विन्यास प्रेरण कौशल (पाठ प्रारंभन कौशल) को स्पष्ट कीजिये।

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अंग्रेजी में एक कहावत है कि अच्छा प्रारंभ हो तो आधा काम हुआ समझिये । इसी तरह अगर अध्यापक पाठ का प्रारंभ भली तरह कर पाये तो उसके पाठ की सफलता निश्चित – सी हो जाती है।

जब भी कोई अध्यापक नया पाठ या इकाई शुरू करता है तो अपेक्षा की जाती है कि यह पहले उस पाठ का संक्षिप्त परिचय देगा ताकि छात्रों का ध्यान पाठ पर केन्द्रित हो जाये। पाठ – योजना तथा पाठ उद्देश्य लेखन के समय पाठ की यह भूमिका छात्रों की उपस्थिति के बगैर तैयार की जाती है, लेकिन पाठ प्रारंभन में उसे छात्र समुदाय के साथ ‘विन्यास प्रेरण’ करना होता है। यह कौशल कुछ ऐसी क्रियाओं पर आधारित है जिन्हें करने से अच्छा विन्यास प्रेरण होना तथा कुछ ऐसी क्रियाएं हैं जिन्हें न करने अथवा जिन्हें कम से कम करने से ही विन्यास प्रेरण में सफलता मिलेगी अर्थात् वे बाधक तत्व हैं। इस कौशल में निम्न का ध्यान रखना जरूरी है –

(वांछित व्यवहार)

1. पूर्वज्ञान का उपयोग – नया पाठ शुरू करते समय पूर्वज्ञान से संबंध स्थापित करने से नये पाठ के प्रति अभिरुचि जाग्रत होगी तथा छात्रों को ज्ञात से अज्ञात की तरफ ले जाने में विशेष कठिनाई न होगी।

2. उचित युक्तियों तथा साधनों का उपयोग – विन्यास प्रेरण (पाठ प्रारंभन) साधारण प्रश्नों से किया जाता है। अध्यापक पूर्वज्ञान पर कुछ प्रश्न पूछता है, छात्र उत्तर देते हैं, फिर अंध्यापक नये पाठ से संबंधित प्रश्न पूछता है जिसका छात्र उत्तर देने में असमर्थ होते हैं। इसी समय अध्यापक उद्देश्य कथन करता है कि आज हम अमुक पाठ पढ़ेंगे। कुछ अध्यापक कहानी सुनाकर पाठ शुरू करते हैं। कुछ कविता का अंश सुनाते हैं, कुछ चित्र या वस्तु या मॉडल दिखाकर प्रश्न पूछते हुए पाठ का प्रारंभ करते हैं। इस तरह पाठ प्रारंभन की कई युक्तियाँ हैं। अध्यापक उपयुक्त युक्ति का उचित रीति से उपयोग करे, यही इस उप – कौशल का उद्देश्य है । इन उप – कौशल में प्रयोग की जाने वाली युक्तियाँ इस तरह हैं –

(क) उदाहरण, दृष्टांत आदि

(ख) प्रश्न

(ग) कहानी

(घ) नाट्यकरण या भूमिका निर्वाह

(ङ) दृश्य – श्रव्य साधनों का उपयोग

(च) प्रयोग/प्रदर्शन ।

(अवांछित व्यवहार)

निम्न क्रियाएं, विन्यास प्रेरण में बाधक होती हैं, यह न की जायें अथवा कम की जायें –

(अ) सातत्य की कमी – जो विचार/विषयवस्तु पहले पढ़ाये जा रहे थे उनसे संबद्ध विषय पढ़ाने से अथवा उनके क्रम में ही आगे पढ़ाने से सातत्य गुण प्राप्त किया जा सकता है।

(ब) अप्रासंगिक कथन या प्रश्न पूछना – अध्यापक को वही प्रश्न पूछने या विवरण देने चाहिए जो पाठ्य – वस्तु से संबंध रखते हों। प्रासंगिक प्रश्न तथा कथन तो विन्यास प्रेरण में मददगार होते हैं एवं अप्रासंगिक कथन तथा प्रश्न बाधक होते हैं। इन्हें जितना कम किया जाये उतना ही उपयोगी होगा।

‘विन्यास् प्रेरण’ कौशल की जाँच हेतु दो तरह के अनुसूची प्रपत्र बनाने होंगे। एक यह दर्शाएगा कि कौन से उप – कौशल का कितनी बार प्रयोग किया गया तथा दूसरा इस उपकौशल के गुणात्मक मूल्यांकन में मददगार होगा।

पर्यवेक्षक ________

(कौशल घटकों के सामने ‘बिल्कुल नहीं से बहुत अधिक’ के नीचे 0 से 6 तक अंक दिये हैं। इनका गुणात्मक मूल्यांकन संबंधी अंक पर घेरा लगाकर करें।)

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