व्याख्यान कौशल क्या है? उसके विभिन्न घटक कौन – कौनसे हैं? चर्चा करें।

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आदिकाल से ही अध्यापक व्याख्यान द्वारा अपनी बात छात्रों को समझाता रहा है। आज भी इस विधि का सर्वाधिक उपयोग होता है । इसके पक्ष में पर्याप्त तर्क दिये जाते हैं और इसके विरोध में भी कई बातें कही जाती हैं, परन्तु इसमें कोई सन्देह नहीं कि व्याख्यान हमारी शिक्षा में ज्ञान प्रदान करने की प्रमुख विधि है। इस कौशल में भाषा एवं वक्तृता सहजता, दृश्य – श्रव्य साधन, वक्तृता गति, रुचिकर उक्तियाँ आदि में पारंगतता प्राप्त करना वांछित है।

व्याख्यान कौशल के घटक निम्नलिखित हैं –

(1) भाषा – अध्यापक की भाषा सुबोध व सुगम हो ताकि छात्रों को समझ आये। भाषा क्लिष्ट न हो और छात्रों के ज्ञान स्तर के अनुरूप हो।

(2) आवाज – अध्यापक की आवाज सुस्पष्ट हो और इतनी ऊंची हो कि पूरी कक्षा को सुनाई दे । बहुत ऊंची आवाज भी छात्रों की समझ में बाधक होती है। इसे वक्तृता सहजता भी कहते हैं।

(3) उक्तियों का प्रयोग – व्याख्यान में यथासम्भव रुचिकर उक्तियों का प्रयोग किया जाना चाहिए। इससे छात्रों का ध्यान केन्द्रित रहता है और बताई गई बातें उनके समझ में आ जाती हैं।

(4) व्याख्यान गति – वक्तव्य की गति तेज न हो। छात्रों के स्तर के अनुरूप शिक्षक की बोलने की गति होनी चाहिए, न अधिक तीव्र न इतनी धीरे कि रुक – रुक कर बोलने जसा लगे।

(5) दृश्य – श्रव्य साधन – दृश्य – श्रव्य साधनों का यथासम्भव उचित स्थान पर उपयोग किया जाना चाहिए। जबरदस्ती उन्हें व्याख्यान में न ठूसा जाए।

(6) दोहराना – शिक्षक को अपने कथन को दोहराना नहीं चाहिए । छात्रों के पूछने पर ही दोहराएं । बार – बार दोहराने से छात्रों को आदत हो जाएगी और वे दोहराने पर ही ध्यान देंगे।

(7) अन्तरक्रिया परिवर्तन – शिक्षक को व्याख्यान देते समय बीच – बीच में प्रश्न पूछने चाहिए एवं छात्रों के उत्तर का भी व्याख्यान में उपयोग करना चाहिए । श्यामपट्ट पर अगर शिक्षक चित्र बना कर समझा रहा है तो उसे किसी छात्र का श्यामपट्ट पर बुलाकर सहयोग लेना चाहिए । यही अन्तरक्रिया परिवर्तन है।

इन सभी घटकों या अधिकांश घटकों का होना व्याख्यान को प्रभावी बनाता है।

इस घटक की पर्यवेक्षण सूची एवं मूल्यांकन सूची इस प्रकार है –

(प्रत्येक घटक का गुणात्मक मूल्यांकन उसके आगे दिये उपयुक्त अंक पर घेरा लगाकर करें)

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