी के संग्रहण के आधार पर कार्य नहीं हो सकता।

द्वितीयक मेमोरी गति में अपेक्षाकृत धीमी होती है, पर भण्डारण क्षमता काफी ज्यादा होने से वर्तमान में कम्प्यूटर उपयोग में इसकी उपयोगिता बढ़ गई है। प्राथमिक मेमोरी प्रोसेसर द्वारा सीधे उपयोग में ली जाती है, जबकि द्वितीयक मेमोरी का उपयोग प्रोसेसर द्वारा सीधे नहीं किया जाता है। द्वितीयक मेमोरी की वांछित सूचनाएँ प्रोसेस के समय पहले मुख्य मेमोरी में हस्तांतरित होती हैं, जिन्हें प्रोसेसर द्वारा उपयोग किया जाता है। मैग्नेटिक टेप, मैग्नेटिक डिस्क, फ्लॉपी डिस्क, सीड़ी. आदि प्रमुख द्वितीयक मेमोरी उपकरण हैं।

द्वितीयक मेमोरी उपकरण

(A) मैग्नेटिक संग्रहण उपकरण

कंप्यूटर की प्राथमिक मेमोरी की सीमित संग्रहण शक्ति होती है एवं परिणामतः इसका भविष्य या बाद के उपयोग हेतु आंकड़ों को संग्रहित करने में प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसलिए सेकेण्डरी मेमोरी जो कि कंप्यूटर से बाहर होती है, का उपयोग इन उद्देश्यों को हल करने में किया जाता है। इसलिए सेकेण्डरी मेमोरी अपेक्षाकृत सस्ती होती है तथा असीमित स्टोरेज शक्ति होती है एवं आंकड़ों को लंबे समय तक के उपयोग हेतु संग्रह करने में समर्थ होती है। सेकेण्डरी मेमोरी में सभी मेग्नेटिक यंत्र जैसे कि मैग्नेटिक टेप,मैग्नेटिक डिस्क फ्लॉपी हार्ड–डिस्क, विनचेस्टर डिस्क, मैग्नेटिक ड्रम, मैग्नेटिक बबल मेमोरी, पंच्ड पेपर टेप, चार्ल्ड कपल डिवाइस. कुछ ऑप्टीकल यंत्र जैसे सीडी रोम (कॉम्पेक्ट डिस्क रोम), डब्ल्यू रोम (राइट वन्स रोम), इरेजेबल ऑप्टिकल डिस्क इत्यादि। द्वितीयक यंत्र (सेकेण्डरी डिवाइस), मैग्नेटिक डिस्क और मैग्नेटिक टेप है |

1. मैग्नेटिक डिस्क– दो तरह की मैग्नेटिक डिस्क होती है।

(i) फ्लॉपी डिस्क– फ्लॉपी डिस्क एक लचीली डिस्क होती है जो कि माइलर प्लास्टिक के चौकोर खोल में रखी होती है । प्लास्टिक पर आयरन ऑक्साइड की पर्त होती है । इस सिस्टम (तंत्र) में दस्तावेजों से सूचनायें मैग्नेटिक माध्यम पर रिकार्ड कर ली जाती हैं, जिसे फ्लॉपी डिस्क कहते हैं तथा इसका वजन लगभग 15 ग्राम होता है। प्रत्येक फ्लॉपी–डिस्क ने–आप में 3,60,000 कैरेक्टर संग्रहित कर सकती है। आंकड़े इस परत पर छोटे–छोटे अदृश्य मैग्नटिक स्पॉट पर एकत्रित हो जाते हैं। फ्लॉपी डिस्क कासेन्ट्रिक सर्कल में विभक्त होती है, जिसे पथ (ट्रेक्स) कहते हैं । फ्लॉपी डिस्क में 40 ट्रैक्स होते हैं। हर ट्रेक में 9 सेक्टर होते हैं । हर सेक्टर में 512 बाइट होते हैं। फ्लॉपी डिस्क का व्यास 5.25 इंच होता है । फ्लॉपी डिस्क की गति 360 चक्र प्रति मिनट होती है ।

(ii) हार्ड डिस्क – यह एक नरम धातु की प्लेट होती है जो कि दोनों तरफ मैग्नेटिक पदार्थ की पतली परत से ढकी होती है। इस तरह की चुंबकीय प्लेटों का सेट एक के नीचे एक धुरी पर कसा होता है, जो डिस्क पैक बनाता है । इस डिस्क पैक को डिस्क ड्राइव पर रख दिया जाता है । डिस्क ड्राइव एक तरह की मोटर होती है, जो कि डिस्क पैक को उसकी धुरी पर 3600 चक्र प्रति मिनिट की गति से घुमाती है। सूचनायें डिस्क की सतह पर होती हैं। एक डिस्क पैक 6 प्लेटों का होता है। उदा. के लिए 12 सतह हैं। इन 12 सतहों में से सबसे ऊपर तथा सबसे नीचे वाली सतह का रिकार्डिंग में काम नहीं लिया जाता है। इसका मतलब यह है कि सूचनायें 10 सतहों पर ही रिकार्ड होंगी। प्रत्येक डिस्क में 400 ट्रेक होते हैं एवं प्रत्येक ट्रेक 50 सेक्टर में बँटा होता है। लिखने तथा पढ़ने के आपरेशन इन सेक्टरों से प्रारंभ होते हैं। विशेष रूप से 512 बाइट प्रति सेक्टर संग्रहित की जाती है। ट्रेक की संपूर्ण क्षमता 512 × 50 × 400 × 10 = 1024 मिलियन बाइट तथा इसका व्यास 12 इंच होता है।

डिस्क ड्राइव का एक सेट डिस्क नियंत्रक से संबद्ध होता है 1 डिस्क नियंत्रक, कंप्यूटर से आदेश स्वीकार करता है तथा पढने की स्थिति बताता है एवं विशेष डिस्क के सफेद सिरे पढ़ने और लिखने के लिए बताता है । डिस्क पैक पर लिखे हुए को रि–आर्डर करने हेतु कंप्यूटर विशेष रूप से ड्राइवर नंबर, सिलिंडर नंबर तथा सरफेस नं. को पहचानता है और सेक्टर नंबर व ड्राइव नं. अलग होने चाहिए क्योंकि नियंत्रक प्रायः एक से अधिक ड्राइवरों को नियंत्रित करता है।

2. मैग्नेटिक टेप– मैग्नेटिक टेप, प्लास्टिक की बनती है तथा मैग्नेटिक ऑक्साइड के पों से ढकी होती है। ये टेप, रील पर लिपटी होती है।

संग्राहक प्रारूप (स्टोरेज फार्मेट) – एक समय में एक बाइट आंकड़े स्टोर किये जाते हैं । प्रायः आंकड़ों का टेप पर रि–प्रजेंटेशन प्रत्येक बाइट के साथ 1 बीट के समान 9 बीट होता है। इस कारण से टेप पर 9 ट्रेक होते हैं। प्रत्येक ट्रेक 1 बीट स्थिति को दर्शाता है। ट्रेक के साथ–साथ आंकड़े सटे हुए ब्लॉक्स में लिखे जाते हैं। इसे टेप पर फिजिकल रिकार्ड भी कहा जाता है । इन रिकार्डों को एक रिक्त स्थान के द्वारा अलग किया जाता है जिसे इंटर रिकार्ड गेप कहते हैं।

विशेषता– टेंप ड्राइव को अधि–श्रेणीबद्ध यंत्र (सिक्वेंशियल एक्सेस डिवाइस) भी कहा जाता है, जैसे कि रिकार्ड N को पढ़ना है। अगर वर्तमान में रिकार्ड 1 पर है, तब उसे श्रेणीबद्ध रूप से 1 से सारे रिकार्डों से गुजरते हुए N तक आना होगा । उस स्थिति में जब लिखने अथवा पढ़ने के ऑपरेशन का निवेदन किया जाता है । …. ये टेप, पुराने स्टोरेज डिवाइसेस में से एक है। ये कम कीमत के, कम गति के तथा छोटे होते हैं एवं कम कीमत होने के कारण ही आज भी इनका बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है।

3. प्रकाशिक मेमोरी – प्रकाशिक मेमोरी (ऑप्टिकल मेमोरी) वैकल्पिक मास स्टोरेज डिवाइस है जिसकी क्षमता बहुत ज्यादा विशाल होती है। कॉम्पेक्ट डिस्क डिजिटल ऑडियो सिस्टम, जो कि नॉन–एरेजेबल ऑप्टिकल डिस्क है, की खोज ने कम लागत की स्टोरेज तकनीकी के विकास को संभव बनाया है । ऑप्टिकल स्टोरेज डिवाइस में सूचनायें लेसर किरणों के उपयोग से अंकित की जाती हैं । ये मेमोरी बहुत अधिक मात्रा में आंकड़ों को संग्रहित कर सकती हैं।

(B) ऑप्टिकल संग्रहण उपकरण

(1) CD–ROM (Compact Disk read Only Memory)– यह ऑप्टिकल रीड ऑनली मेमोरी रहती है । CD–ROM रेसिन से बनी होती है जिन पर प्रायः एल्यूमीनियम की परत चढ़ी होती है । CD–ROM डिस्क का उपयोग मल्टीमीडिया, कम्प्यूटर गेम्स आदि में किया जाता है । CD–ROM गोलाकार डिस्क होती है जिन पर सिर्फ रीड ऑनली मेमोरी होती है। CD–ROM परिवर्तनीय गति पर घूमती है जिस पर बने पिट्स को लेसर बीम की सहायता से पढ़ा जाता है | CD–ROM में डाटा को संग्रहीत करने हेतु ट्रेक्स का उपयोग किया जाता है। ये ट्रेक्स सैक्टर्स में बंटे होते हैं । CD–ROM के ट्रेक्स फ्लॉपी अथवा हार्ड डिस्क की तरह बन्द न होकर निरन्तरता लिये होते हैं जिनकी लम्बाई लगभग 5 किमी होती है । इनमें 650 MB डाटा संग्रहित किये जा सकते हैं। उच्च क्षमता के लेजर बीम द्वारा इसकी सतह पर पिट का निर्माण किया जाता है जो कि ‘1’ को अभिव्यक्त करता है । डाटा पढ़ने के लिए कम क्षमता के लेजर बीम का उपयोग किया जाता है।

CD–ROM के लाभ

अत्यधिक डाटा संग्रहण की सविधा

कम्प्यूटर से अलग करना सुविधाजनक

कॉपी करना मितव्ययी

डाटा की सुरक्षा

ऐतिहासिक डाटा संग्रहण के लिए सर्वाधिक उपयुक्त

CD–ROM की हानियाँ

– अधिक एक्सेस समय

– डाटा को अपडेट करना कठिन

(2) DVD–ROM (Digital Versatile Disc)– इसका पुराना नाम Digital Video Disk है | DVD की CD–ROM से डाटा संग्रहण की क्षमता ज्यादा है। वर्तमान में सभी मूवीज DVD पर उपलब्ध होती हैं । DVD वीडियो टेप की तुलना में अधिक सस्ता तथा अधिक अच्छी क्वालिटी का है । DVD दिखने में CD की तरह ही दिखती है पर इसकी क्षमता अधिक होती है। वर्तमान में 4.7 GB, 8.5 GB, 20 GB की DVD उपलब्ध हैं। DVD की संग्रहण क्षमता उसकी सतहों पर निर्भर करती है | DVD, CD–ROM की तुलना में कई गुना ज्यादा डाटा संग्रहित कर सकती है | DVD में CD–ROM की तुलना में कम वेव–लेन्थ के लेजर बीम का उपयोग होता है ।

अन्य उपकरण

1. कार्टेज टेप

अधिकतर आधुनिक कार्टेज टेप रील का प्रयोग करते हैं जो पुराने 10.5 इंच खुले रीलों से बहुत छोटे होते हैं एवं टेप की सुरक्षा और संचालन में सहजता हेतु कार्टेज के अंदर स्थिर होते हैं । 1970 दशक के अंत एवं 1980 के शुरुआती दशक के घरेलू कम्प्यूटरों में कॉम्पेक्ट कैसेट का कैन्सास सिटि मानक से कोडित का प्रयोग होता है। आधुनिक कार्टेज फॉरमेट में एल.टी.ओ., डी.एल.टी. एवं हैट/डीड़ी.सी. होते हैं।

टेप डिस्क इसके प्रति बिट कम लागत के कारण डिस्क में एक वाइएबल विकल्प रहता है । हालांकि डिस्क ड्राइव की अपेक्षाकृत इसका वास्तविक घनत्व बहुत कम हैं, टेप पर उपलब्ध सतह बड़े होते हैं। सबसे उच्चतर क्षमता का टेप माध्यम उसी क्रम में सामान्यतः होते हैं जेमा कि अब तक उपलब्ध सबसे बड़े हार्ड ड्राइव (2007 में लगभग 1 टेराबाइट) होते हैं। टेप को ऐतिहासिक रूप से डिस्क संग्रहण की अपेक्षाकृत लागत के मामले में लाभ है एवं इसी कारण इसे आप भी विशेषकर बैकअप के लिए एक बाइएवल ठत्पाद माना जाता है। विशेषतः यहाँ मीडिया स्थानांतरणता भी महत्वपूर्ण होता है । डिस्क संग्रहण के घनत्व तथा कीमत तेजी के साथ सुधार एवं टेप संग्रहण में नवाचार की कमी ने टेप संग्रहण ठत्पादों के बाजार में साझेदारी को काफी कम कर दिया है।

2. हार्ड डिस्क

हार्ड डिस्क ड्राइव प्राय: हार्ड ड्राइव या हार्ड डिस्क एक स्थाई संग्रहण यंत्र होता है जो डिजिटल रूप में अंकित डेटा को चुम्बकीय सतहों वाले घूमते हुए प्लेटर्स पर तेजी के साथ संग्रहीत करता है।

हार्ड डिस्क ड्राइव वस्तुत: कम्प्यूटर में प्रयोग हेतु विकसित किया गया था। आज हार्ड डिस्क ड्राइव के अनुप्रयोग कम्प्यूटर से आगे बढ़कर डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर, डिजिटल ऑडियो प्लेयर्स, पर्सनल डिजिटल सहायक, डिजिटल कैमरा, डिजिटल कनसोल में होने लगे हैं। सैमसंग एवं नोकिया के मोबाइल फोनों में भी हार्ड डिस्क के प्रयोग पाये जा सकते हैं।

पॉकेट हार्ड डिस्क ड्राइव–पॉकट हार्ड डिस्क ड्राइव फ्लेश ड्राइव का ठच्च क्षमता वाला विकल्प है। पॉकेट हार्ड ड्राइव में पारम्परिक हार्ड डिस्क संग्रहण, सुविधाजनक आकार एवं यू.एस.बी. संयोजन का एक समायोजन है। हालांकि ये डिवाइस कुछ हद तक फ्लेश ड्राइव से बड़े होते हैं। इसके बावजूद बड़ी मात्रा में डेटा को संग्रहित एवं स्थानांतरित करने के लिए पकिट हार्ड डिस्क डाइव सविधाजनक होते हैं। पॉकेट हार्ड डाइव की क्षमता प्राय: 4 से 8 गीगाबाइट होती है।

फ्लैश ड्राइव एवं कार्ड संग्रहण से भिन्न, पॉकेट हार्ड ड्राइव पारम्परिक हार्ड ड्राइवों के प्लैटर्स और घूमने वाले हेड्स को सुरक्षित रखते हैं । इन घूमने वाले हिस्सों के कारण पकिट हार्ड ड्राइव में दुरुपयोग की सहन क्षमता फ्लैश आधारित प्रौद्योगिकी जिसमें मिनी एमड़ी.काई, कॉम्पेक्ट फ्लेश एवं थम्ब ड्राइव्स की बजाय कम होती है। यू.एस.बी.संयोजन, ड्राइवर रहित डेटा एक्सेस एवं छोटे आकार जैसे इसके फीचर सभी पॉकेट हाई ड्राइव में वर्चुअली उपलब्ध होते हैं।

हार्ड डिस्क की भौतिक संरचना – हार्ड डिस्क एक चुम्बकीय पदार्थ को एक पैटर्न में चुम्बकीकृत कर डेटा को रिकॉर्ड करते हैं जो डेटा को व्यक्त करता है । वे डेटा को उस पदार्थ पर चुम्बकीयकरण को खोजकर उसे वापस पढ़ते हैं । एक सामान्य हार्ड डिस्क डिजाइन त’ रूप पर आधारित होता है जिसमें एक या ज्यादा समतल वृत्ताकार डिस्क जिन्हें प्लेटर्स कहते हैं, पर डेटा को रिकॉर्ड किया जाता है। प्लेटर्स अचुम्बकीय पदार्थ के बने होते हैं जो आमतौर पर शीशा अथवा अल्युमिनियम होता है एवं चुम्बकीय पदार्थ की एक पतली परत उस पर लेपित होती है । पुराने डिस्क में आयरन ऑक्साइड होते थे एवं आजकल के डिस्क में कोबाल्ट आधारित धातु–मिश्रण होते हैं।

प्लेटर्स को बहुत गति के साथ घुमाया जाता है। सूचना को प्लेटर पर लिखा जाता है जैसे ही यह रीड–एण्ड–राइट हेड्स विधि से गुजरता है जो चुम्बकीय सतह के ऊपर बिल्कुल नजदीक से गुजरता है । रीड–एण्ड–राइट हेड का प्रयोग पदार्थ के चुम्बकीयकरण में तुरंत डेटा का पता लगाने एवं संशोधन करने में होता है। स्पाइण्डल पर हर चुम्बकीय प्लेटर सतह के लिए एक हेड होता है जो एक सामान्य आर्म पर चढ़ा होता है। एक एक्च्युएटर आर्म (या एक्सेस आर्म) प्लेटर्स के आर–पार एक आर्क पर घूमता है। जैसे वे घूमते हैं जिससे प्रत्येक हेड घूमने के दौरान प्लेट की पूरे सतह को लगभग एक्सेस कर पाता है।

एक हार्ड डिस्क ड्राइव केन्द्र के बायीं तरह एक एक्च्यूएटर आर्म होता है । रीड–राइट हेड आर्म के अंत में होता है । मध्य में ड्राइव के स्पाइण्डल मोटर की आंतरिक संरचना को देखा जा सकता है । हर प्लेटर की चुम्बकीय सतह कई छोटे–छोटे उप–माइक्रोमीटर आकार के चुम्बकीय क्षेत्रों में विभक्त होती है। जिसमें प्रत्येक का प्रयोग सूचना के एक द्विआधारी इकाई को कोडित करने में होता है। आजकल हार्ड डिस्क में इन चुम्बकीय क्षेत्रों का प्रत्येक क्षेत्र कुछ सौ चुम्बकीय कणों से बना होता है। प्रत्येक चुम्बकीय क्षेत्र एक चुम्बकीय द्विध्रुव का निर्माण करता है जो अपने आस–पास एक उच्चतर स्थानीय चुम्बकीय फील्ड का निर्माण करता है । राइट हेड अपने आस–पास एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण कर चुम्बकीय मण्डल को चुम्बकीकृत करता है। प्राचीन हार्डडिस्कों में नयी हार्ड डिस्कों के समान उसी indicator का प्रयोग किया गया था। नये संस्करणों में MIG (Metal in Gap) हैड एवं पतली फिल्म चढ़े हैं, प्रयोग किया गया। आजकल हैड में रीड एवं राइट अवयवों को अलग–अलग रखा जाता है और एक्यूरेटर भुजा को पास ही लगाया जाता है । रीड एलीमेन्ट मैग्नेटारेसिस्टिव होता है वहीं राइट एलीमेन्ट पतली फिल्म चढ़े होते हैं।

हार्ड डिस्क में दृढ़ प्लैटर्स का प्रयोग एवं इकाइयों की सीलिंग इन्हें फ्लॉपी डिस्क से ज्यादा दृढ़ता प्रदान करती है। इसी तरह हार्ड डिस्क ड्राइव फ्लॉपी डिस्क की तुलना में ज्यादा तीव्र गति से डेटा एक्सेस एवं ट्रांसमिट करती है । आजकल एक टिपिकल संगठन जैसे वर्कस्टेशन हार्ड डिस्क 160 GB तथा 750 GB डेटा का संग्रहण कर सकती हैं एवं 7,200 से 10,000 घूर्णन प्रति मिनट की दर से घूम सकती है । इसमें मीडिया ट्रांसफर की दर 80 MB प्रति सेकण्ड होती है । तीव्र गति से उन्नति करते संगठनों में हार्ड डिस्क 15,000 घूर्णन प्रति मिनट की दूर घूमती है तथा इसमें मीडिया ट्रांसफर की दर 110 MB प्रति सेकण्ड अथवा इससे ज्यादा होती है । मोबाइल लैपटॉप जो आकृति में डेस्क टॉप से छोटे होते हैं, इनमें गति बहुत धीमी एवं क्षमता कम होती थी। 1990 के दशक में अधिकतर हार्ड डिस्क 42,000 घूर्णन प्रति मिनट से करती थीं। आजकल मोबाइल हार्ड डिस्क के 5,400 RPM तथा 7200 RPM के मॉडल अपेक्षाकृत थोड़े से ज्यादा मूल्य में भी उपलब्ध हैं ।

3. फ्लॉपी डिस्क

फ्लॉपी डिस्क अथवा डिस्केट एक प्लास्टिक के आवरण में मायलर पदार्थ की वृत्ताकार चकती होती है जिसकी सतह पर चुम्बकीय पदार्थ का लेपन होता है। हार्ड डिस्क के समान इसकी भी दोनों सतहों पर संकेन्द्रित ट्रैक्स होते हैं। ये ट्रैक्स सेक्टरों में विभाजित होते हैं ।

फ्लॉपी डिस्क का आवरण इसमें स्थित डिस्क को घूमने पर खरोंच लगने से बचाता है। इसकी चकती 5(1 )/(4 ) तथा 31/4 इंच के व्यास में उपलब्ध होती है । इसके आवरण में एक हिस्सा खला रहता है जिससे रीड/राइट हैड डाटा को डिस्क पर संग्रहीत एवं प्राप्त हो सके। इसमें भी डाटा–संग्रहण एवं डाटा–प्राप्ति की विधि हार्ड डिस्क के समान ही होती है एवं डाटा ट्रैक और सैक्टर में संगठित हो जाता है। ट्रैक संख्या डिस्क की परिधि से केन्द्र की तरफ 0 से शुरू होती है। इसमें एक ही डिस्क होती है, अत: सिलेण्डर की अवधारणा नहीं होती। आवरण तथा डिस्क में एक छिद्र होता है जिसे इंडेक्स होल कहते हैं । इंडेक्स होल का उपयोग यह है कि जब भी यह फोटोसेन्टर के नीचे आता है तो इसका अर्थ है रीड/राइट हैड अब वर्तमान ट्रेक के प्रथम सम्रा पर स्थित हो गया है। फ्लॉपी के एक तरफ कुछ भाग कटा हुआ रहता है जिसे राइट रोकर नॉच कहते हैं। इसका उपयोग डिस्क पर डाटा को राइट होने से बचाने में किया जाता है। अगर राइट प्रोटक्ट नॉच को बंद कर दिया जाता है तो डिस्क पर डाटा सिर्फ रीड किया जा सकता है, राइट नहीं किया जा सकता है। फ्लॉपी डिस्क निम्नलिखित दो तरह के आकारों में उपलब्ध होती हैं–

(अ) मिनी फ्लोपी– इसका व्यास 51 इंच होता है तथा इसकी संग्रहण क्षमता 1.2 मैगाबाइट (1.2 MB) होती है।

(ब) माइक्रो फ्लोपी– माइक्रो फ्लोपी को हम मिनी फ्लोपी से ज्यादा पसन्द करते हैं। ये ज्यादा मजबूत एवं बहुत सारे डाटा को संग्रहीत रखती है, और ड्राइव में अच्छी तरह परिचालन करती है । घनत्व के अनुसार ये दो तरह डबल डेंसिटी एवं उच्च डेंसिटी की होती हैं।

डबल घनत्व वाली माइक्रो फ्लोपी 737.280 बाइट (0.7 MB) को संग्रहीत रखती है, जिसमें 1440 सेक्टर होते हैं । High Density माइक्रो फ्लॉपी 1,474,560 बाइट (1.44 MB) एवं 1880 सेक्टर समायोजित रखती हैं। दोनों तरह के फ्लॉपी डिस्क एक वर्गाकार निक जो राइट प्रोजेक्ट नॉच कहलाता है। एक बार इसे बन्द करने पर ये डाटा को इसमें जाने नहीं देता।

फ्लॉपी डिस्क की भौतिक संरचना– 51/(4 ) इंच के डिस्क के केन्द्र में एक बड़ा वृत्ताकार छिद्र होता था। जो ड्राइव के स्पिण्डल हेतु होता था एवं प्लास्टिक के दोनों तरफ एक छोटा अंडाकार छिद्र होता था, जिसके द्वारा ड्राईव का हेड डाटा को रीड तथा राइट करता था। चुम्बकीय माध्यम बीच वाले छिद्र से घूर्णन देकर बनाया जा सकता है। डिस्क के दाएँ हाथ की तरफ एक छोटा नॉच होता था, जो यह पहचान करता था कि डिस्क मात्र रीड या राइटेबल था तथा इसका पता इसके ऊपर स्थित एक यांत्रिक स्विच अथवा फोटो ट्रांजिस्टरों का जोड़ा जो डिस्क के मध्य के समीप अवस्थित होता था, उसे इन्डेक्स छिद्र कहते थे तथा यह चुम्बकीय डिस्क में प्रत्येक घूर्णन पर एक बार एक छोटे छिद्र का पता लगा सकता था। इसका उपयोग प्रत्येक ट्रैक के शुरू होने का पता लगाने में होता था, साथ ही यह भी जानकारी देता है कि डिस्क सही गति के साथ घूर्णन करता था या नहीं। इस तरह के डिस्कों को सॉफ्ट सेक्टर डिस्क कहते थे। बहुत पहले 8 इंच तथा 51/(4 ) इंच वाले डिस्कों में प्रत्येक सेक्टर हेतु भौतिक छिद्र हुआ करते थे, जिन्हें हार्ड सेक्टर डिस्क कहा जाता था।

डिस्क के भीतर कपड़े के दो स्तर होते थे, जिनकी रचना मध्य एवं बाहरी कवच के बीच घर्षण को कम करने के लिए होती थी एवं मध्य को बीच में सैण्डविच की भांति रखा जाता था । बाहरी कवच प्रायः शीट का एक हिस्सा होता था, जिसे दोहरा करके फ्लैपों के साथ चिपकाया जाता था अथवा एक साथ स्पॉट–वेल्ड किया जाता था। एक कैच को नीचे करके ऐसे स्थान पर लाया जाता था जो ड्राइव के सामने हो ताकि डिस्क को ऊपर उठने से रोका जा सके तथा साथ ही साथ स्पिण्डल को ऊपर या नीचे किया जा सके।

3 1/(4 ) इंच का डिस्क कड़े प्लास्टिक के दो टुकड़ों से बना होता है, जिसके बीच में कपड़ा–माध्यम–कपड़ा का सैंडविच जैसा बना होता है ताकि धूल तथा गंदगी को हटाया जा सके । अगले भाग में सिर्फ एक लेबल तथा एक छोटा छिद्र होता है जो डाटा को रीड एवं राइट करता है एवं जिसे स्प्रिंग लगे धातु के आवरण से सुरक्षित रखा जाता है। ड्राइव में प्रविष्ट करने पर यह पीछे की तरफ पुश हो जाता है।

3 1/(4 ) इंच का फ्लॉपी डिस्क ड्राइव स्वचलित रूप से कार्य करने लगता है, जब भी प्रयोक्ता डिस्क को इसमें प्रविष्ट करता है । इजेक्ट बटन को दबाने पर यह कार्य करना बन्द कर देता है एवं फ्लॉपी डिस्क को बाहर निकाल देता है।

4. विन्चेस्टर डिस्क

IBM 3340 डायरेक्ट एक्सेस स्टोरेज फैसिलिटी कोड जो विन्चेस्टर कहलाता है का आगमन IBM System 1370 के प्रयोग के लिए मार्च 1973 में हुआ था । इन हटाये जा सकने वाले डिस्क पैकों को सील कर दिया जाता था एवं इसमें हेड तथा आर्म एमेम्बली शामिल होते थे। एक्सेस समय 25 मिलीसेकण्ड था एवं डाटा 885 KB15 की गति से स्थानान्तरित होता था। स्थानान्तरणीय (removable) IBM 3348 डाटा मॉड्यूल के तीन रूपान्तरों को बेचा गया, जो कि एक 35 मेगाबाइट, दूसरा 70 मेगाबाइट एवं तीसरा भी 70 मेगाबाइट की क्षमता का, लेकिन 500 किलोबाइट वाले को तीव्र एक्सेस के लिए अलग तय किये गये मद के अन्तर्गत बेचा गया। 3340 में त्रुटि संशोधन भी प्रयुक्त है । इसे 1984 में हटा लिया गया था।

5. ऑप्टिकल डिस्क

ऑप्टिकल डिस्क एक चपटा, वृत्ताकार प्रायः पॉलीकार्बोनेट डिस्क होता है, जिस पर . डाटा एक चपटी सतह के भीतर पिट्स (या बम्प्स) के रूप में संग्रहीत किया जाता है एवं यह प्रायः एक एकल कुंडलीनुमा खाँचे के समानान्तर होता है जो डिस्क के सम्पूर्ण रिकॉर्ड किये हुए सतह पर फैला होता है । यह डाटा प्रायः तब एक्सेस होता है, जब डिस्क पर स्थित विशेष द्रव्य (प्रायः एल्यूमीनियम) को लेसर डायोड से प्रदीप्त किया जाता है। पिट्स परावर्तित लेसर प्रकाश को विकृत करती है।

ऑप्टिकल डिस्क पर सूचना अन्दर से बाहर की तरफ अनवरत कुंडलीनुमा ट्रैक पर श्रेणीबद्ध रूप से संग्रहीत होती है। ऑप्टिकल डिस्क ड्राइवों हेतु एकोनिम ODD है ।

6. कॉम्पैक्ट डिस्क

कॉम्पैक्ट डिस्क अथवा CD एक ऑप्टिकल डिस्क है जो डिजिटल डाटा को संग्रह करने में प्रयुक्त होती है एवं मूलरूप से इसका विकास डिजिटल ऑडियो को संग्रह करने हेतु किया गया था। एक ऑडियो CD में एक या अधिक स्टीरियो ट्रैक होते हैं एवं यह 44.1 KH2 के सैम्पलिंग दर से 16–बिट PCM का प्रयोग करते हुए संग्रह करता है । मानक CD का व्यास 120mm होता है एवं यह लगभग 80 मिनट के ऑडियो को रख सकता है । 80mm वाले डिस्क भी होते हैं जो कभी–कभी एकल CD हेतु प्रयुक्त होते हैं एवं जो लगभग 20 मिनट की ऑडियो को रख सकते हैं। कॉम्पैक्ट डिस्क तकनीक को बाद में डाटा संग्रहण डिवाइस के रूप में प्रयोग के अनुकूल बनाया गया, जिसे CD–ROM के रूप में जाना जाता है तथा इसमें एक बार रिकॉर्ड करने की एवं दुबारा लिखने योग्य मीडिया (CR–R तथा CD–RW क्रमशः) बनाया गया। वर्तमान में CD–ROMs तथा CD–Rs, पर्सनल कम्प्यूटर (PC) उद्योग में व्यापक रूप से प्रयुक्त तकनीकें हैं।

कॉम्पैक्ट डिस्क की संरचना– कॉम्पैक्ट डिस्क लगभग शुद्ध पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक के 1.2mm मोटे डिस्क से बना होता है तथा इसका वजन लगभग 16 ग्राम होता है । एल्यूमीनियम (या शायद ही कभी–कभी सोना, का प्रयोग इसके डाटा की दीर्घ आयु हेतु जैसे कुछ सीमित संस्करणों वाले ऑडियोफाइल CDs में) का एक पतला स्तर इसके सतह पर लगाया जाता है ताकि इसे परावर्तक बनाया जा कसे तथा इसे रोगन के एक फिल्म द्वारा सुरक्षित किया जाता है । रोगन को प्रायः सीधे–सीधे छाप दिया जाता है तथा इसमें चिपकाने वाला लेबल नहीं लगाया जाता है । कॉम्पैक्ट डिस्क हेतु सामान्य छापने की विधियाँ स्क्रीन प्रिटिंग एवं ऑफसेट प्रिटिंग है |

पॉलीकार्बोनेट स्तर के शीर्ष पर मॉल्ड किये गए कुंडलीनुमा ट्रैक जो कसकर पैक किया हआ होता है, में कोड किये गए (encoded) छोटे इन्डेन्टेशनों (पिट्स) के श्रृंखला के रूप में CD डाटा संग्रहीत होता है। पिट्स के बीच के क्षेत्रों को लैण्ड्स कहते हैं। प्रत्येक पिट लगभग 100 nm गहरा तथा 500 nm चौड़ा होता है एवं लम्बाई में 850 nm से 3.5 im तक बैरी करता है । ट्रैकों के बीच की जगह, जिसे पिच कहते हैं, 1.6 im होती है । CD को रीड करने हेतु पॉलीकार्बोनेट स्तर के तल के पार 780 nm तरंगदैर्ध्य वाले अर्धचालक लेसर को फोकस करना होता है। पिट्स तथा लैण्ड्स के मध्य ऊँचाई में बदलाव से परावर्तित प्रकाश की तीव्रता में अन्तर पैदा हो जाता है। मापन द्वारा तीव्रता में परिवर्तन एक फोटोडायोड के साथ हो जाता है, जिससे डाटा को डिस्क से रीड करना संभव हो जाता है।

पिट्स तथा लैण्ड्स स्वयं ही बाइनरी डाटा के शून्य एवं एक को प्रत्यक्ष रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। इसके स्थान पर, नॉन–रिटर्न–टू–जीरो, व्युत्क्रमित एनकोडिंग का प्रयोग होता है : पिट से लैण्ड अथवा लैण्ड से पिट में से एक के परिवर्तन इंगित करता है, जबकि परिवर्तन न होने पर शून्य को इंगित करता है। यह क्रमानुसार डिस्क पर मास्टरिंग में प्रयुक्त 8 से 14 मॉड्यूलेशन को उलटकर एवं उसके बाद क्रॉस इन्टरलीव्ड रीड–सोलोमन कोडिंग को उलटकर डीकोड करता है । अन्ततः डिस्क पर संग्रहीत कच्चे डाटा को प्रदर्शित करता है ।

पिट्स डिस्क के लेबल साइड के बहुत निकट होता है ताकि प्लेबैक के दौरान क्लियर साइड के दोष तथा धूल फोकस से बाहर किये जा सकें। इसके कारण लेबल साइड पर स्क्रेचों जैसे दोष के कारण डिस्कों को ज्यादा क्षति पहुँचती है, जबकि क्लीयर साइड के स्क्रेचों की मरम्मत समान इन्डेक्स अथवा अपवर्तन या पॉलिशिंग द्वारा प्लास्टिक से रिफिल करके की जा सकती है।

7. VCD:

एक मिनी–CD का व्यास 8 सेंटीमीटर होता है।

VCD (जिसे वीडियो सीडी, प्रिव्यू सीडी, कॉम्पैक्ट डिजिटल वीडियो भी कहा जाता है) कॉम्पेक्ट डिस्क पर वीडियो को संग्रहीत करने हेतु एक मानक डिजिटल फॉर्मेट है। VCD समर्पित VCD प्लेयरों, लगभग सभी व्यक्तिगत कम्प्यूटरों, अति आधुनिक DVD–वीडियो प्लेयरों एवं कुछ वीडियो कनसोल्स में चलाये जाने योग्य होता है।

VCD का मानक 1993 में सोनी, फिलिप्स, मात्सुशितां एवं JVC द्वारा निर्मित किया गया था तथा इसे व्हाइट बुक स्टैण्डर्ड के रूप में संदर्भित किया जाता है।

8. CD–R:

CD–R (कॉम्पैक्ट डिस्क–रिकॉर्डेबल) फिलिप्स एवं सोनी द्वारा अविष्कृत कॉम्पैक्ट डिस्क का एक रूपान्तरण है| CD–R, Write once, Read Many ऑप्टिकल मीडिया है हालाँकि सम्पूर्ण डिस्क को एक ही सत्र में पूर्ण रूप से लिखा जाना जरूरी नहीं है। एवं यह मानक CD रीडरों को एक साथ एक उच्च स्तर की कॉम्पैटिबिलिटी को बनाए रखता है (CD–RW के विपरीत, जिसमें दुबारा लिखा जा सकता है, लेकिन इसमें बहुत कम कम्पैटिबिलिटी है और डिस्कें काफी हद तक महँगा होती है)। कुछ लोग मजाक में इन माध्यमों को CD–PROM कहते हैं, क्योंकि ये प्रोग्राम योग्य रीड–ऑनली मेमोरी के ऑप्टिकल एनैलॉजि होते हैं।

9. CD–RW

कॉम्पैक्ट डिस्क रिराइटेबल (CD–RW) दुबारा लिखने योग्य डिस्क फॉर्मेट है। CD–RW अपने विकास के क्रम में CD–Erasable के रूप में जाना जाता था। इसे 1997 में पेश किया गया था।

10. DVD

DVD (जो डिजिटल वर्सेटाइल डिस्क) या अथवा गलत ढंग से डिजिटल वीडियो डिस्क के रूप में भी जाना जाता है) एक ऑप्टिकल्स डिस्क स्टोरेज मीडिया फॉर्मेट है जिसका उपयोग डाटा संग्रहण के लिए किया जाता है। इसमें उच्च वीडियो तथा साउण्ड क्वालिटी वाले मूवीज शामिल हैं। DVDs कॉम्पैक्ट डिस्कों के समान दिखते हैं क्योंकि उनके व्यास समान होते हैं (120 mm या 4.72 इंच या कभी–कभी 80 mm या 3.15 इंच), लेकिन इनको फॉर्मेट तथा उच्चतर घनत्व पर एनकोड किया जाता है।

सभी ready–only DVD डिस्कों, इनके टाईप के परवाह बगैर DVD–ROM डिस्कें होती हैं। इसमें रिप्लिकेटेड (फैक्टरी प्रेस्ड), रिकार्डेड (बन्ड), वीडियो, ऑडियों तथा डाटा DVDs शामिल हैं। उचित रूप से फॉर्मेट किया हआ एवं संरचनात्मक वीडियो कॉन्टेन्ट वाले DVD, DVD–वीडियो डिस्क होती हैं । उचित रूप से फॉर्मेट किया हआ एवं संरचनात्मक ऑडियो वाला DVD. DVD ऑडियो डिस्क होता है। इसके अलावा सभी कुछ (वीडियो के साथ DVD डिस्कों के अन्य प्रकार भी) को एक DVD–डाटा डिस्क के रूप में संदर्भित किया जाता है । कई व्यक्ति “DVD–ROM” पद का उपयोग मात्र प्रेस किये गये डाटा डिस्कों को संदभित करने के लिए करते हैं, लेकिन यह तकनीकी रूप से सही नहीं है।

DVD पद को नए वीडियो फॉर्मेटों–Blu–Ray तथा HD–DVD दोनों का वर्णन एक सामान्य पद के रूप में लागू करने हेतु भी किया जाता है। तालिका में DVD को उनके व्यास एवं क्षमता के साथ सूचीबद्ध किया गया है।

11. DVD–RW

DVD–RW एक दोबारा लिखने योग्य ऑप्टिकल डिस्क है जिसकी संग्रहण क्षमता DVD–R के समान होती है जो कि प्रायः 4.7 GB होती है । फॉर्मेट को पायोनियर द्वारा नवम्बर 1999 में विकसित किया गया एवं DVD फॉरम द्वारा अनुमोदित किया गया है । DVD–RAM ” के विपरीत, यह लगभग 75% परम्परागत प्लेयरों पर चलाने योग्य होता है । DVD–RW का मुख्य लाभ DVD–R की बजाय यह है कि यह मिटाया जा सकता है एवं दोबारा लिखा जा सकता है । पायोनियर के अनुसार, DVD–RW डिस्कों को बदले जाने की जरूरत के पूर्व लगभग । 1000 बार लिखा जा सकता है एवं इस तरह यह CD–RW के मानक के साथ तुलना करने के योग्य हो जाता है | DVD–RW डिस्कों का सामान्य उपयोग समाप्त हो जाने वाले डाटा जैसे बैकअपों अथवा फाइलों के समूहों हेतु किया जाता है। इनका उपयोग घरेलू DVD वीडियो रिकॉर्डरों हेतु भी बढ़ रहा है । पुनः लिखने योग्य डिस्कों के प्रयोग करने का एक लाभ यह भी है कि अगर डाटा को रिकॉर्ड करने में लिखने की त्रुटियाँ होती हैं तो भी डिस्क बर्बाद नहीं होता है एवं त्रुटिपूर्ण डाटा को मिटाकर फिर से डाटा को संग्रह किया जा सकता है।

एक सक्षम पुनः लिखने योग्य प्रारूप DVD+RW है। दोनों को सँभालने वाले हाइब्रिट ड्राईवों को प्रायः DVD+RW से लेबल किया जाता है एवं यह बहुत लोकप्रिय हैं, क्योंकि रिकॉर्ड करने योग्य DVDs हेतु इसमें एक मानक भी नहीं होता है।

DVD–RW एवं DVD+We में रिकॉर्डिंग स्तर पर एक कार्बनिक डाई नहीं है, वरन् एक विशेष फेज परिवर्तिन मिश्र धातु है,जो प्रायःGeSbTe होता है । मिश्रधातु को क्रिस्टलीय अवस्था से अक्रिस्टलीय अवस्था के बीच आगे एवं पीछे की तरफ स्विच किया जा सकता है जो परावर्तकता को लेसर बीम की शक्ति के आधार पर बदलता है। डाटा को इस तरह लिखा, मिटाया एवं पुनः लिखा जा सकता है ।

12. जिप ड्राइव

जिप ड्राइव मध्यम क्षमता का हटाया जा सकने वाला डिस्क संग्रहण तंत्र है, जिसे, 1994 के अंत में आई ओमेगा द्वारा पेश किया गया। मूल रूप से, इसमें 100 MB की क्षमता होती थी, लेकिन बाद में रूपान्तरणों में यह क्षमता बढ़ाकर पहले 250MB फिर 750 MB कर दी गई।

यह फॉर्मेट सुपर फ्लॉपी तरह के उत्पादों में सबसे लोकप्रिय बन गया, लेकिन यह कभी भी उस मानक–कल्प की स्थिति पर नहीं पहुँच पाया, जहाँ से यह 3.5 इंच की फ्लॉपी का स्थान ले सके । इसका स्थान फ्लैश ड्राइव सिस्टमों एवं रिराइटेबल सीडी और डीवीडी ले चुके हैं तथा इसकी लोकप्रियता में कमी आ रही है। जिप ब्राण्ड का उपयोग आन्तरिक तथा बाह्य सीडी राइटरों, जिसे जिप–650 या जिप–सीडी कहा जाता है, हेतु भी किया जाता है।

आरंभिक जिप सिस्टम को 100 मेगाबाइटों की क्षमता के साथ पेश किया गया था। कम कीमत वाले 250 MB version जो उसी 100 MB ड्राइव में कार्य कर पाता, हेतु योजनाओं पर विचार किया गया–विचार यह था कि जिप डिस्क के कीमत को एक साधारण फ्लॉपी की कीमत के समीप लाया जाये–लेकिन इनको रिलीज नहीं किया जा सका। 100 मेगाबाइट डिस्क के आगमन ने जल्दी ही जिप को सफल बना दिया तथा लोग इसका उपयोग सामान्य फ्लॉपी डिस्कों के 1.44 MB क्षमता से बड़ी फाइलों को संग्रहीत करने में लगे । समय गुजरने के साथ, आई ओमेगा ने अन्त क्षमता को बढ़ाकर पहले 250 तथा फिर 750 मेगाबाइट कर दिया एवं साथ ही साथ डाटा के स्थानान्तरण की गति और खोज समय में सुधार किया।

13. फ्लैश ड्राइव

USB फ्लैश ड्राइव NAND तरह का फ्लैश मेमोरी डाटा स्टोरेज डिवाइस है, जिसे एक USB (यूनिवर्सल सीरियल बस) इन्टरफेस के साथ एकीकृत किया जाता है। ये प्रायः छोटे, हल्के, हटाये जा सकने वाले एवं दोबारा लिखे जाने योग्य होते हैं। नवम्बर 2006 तक, वर्तमान में 32 मेगाबाइटों से लेकर 64 गीगाबाइट तक की मेमोरी क्षमता वाले USB फ्लैश ड्राइवों को बेचा गया। क्षमता को मात्र वर्तमान फ्लैश मेमोरी घनत्वों द्वारा सीमित किया जाता है, हालांकि प्रति मेगाबाइट की लागत उच्चतर क्षमताओं में कीमती घटकों के कारण तेजी से बढ़ सकती है।

USB फ्लैश ड्राइव में अन्य पोर्टेबल स्टोरेज डिवाइसों विशेषकर फ्लॉपी डिस्क की बजाय संभावित लाभ हैं। ये अधिक कॉम्पैक्ट, प्रायः ज्यादा तीव्र, अधिक डाटा रखने वाले एवं इनके चलित अंगों के अभाव तथा अधिक टिकाऊ डिजाइन के कारण फ्लॉपी डिस्कों से ज्यादा विश्वसनीय होते हैं। ड्राइवों के ये प्रकार USB मास स्टोरेज स्टैण्डर्ड का उपयोग करते हैं। आधुनिक ऑपरेटिंग सिस्टमों जैसे लाइनक्स, मैक ओ एस एक्स, यूनिक्स एवं विण्डोज और स्वाभाविक रूप से समर्थित होता है ।

फ्लैश ड्राइव में एक छोटा प्रिन्ट किया हुआ सर्किट बोर्ड होता है, जिसे प्लास्टिक अथवा धातु के आवरण से ढका रहता है तथा जिससे ड्राइव इतना मजबूत हो जाता है कि उसे चाभी रिंग में अथवा डोरी में लगाकर पॉकेट में रखा जा सकता है। सिर्फ USB कनेक्टर ही इस कवच से बाहर निकला हुआ होता है एवं जो सामान्यतः एक हटाये जा सकने वाले कैप से ढंका होता है । ज्यादातर फ्लैश ड्राइव एक मानक तरह के A USB कनेक्शन का उपयोग करता है, जिससे इसे किसी व्यक्तिगत कम्प्यूअर के पोर्ट से सीधे–सीधे कनेक्ट किया जा सकता है।

फ्लैश ड्राइव में संग्रहीत डाटा को एक्सेस करने हेतु,ड्राइव को कम्प्यूटर से या कम्प्यूटर से निर्मित USB हॉस्ट कन्ट्रोलर में प्लग करके या USB हब में प्लग करके कनेक्ट किया जाना चाहिए। फ्लैश ड्राइव तभी सक्रिय होता है, जब इसे USB कनेक्शन में प्लग किया जाता है एवं यह इस कनेक्शन द्वारा उपलब्ध कराये गयी आपूर्ति में से जरूरी शक्ति खींचता है । हालांकि, कुछ फ्लैश ड्राइव, विशेषकर USB2.0 स्टैण्डर्ड का उपयोग करने वाले उच्च गति के ड्राइवों को बस द्वारा शक्ति प्रदत्त USB हब जैसे–कुछ कम्प्यूटर की–बोर्डों या मॉनीटरों में निर्मित, द्वारा उपलब्ध कराये गयी सीमित मात्रा की शक्ति की बजाय ज्यादा शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। ये ड्राइव तब तक कार्य नहीं करेंगे, जब तक इन्हें सीधे हॉस्ट कन्ट्रोलर (अर्थात् स्वयं कम्प्यूटर में पाये जाने वाले पोर्ट) या स्वतः शक्ति प्रदत्त हब से प्लग नहीं कर दिया जाता है।

आधुनिक फ्लैश ड्राइवों में USB 2.0 कनेक्टिविटी लगी होती है, तथापि NAND फ्लैश में अन्तनिर्हित तकनीकी सीमाओं के कारण यह वर्तमान में पूरे 480 Mbit/s के स्पेसीफिकेशन सपोर्ट का उपयोग नहीं करती है। वर्तमान में उपलब्ध तीव्रतम ड्राइव एक दोहरे चैनल नियन्त्रक का उपयोग करती है, हालांकि यह अभी–भी वर्तमान युग के हार्ड डिस्क में संभावित स्थानान्तरण दर अथवा महत्तम गति वाले USB 2.0 से काफी हद तक कम है।

एक सामान्य समस्त सतह के स्थानान्तरण की गति करीब 3 Mbvies/s होती है। वर्तमान में महत्तम समस्त फाइल स्थानान्तरण गति करीब 10–25 Mbytes/s है। पुराने, “full speed” 12 Mbit/s वाले डिवाइसों की सीमा से अधिक करीब 1 Mbytes/s होती है।

14. ब्लू रे डिस्क

ब्लू रे, जिसे ब्लू–रे डिस्क (BD) भी कहा जाता है, ब्लू रे–डिस्क एसोसिएशन (BDA), संसार की अग्रणी उपभोक्ता इलेक्ट्रोनिक्स, कम्प्यूटर एवं मीडिया निर्माता का एक समूह (जिसमें एपल, डेल, हिटाची, एच.पी., जे.वी.सी., एल.जी., मित्सुबिशी, पैनासोनिक, पायोनियर, फिलिप्स, सैमसंग, शार्प, सोनी, टीड़ी. के और टॉमसन शामिल हैं) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किये अगली पीढ़ी के ऑप्टिकल डिस्क फॉर्मेट का नाम है । इस फॉर्मेट का विकास रिकॉर्डिग, रिराइटिंग तथा हाई–डिफिनेशन वीडियो के प्ले बैक एवं साथ–ही–साथ डाटा के एक बड़ी मात्रा को संग्रहीत करने योग्य बनाने हेतु किया गया था। यह फॉर्मेट परम्परागत DVDs की संग्रहण क्षमता पाँच गुना से ज्यादा की क्षमता रखता है एवं एकल स्तरीय डिस्क में 25 GB तथा दोहरे स्तरीय डिस्क में 50 GB तक रख सकता है । इस अतिरिक्त क्षमता को विकसित वीडियो तथा ऑडियो कोडेक्स के साथ संयोजित करने पर उपभोक्ताओं को एक अभूतपूर्व HD अनुभव प्राप्त होता है।

जहाँ वर्तमान ऑप्टिकल डिस्क तकनीकें, जैसे– DVD, DVD +, DV+RW एवं DVD–RAM, डाटा को रीड़ तथा राइट करने हेतु लाल लेसर पर निर्भर रहती हैं, वहीं नया फार्मेट इसके स्थान पर नीला–बैंगनी लेसर का उपयोग करता है, इसलिए इसका नाम ब्लू–रे है । विभिन्न तरह के लेसरों के उपयोग के बावजूद, ब्लू–रे उत्पाद को BD/DVD/CD कॉम्पैटिबल ऑप्टिकल पिकअप यूनिट के प्रयोग द्वारा सरलतापूर्वक CDs तथा DVDs के साथ बैकवार्ड कॉम्पैटिबल बनाया जा सकता है। नीला–बैंगनी लेसर (450nm) के उपयोग का लाभ यह है कि इसका तरंगदैर्ध्य लाल लेसर (650nm) की बजाय छोटा होता है, जिसके लेसर स्पॉट पर तथा ज्यादा शुद्धता के साथ फोकस करना संभव हो जाता है। इससे डाटा को ज्यादा कसकर पैक किया जा सकता है एवं कम स्थान में संग्रहीत किया जा सकता है । अतः एक CD/DVD के आकार के समान होने के बावजूद डिस्क पर अधिक डाटा को फिट करना संभव हो जाता है। इसके और numerical aperture को 0.85 से परिवर्तित के कारण ब्लू–रे डिस्क 25GB/50GB रखने योग्य बन जाता है |

ब्लू–रे वर्तमान में दुनिया के 180 से ज्यादा अग्रणी उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, व्यक्तिगत कम्प्यूटर, रिकॉर्डिंग मीडिया, विडियोगेम एवं संगीत कम्पनियाँ द्वारा समर्थित है । इस फॉर्मेट को बड़े मूवी स्टूडियो से भी आज के DVD के फॉर्मेट के उत्तराधिकारी के रूप में व्यापक समर्थन प्राप्त है । वास्तव में, आठ बड़े मूवी स्टूडियों में से सात (डिजनी, फॉक्स, वार्नर, पैरामाउंट, सोनी, लायन्सगेट एवं एम सी एम) ब्लू–रे फॉर्मेट का समर्थन करते हैं और उनमें से पाँच (डिजनी, फॉक्स, सोनी, लायन्सगेट तथा एम जी एम) अपनी मूवियों को सिर्फ ब्लू–रे फॉर्मेट में ही रिलीज करते हैं । कई स्टूडियों ने यह घोषणा भी की है कि वे कई फीचर फिल्मों को ब्लू–रे डिस्कों पर रिलीज करना शुरू करेंगे एवं साथ ही साथ प्रत्येक माह में एक लगातार टाइटिलों का कैटलॉग भी लाएँगे।

15. एस डी मेमोरी कार्ड

एस डी का अर्थ है सिक्योर डिजिटल । सिक्योर डिजिटल (एस डी) एक फ्लैश (नॉन वॉलटाइल) मेमोरी कार्ड फॉर्मेट है जिसका विकास मात्सुशिता, सेन डिस्क तथा तोशीबा द्वारा पोर्टेबल डिवाइसों–जिनमें डिजिटल कैमरा, हाथ पर रखे जा सकने वाले कम्प्यूटर, PDAs एवं GPS यूनिट शामिल हैं, में उपयोग हेतु किया गया था। एक डी कार्ड की क्षमता में 8, 16, 64, 128 256 और 512 MB, 1, 2, 4, 6, 8 GB (4–32 GB : SDHC) शामिल हैं।

16. MMC मेमोरी कार्ड

मल्टीमीडिया कार्ड (MMC) एक फ्लैश मेमोरी कार्ड का मानक है । इसका अनावरण 1997 में सीमेन्स ए जी एवं सैन डिस्क द्वारा किया गया और यह तोशीबा के NAND आधारित फ्लैश मेमोरी पर आधारित है तथा इसलिए यह पूर्व के सिस्टमों, जो कि इन्टेल के NOR आधारित मेमोरी तथा Compact Flash की अपेक्षा काफी छोटा है | MMC का आकार एक डाक टिकट के लगभग बराबर है : 24mm × 32mm × 1.4mm MMC मूल रूप से एक बिट के सीरियल इन्टरफेस का प्रयोग करती है, लेकिन नए रूपान्तरणों के विनिर्देशन में एक समय में 4 या कभी–कभी 8 भी स्थानान्तरण हो सकते हैं। इनका स्थान करीब–करीब सिकयोर डिटिजल कार्डों (SD Card) ने ले लिया है, लेकिन अभी भी इसका महत्वपूर्ण उपयोग है, क्योंकि MMC कार्डों का प्रयोग ज्यादातर डिवाइसों में किया जा सकता है जो एस कार्यों का समर्थन करते हैं एवं ये एस डी कार्डों से सस्ते भी पड़ते हैं।

विशिष्टतः एक MMC कार्ड का उपयोग पोर्टेबल डिवाइस हेतु स्टोरेज मीडिया के रूप में किया जाता है, इस रूप में कि उसे PC द्वारा एक्सेस करने के लिए सरलतापूर्वक हटाया जा सकता है । उदाहरणस्वरूप,एक डिजिटल कैमरा इमेज फाइलों को संग्रह करने हेतु एक MMC कार्ड का उपयोग करती है । एक MMC reader (प्रायः एक छोटा बक्सा जो USB या कुछ अन्य सीरियल कनेक्शन द्वारा कनेक्ट करता है, हालांकि कुछ को कम्प्यूटर के साथ ही एकीकृत रूप में पाया जा सकता है) के साथ, प्रयोक्ता डिजिटल कैमरा द्वारा लिए गए चित्रों को अपने कम्प्यूटर में कॉपी कर सकता है। आधुनिक कम्प्यूटरों, लैपटॉप तथा डेस्कटॉप दोनों, में प्रायः एस डी स्लॉट होते हैं, जो अतिरिक्त रूप से MMC कार्डों को रीड कर सकता है। अगर ऑपरेटिंग सिस्टम का ड्राइवर उसे समर्थन देता है।

वर्तमान में MMC कार्ड 4GB तक के आकारों में उपलब्ध हैं एवं 8GB मॉडल की घोषणा की जा चुकी है, लेकिन अभी तक यह उपलब्ध नहीं हो पाया है। इनका उपयोग करीब प्रत्येक उस प्रकरण में होता है, जिसमें मेमोरी कार्डों का उपयोग होता है, जैसे–सेल्यूलर फोन, डिजिटल ऑडियो प्लेयर, डिजिटल कैमरा एवं PDAs | सिक्योर डिजिटल कार्ड एवं SDIO (सिक्योर डिजिटल इनपुट/आउटपुट) स्लॉट के आगमन के समय से ही कुछ ही कम्पनियाँ अपने डिवाइसों में MMC स्लॉटों का निर्माण कर रही है, पर हल्के पतले, पिन कॉम्पैटिबल MMC कार्डों को लगभग किसी भी उन डिवाइसों में उपयोग किया जा सकता है जो एस डी कार्डों का समर्थन करती हैं, अगर उस डिवाइस के सॉफ्टवेयर/फर्मवेयर उनका समर्थन करते हैं। इसका एक अपवाद कुछ मोबाइल डिवाइस जैसे नोकिया 9300 कम्यूनिकेटर है, जहाँ MMC कार्ड के छोटा आकार का एक लाभ है।

एस डी एवं एम एम सी मेमोरी कार्ड में अन्तर– एस डी कार्ड पुराने मल्टीमीडिया कार्ड (MMC) प्रारूप पर आधारित है, पर इनमें कई अन्तर हैं :

– एस डी कार्ड असममित आकार का होता है ताकि इसे उल्टा प्रविष्ट नहीं कराया जा सकता, जबकि एम एम सी कार्ड कई तरह से लगाया जा सकता है, पर अगर इसे उल्टा कर दिया जाये तो, कॉन्टेन्ट नहीं बना पायेगा।

– ज्यादातर एस डी कार्ड भौतिक रूप से एम एम सी कार्डों की बजाय ज्यादा मोटे होते हैं। एस डी कार्ड सामान्यतः 32mm x 24mm x 2.1mm की नाप का होता है, पर 1.4mm के जितना पतला भी हो सकता है, बिल्कुल MMC कार्डों की तरह।

– एस डी स्लॉट वाले डिवाइस पतले एम एम सी कार्यों का उपयोग कर सकते हैं, पर मानक एस डी कार्ड पतले एम एम सी स्लॉटों में फिट नहीं आयेंगे। एस डी कार्ड कॉम्पैक्ट फ्लैश या पी सी कार्ड स्लॉटों में एक एडेप्टर के साथ प्रयुक्त हो सकते हैं। मिनी एस डी एवं माइक्रो एस डी कार्डों को एक भौतिक इन्टरफेस एडेप्टर द्वारा सीधे एस डी स्लॉट में प्रयुक्त किया जा सकता है।

USB कनेक्टर के साथ कुछ एस डी कार्ड होते हैं, जो दोहरे उद्देश्य के लिए उपयोग होते हैं एवं एस कार्ड रीडर होते हैं, जो SD कार्ड को कई कनेक्टिविटी पोर्टो तथा USB फायर वायर और सामान्य पैरेलल पोर्ट, के रूप में एक्सेस करने की अनुमति प्रदान करते हैं। एस डी कार्ड को फ्लैश पाथ एडेप्टर के साथ एक प्लॉपी डिस्क ड्राइव द्वारा भी एक्सेस किया जा सकता है |

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