अध्यापन कौशल के प्रमुख घटकों का वर्णन करते हुए इसे स्पष्ट कीजिये।

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जब से अध्यापन को एक संपूर्ण प्रक्रिया की बजाय विभिन्न अध्यापन कौशल्य का समह समझा जाने लगा तब से ही कौशल आधारित अध्यापन का विस्तार शुरू हुआ। सूक्ष्म अध्यापन की नींव अध्यापन – प्रक्रिया को विभिन्न घटक कौशल्य पर आधारित मानने तथा एक – एक कौशल का अलग – अलग अभ्यास करने की क्षमता पर आधारित है तथा अध्यापन प्रक्रिया के जानने तथा समझने में यह घटक कौशल विधि ज्यादा वास्तविक सिद्ध हुई एवं शोधकर्ता इसका अध्यापन की संपर्णता तथा उसके विस्तृत स्वरूप की बजाय ज्यादा उपयोग करने लगे क्योंकि इसका स्वरूप ज्यादा स्पष्ट तथा निश्चित है । इन अध्यापन कौशल्य का अलग – अलग या एक साथ अभ्यास करना संभव है। एक – एक कौशल के अलग – अलग अभ्यास की आलोचना अतिव्यवहार – आधारित होने से की गई है। ऐसा समझा जाता है कि इस तरह अभ्यास करने से अध्यापक को उचित कौशल का उचित समय पर उपयोग करना नहीं आsता । घटक कौशल के सिद्धांत के कारण कई व्यर्थ प्रयत्न भी हए हैं। कई शोधकर्ता तो अध्यापन व्यवहार की आवृत्ति ही गिनते हैं तथा छात्र उपलब्धि से उसकी तुलना का निष्कर्ष निकालने का प्रयास करते रहते हैं | जरूरत यह जानने की है कि अध्यापक कहाँ तक इन अध्यापन कौशल्य का सही तथा उपयुक्त प्रयोग करते हैं।

अच्छे तथा सामान्य अध्यापक दोनों ही निर्देशन करते हैं, पर अच्छे अध्यापकों का निर्देशन प्रभावशील होता है। अध्यापन व्यवहार के विभिन्न कौशल्य की आवृत्ति गणना के साथ – साथ इनके औचित्य तथा प्रभावशीलता पर भी ध्यान देना वांछित है।

सूक्ष्म अध्यापन की सबसे बड़ी समस्या कौशल चयन है । कौशल चुनना तभी संभव होगा जबकि यह ज्ञात हो कि कौन से कौशलों से प्रभावशील अध्यापन संभव होता है। जरूरत अब इस बात की है कि इन अध्यापन कौशल्य का गूढ़ अध्ययन कर इनका विखंडन किया जाये तथा इनके प्रभुत्व क्षेत्र का निर्धारण भी किया जाये । इसी कारण अब सूक्ष्म अध्यापन पाठों में मूल विषय – वस्तु को प्रधानता देने के प्रयास हो रहे हैं।

अध्यापन कौशल की परिभाषा

अध्यापक प्रभावशीलता तथा अध्यापन के विश्लेषणात्मक विधि के प्रवर्तकों ने अध्यापन कौशल्य की परिभाषा तथा उनकी सूची भी पेश करने के प्रयास किये हैं।

क्लार्क (1970) के अनुसार, अध्यापन उन क्रियाओं पर आधारित है जो छात्र – व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए नियोजित तथा क्रियान्वित किये जायें।

कामीसार (1966) ने स्पष्ट किया है कि अध्यापन में जो विभिन्न विशिष्ट क्रियाएं शामिल होती हैं, वे हैं – प्रारंभ, प्रदर्शन, उदाहरण, प्राक्कल्पन, आवेदन, अंदाज करना, संपुष्टि तुलना, व्याख्या प्रश्न आदि।

ब्राउन (1975) अध्यापन की बहुपक्षी क्रिया के रूप व्याख्या करते हुए निम्न कौशल्य को उसका अंग बताते हैं – प्रश्न, सूचना, सुनना तथा ऐसी ही अन्य अर्थात अध्यापन कई शाब्दिक तथा अशाब्दिक क्रियाओं पर आधारित है। जैसे – प्रश्न पूछना, छात्रों को उत्तर स्वीकार करना, प्रतिफलन, मुस्कान, सिर हिलाना, गति, हाव – भाव आदि । अध्यापन में इन सभी क्रियाओं के उचित तथा विशिष्ट समष्टीकरण से छात्र विकास के उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। संबंधित अध्यापन क्रिया या व्यवहार विन्यास जिनका उद्देश्य छात्र अधिगम हो, अध्यापन कौशल कहलायेंगे।

ब्रिटेन के स्टिर्लिंग विश्वविद्यालय के मैकइण्टायर और व्हाईट ने अध्यापन के तकनीकी कौशल की व्याख्या करते हुए कहा है – “यह तकनीकी कौशल संबद्ध अध्यापन – व्यवहार का विन्यास है जो विशिष्ट अंतरक्रिया स्थितियों में कक्षा में निश्चित शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति में मददगार हो।”

अध्यापन – प्रक्रम का यह विश्लेषणात्मक स्वरूप अध्यापक प्रशिक्षण में तथा अध्यापन – क्रिया के सीखने में बहुत ही सहायक सिद्ध होता है। एलन (1966) ने स्पष्ट किया था कि विभिन्न प्रतिनिधि अध्यापन कौशल्य की पहचान तथा इन छोटे – छोटे कौशलों पर अध्यापक प्रशिक्षण में ध्यान और समय देने से अध्यापक मात्र इन्हीं कोशलों का ही नहीं वरन साधारण अध्यापन योग्यता का भी विकास करता है। छात्र अध्यापकों में अध्यापन कौशल के विकास से उनकी अध्यापन योग्यता का विकास संभव है।

अध्यापन प्रक्रिया के विभिन्न घटक कौशल्य का विवरण 1969 में एलन तथा रियान ने 14 घटक कौशल के रूप में दिया। बोर्ग तथा अन्य ने 1970 में 18 कौशल्य खोज निकाले । फ्लैंडस्र (1973) ने संप्रत्ययकृत कथन तथा श्रवण को ध्यान में रखकर कक्षान्तर्गत अंतरक्रिया के आधार पर अध्यापन कौशल्य का वर्गीकरण किया।

अध्यापन कौशल्य के इन सभी विवरणों तथा वर्गीकरणों को ध्यान में रखकर अब सामान्य 22 कौशल्य का निर्धारण किया गया है, जो इस तरह हैं –

अध्यापन कौशल्य का उपरोक्त विवरण वर्गीकृत है। पाठ के स्तर की दृष्टि से इन्हें नियोजन. प्रस्तुतीकरण, समाप्ति तथा प्रबंधातमक वर्गों में रखा गया है। पाठ में प्रमख भमिका निर्वाह की दृषि से इन्हें नियोजन, सहभागिता प्रेरण,संप्रेषण,सहभागिता प्रोत्साहन,ध्यान आकर्षण. स्थायीकरण, परिष्करण तथा मूल्यांकन एवं प्रबंधन वर्गों में विभाजित किया जाता है ।

इन कौशल्य का एक – दूसरे से तथा आपस में जो संबंध है वह निम्न प्रतिमान से स्पष्ट होता है –

विभिन्न विषयों के विशिष्ट अध्यापन कौशल्य

माध्यमिक स्तर अथवा भौतिकशास्त्र के अध्यापन में रमा (1978) ने निम्न कौशल्य की पहचान की –

1. सामान्य अध्यापन क्षमता

2. अध्यापक की छात्रों में रुचि

3. दृश्य – श्रव्य साधनों का.उपयोग

4. व्यावसायिक प्रत्यक्षण

5. कार्य देयन

6. दृष्टांत कला

7. विन्यास प्रेरण सहित पाठ गति

8. तर्कसंगत व्याख्या

9. कक्षा प्रबंध

10. प्रश्नों का उपयोग

11. छात्र सहभागिता प्रेरण

12. श्यामपट उपयोग

13. छात्र व्यवहार अभिज्ञान

14. पाठ समापन

गणित के अध्यापन में श्रीमती शुक्ल तथा श्रीवास्तव (1984) ने निम्न मुख्य कौशल्य उनके घटक उपकौशल्य की पहचान की –

1. संप्रत्यय अध्यापन कौशल

(1) लक्षण की पहचान

(2) महत्वपूर्ण लक्षणों को प्रमुखता देना

(3) वर्गीकरण

(4) संप्रत्यय अधिगम की जाँच

2. सिद्धांत निर्माण का कौशल

(1) सिद्धांत के प्रतिरूप संप्रत्यय की पहचान

(2) घअक संप्रत्यय स्मरण

(3) घटक संप्रत्यय जोड़ना

(4) अभ्यास देना

3. अधिष्ठापन (प्रेरण) कौशल

(1) साधारण दृष्टांत देना

(2) संबद्ध दृष्टांत देना

(3) रुचिकर दृष्टांत देना

(4) उपयुक्त साधन का उपयोग

(5) पर्याप्त संख्या के अभ्यास देना

(6) निष्कर्ष निकालना

4. निगमन कौशल

(1) नियम बताना

(2) नियम के परीक्षण के लिए उदाहरण देना

(3) छात्रों से उदाहरण पूछना

(4) नियमों के विभिन्न अंशों की पहचान

5. चित्र बनाने का कौशल

(1) चित्र बनाने की प्रक्रियाओं की पहचान

(2) ज्यामिति बॉक्स का उपयोग करना

(3) लेबल का उपयोग

(4) नवीन रचना के लिए बिन्दुदार रेखा का प्रयोग

(5) चित्रों पर क्रमांक अंकित करना

(6) चित्रों की सही दिशा

(7) उपयुक्त चॉक – बत्ती का उपयोग

6. समस्या समाधान कौशल

(1) समस्या का स्पष्टं वर्णन

(2) दत्त उपात की तथा जरूरी उपात की पहचान करना

(3) आवश्यकताओं की खोज

(4) ज्ञात संबंधों का स्मरण

उपरोक्त मुख्य कौशल्य के अलावा निम्न कौशल्य भी गणित अध्यापन में बहुत उपयोगी हैं :

(क) व्याख्या (ख) विवेक का विकास (ग) खोज प्रवृत्ति अभिप्रेरण माध्यमिक स्तर पर भाषा अध्यापन में जिन विभिन्न कौशल्य का सामान्यतः प्रयोग होता है उनक होता है उनकी पहचान पासी तथा शर्मा ने 1981 में की। ये कौशल्य हैं –

भाषा शिक्षण में उपयोग में आने वाले कौशल –

1. कार्य देयन

2. उच्च स्वर वाचन

3. प्रश्न पूछना

4. पाठ शुरू करना

5. कक्षा प्रबंध

6. स्पष्टीकरण

7. अनुपूरक उच्च स्वर पाठन

8. श्यामपट उपयोग

9. प्रबलन का उपयोग

10. पाठ गति

11. दोहराव की रोक/पुनरावृत्ति को रोकना

12. पाठ को संगठित करना।

13. छात्रों के उत्तरों का उपयोग

14. छात्र व्यवहार में सुधार

15. श्रवणीयता

16. अनुपूरक प्रबलन का उपयोग

17. छात्र व्यवहार अभिज्ञान

18. मौखिक प्रस्तुतीकरण

19. संवेदिक वर्ग का परिवर्तन

इसी तरह शर्मा (1981) ने माध्यमिक स्तर पर हिन्दी शिक्षण में निम्न कौशल्य की पहचान की –

1. कार्य देयन

2. उच्च स्वर में वाचन

3. प्रश्न पूछना

4. पाठ शुरू करना

5. पाठ गति

6. कक्षा प्रबंध

7. मौखिक प्रस्तुतीकरण

8. स्पष्टीकरण

9. श्यामपट उपयोग

10. उपयुक्त प्रबलन का उपयोग

11. पाठ समापन

12. खोजपूर्ण प्रश्न

13. रुचि पैदा करना

14. छात्रों के पाठन व्यवहार में सुधार लाना।


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