प्रश्न सहजता कौशल को स्पष्ट कीजिये।

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आदि काल से ही मानव जिज्ञासा की संतुष्टि प्रश्न उत्तर से ही होती रही है। आज भी छात्र प्रश्न पूछते हैं, अध्यापक उत्तर देता है । अध्यापक छात्रों से प्रश्न पूछता है कि यह जानने हेतु कि उन्होंने कितना ज्ञान ग्रहण किया। शिक्षक पाठ्य – वस्तु के प्रति जिज्ञासा पैदा करने हेतु भी प्रश्न पूछता है। अध्यापक प्रश्नकला का आमतोर पर प्रयोग करता है। इस कला के कई पक्ष हैं ‘सहजता’ उनमें से एक है। प्रश्नकला में प्रवीण शिक्षक भली तरह अध्यापन कार्य कर सकता है। प्रश्न सहजता में प्रश्न की संरचना, प्रक्रम तथा उत्पाद तीनों का ध्यान रखा जाता है।

<b>प्रश्न की संरचना – </b> इसमें प्रश्न की व्याकरण संबंधी संरचना तथा उसके विषय – वस्तु से संबद्ध स्वरूप पर ध्यान दिया जाता है। अच्छी संरचना से अभिप्राय प्रश्न की –

(अ) स्पष्टता तथा व्याकरणिक शुद्धता,

(ब) संक्षिप्तता,

(स) प्रासंगिकता,

(द) विशिष्टता से है।

व्याकरणात्मक शुद्धता का अर्थ है कि अध्यापक द्वारा प्रश्न में जो भाषा प्रयोग की जाए, वह शुद्ध होनी चाहिए । अशुद्ध भाषा छात्रों को भ्रम में डाल देगी तथा उनके उत्तर आने में कठिनाई होगी अथवा उत्तर गलत होंगे। उन्हें प्रश्न को भली तरह समझने में काफी समय लगेगा। इससे प्रश्न सहजता में व्यतिरेक पैदा होगा। अध्यापक को प्रश्न निर्माण में स्पष्ट तथा शुद्ध भाषा का ही उपयोग करना चाहिए। सही प्रश्नों के उत्तर तुरंत तथा सहजता से प्राप्त होत हैं वहीं अशुद्ध प्रश्नों में छात्र उलझकर रह जाते हैं।

प्रश्न की संक्षिप्तता से अभिप्राय प्रश्न की लंबाई से है। ऐसे प्रश्नों में कोई भा शब्द व्यर्थ नहीं होता। प्रश्न सीधा स्पष्ट तथा कम से कम उत्तर की अपेक्षा करने वाला होता है। अगर प्रश्न हेर – फेर कर लंबी बात कहते हए पछा गया तो समझने में काफी देर लगता है तथा उसका उत्तर भी छात्र हेर – फेर कर लंबा देने का प्रयास करते हैं। संक्षिप्त प्रश्न सुबोध, सुगम तथा प्रत्यक्ष होते हैं इसलिए उनके उत्तर संक्षिप्त और तत्काल दिये जाते हैं। प्रश्न सहजता के लिए संक्षिप्त प्रश्न ही पूछे जाने चाहिए।

प्रश्न प्रासंगिकता का अर्थ है कि पछे गये प्रश्न पाठ की विषय – वस्तु से सीधे संबद्ध हों। अप्रासंगिक प्रश्न ऐसे होते हैं जिनमें ऐसी शब्दावली का प्रयोग हो जिसकी व्याख्या पूर्व में न की गई हो। अध्यापकों को प्रासंगिक प्रश्न पूछने चाहिए ताकि छात्र तुरंत उत्तर दें। इस तरह अध्यापक और ज्यादा प्रश्न पूछ सकेगा जिससे अधिक तथा प्रभावशाली अध्यापन संभव होगा।

उपरोक्त सभी गुणों के साथ – साथ प्रश्नों में विशिष्टता भी होनी चाहिए। विशिष्ट प्रश्नों का एक ही सही उत्तर होता है, उत्तर देने में मतभेद की गुंजाइश नहीं होती। इससे प्रश्न सहजता का विकास होता है।

<b>प्रश्न प्रक्रम – </b>

<b>प्रश्न प्रक्रम से तात्पर्य है प्रश्न पूछने की प्रक्रिया, जैसे – </b>

<b> (अ) प्रश्न पूछने की गति –</b>  अध्यापक को न तो बहुत तेजी से तथा न ही बहत धीमी गति से प्रश्न पूछने चाहिए। उसकी गति इतनी हो कि छात्रों को समझने, सोचने तथा उत्तर देने का पर्याप्त समय व अवसर प्राप्त हो सके। अध्यापक को जल्दी – जल्दी एक के बाद एक बहुत – से प्रश्न नहीं पूछने चाहिए। बीच – बीच में अगर अध्यापक द्वारा कथन, व्याख्या आदि हो तथा प्रश्न भी पूछे जायें तो बहुत उपयोगी होगा।

<b> (ब) अध्यापक वाणी –</b>  प्रश्न प्रक्रम का एक अन्य जरूरी तत्व है कि अध्यापक की वाणी स्पष्ट सुनी जा सके तथा कक्षा में बैठे सभी छात्रों को सुनाई दे। अध्यापक अपने स्वर को ऊंचा – नीचा कर प्रश्न के भाव को स्पष्ट कर सके। इस तरह छात्र अध्यापक को प्रश्न दोहराने पर बाध्य नहीं करेंगे।

<b> (स) प्रश्न दोहराना –</b>  अध्यापक द्वारा अपने प्रश्नों को दोहराना श्रेयस्कर नहीं है। ऐसा होने पर अगली बार छात्र पहली बार पूछे गये प्रश्न को ध्यान से नहीं सुनेंगे। दूसरे, अगर अध्यापक एक प्रश्न पूछकर फिर उसे बदलकर पुन: पूछेगा तो छात्रों में भ्रम पैदा होगा तथा उन्हें उत्तर देने में कठिनाई होगी। साथ ही प्रश्न दोहराने से समय व्यर्थ होता है।

<b> (द) छात्र उत्तर दोहराना – </b> कछ अध्यापक छात्रों द्वारा दिये उत्तर दोहराते हैं। इससे छात्रों को प्रोत्साहन तो मिलता नहीं वरन् व्यतिरेक पैदा होता है। छात्रों के उत्तरों को दोहराना नहीं चाहिए।

<b> (य) प्रश्न उत्पाद –</b>  प्रश्न की उपयोगिता द्विगुणित हो जाती है जब उसके उत्तर में छात्र अपनी बात कहते हैं। उत्पाद से अभिप्राय छात्र उत्तरों से है। छात्र कभी – कभी प्रश्नों के उत्तर नहीं देते जिसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे – छात्र इतने बुद्धिमान न हों कि प्रश्न समझ पायें या प्रश्न उनके बौद्धिक स्तर से ऊंचे स्तर के हों, पाठ में उनकी अभिरुचि न हो, उनमें पूर्वज्ञान का अभाव हो, छात्रों तथा अध्यापक में सामंजस्य न हो।

<b> (र) प्रश्न सहजता-</b> से अभिप्राय निश्चित समय इकाई में अधिक से अधिक अर्थपूण प्रश्न पूछे जाने से है। प्रश्न अर्थपूर्ण तभी होते हैं जब उनमें ये गुण हों – उनकी भाषा शुद्ध हो, प्रासंगिक हो, विशिष्ट तथा संक्षिप्त हो, उचित प्रक्रिया से पूछे गये हों – अर्थात् उनकी गति उचित हो, स्वर स्पष्ट हों, उचित ढंग से कहे जायें । प्रश्नों के उत्तर छात्र ढंग से दे पायें इसके लिए उन्हें प्रश्न समझ आने चाहिए एवं अध्यापक तथा छात्रों में सामंजस्य हो।

प्रश्न सहजता के पर्यवेक्षण तथा आवृत्ति अंकन हेतु निम्न अनुसूचियों का उपयोग किया जाता है –

पर्यवेक्षण अनुसूची : प्रश्न सहजता (1)

दिनांक________ समय________अध्यापन

छात्राध्यापक ________ रोल नं. ________

पाठ________ कक्षा________ पुनरध्यापन

पर्यवेक्षक____________________

निर्देश –  प्रश्नों को क्रम से अंकित करते जायें तथा उनके आगे दिये कॉलमों में संरचना. प्रक्रम के मूल्यांकन संबंधी संकेत लिखें ।

कॉलम – 2        संरचना मूल्यांकन संबंधी संकेत –

1. व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध

2. प्रासंगिक

3. विशिष्ट

4. संक्षिप्त

कॉलम – 3        प्रकम मूल्यांकन संबंधी संकेत –

प्रश्न 1. उचित गति से बोला गया।

प्रश्न 2. आवाज सुनाई देती थी तथा उचित गहनता लिए थी।

कॉलम – 4        सहजता को प्रभावित करने वाले तथ्यों संबंधी संकेत –

प्रश्न 1. प्रश्न दोहराये गये।

उत्तर 2. छात्रों के उत्तर दोहराये।कॉलम – 5        अर्थपूर्ण प्रश्न होने पर इस कॉलम में सही (Ö) का चिन्ह लगावें । अगर प्रश्न अर्थपूर्ण न हो तथा प्रासंगिक हो तो इस कॉलम में (×) का चिन्ह लगायें। <br>

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