कम्प्यूटर की मूल संरचना एवं इसके भागों पर विस्तारपूर्वक टिप्पणी लिखिये।

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कम्प्यूटर सिस्टम के प्रमुख कारक इस तरह हैं–

1. हार्डवेयर– साधारण रूप से कम्प्यूटर के वे सभी भाग, जिन्हें हम छू व देख सकते हैं, हार्डवेयर कहलाते हैं । कम्प्यूटर के अन्दर तथा बाहर के सभी भाग कम्प्यूटर की इनपुट और आउटपुट डिवाइस आदि सभी हार्डवेयर हैं । वे डिवाइसेज, जो कम्प्यूटर को चलाये जाने के लिये आवश्यक हैं, स्टैण्डर्ड डिवाइसेज कहलाती हैं, जैसे–की–बोर्ड, फ्लॉपी ड्राइव, हार्ड डिस्क आदि । इन डिवाइसेज,के अलावा वे डिवाइजेस, जिनको कम्प्यूटर से जोड़ा जाता है, जैसे– माऊस, प्रिन्टर, लाइट पेन, प्लॉटर आदि पेरीफेरल डिवाइसेज कहलाती हैं। स्टेण्डर्ड डिवाइसेज एवं पेरीफेरल डिवाइसेज दोनों को मिलाकर तैयार कम्प्यूटर सिस्टम को हार्डवेयर कहा जाता है।

2. सॉफ्टवेयर– कम्प्यूटर तथा उससे जुड़ी डिवाइसेज से कार्य लेने हेतु सॉफ्टवेयर का प्रयोग होता है । ये सॉफ्टवेयर न तो देखे जा सकते हैं तथा न ही इन्हें छुआ जा सकता है। ये एक तरह के विधिवत तथा व्यवस्थित निर्देशों के समूह होते है, जिन्हें कम्प्यूटर से कार्य कराने हेतु प्रयोग किया जाता है।

3. फर्मवेयर– हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर के संयुक्त रूप को फर्मवेयर कहा जाता है। जिस हार्डवेयर (संग्रहण माध्यम) में सॉफ्टवेयर को भर दिया जाता है, उसे फर्मवेयर कहा जाता है |

4. स्किनवेयर– कम्प्यूटर के वे अंग, जिन्हे देखने हेतु कम्प्यूटर को खोलने की जरूरत नहीं होती है, स्किनवेयर कहलाते हैं, जैसे– मॉनीटर, की–बोर्ड, माउस, प्रिण्टर आदि ।

5. ह्यूमनवेयर– वे सभी मनुष्य जो कम्प्यूटर से किसी भी तरह से सम्बन्धित होते हैं, ह्युमनवेयर कहलाते हैं। ह्यूमनवेयर को लाइववेयर भी कहा जाता है । कम्प्यूटर विक्रेता, कम्प्यूटर ऑपरेटर, कम्प्यूटर प्रोग्रामर, कम्प्यूटर शिक्षक, कम्प्यूटर विद्यार्थी आदि सभी ह्यूमेनवेयर ही हैं।

कम्प्यूटर की मूल संरचना

अगर हम कम्प्यूटर की कार्य–प्रणाली पर ध्यान दें,तो पायेंगे कि कम्प्यूटर कुछ सूचनाओं को प्राप्त करता है फिर निश्चित निर्देशों का प्रदत्त क्रम में अनुपालन करते हुये सूचना की आवश्यकतानुसार गणना तथा उसका विश्लेषण कर,शुद्ध एवं सत्य परिणाम को पेश करता है ।

उदाहरण के लिये– हमारे आस–पास कोई आटा चक्की तो होगी ही। अगर हम इसे ध्यान से देखेंगे तो पायेंगे कि आटा चक्की. भी तीन भागों में बँटी होती है– पहला भाग, जिसमें गेहूँ डालते हैं, इस चक्की की इनपुट डिवाइसेज है, दूसरा भाग, जिसमें गेहूँ पिसकर आटे के रूप में परिवर्तित होता है, इस चक्की की विश्लेषक इकाई है तथा तीसरा भाग जहाँ से आटा बाहर निकलता है, इसे चक्की की आउटपुट डिवाइसेज कहते हैं।

कम्प्यूटर के भाग

संरचनात्मक दृष्टिकोण से कम्प्यूटर को निम्न चार भागों में बाँटा जा सकता है–

1. सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट 2. स्मृति 3. इनपुट डिवाइसेज 4. आउटपुट डिवाइसेज

1. सेण्ट्रल प्रोसेसिंग यूनिट– सी.पी.यू. कंप्यूटर का हृदय तथा तंत्रिका केन्द्र है । इसका उद्देश्य प्रोग्राम को संचालित करना है। इसके अतिरिक्त सी.पी.यू. अन्य अवयवों के कार्य जैसे मेमोरी इनपुट एवं आउटपुट डिवाइस को भी नियंत्रित करता है । इसके नियंत्रण में प्रोग्राम एवं डाटा मेमोरी में संग्रह होते हैं और सी.आरटी. स्क्रीन पर दर्शाये जाते हैं अथवा प्रिंटर की मदद से प्रिंट किये जाते हैं। इनपुट यूनिट से डाटा एवं निर्देश प्राप्त करने के पश्चात् इसे मेमोरी में संग्रह किया जाता है। इसके बाद सी.पी.यू. सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट मेमोरी में से निर्देश को संचालित करता है एवं निर्धारित कार्य पूरा करता है, प्रोग्राम में दिये गये निर्देश के अनुसार यह परिणाम को मेमोरी में संग्रह करता है अथवा आउटपुट डिवाइस को परिणाम भेज देता है । व्यावहारिक रूप से माइक्रो प्रोसेसर का कार्य सी.पी.यू. के भीतर विभिन्न कार्यों को संचालित करना होता है। एक सिंगल चिप पर बनाया गया सी.पी.यू. माइक्रो प्रोसेसर कहलाता है, अतः सी.पी.यू. को माइक्रो प्रोसेसर भी कहा जाता है।

छोटे कंप्यूटर का सी.पी.यू. माइक्रो प्रोसेसर होता है जबकि बड़े कंप्यूटर में एक से अधिक माइक्रो प्रोसेसर होते हैं एवं सर्किट बोर्ड पर एक या एक से ज्यादा ICs (आइसीज) लगे होते हैं। कंप्यूटर सिस्टम में सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट का महत्वपूर्ण स्थान है। यह कंप्यूटर सिस्टम का वह भाग है जो असल में गणितीय क्रियायें जैसे जोड़, गुणा, भाग आदि कार्य करता है । सी.पी.यू. में ऑपरेटिंग सिस्टम भी सम्मिलित होता है । यह संचालित हो रहे एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के सभी भागों को शामिल करता है एवं प्रोसेस को प्राप्त करता है तथा सॉफ्टवेयर द्वारा उपयोग किये गये डाटा को संग्रहित करता है। डाटा नियंत्रित करने की क्षमता के आधार पर सी.पी.यू. छोटा अथवा बड़ा होता है । सी.पी.यू. का साइज सीधे डाटा प्रोसेसिंग की गति को प्रभावित करता है। कंप्यूटर की भाषा में BIT से तात्पर्य बायनSरी डिजिट है। यह डाटा का सबसे छोटा भाग है। बिट को शामिल करके बाइट बनायी जाती है ।

1 बाइट = 8 बीट

1 किलो बाइट = 1024 बाइट्स

1 मेगा बाइट = 1024 किलो बाइट्स

1 गीगा बाइट = 1024 मेगा बाइट्स

सी.पी.यू. का वर्गीकरण एक समय में प्रोसेस किये गये बिट की संख्या के आधार पर किया जाता है। हमारे कंप्यूटर 8 बिट मशीन के हैं, जो कि 8 बिट के डाटा को किसी भी समय प्रोसेस कर सकते हैं। सबसे पहले 80286, 80386, 80486 वाले प्रोसेसर उपलब्ध थे लेकिन आज पेंटियम प्रोसेसर एवं P4 का उपयोग किया जाता है। सभी कार्यों को प्रोसेस करने हेतु सी.पी.यू. में तीन भाग पाये जाते हैं।

(1) अर्थमेटिक तथा लॉजिक यूनिट– ए.एल.यू.(A.L.U.), सी.पी.यू. का वह भाग है जहाँ पर गणितीय एवं तार्किक निर्देश संचालित किये जाते हैं। यह अत्यधिक संख्या में गणितीय क्रियाओं जैसे जोड़, घटाव, गुणा तथा भाग को हल करता है । इसके अतिरिक्त यह दो मानों की तुलना भी करता है तथा इंक्रीमेंट, डिक्रीमेंट, शिफ्ट एवं क्लीयर ऑपरेशन को भी संचालित करता है । इस यूनिट को A.L.U. के नाम से जाना जाता है। यह सभी गणितीय क्रियायें करता है एवं तार्किक निर्णय लेता है। इस यूनिट के दो भाग होते हैं।

(अ) अर्थमेटिक ऑपरेशन (गणितीय क्रियायें) – सभी गणितीय क्रियायें, जैसे जोड़, घटाव, गुणा, भाग एवं घातांक इस यूनिट के द्वारा हल किये जाते हैं, जैसे गणित में गणितीय क्रियायें हल करने हेतु नियम होते हैं, उसी प्रकार इस यूनिट में भी गणितीय क्रियाओं का क्रम होता है।

(ब) लॉजिकल ऑपरेशन (तार्किक क्रियायें) – तार्किक से अभिप्राय घटनाओं के क्रम से है। सी.पी.यू. इन कार्यों को यूजर के निर्देशन में संचालित करता है। यह कार्य निम्न होते हैं जैसे–

TRUE and FALSE

AND and OR

LESS Than and GREATER Than

जबकि प्रोग्रामिंग के दौरान विभिन्न पदों में एक अथवा एक से ज्यादा (Value) की तुलना करने में उक्त कार्यों का उपयोग किया जाता है।

(2) कंटोल यूनिट– सी.पी.यू. का यह भाग कंप्यूटर का मस्तिष्क कहलाता है। यह कंप्यटर की सभी यनिट के कार्यों को नियंत्रित करता है। यह मेमोरी में से एक समय में एक ही निर्देश को लाता है। यह इनपुट यूनिट को डाटा रीड करने के बारे में निर्देश देता है एवं मेमोरी में वह एड्रेस को दर्शाता है जहाँ डाटा को स्टोर्ड करना है। यह डाटा को निर्धारित एड्रेस पर संग्रह करने हेतु मेमोरी को निर्देश देता है । यह ए.एल.यू. को बताता है कि कौनसा कार्य करना है। जरूरी डाटा कहाँ पर सर्च करना है एवं परिणाम को कहाँ पर संग्रह करना है। अंत में यह आउटपुट डिवाइस को मेमोरी का एड्रेस बताता है जहाँ से परिणाम प्राप्त किया जा सकता है एवं परिणाम को दर्शाने के बारे में जानकारी देता है । यह हर निर्देश हेतु जरूरी कंट्रोल सिग्नल एवं समय की मात्रा को पैदा करता है। इसके अतिरिक्त यह सी.पी.यू. के अन्य भागों के कार्य हेतु कंट्रोल एवं टाइम सिग्नल तथा अवस्था को प्रदान करता है । यह कंप्यूटर सिस्टम के विभिन्न अवयव से संपर्क बनाने हेतु सी.पी.यू. को मदद प्रदान करता है । सी.पी.यू. इस योग्य होना चाहिए कि यह निर्धारितं कर सके कि स्टोरेज यूनिट को कब सूचना संग्रह करना है अथवा कब सूचना को पुनः सी.पी.यू. के पास भेजना है । इसी तरह स्टोरेज डिवाइस भी इस योग्य होना चाहिए कि वह सी.पी.यू. को यह बता सके कि यह डाटा को प्राप्त करने हेतु तैयार है एवं जब यह डाटा को पूरी तरह प्राप्त कर चुके हों।

यह यूनिट सी.पी.यू. के विभिन्न भागों को एवं इनपुट–आउटपुट डिवाइस को कंट्रोल करती है। यह इनपुट डिवाइस से डाटा अथवा सूचना को प्राप्त करती है। डाटा प्राप्त करने के बाद इसे यह दो भागों में विभाजित करती है। एक भाग A.L.U. को प्रोसेसिंग के लिए भेजा जाता है एवं दूसरा भाग मेमोरी में संग्रह करने हेतु भेजा जाता है । अंत में परिणाम को आउटपुट डिवाइस के पास भेज दिया जाता है।

(3) मेमोरी यूनिट– मेमोरी से अभिप्राय डाटा के संग्रह करने से है। यह यूनिट डाटा प्रोग्राम एवं परिणाम आदि को संग्रह करती है। मेमोरी यूनिट प्रोसेसिंग के समय लगने वाले डाटा एवं निर्देश को संग्रह करके रखती है। इसे प्राथमिक संग्रह एवं मुख्य मेमोरी के नाम से भी जाना जाता है । एक आदर्श मेमोरी वह मेमोरी है जो पर्याप्त मात्रा में डाटा को सभी सूचनाओं को संग्रह कर सके एवं उसी समय में जरूरत पड़ने पर तुरंत सूचना को प्राप्त कर सके लेकिन तकनीकी सीमाओं के कारण मेन मेमोरी में सीमित मात्रा में सूचनायें (निर्देश के रूप में) एवं तुरंत प्रोसेसिंग हेतु जरूरी डाटा संग्रह रहता है।

मेमोरी दो तरह की होती है ।

(1) सेमीकंडक्टर मेमोरी, (2) मेग्नेटिक मेमोरी

सेमीकंडक्टर मेमोरी तेज गति से कार्य करने वाली कम संग्रह क्षमता वाली एवं कम विद्युत खपत वाली होती है। सेमीकंडक्टर का उपयोग कंप्यूटर में मुख्य मेमोरी की तरह होता है। मेग्नेटिक मेमोरी की गति इसकी तुलना में धीमी होती है। मेग्नेटिक मेमोरी को द्वितीयक मेमोरी की तरह उपयोग किया जाता है। इसमें अत्यधिक मात्रा में डाटा एवं सूचना को स्थायी रूप से संग्रह किया जाता है। शेष बचा हुआ डाटा का भाग बाह्य स्टोरेज डिवाइस में संग्रह किया जाता है। इसे द्वितीय स्टोरेज डिवाइस के नाम से जाना जाता है। RAM एवं ROM प्राथमिक मेमोरी के उदाहरण हैं ।

2. स्मृति– किसी भी निर्देश, सूचना या परिणाम को संचित करके रखना ही स्मृति कहलाता है। हमारे मस्तिष्क का भी एक भाग स्मृति हेतु प्रयोग होता है। अगर हमें कोई गणना करनी है तो जिन संख्याओं की गणना की जानी है उनको पहले स्मृति में रखते हैं, फिर गणना के उपरान्त परिणामों को स्मृति में रखने के बाद ही उत्तर देते हैं। अतः स्पष्ट है कि स्मृति हमारे मस्तिष्क में दिये जाने वाले सन्देशों, सूचनाओं, निर्देशों आदि को संचित करके रखने वाला एक भाग है । कम्प्यूटर द्वारा वे सभी कार्य कराये जा सकते हैं, जिनको हम अपने मस्तिष्क से करते हैं । CPU मे होने वाली समस्त क्रियायें सर्वप्रथम स्मृति में जाती हैं।

स्मृति की इकाई– स्मृति की क्षमता को नापने वाली इकाई BIT, BYTE, KB, MB तथा GB होती हैं–

BIT– यह कम्प्यूटर की स्मृति को सबसे छोटी इकाई है। यह स्मृति में एक बानरी अंक 0 या 1 को संचित किया जाना प्रदर्शित करता है । यह Binary Digit का सूक्ष्म रूप है ।

BYTE – यह कम्प्यूटर की स्मृति की मानक इकाई है । कम्प्यूटर की स्मृति में की–बोर्ड से दबाया गया प्रत्येक अक्षर, अंक या विशेष चिन्ह ASCII Code में संचित होता है । प्रत्येक ASCII Code 8 Bit का होता है । इस तरह किसी भी अक्षर को स्मृति में संचित करने हेतु 8 Bit (1 Byte) जरूरी है ।

KB–KB का अर्थ है किलोबाइट 1 KB, 1024 Byte के बराबर होती है।

MB–MB का अर्थ है मेगावाइट,1 MB, 1024 KB के बराबर होती है।

GB–GB का अर्थ है गेगाबाइट,1 GB, 1024 MB के बराबर होती है।

स्मृति के प्रकार– स्मृति दो प्रकार की होती है–

1. अस्थायी स्मृति, जब हम कम्प्यूटर को चलित करके कोई सूचना देते हैं, तो कम्प्यूटर की स्मृति में संचित हो जाती हैं । जब तक कमाण्ड द्वारा वे सूचनायें मिटायी न जायें या कम्प्यूटर को बन्द न किया जाये, तब तक वे सूचनायें कम्प्यूटर की स्मृति में संचित रहती हैं । कम्प्यूटर को बन्द करते ही ये सूचनायें स्मृति से साफ हो जाती हैं।

ये समस्त सूचनायें कम्प्यूटर की RAM (रैम) पर संचित होती हैं । कम्प्यूटर में RAM पर सूचनायें संचित करने हेतु हमें किसी कमाण्ड की जरूरत नहीं होती, जो भी सूचना किसी इनपुट डिवाइस द्वारा कम्प्यूटर को दी जाती है, वह तुरन्त RAM मे जाकर संचित हो जाती है । चूंकि इस तरह की स्मृति में संचित सूचनाओं को कम्प्यूटर को पुनः चालू करने पर प्राप्त नहीं कर सकते, इसलिए इसे अस्थायी स्मृति कहा जाता है । RAM को कम्प्यूटर की मूल स्मृति कहा जाता है।

2. स्थायी स्मृति – जब हम कम्प्यूटर को चालू करते हैं तो मॉनीटर स्क्रीन पर कुछ संदेश प्रदार्शित होते हैं। सभी निर्देश तथा सन्देश, जो कम्प्यूटर हमें दिखा रहा है, कम्प्यूटर की स्थायी स्मृति में स्टोर रहते हैं। साथ ही कुछ प्रोग्राम भी ROM (Read only Memory) में रहते हैं, जिनके अनुसार निर्देश मिलने पर उपर्युक्त मैसेज स्क्रीन पर उपस्थित होते हैं । कम्प्यूटर को चाहे जितनी बार ऑन या ऑफ किया जाये, इस प्रोग्राम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह वैसे ही संचित रहता है, इसलिए इस स्मृति को स्थायी स्मृति कहा जाता है ।

स्मृति में प्रोग्राम को संचित करने की विधि– कम्प्यूटर की स्मृति में प्रोग्राम को संचित करने की निम्नलिखित दो विधियाँ हैं–

(i) SAM (Sequential Access Memory) – SAM का अर्थ है – क्रमिक अभिगम स्मति अर्थात क्रमवार लिखना अथवा पढना। जिस तरह हम कैसिट पर ग करते हैं और यदि किसी कैसिट पर सन्देश गाने को सुनना चाहते हैं, तो पहले आरम्भ के 4 गानों को फॉरवर्ड करना होगा। इसी तरह जब कम्प्यूटर का डाटा मैग्नेटिक टेप पर स्टोर किया जाता है, तो वह भी ठीक इसी तरह लिखा अथवा पढ़ा जाता है। स्टोर करने की इस पद्धति को SAM कहा जाता है ।

(ii) RAM (Random Access Memory) – RAM का अर्थ है– अक्रमिक अभिगम स्मति अर्थात बिना किसी निश्चित क्रम में लिखना व पढना। जिस तरह गाने को ग्रामोफोन के रिकार्ड पर सुनने हेतु किसी क्रम की आवश्यकता नहीं होती, वरन् यदि उस पर स्टोर 5वाँ सुनना है तो ग्रामोफोन की सुई डायरेक्ट उस गाने पर रख देते हैं और वह बजने लगता है, ठीक उसी तरह फ्लॉपी पर कम्प्यूटर प्रोग्राम को लिखना एवं पढ़ना होता है।

कम्प्यूटर की आन्तरिक स्मृति जिस IC पर संचित की जाती है वह हमेशा आक्रमिक अभिगम पद्धति से ही लिखी या पढ़ी जाती है । अत: RAM तथा ROM दोनों ही IC वस्तुतः RAM ही होती हैं।

कम्प्यूटर की स्मृति के भाग– कम्प्यूटर की स्मृति को दो भागों में बाँटा जा सकता है–

(i) आन्तरिक स्मृति (ii) बाह्य स्मृति ।

(i) आन्तरिक स्मृति– कम्प्यूटर की आन्तरिक स्मृति, जो IC पर स्टोर की जाती है सेमी कंडक्टर मेमोरी कहलाती है।

कम्प्यूटर की आन्तरिक समृति का विभाजन दो भागों में किया जा सकता है

(a) रीड ओनली मेमोरी, (b) रीड/राइट मेमोरी ।

(a) रीड ओनली मेमोरी (ROM)– ROM उसे कहते हैं, जिसमें लिखे हुये प्रोग्राम के आउटपुट को हम सिर्फ पढ़ सकते है, लेकिन उसमें अपना प्रोग्राम संचित नहीं कर सकते । ROM में अक्सर कम्प्यूटर निर्माताओं द्वारा प्रोग्राम संचित करके कम्प्यूटर में स्थायी कर दिये जाते हैं, जो समयानुसार कार्य करते रहते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर ऑपरेटर को निर्देश देते रहते हैं।

(b) रीड/राइट मेमोरी।

बेसिक इनपुट– आउटपुट सिस्टम (Basic input–output system) –
 नाम का एक प्रोग्राम ROM का उदाहरण है, जो कम्प्यूटर के ऑन होने पर उसकी सभी इनपुट आउटपुट डिवाइसेज को चैक करने तथा नियन्त्रित करने का काम करता है। आरम्भ में ROM हेतु यह बाध्यता थी कि कम्प्यूटर निर्माता भी एक बार किसी प्रोग्राम को इस IC पर स्टोर करने के बाद उसे न तो मिटा सकते थे तथा ही उस प्रोग्राम को संशोधित कर सकते थे, लेकिन बाद में PROM, EPROM, EEPROM नाम की मेमोरी रखने वाली IC बनायी गयीं, जिनके निम्न लाभ हैं–

1. प्रोग्रामेबिल रोम (PROM)– इस समृति में किसी प्रोग्राम को केवल एक बार संचित किया जा सकता है, लेकिन न तो उसे मिटाया जा सकता है तथा न ही उसे संशोधित किया जा सकता है।

2. इरेजेबिल प्रॉम (EPROM)– इसमें संचित किया गया प्रोग्राम मिटाया जा सकता है। यदि कोई प्रोग्राम बहत समय पहले संचित किया गया था. जिसे मिटाकर उसके स्थान पर हम नया प्रोग्राम संचित करना चाहते हैं, तो यह कार्य EPROM द्वारा सम्भव है।

3. इलेक्ट्रिकली–इ–प्रॉम (EEPROM)– इलेक्ट्रिकली इरेजेबिल प्रॉम पर स्टोर किये गये प्रोग्राम को मिटाने या संशोधित करने हेतु किसी अन्य उपकरण की जरूरत नहीं होती। इलेक्ट्रिकली सिग्नल जो कि कम्प्यूटर में ही उपलब्ध रहते हैं, हमारे द्वारा कमाण्डस् दिये जाने पर इस प्रोग्राम को संशोधित कर देते है।

(ii) बाह्य स्मृति– कम्प्यूटर पर अपने किये गये कार्य को संचित करने हेतु बाह्य मेमोरी RAM तथा SAM दोनों तरह से कार्य करती है। इनकी संग्रहण क्षमता आन्तरिक स्मृति की बजाय अधिक होती है । ये अपेक्षाकृत सस्ती होती हैं, लेकिन बाह्य स्मृति की कार्यगति आन्तरिक मेमोरी की बजाय अत्यन्त कम होती है । बाह्य मेमोरी निम्न तरह की हो सकती है–

1. फ्लॉपी डिस्क– डिस्क का निर्माण ट्रैक/सैक्टर के समूह द्वारा होता है, जिन पर सूचनायें संचित की जा सकती हैं। संचयन क्षमता ट्रैक/सैक्टर के घनत्व तथा अभिलेखन पर निर्भर करती है।

2. सीडी–रोम– यह एक उच्च क्षमता वाला भण्डारण उपकरण है, जो लगभग 650 MB तक सूचनायें संचित कर सकता है।

3. हार्ड डिस्क– हार्ड डिस्क बहुत अधिक मात्रा में (20GB से 160GB तक) डाटा संचित करने की क्षमता रखती है।

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