प्रबलन कौशल को स्पष्ट कीजिये।

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कक्षा में छात्रों को पाठ के विकास में सहयोग देने तथा सक्रिय भाग लेने के लिए प्रोत्साहन देने हेतु अध्यापक को कई युक्तियों का सहारा लेना पड़ता है। छात्र प्रश्नों का सही उत्तर देने पर आशा करते हैं कि अध्यापक उनके सही उत्तरों पर प्रसन्नता व्यक्त करेंगे। उनको यह भी जानने की उत्सुकता रहती है कि उनके उत्तर सही हैं अथवा नहीं। अगर अध्यापक इस तरफ निष्क्रिय रहता है तथा उनके उत्तरों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता तो अगली बार छात्र उत्तर देने में कोई उत्साह नहीं दिखाते । अध्यापक का वह व्यवहार जिससे छात्रों को पाठ के विकास में भाग लेने के लिए तथा प्रश्नों के सही उत्तर देने व सही विचार व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहन प्राप्त हो,प्रबलन कहलाता है । छात्रों के गलत व्यवहार अथवा उत्तरों के नकारात्मक व्यवहार से निरुत्साहित भी किया जाता है ताकि वे इसे पुनः न दोहरावें । इस तरह प्रबलन कौशल के दो मुख्य प्रकार हैं –

(क) विधेयात्मक प्रबलन – इससे छात्रों के वांछित व्यवहार को प्रबल बनाया जाता है ।

(ख) नकारात्मक प्रबलन – इससे छात्रों के गलत अथवा अवांछित व्यवहार को दुर्बल या दूर करने की चेष्टा की जाती है।

विधेयात्मक प्रबलन के लिए अध्यापक ऐसे व्यवहार अपनाता है जिससे छात्र पाठ में अधिकाधिक भाग लें । इनमें अध्यापक का ‘अच्छा’, शाबाश’ हा – हाँ ठीक है’ आदि कहना अथवा उत्तर ठीक होने पर मुस्कराना, सिर हिलाना या हाथ के संकेत आदि आते हैं । इनका छात्रों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है तथा वे प्रोत्साहित होते हैं। आगे और भी उत्साह से वे प्रश्नों का उत्तर देते हैं अथवा अपनी बात कहते हैं ।

नकारात्मक प्रबलन में अध्यापक का वह व्यवहार आता है जिससे छात्रों को गलत व्यवहार से रोकना अभीष्ट है। गलत उत्तर आने पर अध्यापक का ‘नहीं’ ऐसा नहीं है’ कहना, उहूँ, नकारात्मक सिर हिलाना, हाथ से बैठ जाने का संकेत आदि इसी श्रेणी में आते हैं।

वांछित व्यवहार में निम्न घटक आते हैं –

(1) विधेयात्मक शाब्दिक प्रबलन – अध्यापक का ‘बहुत अच्छा'”शाबाश’ठीक है’ आदि बोलना इसी श्रेणी में आता है। इनका अभिप्राय है कि अध्यापक छात्रों की भावना का आदर करता है तथा उनके व्यक्त किये गये विचारों से सहमत है। छात्रों की बात सबको समझाने हेतु अध्यापक उसकी व्याख्या भी करते हैं।

(2) छात्रों के उत्तर को शिक्षक दोहराता है। सही उत्तर ही दोहराते हैं

(3) विधेयात्मक अशाब्दिक प्रबलन – अध्यापक बगैर बोले अथवा शब्दों का उपयोग किये मुस्कराने, सिर अथवा हाथ के संकेतों से या चलकर समीप जाने आदि से छात्रों को प्रोत्साहित करता है तथा उनके व्यवहार का प्रबलन करता है

(4) छात्रों के सही उत्तर को श्यामपट पर लिखना भी छात्रों को प्रोत्साहित करता है।

(5) नकारात्मक शाब्दिक प्रबलन – अध्यापक मौखिक अथवा शाब्दिक रूप से छात्रों में अनुचित या गलत व्यवहार या उत्तर के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है जिससे छात्र पुनः ऐसा व्यवहार न करें। इसमें अध्यापक का ‘नहीं’ उहूँ’ गलत है’,रुको सोचकर बोलिये’ आदि कथन आते हैं।

(6) नकारात्मक अशाब्दिक प्रबलन – अध्यापक द्वारा नाराजगी से छात्र की तरफ देखना, • नकारात्मक सिर हिलाना, घूर कर छात्र को देखना, पैर से जमीन थपथपाना, तेज – तेज चलना आदि ऐसे व्यवहार हैं जिनके द्वारा छात्रों को गलत उत्तर देने अथवा अनुचित बात कहने पर अध्यापक अपनी अस्वीकृति का प्रदर्शन करता है। इससे ऐसे व्यवहारों को रोका जा सकता है।

(7) छात्रों को बात कहने हेतु प्रोत्साहित करने हेतु शिक्षक अनुबोधन का सहारा लेता है, जैसे – हाँ – हाँ, फिर क्या हुआ, ठीक है आगे। इन्हें अतिरिक्त शाब्दिक संकेत कहा जाता है ।

इसके अलावा अध्यापक को प्रबलन कौशल के प्रभावशाली उपयोग के लिए निम्न बातों का भी ध्यान रखना चाहिए –

(अ) उत्तर देने वाले कुछ छात्रों को ही प्रोत्साहित करना गलत होगा। अध्यापक को • ज्यादा से ज्यादा छात्रों को प्रोत्साहित कर पाठ में उनका सहयोग प्राप्त करना चाहिए। सिर्फ थोड़े से छात्रों के सहारे पाट प्रभावी नहीं बन सकता है।

(ब) कई अध्यापक कुछ ही प्रबलन कथनों का उपयोग ‘ठीक है ‘अच्छा’ आदि – दो अथवा तीन शब्दों या शब्द – समूहों का बार – बार उपयोग करते हैं। परिणाम यह होता है कि छात्र उन पर ध्यान ही नहीं देते। ये इसे अध्यापक की आदत हो समझने लगते हैं तथा इनसे उनके प्रबलन में ज्यादा लाभ नहीं होता।

(स) प्रबलन का बहुत प्रयोग – प्रबलन का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी इसकी महत्ता तथा लाभ को कम करता है। अत्यधिक उपयोग से ऐसा लगता है कि अध्यापक कृत्रिम व्यवहार का सहारा ले रहा है जिसका बहुत ही अवांछित प्रभाव पड़ता है।

प्रबलन कौशल के विभिन्न घटकों का आवृत्ति अंकन पर्यवेक्षण अनुसूची (1) पर अंकित किया जायेगा तथा इनका आवृत्ति – मूल्यांकन अनुसूची (2) पर अंकित किया जायेगा।

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