व्याख्या कौशल को स्पष्ट कीजिये।

Estimated reading: 1 minute 65 views

दैनिक जीवन में हम लोगों को विभिन्न विचारों अथवा घटनाओं की व्याख्या करते हए पाते हैं। कछ लोग भली तरह व्याख्या कर समझा पाते हैं जबकि कछ ऐसे भी होते हैं जिनकी बात ही समझ में नहीं आती। वे सभी बातों को गड्डमड कर देते हैं। इसका कारण है कि वे अपने विचारों को तर्कपूर्ण क्रम से पेश नहीं कर पाते या अप्रासंगिक विवरण देते हैं तथा प्रासंगिक को छोड़ देते हैं। अध्यापन में सभी कक्षाओं में,चाहे वे निम्न हों या ऊंची, अध्यापकों को विभिन्न विचारों,घटनाओं तथा संप्रत्ययों की व्याख्या करनी पड़ती है । यह अध्यापन कला का एक मुख्य कौशल है । सभी अध्यापक हमेशा इसका उपयोग करते हैं।

छात्र को जब अध्यापक द्वारा कही गई कोई बात समझ में नहीं आती तो वह अध्यापक से इसके विषय में पूछता है । अध्यापक को कही हुई बात की व्याख्या कर छात्र को समझाना पड़ता है । यह व्याख्या किस तरह की जाये कि छात्र भली प्रकार समझ सके?

किसी विचार, घटना अथवा संप्रत्यय के संबंध में जब कोई अध्यापक ‘क्यों’ कैसे’ तथा कभी – कभी ‘क्या’ का उत्तर देता है तो वह निस्संदेह व्याख्या कर रहा है। व्याख्या की परिभाषा में कहा जा सकता है कि वह ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति में एक संप्रत्यय, सिद्धांत, घटना या विचार के विषय में जो ज्ञान की कमी है उसे पूरा किया जाये। यह उसके पूर्वज्ञान, घटना अथवा सिद्धांत का स्वरूप तथा इन दोनों के आपसी संबंधों पर निर्भर करता है । यह संबंध कारण – क्रिया आदि से चलकर घटना, घटित क्रिया, स्थिति आदि परिणाम तक जाती है, जिसको निम्न तरह दर्शाया जा सकता है –


अब प्रश्न उठता है कि सफल व्याख्या कैसे हो? इसके लिए कुशलता प्राप्त करनी है। विचार अथवा घटना आदि की व्याख्या करने के लिए आपको प्रश्नोत्तर का सहारा लेना पड़ेगा, दृश्य – श्रव्य साधनों का उपयोग करना होगा, इससे संबंधित विषयों अथवा बिन्दुओं पर आपको कई कथन कहने होंगे। इन विभिन्न विधियों का एक – एक कर अथवा एक साथ भी आपको उपयोग करना होगा ताकि आपकी व्याख्या प्रभावशील हो तथा छात्र आपकी बात भली – भाँति हृदयंगम कर सकें। व्याख्या कौशल के अभ्यास के लिए यहाँ सब कछ भलकर सि आपको विचार, घटना अथवा सिद्धांत से संबंधित कथनों का सहारा लेना होगा। इसमें ऐसी प्रश्नवाचक बातें भी हो सकती हैं जिनका तात्पर्य कभी भी यह नहीं होता कि इन प्रश्नों के उत्तर छात्रों से प्राप्त किये जायें । इनका अभिप्राय किसी बात को स्पष्ट करने से ही होता है |

व्याख्या के प्रमुख अंग हैं –

(1) वर्णनात्मक/कथनात्मक – अध्यापक विचार, घटना आदि से संबद्ध क्या तथा क्यों करता है। इसमें रचना, विधि, घटना तथा उनके सिद्धांत का विवरण दिया जाता है।

(2) व्याख्यात्मक प्रक्रिया छात्रों को विषय संबद्ध संप्रत्यय मिलती – जुलती घटना सामान्यीकरण के अर्थ पेश करता है। क्या तथा क्यों की विशद् व्याख्या की जाती है ।

(3) निष्कर्षात्मक व्याख्या घटित घटना के कारणों तथा तत्संबंधी सिद्धांतों के आधारों की व्याख्या/वर्णन पर आधारित है।

हर व्याख्या में उपरोक्त तीनों अंगों का होना जरूरी नहीं। इनमें से एक अथवा दो या इनके संयोगों का प्रयोग भी किया जा सकता है।

इस कौशल में ऐसी कुछ क्रियाएं हैं जिन्हें करने से व्याख्या स्पष्ट तथा प्रभावशील होती है जबकि कुछ ऐसी क्रियाएं भी हैं जिनके किये जाने से व्याख्या बोधगम्य नहीं होती एवं उसके प्रभाव का ह्रास होता है, ये हैं –

इष्ट व्यवहारअनभीष्ट व्यवहार
1. व्याख्या – कड़ियों (संगमों) का उपयोग1. अप्रासंगिक कथन
2. प्रारंभिक तथा समाप्ति कथन2. कथनों में सातत्य अभाव
3. छात्र बोध की जाँच3. उचित शब्दावली का अभाव
 4. सहजता का अभाव
 5. अस्पष्ट शब्दों तथा वाक्यांशों का प्रयोग।

व्याख्या कौशल में पारंगत होने हेतु जरूरी है कि इष्ट व्यवहारों में वृद्धि की जाये तथा अनभीष्ट व्यवहारों में कमी लाने के प्रयास किये जायें।

व्याख्या कौशल के घटक के रूप में छात्रों के बोध की जाँच से अभिप्राय है यह जाँच करना कि व्याख्या प्रभावशील है या नहीं। इससे अन्य घटकों में सहयोग से व्याख्या को प्रभावशील बनाने में मदद मिलेगी।

व्याख्या – कड़ियों का प्रयोग – व्याख्या में संबंध जोड़ने वाले शब्दों या वाक्यांशों का प्रयोग मंतव्य को स्पष्ट करने हेतु किया जाता है। ये ऐसे समुच्चय बोधक या संबंध सूचक होते हैं जो स्पष्टतया किसी घटना, संप्रत्यय, क्रिया तथा स्थिति आदि को कारण, परिणाम, तर्क, क्रम, काल, उद्देश्य आदि के संबंध बताते हैं। इनमें से कुछ ये हैं –

कारण है कि यह परिणाम है

इसकी क्रिया है      यह परिणाम है      इसकी क्रिया है

इसलिए ।          इसलिए कि         का प्रयोजन है

इसके परिणामस्वरूप इसके कारण        इसके उपरांत

इसलिए            क्या यदि           इससे पूर्वयह है कि जैसे      इस प्रकार          क्यों   – इत्यादि
प्रारंभिक तथा समाप्ति कथन – व्याख्या प्रारंभ करने से पहले छात्रों के मस्तिष्क को आकर्षित करने के लिए प्रारंभिक कथन कहे जाते हैं। इसी तरह अंत में भी व्याख्या पर्ण होने पर सारांश के रूप में कुछ समाप्ति स्वरूप कहा जाता है ताकि व्याख्या का अंत भी भला हो। इन कथनों का व्याख्या से भले ही सीधा संबंध न हो लेकिन उनका अच्छा प्रभाव होता है जिससे व्याख्या को समझने में सहयोग मिलता है।

प्रारंभिक कथन मानसिक रूप से छात्रों की व्याख्या हेतु तैयार करते हैं। समाप्ति कथन का सारांश पेश करते हुए प्रमुख बातों का वर्णन करते हैं जिससे उन्हें याद करना आसान हो जाता है।

छात्रो के बोध की जाँच – छात्र व्याख्यापित विषय को भली तरह समझ पाये हैं अथवा नहीं, यह जानने हेतु अध्यापक प्रश्न पूछता है । यदि अधिकांश छात्र उसके प्रश्नों के सही, उत्तर देते हैं तो समझा जा सकता है कि छात्र – बोध उचित है, अन्यथा पुनः व्याख्या करनी होगी तथा उसे ज्यादा प्रभावशाली बनाना होगा। व्याख्या बोधगम्य हो, यही इस घटक का उद्देश्य है।

अनभीष्ट व्यवहारों की व्याख्या करते हुए कम से कम किया जाना चाहिए क्योंकि ये प्रभावशाली व्याख्या में बाधक सिद्ध होते हैं, ये हैं –

अप्रासंगिक कथन – व्याख्या करते हुए, अगर ऐसे कथनों का उपयोग किया जाये जिनका व्याख्यापरक घटना, स्थिति या संप्रत्यय से कोई संबंध न हो, तो व्याख्या में बाधक सिद्ध होते हैं। इनसे छात्र – बोध पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा समय का भी अपव्यय होता है । इनसे भ्रम पैदा होता है।

सातत्य अभाव – व्याख्या करते हुए कई बार विचारक्रम में बाधा पैदा होती है। इस सातत्य बाधा के निम्न कारण हैं –

कोई ऐसा कथन जिसका पिछले कथन से कोई तर्कपूर्ण संबंध न हो।

पूर्वपठित विषय का उदाहरण दिये बगैर वर्तमान विषय से उसका संबंध बताये।

जब समय तथा स्थान का कोई अनुक्रम न हो।

जब कथन अप्रासंगिक हो।

जब उचित शब्दावली का प्रयोग न किया जाये।

सहजता का अभाव – जब अध्यापक व्याख्या देते हुए आधे वाक्यों का प्रयोग करता है अथवा अपने कथन बीच – बीच में बदलता जाता है,बोलते हुए गड़बड़ाता है,वाक्य आधे छोड देता है, एक बात बताते हुए दूसरी बात पर बिना पहली को पूरा किये आ जाता है तो सहजता में व्यवधान पैदा होता है तथा छात्र व्याख्या को भली तरह नहीं समझ सकते।

अस्पष्ट शब्दों तथा वाक्यांशों का प्रयोग – व्याख्या करते हुए कई बार अध्यापक ऐसे शब्दों अथवा वाक्यांशों का प्रयोग करता है जो यह दर्शाते हैं कि अध्यापक स्वयं स्पष्ट नहीं है तथा वह जो कहना चाहता है कह नहीं पा रहा है । अस्पष्ट शब्दों का अथवा संदिग्धता प्रदर्शित करने वाले वाक्यांशों के प्रयोग से व्याख्या में व्यवधान पैदा होता है। ऐसे कुछ शब्द हैं –

कुछ         बहुत        थोड़े से

कई         कुछ थोड़े     शेष

संभवतया     लगभग      प्रकार केवस्तुतः      वास्तव में    दिखता है कि आदि

व्याख्या कौशल में पारंगत होने हेतु जरूरी है कि व्यवहारों में वृद्धि की जाये तथा अनभीष्ट व्यवहारों में कमी।

इस कौशल का मूल्यांकन दो तरह की अनुसूचियों की मदद से किया जा सकता है ।

Leave a Comment

CONTENTS