उद्दीपन परिवर्तन कौशल को स्पष्ट कीजिये।

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अध्यापन की सफलता का एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अध्यापक छात्रों के ध्यान (अवधान) को आकर्षित कर पाठ्यवस्तु पर केन्द्रित कराये रखे। इस प्रयोजन के लिए वह कभी अपनी जगह से चलकर श्यामपट के समीप आता है, कभी छात्रों के मध्य जाकर उनसे प्रश्न पूछता है, कभी हाथ के इशारे करता है, कभी चेहरे पर हाव – भाव लाकर अपनी बात कहता है । कभी – कभी वह छात्रों को ध्यान देने अथवा इधर देखने को कहकर कुछ समझाता है। कभी वह प्रश्न पूछता है, कभी छात्रों के प्रश्नों का उत्तर देता है। कभी वह चित्र अथवा वस्तु दिखाता है, फिर उसका विवरण देता है । इस तरह इन विभिन्न उद्दीपन क्रियाओं द्वारा छात्रों के अवधान को आकर्षित कर उसे केन्द्रित किया जाता है तथा पाठ प्रभावशील बनाया जाता है। इस कौशल को उद्दीपन परिवर्तन की संज्ञा दी गई है, क्योंकि उद्दीपन का परिवर्तन ही इसमें प्रमुख है।

उद्दीपन परिवर्तन कौशल के घटक हैं –

(1) संचलन

(2) हाव – भाव (इंगित)

(3) वाक् संरूप परिवर्तन

(4) केन्द्रण

(5) अंतर क्रिया – शैली परिवर्तन

(6) विराम

(7) मौखिक – दृश्य बदलाव

(8) छात्र सहभागिता

संचलन – छात्र अगर किसी उद्दीपन (वस्तु) को एक ही स्थिति में ज्यादा देर तक देखते रहें तो उनका ध्यान उससे हट जाता है । अध्यापक के साथ भी यही होता है। अगर वह पढ़ाते समय ज्यादा देर तक एक ही स्थिति में, एक ही जगह, एक ही पोज में खड़ा रहे तो थोड़ी देर बाद छात्र उसकी तरफ ध्यान न देकर इधर – उधर देखने लगते हैं अथवा आपस में बातें करने लगते हैं। अगर अध्यापक हिलता – डुलता है, कक्षा में आवश्यकतानुसार अपनी जगह बदलता है, हाथ – पैर हिलाता है तो छात्रों का ध्यान उसकी तरफ लगा रहता है। बहुत ज्यादा संचलन या अनावश्यक हिलना – डुलना निश्चय ही ध्यान – आकर्षण में व्यवधान देता है । इसलिए स्वाभाविक तथा आवश्यक संचलन ही श्रेयस्कर है। अभ्यास तथा अनुभव से अध्यापक संचलन क्रिया में कुशल हो सकता है।

हावभाव – पाठ पढ़ाते हुए अध्यापक की पाठ्यवस्तु के अनुसार हावभाव करने चाहिए। भाषा शिक्षण में हर्ष – विवाद के प्रसंग के अनुरूप अध्यापक के चेहरे पर हावभाव आने चाहिए। सिर्फ मौखिक विवरण उतना प्रभावशाली नहीं होता जितना कि मौखिक विवरण के साथ वैसे ही हावभाव होते हैं। ये हावभाव चेहरे की भाव – भंगिमा भी हो सकती है तथा हाथ – पैरों के इशारे भी। शरीर के अन्य भागों का भी उपयोग किया जाता है। इन हावभावों से छात्रों के ध्यान को पाठ्य – वस्तु की तरफ निर्देशित किया जा सकता है। इनके सहारे भावनाओं, परिमाण, वजन, संचलन आदि को स्पष्ट किया जा सकता है।

वाक् – संरूप परिवर्तन – हावभावों को शारीरिक रूप से प्रदर्शित किये बगैर सिर्फ आवाज (ध्वनि) के ऊंचे – नीचे करने अथवा उसी में परिवर्तन करके कई भावों को छात्रों को समझाया जा सकता है। विभिन्न शब्दों पर जोर देने से उनका अर्थ गहराई लिए हो जाता है । अध्यापक की आवाज में परिवर्तन कई प्रकार के हो सकते हैं – ऊंची आवाज, जोर की, तेज, तीव्र गति, किसी शब्द पर दबाव डालकर बोलना आदि विभिन्न स्थितियों तथा भावों को स्पष्ट करते हैं | अध्यापक अनुभव तथा पर्यवेक्षण से इस घटक कौशल में पारंगत हो सकता है। यह कला मौखिक रूप से नहीं समझाई जा सकती, इसे देखकर समझना सरल तथा प्रभावी होता है।

केन्द्रण – इस घटक कौशल का प्रयोग उस स्थिति में किया जाता है जब छात्रों के अवधान (ध्यान) को पाठ के किसी विशिष्ट बिन्दु पर केन्द्रित करना हो ताकि छात्र उनकी व्याख्या ठीक प्रकार समझ पायें । इस बिन्दु पर ध्यान केन्द्रित किये बगैर अगर आगे पढ़ाया जायेगा तो उसे समझना छात्रों हेतु कठिन हो जायेगा। इस कौशल में मौखिक कथन (शाब्दिक केन्द्रण), हावभाव (इंगित) तथा संचलन (अशाब्दिक केन्द्रण) का प्रयोग किया जाता है।

जब अध्यापक कहता है ‘इधर ध्यान दो’ अथवा ‘इस चित्र को देखें तो उसका अभिप्राय छात्रों के ध्यान को इन विशिष्ट बिन्दुओं पर केन्द्रित करना है। अध्यापक चित्र पर निश्चित बिन्दु पर हाथ रखकर जब कुछ बताता है तो सभी छात्रों का ध्यान उसी बिन्दु पर रहता है। जब अध्यापक मानचित्र पर लकड़ी के प्वाइंटर से कुछ दिखाता है तो उसका मंतव्य सबका ध्यान उस . बिन्दु पर आकर्षित करने से होता है।

ये दोनों केन्द्रण – साधन अलग – अलग या एक साथ भी प्रयुक्त होते हैं।

अंतर – क्रिया शैली परिवर्तन – जब दो अथवा ज्यादा व्यक्ति एक – दूसरे से मौखिक , वार्तालाप करते हैं तो इसे मौखिक अंतर – क्रिया की संज्ञा दी जाती है। कक्षा में कई तरह की अंतर – क्रिया होती है।

(1) अध्यापक → कक्षा (अध्यापक → छात्र समूह) इसमें अध्यापक बोलता है; सभी छात्र सुनते हैं।

(2) अध्यापक → छात्र (अध्यापक किसी एक छात्र से प्रश्न पूछता है अथवा कुछ कहता है)।

(3) छात्र → छात्र (जब एक छात्र कक्षा में किसी अन्य छात्र से कछ कहे)।

(4) छात्र → अध्यापक (छात्र अध्यापक से प्रश्न पूछे अथवा कुछ बात कहे)।

(5) छात्र → कक्षा (जब एक छात्र पूरी कक्षा से अपनी बात कहे)।

छात्र – सहभागिता को अंतर – क्रिया परिवर्तन से प्रोत्साहन मिलता है तथा अध्यापक कक्षा में ऐसा वातावरण पैदा करता है कि पाठ में सभी का सहयोग प्राप्त हो एवं अध्यापक का पाठन सिर्फ भाषण अथवा व्याख्यान होकर ही न रह जाये। अध्यापक इस कौशल में प्रवीणता प्राप्त करने पर स्वतः ही अंतर – क्रिया परिवर्तन का उपयोग कर अपने अध्यापन को प्रभावशाली बना सकता है।

विराम – विराम से अभिप्राय ऐसे मौन से है जो अध्यापक बोलते – बोलते रुक जाये ताकि छात्रों का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हो । अध्यापक अगर स्वयं ही बोलता रहे तथा छात्रों को कुछ कहने अथवा पूछने का अवसर न दे तो पाठ नीरस हो जाता है एवं छात्र पाठ में रुचि लेना कम कर देते हैं। यदि कभी कुछ लंबी वक्तृता देनी हो तो अध्यापक को बीच – बीच में रुक कर छात्रों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करना चाहिए। प्रश्न पूछे तो और भी अच्छा होगा। कहानी कहते – कहते कई बार कहानी कहने वाला चुप हो जाता है तो सुनने वाले तुरंत पूछ उठते हैं आगे क्या हुआ? यह उनकी रुचि तथा ध्यान का परिचायक है। इसी तरह मौन – विराम का प्रयोग ध्यान आकर्षण के लिए किया जाता है ।

मौखिक – दृश्य बदलाव – पाठ पढ़ाते हुए मौखिक विवरण के साथ – साथ कभी अध्यापक प्रयोग दिखाता है,कभी चित्र दिखाकर अथवा श्यामपट पर रेखाचित्र बनाकर या लिखकर समझाता है, कभी वह बोलते – बोलते मॉडल दिखाने लगता है, कभी चित्र दिखाते – दिखाते वह विवरण देने लगता है, कभी – कभी वह बोलता भी है तथा चित्र का प्रयोग भी दिखाता है । इन सभी क्रियाओं को मौखिक – दृश्य बदलाव का नाम दिया गया है। यह बदलाव तीन तरह का हो सकता है –

(1) मौखिक →

← दृश्य (दिखाना)

(2) मौखिक →

← मौखिक-दृश्य (दोनों साथ)

(3) दृश्य →

← मौखिक-दृश्य (दोनों साथ)

इस तरह का बदलाव छात्रों को अध्यापक की तरफ आकर्षित रखने में बहुत उपयोगी होता है।

छात्र – सहभागिता – शिक्षक छात्रों को श्यामपट पर बुलाकर पूछता है अथवा लिखने को कहता है किसी उपकरण को पकडने अथवा नजदीक से देखने या किसी क्रिया को करने के लिए बुलाता है यह छात्र सहभागिता मानसिक भी होती है तथा शारीरिक भी। इससे छात्र संलग्न रहते हैं कि कभी भी शिक्षक किसी को भी बुला सकता है

ये आठों घटक कौशल छात्रों के अवधान को अध्यापक तथा उसके अध्यापन की तरफ आकर्षित कर उनकी अभिरुचि को बनाये रखने में मददगार सिद्ध होते हैं ।

इस कौशल के आवृत्ति अंकन के लिए अनुसूची

(1) काम में लायी जाती है तथा गुणात्मक मूल्यांकन के लिए अनुसूची (2) काम में आती है।

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