सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के बारे में लिखिए।

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वर्तमान युग सूचना क्रान्ति का युग है। हम ज्ञान आधारित समाज में रह रहे हैं और ज्ञान किसी राष्ट्र की शक्ति है एवं व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इस बढ़ते हुए ज्ञान तक तुरन्त पहुँचने और उसका उपयोग करने के लिए नवीन तकनीकों की आवश्यकता है । इसके लिए सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी सर्वाधिक उपयुक्त साधन है।

सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का अर्थ

सूचनाएं हमारे आसपास के वातावरण के बारे में ज्ञान एवं समझ प्राप्त करने के आधार होते हैं। अत: व्यक्ति को इन सूचनाओं को प्राप्त करने, संग्रह करने तथा आवश्यकता पड़ने पर इसके प्रयोग का ज्ञान होना आवश्यक है । इस प्रकार की गतिविधियाँ सूचना तकनीकी हैं, परन्तु समुचित सम्प्रेषण की कला के अभाव में सूचनाओं की प्राप्ति एवं उपयोग अधूरा है।

सम्प्रेषण एक द्वि–मार्गी क्रिया है, जिसमें विचारों और सूचनाओं को दूसरों में बाँटा जाता है । सम्प्रेषण के दौरान सूचना के स्रोत एवं ग्राह्य के मध्य आदान–प्रदान होता है, जिससे ज्ञान की वृद्धि, समझ एवं इसके उपयोग में सहायता मिलती है।s

सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी वह तकनीकी है जिसके द्वारा सूचनाओं को शुद्ध एवं प्रभावी रूप से प्राप्त करने, संग्रह करने,प्रयोग करने, निरूपित करने तथा स्थानान्तरण में सहायता होती है । इसका उद्देश्य प्रयोगकर्ता के ज्ञान, सम्प्रेषण कौशल, निर्णय क्षमता तथा समस्या समाधान क्षमता को बढ़ाना है । इस प्रकार ज्ञान को प्राप्त करने की क्रिया में सूचना एवं सम्प्रेषण दोनों ही आवश्यक हैं।

उद्गम एवं विकास

प्राचीनकाल में सूचनाएं व्यक्ति के मस्तिष्क में ही संग्रहित होती थीं तथा अधिकर्ता को मौखिक रूप से ही स्थानान्तरित होती थीं। इस प्रकार कागज और स्याही के आविष्कार में सूचना एवं सम्प्रेषण तक के क्षेत्र में बहुत महत्त्वपूर्ण है । प्रिंट मीडिया भी इस क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण आविष्कार है |

कुछ महत्त्वपूर्ण तकनीकी विकास जो सूचना एवं सम्प्रेषण तक में सहायक हुए, निम्नलिखित हैं–

1. सन् 1990 में फ्रांस के प्रो. ग्राफीन द्वारा फोटोस्टेट का आविष्कार।

2. सन् 1940 में माइक्रोग्राफी का आविष्कार जिसके द्वारा रिकॉर्ड की हुई सामग्री को बहुत छोटे रूप में कॉपी किया जा सकता है।

3. सन् 1960 में प्रिन्ट के लिए लेजर तकनीकी का आविष्कार।।

4. बीसवीं सदी में चुम्बकीय वीडियो कैमरा, वीडियो डिस्क एक कम्प्यूटर का विकास।

5. टेलीफोन, टेलीग्राम, रेडियो, टेपरिकॉर्डर, टेलीविजन सम्प्रेषण सैटेलाइट, फैक्स आदि का आविष्कार जिसने हमें सैटेलाइट युग में लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सूचनाओं को एकत्र करने, संग्रह करने तथा आदान–प्रदान के नवीन साधनों से युक्त होने के उपरान्त 19वीं सदी में सूचना एवं सम्प्रेषण के ऊपर वैज्ञानिक नियन्त्रण की दिशा में प्रयास हुए।

सन् 1950 में U.S.A. में ‘सूचना विज्ञान’ शब्द का प्रतिपादन हुआ । इसका मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक सूचनाओं के संचार को अधिक प्रभावी बनाना और प्रयोगकर्ताओं को वैज्ञानिक सचनाओं की प्राप्ति के लिए नई एवं विकसित विधियों के लिए प्रोग्राम बनाना था। सन् 1960 के उपरान्त सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग सभी क्षेत्रों; जैसे–विज्ञान, उद्योगों, चिकित्सा, शिक्षा, बैंक, सरकारी कार्यालयों, प्रबन्धन आदि में होने लगा। वर्तमान में इसका प्रयोग शिक्षण–अधिगम क्रिया, दूरस्थ एवं मुक्त शिक्षा, आभासी कक्षाओं आदि में बहुतायत से किया जा रहा है।

आधुनिक सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीक

आधुनिक सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, मीडिया तथा प्रेषक माध्यमों आदि का शिक्षण है। इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं–

1. बहुमाध्यम युक्त कम्प्यूटर

2. वीडियो कार्ड तथा वेब कैमरे के साथ लैपटॉप

3. CD Rom तथा DVD

4. डिजिटल वीडियो कैमरा

5. LCD प्रोजेक्टर

6. कम्प्यूटर डाटाबेस

7. पावर पाइंट अनुकरण

8. वर्ड प्रोसेसर, स्प्रेडशीट आदि

9. ई–मेल, इण्टरनेट, वर्ल्डवाइड वेब (www)

10. हाइपरमीडिया तथा हाइपरटेक्स्ट स्रोत

11. वीडियो टेक्स्ट, टेली–टेक्स्ट, अन्तःक्रियात्मक वीडियो टेक्स्ट

12. दृश्य व श्रव्य कॉन्फ्रेंसिंग

13. अन्तःक्रियात्मक रिमोट अनुदेशन

14. आभासी कक्षा

15. डिजिटल लाइब्रेरी

उपयोग एवं लाभ

आधुनिक सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ने हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों; जैसे–शिक्षा,व्यापार, बैंकिंग, चिकित्सा को प्रभावित किया है । इसने हमारे सोचने के ढंग, सम्प्रेषण करने के तरीके आदि को प्रभावित किया है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के शिक्षा में प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं–

1. ज्ञान आधारित समाज के निर्माण में सहायक– सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ने नवीनतम यंत्रों एवं विधयों के द्वारा शिक्षा के माध्यम से ज्ञान आधारित समाज के निर्माण में सहायता प्रदान की है। आधुनिक युग में शिक्षण प्रदान करके नवयुवकों को परम्परागत तकनीकी की सहायता से आने वाले परिवर्तनों के लिए तैयार नहीं किया जा सकता है । सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का समुचित प्रयोग इस दिशा में सहायक सिद्ध हो रहा है।

2. छात्रों का व्यक्तिगत विकास– सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से छात्र अपने स्वयं के विकास के लिए सूचनाओं को प्राप्त करने एवं प्रयोग करने का प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं । सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के द्वारा ज्ञान, समझ, कौशल,रुचि, अभिवृत्ति आदि अजित कर सकते हैं। इसके द्वारा छात्र पूर्ण शुद्धता एवं तीव्र गति के साथ सूचनाओं को एक साथ प्राप्त कर सकते हैं। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से छात्र अपनी क्षमता, आवश्यकता एवं गति के अनुसार स्व–अनुदेशन प्राप्त कर सकते हैं। व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार पर छात्रों को सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से अनुदेश प्रदान किया जा सकता है। इसके द्वारा छात्र अपनी जिज्ञासाओं को शान्त कर सकते हैं साथ ही आविष्कार निर्माण आदि में सहायता प्राप्त कर सकते हैं । उपयुक्त निर्णय क्षमता तथा समस्या समाधान की योग्यता प्राप्त करके छात्रों के व्यवहार में आवश्यक परिवर्तन लाया जा सकता है।

3. शिक्षण में सहायक– सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षकों को शिक्षण–अधिगम क्रिया में भी सहायता प्रदान करती है । छात्रों द्वारा स्व–अनुदेशन प्राप्त करने से शिक्षक उस समय का प्रयोग उन्हें निर्देशन व परामर्श देने, ट्यूटोरियल समूह शिक्षण आदि में कर सकते हैं। शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी शिक्षकों व छात्रों की सहायता करती है । पुस्तकों, पत्रिकाओं, अध्ययन सामग्री, दृश्य–श्रव्य सामग्री, उपकरणों आदि के रूप में सूचनाओं के स्रोत शिक्षकों को शिक्षण अधिगम सामग्री एवं तकनीकों को प्राप्त करने में सहायक होते हैं।

4. परामर्श देने में सहायक– परामर्श देने के कार्य में भी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी सहायता प्रदान करती है। रिकॉर्ड की हुई इलेक्ट्रॉनिक सामग्री के द्वारा वे छात्रों के शैक्षिक स्तर, रुचि, अभिरुचि और व्यक्तित्व की अन्य विशेषताओं के बारे में जान सकते हैं तथा छात्रों की निर्देशन व परामर्श सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरी कर सकते हैं । अपेक्षित शैक्षिक, व्यावसायिक तथा व्यक्तिगत परामर्श देने में सूचना के स्रोतों को प्राप्त करने में यह परामर्शदाताओं को सहायता पहुँचाता है।

5. छात्र केन्द्रित शिक्षण में सहायक– शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के शिक्षक केन्द्रित से छात्र केन्द्रित बनाने में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीक ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इससे ज्ञान तथा कौशल अर्जित करके छात्र अधिक आत्म–निर्देशित एवं आत्म–विश्वासी बनते हैं। इसकी सहायता से छात्र बड़ी संख्या में सूचनाओं को प्राप्त कर सकते हैं तथा प्रभावी सम्प्रेषण के द्वारा सहयोगात्मक शिक्षा से कठिन कार्यों को भी कर सकते हैं।

6. शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के स्वरूप में परिवर्तन–शिक्षण को अधिगम में परिवर्तित करने की क्षमता के कारण सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी ने शिक्षक व अधिगमकर्ता दोनों को अधिक सक्रिय अधिगम वातावरण प्रदान किया है। अब शिक्षक की भूमिका केवल ज्ञान प्रदान करने वाला ही नहीं बल्कि छात्र अधिगम में सहयोगकर्ता तथा छात्र के साथ अधिगम में सक्रिय अधिगमकर्ता की भी है। वर्तमान में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्रिया भी रोचक बन गई है।

7. शिक्षक प्रशिक्षण में सहायक– सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी में शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आधुनिक समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रभावी शिक्षकों के विकास में यह अत्यन्त उपयोगी है। शिक्षक के बहु–आयामी दायित्वों के निर्वाह के लिए चुनौतियों को स्वीकार करने में यह शिक्षक की सहायता करता है । सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षण कौशलों के विकास में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

8. शैक्षिक प्रशासन में सहायक – शैक्षिक प्रशासकों को उनकी व्यावसायिक जिम्मेदारियों का पालन करने में सूचना और सम्प्रेषण तकनीक की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । शैक्षिक प्रशासकों के लिए ये सूचनाएं पाठ्यक्रम निर्माण, विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक उद्देश्यों, मूल्यांकन विधि विद्यालयों को दिए जाने वाले संसाधनों आदि के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सहायक होते हैं । शैक्षिक प्रशासन के कार्यों में सम्प्रेषण की सुविधा ने बहुत लाभ पहुँचाया है । इसके द्वारा वे शिक्षा, शैक्षिक प्रशासन तथा योजनाओं के क्षेत्र में विकास के बारे में सूचनाएं प्राप्त कर सकते है। साथ ही साथ वे संस्था की गतिविधियों से सम्बन्धित सचनाएं और आंकडे, शिक्षकों के क्रिया–कलाप, छात्रों को उपलब्धियों आदि के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।

9. शैक्षिक शोध कार्यों में सहायक– सचना और सम्प्रेषण तकनीकी के माध्यम से शोधकार्यों के लिए अपेक्षित शुद्ध एवं विभिन्न प्रकार की सचनाएं प्राप्त होती हैं। सम्प्रेषण के स्रोतों के द्वारा शोधकार्य आसानी से हो सकते हैं। सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी ने शैक्षिक कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि शिक्षा के सभी क्षेत्रों में सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में यह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अत्यन्त सहायक है।

सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी की सीमाएं

सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की प्रमुख सीमाएं निम्नलिखित हैं–

1. शिक्षकों में यह भय व्याप्त है कि शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग से उनका स्वामित्व खतरे में पड़ सकता है। उन्हें लगता है कि अनुदेशन प्रक्रिया में सूचना और सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग से उनकी भूमिका नगण्य हो जायेगी।

2. शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग से सम्बन्धित ज्ञान, कौशल, अभिवृत्ति, रुचि आदि के विकास का प्रयास नहीं किया जाता है।

3. विद्यालय तथा राज्य के प्रशासनिक अधिकारी विद्यालयों में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग और संसाधनों को एकत्र करने में निरुत्साहित हैं तथा किसी प्रकार की सहायता नहीं पहुंचाते हैं।

4. कार्य छात्र की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निष्क्रिय श्रोता ही बने रहना चाहते हैं, वे स्व–अधिगम में जाने वाली परेशानियों और कठिनाइयों से भयभीत प्रशिक्षण की कमी के कारण होता है।

5. अधिकांश विद्यालयों में सूचना और सम्प्रेक्षण तकनीकी उपलब्ध नहीं है। इसकी खरीद, रख–रखाव और अन्य खर्च उठाने की अवस्था में विद्यालय नहीं है।

6. विद्यालय का पाठ्यक्रम, परीक्षा पद्धति, मूल्यांकन पद्धति आदि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग के अनुकूल नहीं है।

7. सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग और लाभों के बारे में शिक्षकों, प्रधानाचार्यों, अन्य सम्बन्धित व्यक्तियों में अनभिज्ञता तथा अरुचि है।

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