शिक्षण मशीन की अवधारणा का वर्णन कीजिए।

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शिक्षण मशीन :

प्रोफेसर एस.एल. प्रेमी को शिक्षण मशीन का प्रवर्तक माना जाता है। यद्यपि प्रारम्भ में बी.एफ. स्किनर ने अनुदेशन के प्रस्तुतीकरण के लिए एक मशीन का निर्माण किया था। प्रेसी ने यह आविष्कार 1927 में किया।

शिक्षण मशीन एक ऐसी यान्त्रिक विद्युत – युक्ति है जो शिक्षण प्रकरण को पूर्व निश्चित क्रम से प्रस्तुत करती है। इसमें छात्रों को प्रश्नों के उत्तर देने के अवसर दिये जाते हैं और उसे तुरन्त प्रतिपुष्टि प्रदान की जाती है । इसमें ज्यादातर मशीन का संचालन छात्र के हाथ में रहता है |

शिक्षण मशीन कई प्रकार की होती है। यह कार्ड बोर्ड से लेकर बहुत ही जटिल इलेक्ट्रॉनिक्स मशीनों तक होती हैं। शिक्षण मशीनों से सीखने की विभिन्न प्रक्रियाओं में विशेष सहायता मिलती है। शिक्षण मशीन विभिन्न आकार व सामग्री की होती हैं। कुछ मशीनों में माइक्रो फिल्म डिवाइस भी लगी होती है।
शिक्षण मशीनों के प्रकार

शिक्षण मशीनें दो प्रकार की होती हैं –

1. बहुचयन मशीन

2. रचित उत्तरयुक्त मशीन

1. बहुचयन मशीन :

शिक्षण मशीन छात्रों को स्व – अध्ययन करने के अवसर प्रदान करती है। छात्र इसमें अपनी गति के अनुसार ज्ञान प्राप्त करता है। यह व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों प्रकार के शिक्षण के लिए उपयोगी है।

इस प्रकार की मशीनों में प्रत्येक प्रश्न के लिए कई उत्तर दिये होते हैं। छात्रों को सही/सर्वोत्तम उत्तर का चयन करना होता है ।

2. रचित उत्तरयुक्त मशीन :

सामान्यतः यह चार प्रकार की होती हैं –

(a) ग्लाइडर मशीन – इसका विकास स्किनर ने किया था। इसमें प्रकरण या प्रश्न प्रस्तुत किये जाते हैं और छात्रों को सही उत्तर देने के लिए ग्लाइडर को संचालित करना होता है |

(b) डिस्क मशीन – इसमें एक बड़े पेपर पर Programmed Learning Material छपा हुआ होता है । प्रश्नों के प्रदर्शन हेतु डिस्क को घुमाया जाता है । छात्र अपना उत्तर मशीन के पेपर टेप पर लिखकर देते हैं।

(c) टाइपराइटर मशीन – इस मशीन में कम्प्यूटर से जुड़ा टाइपराइटर होता है, जिसका प्रयोग करके छात्र प्रश्नों के उत्तर देते हैं । कम्प्यूटर दिये गये उत्तर की जाँच करता है और छात्रों को बताता है कि उनका उत्तर सही है या नहीं। इसी प्रकार यह कार्य करता चला जाता है ।

(d) श्रव्य – दृश्य संयोग मशीन – इस प्रकार की मशीनों में टेप – रिकॉर्डर तथा टेलीविजन सैट का प्रावधान होता है । ये मशीनें अन्य प्रकार की मशीनों की तुलना में ज्यादा महँगी, पर ज्यादा उपयोगी होती हैं।

शिक्षण मशीन के लाभ :

शिक्षण मशीन से प्राप्त शैक्षिक लाभ इस प्रकार हैं –

1. शिक्षण मशीन वैयक्तिक अनुदेशन तथा स्व – शिक्षा प्रदान करने में बहुमूल्य सहयोग देती है। ट्यूटोरियल प्रणाली पर आधारित होने के कारण यह एक सफल ट्यूटर की भूमिका भली प्रकार निभा सकती है। इस प्रकार के वैयक्तिक शिक्षण प्रदान करने में इसकी कुछ विशेषतायें अनलिखित हैं –

(a) शिक्षण कार्य में छात्र अपनी स्वाभाविक गति से आगे बढ़ सकते हैं। इससे जहाँ कुशाग्र बुद्धि वालों को अन्य के लिए रुकना नहीं पड़ता, वहीं धीमी गति से सीखने वालों को भी व्यर्थ में ही निराश और परेशान नहीं होना पड़ता।

(bb) छात्रों को उनकी रुचि, योग्यता और आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षण प्रदान किया जा सकता है।

(c) शिक्षण मशीन में अपूर्व धैर्य और चुस्ती होती है। इस कार्य में कोई भी सजीव अध्यापक उसकी तुलना नहीं कर सकता । यह जहाँ छात्रों द्वारा दिये गये उत्तरों को तुरन्त सही या गलत बता सकती है तथा उत्तर के गलत होने पर उपयुक्त सुझाव या संकेत प्रदान कर सकती है, वहीं छात्रों द्वारा बार – बार गलत उत्तर देने पर भी विचलित नहीं होती बल्कि बड़े धैर्य के साथ उन्हें शिक्षण पथ पर आगे ले जाने के गम्भीर प्रयत्न करती रहती है।

(dd) शिक्षण मशीन छात्रों को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निरन्तर सजग एवं क्रियाशील बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(ee) छात्रों को अधिगम कार्य में अपनी उत्तरोत्तर सफलता का सही और तुरन्त ज्ञान इनके द्वारा आसानी से कराया जा सकता है।

(ff) शिक्षण मशीन को अपनी इच्छानुसार चालू या बन्द किया जा सकता है। अतः अपनी सुविधानुसार कभी भी अपना मनचाहा शिक्षण कार्य सम्पन्न करने में शिक्षण मशीन छात्रों की बहुत सहायता कर सकती है।

(gg) पुनरावृत्ति एवं अभ्यास कार्य के सफल सम्पादन में तथा छात्रों की आवश्यकतानुसार उन्हें उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करने में इनके द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जा सकती है।

2. शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत निर्देशन और परामर्श की समस्या को सफलता से सुलझाने में शिक्षण मशीन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

3. शिक्षण में मानवीय स्रोतों की कमी को पूरा करने में शिक्षण मशीन बहुमूल्य सहयोग दे सकती है। शिक्षकों की बढ़ती हुई माँग को जहाँ इनके द्वारा पूरा करने में सहायता मिल सकती है वहाँ उनके कार्यभार को हल्का करने में भी इनका पर्याप्त सहयोग मिल सकता है। परम्परागत शिक्षण कार्य को शिक्षण मशीन पर छोड़कर अध्यापक को छात्रों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने तथा सम्पूर्ण हित – चिन्तन के बारे में कार्य करने का पर्याप्त समय तथा शक्ति उपलब्ध हो सकती है।

कक्षा – शिक्षण में मशीन के प्रयोग को लेकर काफी कुछ शंकाओं और दुराग्रहों का निवारण भी आवश्यक है । प्राय: यह सोचा जाता है कि (a) इनके प्रयोग से अध्यापक बेकार हो जायेंगे,(b) शिक्षण प्रक्रिया में जड़ता, यांत्रिकता या मशीनीपन आ जाएगा,(c) शिक्षण मशीनों को खरीदने तथा उनकी देखरेख करना खर्चीला सिद्ध होगा तथा (d) छात्रों में मानवीय गुणों का विकास करने तथा उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने में बाधा आयेगी।

शिक्षण मशीन कितनी भी अच्छी तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल तथा प्रभावशाली बनाने वाली हो, वह शिक्षक का स्थान कभी भी नहीं ले सकती । शिक्षण मशीन को प्रभावशाली ढंग से संचालित करने के लिए, उसके लिए शिक्षण सामग्री तथा प्रश्न आदि तैयार करने के लिए अध्यापक की आवश्यकता सदैव रहेगी।

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