अन्त: क्रिया विश्लेषण की अवधारणा का वर्णन कीजिए।

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अन्त: क्रिया विश्लेषण का अर्थ :

1. कक्षा के अन्तर्गत शिक्षक व छात्र तथा छात्र के बीच शाब्दिक आदान – प्रदान के निरीक्षण तथा अंकन को ही अन्तःक्रिया विश्लेषण विधि कहा जाता है।

2. अन्तःक्रिया विश्लेषण कक्षा में होने वाली क्रमबद्ध क्रियाओं के अध्ययन की एक वैज्ञानिक विधि होती है।

3. इस विधि द्वारा कक्षा के शाब्दिक आदान – प्रदान को गुणात्मक तथा परिणामस्वरूप रूप से प्रस्तुत किया जाता है।

डॉ. एन.ए. फ्लैण्डर ने भी अपने सहयोगियों के साथ मिनसोटा वि वि. में 1955 से 1960 तक कक्षा व्यवहार मूल्यांकन की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास किये, जो कि “फ्लेण्डसे अन्तःक्रिया विश्लेषण” के नाम से जाने जाते हैं। फ्लैण्डर ने व्यवहार मुल्यांकन में कक्षा के शाब्दिक व्यवहार को महत्त्वपूर्ण एवं प्रधान माना है। उसके अनुसार कक्षा में शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्य अधिकार व्यवहार शाब्दिक होता है जिसमें या तो शिक्षक या फिर शिक्षार्थी बोलता है। फ्लैण्डर ने कक्षा व्यवहार के मूल्यांकन एवं अध्ययन के लिए एक ऐसी प्रविधि प्रस्तुत की जो कि कक्षा के अन्तर्गत होने वाली विभिन्न घटनाओं का निरीक्षण क्रमबद्ध रूप से वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार करता है। इस वर्ग प्रविधि की प्रमुख विशेषता शिक्षक – शिक्षार्थी एवं शिक्षार्थी के मध्य होने वाली स्वोक्रम.एवं अनुक्रिया का निरीक्षण करना है। फ्लैण्डर के अनुसार कक्षा शिक्षण के दौरान शिक्षक अधिकतर स्वोपक्रमकर्ता एवं शिक्षार्थी अधिकतर अनुक्रियाकर्ता होता है । लेकिन किन्हीं विशेष परिस्थितियों, उदाहरणार्थ जब शिक्षार्थी स्वयं ही प्रश्न पूछता है या कुछ कहने को उत्सुक होता है, शिक्षार्थी स्वोपक्रमकर्ता भी होता है, ऐसी परिस्थिति में शिक्षक स्वयं ही अनुक्रियाकर्ता या प्रश्न का उत्तर देने वाला हो जाता है।

इस विधि का निर्माण “शिक्षक प्रभाव” तथा “छात्र निष्पत्ति” के शोध को सम्पन्न करने हेतु किया गया। यह विधि कला के शाब्दिक व्यवहार के आदान – प्रदान के निरीक्षण हेतु प्रयुक्त की जाती है। इसकी सहायता से कक्षा के अन्तर्गत तीन सैकिण्ड में होने वाले व्यवहार का निरीक्षण क्रमबद्ध रूप में किया जाता है। इस वर्ग प्रविधि द्वारा दो या दो से अधिक छात्रों के मध्य स्वोपक्रम तथा अनुक्रिया का निरीक्षण किया जाता है । फ्लैण्डर के अनुसार कक्षा में शिक्षक मुख्य रूप से पहल करता है (जैसे प्रश्न पूछकर.तथा व्याख्या करके) और छात्र उत्तर की अनुक्रिया करता है । दूसरे जब छात्र प्रश्न पूछता है अथवा पहल करता है तब शिक्षक अनुक्रिया करता है । कभी – कभी दोनों मौन भी रहते हैं।

प्रवर्तकअध्ययन के उद्देश्ययोगदान
I. चिन्ह पद्धति  
1. मेडले तथा मिजल (1958)निरीक्षण द्वारा स्नातक शिक्षकों का अध्ययनशाब्दिक तथा अशाब्दिक निरीक्षण
2. डी.जी. रायन (1960)शिक्षक की विशेषतायेंशिक्षक विशेषताओं के स्वरूप का अध्ययन
3. बाउन तथा सहयोगी (1967)बोध – स्तर के व्यवहार स्वरूपचिन्तनों स्तरों के लिए प्रयुक्त करना
II. वर्ग पद्धति  
1. राइट स्टोन (1935)नई पद्धति के लिए विद्यालयों का अध्ययनपदों का स्वरूप
2. एच.एच. एण्डरसन (1945 – 46)शिक्षक की अन्त:क्रिया का निरीक्षणव्यवहार आलेख की पद्धति I? D अनुपात
3. बिदाल (1949)<br><br> सामाजिक, संवेगात्मक वातावरण में शिक्षक व्यवहारशिक्षक के सात वर्ग शिक्षक तथा छात्र केन्द्रित अन्त: क्रिया आलेख अथवा समय
4. बेल्ज (1950)<br><br> सामाजिक तथा मनोविज्ञान शिक्षा के लिए व्यक्तिगत व्यवहारशाब्दिक निरीक्षण पद्धति
5. मेडले तथा मिजल (1958)स्नातक शिक्षकों का निरीक्षण द्वारा अध्ययनशाब्दिक तथा अशाब्दिक निरीक्षण दस वर्ग पद्धति <br><br> 
6. हफ्स (1959)अध्यापक की क्रियायेंसौ कक्षिकायें
7. नेड ए फ्लैण्डर (1963)शिक्षक के व्यवहार का छात्रों की निष्पत्ति पर प्रभाव 
8. वी.ओ. स्मिथ तथा सहयोगी (1962) कक्षा वार्ता का विश्लेषण<br><br> भाषा की उपयोगिता 
9. बैलक (1963) कक्षा में भाषा का प्रयोगनवीन वर्गो को सम्मिलत करना
10. कोगन (1965)छात्र-शिक्षक व्यवहार स्वरूपवर्ग पद्धति में सुधार
11. हफ (1966)प्रशिक्षण का प्रभावफ्लैण्डर वर्ग पद्धति में सुधार
12. एमीडोन (1966)शिक्षक व्यवहार का महत्वपारस्परिक वर्ग पद्धति
13. ओबर (1967) कक्षा व्यवहार की प्रतिक्रियाऐंअशाब्दिक क्रियाओं का आलेख
14. ग्लोवे (1969)अशाब्दिक-सम्प्रेषण 

फ्लैण्डर दस वर्ग प्रविधि

फ्लैण्डर ने कक्षा के अन्तर्गत शिक्षक व छात्र तथा छात्र व छात्र के बीच होने वाले सभी शाब्दिक व्यवहारों एवं क्रिया को तीन भागों में विभाजित किया है –

(1) शिक्षक कथन

(2) छात्र कथन

(3) भ्रान्ति या मौन ।

शिक्षक कथन के भी दो प्रकार – प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष होते हैं । अप्रत्यक्ष के 4 वर्ग तथा प्रत्यक्ष व्यवहार के 3 वर्ग होते हैं। छात्र कथन के दो वर्ग होते हैं तथा अन्तिम वर्ग शिक्षक व छात्र दोनों के मौन होने से सम्बन्धित है । इन वर्गों का विवरण इस प्रकार है –

अप्रत्यक्ष शिक्षक व्यवहार

इसके अन्तर्गत शिक्षक की वे क्रियायें होती हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों को अनुक्रिया के लिए प्रोत्साहित करती हैं। यह अग्रलिखित हैं –

वर्ग 1 – छात्र की अनुभूति को स्वीकार करना

इस वर्ग में शिक्षक छात्र की भावनाओं, अभिवृत्तियों आदि को स्वीकार करता है।

वर्ग 2 – प्रशंसा व प्रोत्साहित करना

इस वर्ग में शिक्षक के छात्र को अच्छा कहकर, ठीक, सुन्दर, शाबाश हूँ, गर्दन हिलाकर आदि रूपों में प्रशंसा व प्रोत्साहित करने सम्बन्धित व्यवहार आते हैं।

वर्ग 3 – छात्रों के विचारों को स्वीकार करना

इस वर्ग में शिक्षक छात्र के विचारों को स्वीकार करके अपने विचार व्यक्त करता है। उदाहरणतः शिक्षक छात्र से कहता है, आप से कहना चाहते हैं, तुम्हारे कहने का तात्पर्य यह है। इस प्रकार शिक्षक की बात को दुहारते हुए अपनी बात कहने लगता है।

वर्ग 4 – प्रश्न पूछना

प्रत्यक्ष शिक्षक व्यवहार

वर्ग 5 – व्याख्यान देना

इस वर्ग में शिक्षक छात्र से प्रश्न पूछता है या समस्या उत्पन्न करता है ।

वर्ग 6 – निर्देश देना

इसमें शिक्षक के सभी निर्देश आते हैं जो छात्रों को कक्षा में दिए जाते हैं जैसे – बैठ जाओ, खड़े हो जाओ, नाम बताओ आदि ।

वर्ग 7 – आलोचना करना तथा अधिकार दिखाना

इसमें शिक्षक छात्र की आलोचना करके अपना अधिकार दर्शाता है। जैसे – तुम्हें कक्षा से बाहर निकाल दूंगा, यह तुम्हारा व्यवहार अच्छा नहीं है।

छात्र कथन

वर्ग 8 – छात्र अनुक्रिया ।

इस वर्ग में छात्र शिक्षक द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देता है।

वर्ग 9 – छात्र पहले या स्वोपक्रम

इस वर्ग के अन्तर्गत छात्र स्वयं प्रश्न पूछता है या स्पष्टीकरण चाहता है।

वर्ग 10 – मौन या विभ्रान्ति

जब पूर्ण कक्षा मौन होती है या सभी छात्र बोलने लगते हैं तो मौन या विभ्रान्ति की स्थिति होती है। इस वर्ग में 10 को अंकित किया जाता है। उपयुक्त वर्गों को संक्षिप्त रूप में इस प्रकार तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

फ्लैण्डर अन्त:क्रिया विश्लेषण प्रणाली व्यवहार

फ्लैण्डर अन्त:क्रिया विश्लेषण की सीमायें

1. इस प्रविधि की सायता से केवल कक्षा शिक्षण के दौरान होने वाले शाब्दिक व्यवहार का अध्ययन किया जा सकता है जबकि शिक्षण में अशाब्दिक व्यवहार का भी स्थान है।

2. यह प्रविधि शिक्षण के दौरान प्रयुक्त पाठ्यवस्तु के अध्ययन पर कोई ध्यान केन्द्रित नहीं करती जबकि शिक्षण में पाठ्यक्रम का सम्प्रेषण ही शिक्षक का प्रमुख उत्तरदायित्व है।

3. यह प्रविधि कक्षा के समस्त शिक्षण व्यवहारों की मात्र 10 वर्गों में विभक्त करती है जो कि व्यवहार को परिसीमित कर देती है । सम्पूर्ण शिक्षण व्यवहार का मात्र 10 वर्गों में समावेश सम्भव नहीं है।

4. यह प्रविधि वर्गों के आलेख में केवल उनकी संख्यात्मक प्रविष्टि पर भी ध्यान देती है, इसकी सहायता से वर्ग के गुणात्मक प्रविष्टि का अध्ययन नहीं कर सकते हैं।

5. 3 सेकण्ड में कक्षा व्यवहार का अध्ययन एक कठिन कार्य है। इस प्रविधि में प्रत्येक 3 सेकण्ड में व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

6. यह प्रविधि शिक्षण में मुख्य रूप से शिक्षक व्यवहार का अध्ययन एवं मूल्यांकन करती हैं शिक्षण के दौरान शिक्षार्थी के व्यवहार के अध्ययन एवं मूल्यांकन पर यह उतना ध्यान नहीं देती है।

फ्लैण्डर की कक्षा अन्तःक्रिया प्रविधि को उपरोक्त सीमाओं को ध्यान में रखते हुए फ्लैण्डर की इस प्रविधि में विभिन्न सुधारों का प्रयत्न किया जा रहा है। ओबर (1968) ने फ्लैण्डर की वर्ग पद्धति में सुधार करके एक नवीन प्रविधि का विकास किया जो कि ओबर की ‘पारस्परिक वर्ग पद्धति’ के नाम से जानी जाती है । फ्लैण्डर ने व्यवहार अध्ययन के लिए केवल क्रियाओं को ही अंकित किया है जबकि ओबर ने क्रिया एवं उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रक्रिया, दोनों की सहायता से व्यवहार का स्थापन किया है। कोगन ने 1965 में फ्लैण्डर के दस वर्गों में कुछ नवीन वर्गों को सम्मिलित किया है जिससे व्यवहार का और अधिक प्रभावशाली ढंग से अध्ययन एवं मूल्यांकन हो सके। हफ एवं एमीडोन ने 1966 में अलग – अलग फ्लैण्डर की वर्ग पद्धति में सुधार प्रस्तुत किये हैं। 1969 में ग्लोबे ने फ्लैण्डर ने शाब्दिक व्यवहार के साथ – साथ अशाब्दिक व्यवहार का भी अध्ययन किया एवं उसे विभिन्न वर्गों में विभाजित करने का प्रयास किया। वर्तमान समय में शिक्षण को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षक व्यवहार के अध्ययन एवं मूल्यांकन का प्रयास किया जा रहा है । इस दिशा में वैड का प्रयास महत्त्वपूर्ण है ।

फ्लैण्डर अन्त:क्रिया विश्लेषण की प्रक्रिया

अन्तःक्रिया विश्लेषण की दो प्रमुख प्रक्रियायें होती हैं

1. अंकन प्रक्रिया :

अंकन प्रक्रिया में निरीक्षक द्वारा दस वर्गों को अच्छी प्रकार समझकर कक्षा के अन्तर्गत होने वाली सभी अनुक्रियाओं या घटनाओं को अंकित किया जाता है। साधारणत: प्रति तीन सैकण्ड में होने वाली क्रिया को एक वर्ग माना जाता है । इस प्रकार निरीक्षक प्रति मिनट 20 से 25 वर्गों की संख्याओं को अंकित कर देता है। एक पाठ में लगभग 20 मिनट का निरीक्षण किया जाता है। अतः निरीक्षण द्वारा वर्गों की कुल 400 आवृत्तियाँ अंकित की जाती हैं । कक्षा की क्रियाओं को अंकित करने के बाद उनकी व्याख्या हेतु निरीक्षण मैट्रिक तैयार की जाती है । इस प्रकार कुल 100 कक्षिकायें होती हैं। दो वर्गों का लगातार जोड़ा बना लिया जाता है तथा जोड़े का पहला वर्ग पंक्ति तथा दूसरा वर्ग स्तम्भ में जहाँ मिलते हैं। उस कक्षिका में एक आवृत्ति की जाती है। इसी प्रकार सभी आवृत्तियों को अंकित किया जाता है।

2. अंकन अर्थापन प्रक्रिया :

निरीक्षण मैट्रिक तालिका की सहायता से कक्षा शिक्षण व्यवहार की व्यवस्था अलग – अलग 14 व्यवहार क्षेत्रों में की जाती है। इन क्षेत्रों को व्यवहार अनुपात का नाम दिया गया है। यह दो प्रकार से किया जाता है। प्रथम – परिमाणात्मक अर्थापन । द्वितीय – गुणात्मक अर्थापन । अतः संख्यात्मक अर्थापन, वर्ग अनुपात, अन्त क्रियाचरं आदि विधियों से किया जाता है जबकि गुणात्मक की घड़ी के अनुसार प्रवाह चार्ट प्रवाह, चित्र आदि विधियों द्वारा किया जाता है

1. परिमाणात्मक व्याख्या

परिमाणात्मक व्याख्या के अन्तर्गत प्रत्येक पद की व्याख्या इन सूत्रों से की जाती है। यहाँ पर हम इन श्रेणियों की संख्या के सन्दर्भ में ही सूत्र लिखते हैं। इन सूत्रों की सहायता से परिगणित परिणामों की व्याख्या की जाती है।

1. शिक्षक कथन = (1+2+3+4+5+6+7 वर्ग बारम्बारता )/(कुल बारम्बारता )×100

2. अप्रत्यक्ष शिक्षक कथन = (1 + 2 + 3 + 4 बारम्बारता)/(कुल बारम्बारता )×100

3. प्रत्यक्ष शिक्षक कथन = (5 + 6 + 7 बारम्बारता)/(कुल बारम्बारता ) ×100

4. अप्रत्यक्ष – प्रत्यक्ष व्यवहार अनुपात – शिक्षक के कक्षा – व्यवहार के अनुपात का भी पता लगाना शोधकर्ताओं की परम्परा रही है। इसकी गणना के लिए 1 से 4 वर्गों के योग की 5 से 7 वर्गों के योग से भाग दिया जाता है । इनके लिए निम्नासूत्र का प्रयोग किया जाता है

अप्रत्यक्ष – प्रत्यक्ष अनुपात = ( (1 + 2 + 3 + 4) वर्गों की बारम्बारता)/((5+6+7) वर्गों की बारम्बारता )

प्रभावशाली शिक्षकों का यह अनुपात गुणक क्रम प्रभावशाली शिक्षकों की अपेक्षा अधिक होता है । जनतन्त्र – शिक्षा में इस व्यवहार का अधिक अनुपात अच्छा माना जाता है । यह जटिल व्यवहार अनुपात माना जाता है।

5. छात्र कथन – छात्र, शिक्षक द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर देते हैं तथा छात्र स्वयं अपने विचारों या भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं, तब छात्र कथन की स्थिति होती है। छात्र कथन में उनकी अनुक्रिया तथा स्वोपक्रम दोनों ही सम्मिलित होते हैं।

इसकी गणना के लिए वर्ग 8 तथा 9 की आवृत्तियों का जोड़कर आव्यूह की कुल आवृत्तियों से भाग देकर, 100 से गुणा किया जाता है। इसकी गणना के लिए निम्नांकित सूत्र का प्रयोग होता है –

छात्र – कथन = ( (8+8) वर्गों की बारम्बारता)/( तालिका की कुल बारम्बारता )×100 x

जो शिक्षक अपने कक्षा शिक्षण में छात्रों की क्रियाओं को अधिक स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं। उनकी अन्तःक्रिया में छात्र कथन अधिक होता है।

6. छात्र स्वोपक्रम अनुपात – छात्र कथन में छात्र, अनुक्रिया तथा स्वोपक्रम की क्रियाओं के अनुपात को छात्र स्वोपक्रम अनुपात कहते हैं।

इनकी गणना के लिए वर्ग 9 की आवृत्तियों को,वर्ग 8 तथा 9 की आवृत्तियों के योग से भाग देकर 100 से गुणा किया जाता है। इसके लिए सूत्र इस प्रकार है –

छात्र स्वोपक्रम अनुपात = ( 9 वर्गों की बारम्बारता )/( वर्गों की बारम्बारता )×100

इस व्यवहार की अधिकता होने पर सर्जनात्मक शिक्षण माना जाता है।

7. मौन विभ्रान्ति – इस व्यवहार – अनुपात में उन घटनाओं तथा व्यवहारों को सम्मिलित किया जाता है जो उसके किसी व्यवहार – अनुपात में नहीं आती अथवा दोनों में आती हैं। कक्षा में कोई नहीं बोलता अथवा सभी बोलते हैं। तब यह स्थिति आती है। इस व्यवहार की गणना के लिये वर्ग 10 की आवृत्तियों को कुल आवृत्तियों से भाग करके 100 से गुणा कर दिया जाता है। अर्थात् वर्ग 10 की आवृत्तियों का प्रतिशत इस व्यवहार का सूचक होता है । इसके लिए सूत्र है –

मौन/विभ्रान्ति = ((10) वर्गों की बारम्बारता)/(तालिका की कुल बारम्बारता )×100

कक्षा में इस व्यवहार का अधिक होना अच्छा नहीं समझा जाता है। शिक्षक प्रश्नों तथा निर्देशों की सहायता से इस व्यवहार को कम कर सकता है।

8. शिक्षण – अनुक्रिया अनुपात – छात्रों की भावनाओं व विचारों को स्वीकार करने को शिक्षक की प्रवृत्ति तथा उनकी कुल शिक्षक – अनुक्रिया को शिक्षक अनुक्रिया अनुपात कहते हैं। शिक्षक अपनी प्रतिक्रिया अनेक प्रकार से व्यक्त करता है । इस व्यवहार – अनुपात के लिए वर्ग 1, 2 तथा 3 की कुल आवृत्तियों के योग को 100 से गुणा करके वर्ग 1, 2, 3, 6 तथा 7 की कुल आवृत्तियों को योग से भाग किया जाता है। इसके लिए सूत्र –

शिक्षक – अनुक्रिया अनुपात = ( (1+2+3)बारम्बारता का योग )/( (1+2+3+6+7) बारम्बारता)×100 x

प्रतिभाशाली शिक्षण में शिक्षण – अनुक्रिया अनुपात अधिक पाया जाता है –

9. शिक्षक – प्रश्न अनुपात – कक्षा प्रस्तुतीकरण के समय प्रश्न करने की शिक्षक की प्रवृत्ति को शिक्षक प्रश्न – अनुपात कहते हैं । प्रस्तुतीकरण के वर्ग 4 तथा 5 की वर्ग की आवृत्तियों के योग से भाग देकर 100 से गुणा किया जाता है। इसके लिए सूत्र इस प्रकार है –

शिक्षक – प्रश्न अनुपात = (4 वर्ग बारम्बारता )/((4+5)वर्ग की बारम्बारता )×100 x

10. पाठ्य पुस्तक आवन्तर अनुपात – कक्षा अन्तःक्रिया में शिक्षक पाठ्य – वस्तु पर कितना महत्त्व देता है, कुल शिक्षण में कितना समय छात्रों के पाठ्य – वस्तु के प्रस्तुतीकरण में लगाता है अथवा शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है । इसकी गणना के लिए 4 तथा 5 के स्तम्भ तथा पंक्तियों की सभी आवृत्तियों के योग में से अवान्तर कक्षिकाओं (4 – 5), (5 – 5), (5 – 4) तथा (4 – 5) की आवृत्तियों से भाग करके 100 से गुणा करते हैं। इस व्यवहार अनुपात की गणना के लिए अग्रलिखित सूत्र को प्रयोग किया जाता है –

पाठ्य – वस्तु अवान्तर अनुपात –

= (2(4 + 5) – [(4 – 4) + (5 – 5) + (5 – 4) + (4 – 5)] बारम्बारता)/((4+5) तालिका की कुल बारम्बारता )×100

2. गुणात्मक व्याख्या :

कक्षागत व्यवहार के विश्लेषण की व्याख्या को गुणात्मक रूप से भी व्यक्त किया जाता है। चार्ट तथा रेखाचित्रों को माध्यम बनाकर इस प्रकार की व्याख्या की जाती है । तीन प्रकार से यह गुणात्मक व्याख्या की जाती है।

1. प्रवाह चार्ट – परिमाणात्मक व्याख्या से प्राप्त आंकड़ों को घड़ी के अनुरूप चार्ट में अंकित किया जाता है। इसमें कुल आवृत्तियों की श्रेणी को ज्ञात किया जाता है। सामान्यतः (5 – 5) श्रेणी में सर्वाधिक आवृत्तियाँ देखी गई, परन्तु अन्य श्रेणियों में भी आवृत्तियों की सम्भावनाएं होती हैं। प्रवाह चार्ट बनाने में सभी श्रेणियों को शामिल किया जाता है। केवल निम्नतम आवृत्तियाँ निश्चित की जाती हैं।

2. बॉक्स प्रवाह चार्ट – घड़ी के अनुरूप प्रवाह चार्ट से शिक्षक के व्यवहार को समझने में कठिनाई होती है। इसलिए बॉक्स प्रवाह चार्ट द्वारा शिक्षण व्यवहार को पथक – पथक किया जाता है। इसमें वर्ग तथा संकेत छोटे – बड़े, मोटे – पतले बनाये जाते हैं जिनसे प्रत्येक व्यवहार की स्थिति स्पष्ट हो जाती हैं। इसमें निर्धारित आवृत्तियों को ही अंकित किया जाता है ।

3. अन्तःक्रिया प्रतिमान – फ्लैण्डर्स ने शिक्षण व्यवहार की गुणात्मक व्याख्या के लिए अन्तःक्रिया प्रतिमान विकसित किया। इसमें शिक्षण व्यवहार की व्याख्या निष्पत्ति के सन्दर्भ में की जाती है। निर्धारित क्रम के अनुसार शिक्षण की अनक्रिया को प्रवाह सिद्धान्त के अनुरूप, आव्यूह (कुल आवृत्तियाँ) की सहायता से बाह्य शाब्दिक व्यवहार को व्यक्त किया जाता है ।

फ्लैण्डर की आधारभूत मान्यतायें :

1. शिक्षक के व्यवहार का कक्षा में निरीक्षण, अंकन तथा मापन वस्तुनिष्ठ रूप में किया जा सकता है।

2. शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक – छात्रों का सम्बन्ध महत्त्वपूर्ण होता है।

3. शिक्षक के व्यवहारों से छात्र प्रभावित होता है।

4. शिक्षक का जनतन्त्रात्मक व्यवहार अधिक पसन्द किया जाता है।

5. शिक्षक का कक्षा व्यवहार छात्रों को अधिक प्रभावित करता है। छात्र व्यवहार, शिक्षकों के व्यवहार से प्रभावित होता है।

6. कक्षा में शाब्दिक व्यवहार का प्रयोग (प्रदर्शन) अधिक किया जाता है। शाब्दिक व्यवहार कक्षा के सम्पूर्ण व्यवहार का प्रतिनिधित्व करता है।

7. शिक्षक का व्यवहार पृष्ठ – पोषण के प्रयोग से सुधारा जा सकता है।

8. शिक्षण में कक्षा का वातावरण भी महत्त्वपूर्ण होता है।

फ्लैण्डर की अन्त:क्रिया विश्लेषण की विशेषताएं

1. यह कक्षा शिक्षण निरीक्षण की एक वस्तुनिष्ठ विधि मानी जाती है।

2. इसके द्वारा कक्षागत शिक्षण – व्यवहार के स्वरूपों तथा क्षेत्रों का अभ्यास किया जाता है।

3. शिक्षण व्यवहार परिवर्तन हेतु इस विधि को पृष्ठ पोषण के रूप में प्रयोग किया जाता है।

4. कक्षा – शिक्षण के मूल्यांकन की यह विश्वसनीय विधि है।

5. इसके द्वारा शिक्षक – व्यवहार सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है।

6. शिक्षण अभ्यास के समय इस विधि द्वारा अपेक्षित शिक्षण व्यवहार की जानकारी छात्राध्यापकों को दी जा सकती है।

7. यह कक्षा शिक्षण मूल्यांकन की एक विश्वसनीय विधि है।

8. सूक्ष्म शिक्षण में इसका प्रयोग सहायक विधि के रूप में किया जाता है।

9. यह प्रणाली में शिक्षक का संप्रत्यय स्पष्ट करती है जिससे शिक्षक अपने व्यवहारों में परिवर्तन लाकर शिक्षण को प्रभावशाली बनाता है।

10. शिक्षण के स्वतन्त्र तथा आश्रित पक्षों का विवेचन करना सम्भव है।

11. इस प्रणाली से शिक्षण प्रशिक्षण में छात्राध्यापकों तथा सेवारत शिक्षकों के शिक्षण – व्यवहार में परिवर्तन लाकर उनकी शिक्षण कुशलता को बढ़ाया जा सकता है।

12. इस प्रणाली में शिक्षण का शिक्षण – विश्लेषण किया जाता है, जिससे शिक्षक अपना मूल्यांकन कर अपने गुण दोषों की जानकारी प्राप्त कर अपने दोष दूर करने में समर्थ हो सकते हैं।

13. विभिन्न शोध कार्यों में यह बहुत लाभकारी सिद्ध हुयी है।

14. शिक्षण तथा शिक्षक, दोनों में सुधार यह विधि लाती है।

15. यह वैज्ञानिक तथा वस्तुनिष्ठ विधि है।

16. कृत्रिम वातावरण में भी इसका प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

17. यह सूक्ष्म से सूक्ष्म व्यवहार का निरीक्षण करने में समर्थ हैं।


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