दृष्टांत कौशल को स्पष्ट कीजिये।

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बालकों को कई बार अमूर्त विचारों या संप्रत्यय के विषय में समझाना बहुत कठिन हो जाता है । ऐसी स्थिति में किस तरह स्पष्ट रूप से एवं साधारणतया रुचिपूर्ण तरीके से छात्रों को यह भाव, विचार या संप्रत्यय समझाये जायें? उदाहरणों तथा दृष्टांतों की मदद से ऐसा करना संभव है।

उदाहरण अथवा दृष्टांत ऐसी स्थिति का विवरण होता है जिनमें विशिष्ट संप्रत्यय, विचार अथवा सिद्धांत का उपयुक्त प्रयोग किया गया हो। इस कौशल में विचार अथवा संप्रत्यय का विवरण तथा व्याख्या होती है जिसमें उदाहरण और दृष्टांत का यथास्थान उपयोग किया जाता है। अध्यापक को इस कौशल में पारंगत होने हेतु निम्न क्षमताएं पैदा करनी होंगी –

(1) विचार, संप्रत्यय या सिद्धांत पर आधारित उपयुक्त उदाहरण अथवा दृष्टांत तैयार कर सके।

(2) दृष्टांत छात्रों को प्रभावशाली ढंग से बता सके । इसके लिए अध्यापक को जाँच प्रश्न पूछने पड़ेंगे।

दृष्टांत ऐसे होने चाहिए जो आसानी से समझ में आ सकें, प्रासंगिक हों तथा छात्रों को रुचिकर लगें और बोधगम्य हों। इसके लिए इनके लिए उपयुक्त माध्यम का उपयोग भी जरूरी हो जाता है । दृष्टांतों अथवा उदाहरणों में प्रस्तुतीकरण के लिए निम्न माध्यमों का उपयोग किया जाता है।

अशाब्दिक

(क) वास्तविक वस्तुओं को उदाहरणस्वरूप दिखाया जा सकता है; जैसे – फूल, पत्ते, पंप, थर्मामीटर आदि दिखाकर अपनी बात समझाई जाये। ये वस्तुएं दिखाकर प्रश्नों द्वारा सिद्धांत अथवा संप्रत्यय का स्पष्टीकरण किया जा सकता है ।

(ख) मॉडल – ऐसे आदर्श अथवा मॉडल तैयार किये जाते हैं जिनके सहारे किसी विचार संप्रत्यय तथा सिद्धांत की दृष्टांत द्वारा व्याख्या की जाती है। ये मॉडल वास्तविकता की प्रतिकृति होते हैं। ऐसे मॉडल, जिनके विभिन्न खंड अलग कर एक – एक भाग की मदद से प्रमुख संप्रत्यय को समझाया जा सके, बहुत लाभदायक होते हैं।

(ग) चित्र – जब वास्तविक वस्तु उपलब्ध न हो तब उसके चित्रों द्वारा उसके विषय में व्याख्या की जा सकती है । चित्र कक्षा में आसानी से लाया तथा दिखाया जा सकता है । मौखिक विवरण से यह ज्यादा लाभप्रद होता है।

(घ) मानचित्र तथा रेखाचित्र – इतिहास, भूगोल तथा विज्ञान पढ़ाने में रेखाचित्र और मानचित्र बहुत उपयोगी होते हैं। इनकी मदद से पाठ के प्रमुख बिन्दुओं की व्याख्या की जा सकती है । अध्यापक ऐसे रेखाचित्र श्यामपट्ट पर बना सकते हैं तथा व्याख्या करने में उनका उपयोग किया जा सकता है। पोस्टर भी पेश किये जा सकते हैं

(ङ) प्रायोगिक प्रदर्शन – विज्ञान, प्रकृति – अध्ययन तथा भूगोल में प्रयोग प्रदर्शन से विषय को स्पष्ट और प्रभावशील रूप से समझाने में बहत सहयोग मिलता है एवं इससे नियम अथवा सिद्धांत को वास्तविक प्रक्रिया द्वारा स्पष्ट किया जाता है।

ये कई अशाब्दिक माध्यम हैं जिनके द्वारा अध्यापन में बहुत मदद मिलती है तथा संप्रत्यय और सिद्धांतों को बोधगम्य बनाया जाता है ।

शाब्दिक माध्यम :

अशाब्दिक माध्यम के उपयोग बगैर मौखिक रूप से दृष्टांत देकर व्याख्या करना। मौखिक उदाहरणों में अध्यापक कहानी घटना अथवा चुटकुले कहकर अपनी बात को छात्रों को समझाता है। पंचतंत्र की कहानियों का यही उद्देश्य है । सादृश्य, तुलना, विपरीत भाव के उदाहरण भी पेश किये जाते हैं।

अध्यापक किसी सिद्धांत की व्याख्या करते हुए छात्रों के पूर्व अनुभवों पर प्रश्न पूछ – पूछ कर उनके उत्तरों से सहयोग लेते हैं, तो यह कृत्य भी शाब्दिक माध्यम के अंतर्गत हैं। दृष्टांत कौशल में शाब्दिक तथा अशाब्दिक दोनों तरह के उदाहरणों और दृष्टांतों का उपयोग होता है । इनका उपयोग करने की दो विधियाँ हैं –

(1) आगमन विधि, (2) निगमन विधि ।

आगमन विधि में अध्यापक विभिन्न उदाहरण देते हुए सिद्धांत या संप्रत्यय का स्पष्टीकरण करता है तथा इस आधार पर परिणाम और निर्गमों की व्याख्या करता है।

निगमन विधि में अध्यापक पहले संप्रत्यय या सिद्धांत बतलाता है, फिर संबंधित उदाहरणों तथा दृष्टांतों के सहारे उसकी व्याख्या करता है।

दष्टांत कौशल में माध्यम तथा विधि के उपयोग पर विचार करने के बाद अब इस कौशल के घटकों पर ध्यान देना जरूरी है। इस कौशल में पारंगत होने हेतु निम्न व्यवहारों का अभ्यास तथा पालन वांछित है, ये हैं –

(1) उदाहरण अथवा दृष्टांत सुगम हों।

(2) दष्टांत/उदाहरण विचार, नियम या संप्रत्यय से संबंधित हों।

(3) दृष्टांत प्रासंगिक हों।

(4) उदाहरण रोचक हों।

(5) इन उदाहरणों/दृष्टांतों हेतु उचित माध्यम का उपयोग किया जाये।

(6) इनका उपयोग उचित विधि से किया जाये।s

सुगम उदाहरण/दृष्टांत – ऐसे उदाहरण जो छात्रों की आयु, ज्ञान तथा अनुभव से मेल खायें उनको समझने में कठिनाई न हो।

प्रासंगिक दृष्टांत – दृष्टांत नियम अथवा संप्रत्यय से संबंधित हों तथा उसे स्पष्ट करने में सहायक हों।

रोचक सिद्धांत – ऐसे दृष्टांत जो छात्रों की जिज्ञासा तथा अभिरुचि को जाग्रत करें जिससे वे मनोयोग से विषय को समझ ते मनोयोग से विषय को समझ पायें। स्वाभाविक हे कि दष्टांतों/उदाहरणों का चयन होशियारी से किया जाये तथा अगर इनमें मनोरंजन का भी पुट हो तो वे ज्यादा सफल होंगे। छात्रों की आयु, उनकी परिपक्वता तथा उनके मनोवैज्ञानिक स्तर को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है।

उपयुक्त माध्यम – इन दृष्टांतों को उचित तथा ज्यादा प्रभावशील माध्यम शाब्दिक या अशाब्दिक के द्वारा प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इससे इनका प्रभाव ज्यादा तथा स्थायी होता है ।

उपयुक्त विधियाँ – उदाहरणों के उपयोग की दोनों विधियों – आगमन तथा निगमन का कक्षा में संप्रत्यय या सिद्धांत की दृष्टि से चयन कर उपयोग करना चाहिए। कुछ बातें आगमन विधि के सहारे भली तरह समझाई जा सकती हैं तथा कुछ निगमन विधि से । अध्यापक उचित विधि का उपयोग करें। दोनों का एक साथ भी उपयोग किया जा सकता है; जैसे – पहले आगमन विधि से उदाहरणों के सहारे सिद्धांत समझाया गया। इसके बाद निगमन द्वारा छात्रों के तत्संबंधी उदाहरण या घटनाओं को प्राप्त कर उनका विश्लेषण करके सिद्धांत के अधिगम – स्तर को विकसित किया जाये। इस तरह दोनों का एक साथ उपयोग ज्यादा प्रभावशाली सिद्ध होता है।

इस कौशल का आवृत्ति अंकन पर्यवेक्षण अनुसूची (1) पर किया जाता है तथा इसके आधार पर इसके विभिन्न घटकों का गुणात्मक मूल्यांकन अनुसूची (2) पर किया जाता है । दोनों अनुसूचियों का प्रारूप अग्रांकित है –

(निम्न अनुमाप पर विभिन्न घटक कौशल का गुणात्मक मूल्यांकन अंकों पर घेरा लगाकर करें।)

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