व्याख्या कौशल से आप क्या समझते हैं ? उसके मुख्य घटक कौन – कौनसे हैं?

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शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में बहत से तथ्य/संप्रत्यय/नियम अथवा सिद्धान्त ऐसे होते ह जिन्ह, अच्छी तरह करना और बोधगम्य बनाने हेतु उनकी व्याख्या करना आवश्यक होता है । इस दृष्टि से व्याख्या कौशल का अर्जन एक अध्यापक के लिए काफी जरूरी है। व्याख्या करने से तात्पर्य विषय वस्तु पर आधारित उन कथनों से है जो आपस में पूरी तरह सम्बन्धित, क्रमबद्ध और सार्थक होते हैं। इस तरह व्याख्या कौशल को एक ऐसी तकनीक अथवा युक्ति के रूप में समझा जा सकता है जिसके द्वारा किसी संप्रत्यय, विचार या नियम को अच्छी तरह बोधगम्य बनाने के लिए परस्पर सम्बन्धित, क्रमबद्ध और सार्थक कथनों की भली – भाँति सहायता ली जा सके।

कौशल का अर्थ – इस कौशल के प्रयोग में सभी प्रकार से मौखिक अभिव्यक्ति का ही सहारा लेना होता है और इसके मुख्य रूप से दो भाग होते हैं –

विद्यार्थियों की आयु, परिपक्वता, पूर्वज्ञान और पढ़ाये जाने वाली विषयवस्तु या संप्रत्यय अथवा विषय विशेष को ठीक प्रकार से समझाने के लिए कुशलतापूर्वक प्रयोग में लाना । जहाँ तक व्याख्या कौशल में प्रत्यय कथनों की प्रकृति का प्रश्न है ये तीन प्रकार के हो सकते है –

(1) वर्णनात्मक कथन – यह कथ्य दिये हुए संप्रत्यय या नियम का वर्णन करने के काम आते हैं।

(2) अर्थात्मक कथन – इन कथनों की सहायता से किसी संप्रत्यय या नियम का अर्थ समझने में सहायता मिलती है।

(3) कारण बताने वाले कथन – इनके द्वारा किसी संप्रत्यय, घटना और नियम के बारे में क्यों, कैसे और क्या जैसे प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करने में आसानी होती है ।

व्याख्या कौशल के घटक :

किसी संप्रत्यय या विचार विशेष की व्याख्या करने से सम्बन्धित कौशल में वांछित और अवांछित दोनों प्रकार के शिक्षण व्यवहारों का समावेश होता है। अतः इस कौशल का अभ्यास कराने में इस बात का ध्यान रखा जाए कि अवांछित व्यवहारों को घटाते – घटाते बिल्कुल ही ही समाप्त करने का प्रयास किया जाए । इन सभी वांछित और अवांछित व्यवहारों को नीचे एक तालिका में प्रदर्शित किया जा रहा है –

वांछित व्यवहारअवांछित व्यवहार
(1) उपयुक्त प्रारंभिक और निष्कर्ष कथनों का(1) निरर्थक कथनों का प्रयोग प्रयोग।
(2) व्याख्या सेतुओं का प्रयोग(2) कथनों के निरन्तरता या तारतम्य का अभाव
(3) आवश्यक बिन्दुओं पर ध्यान देना।(3) प्रवाहिकता का अभाव
(4) बोध – परीक्षण(4) अनुपयुक्त शब्दावली और अस्पष्ट शब्दों अथवा मुहावरों का प्रयोग।

वांछित व्यवहार :

(1) उपयुक्त प्रारम्भिक और निष्कर्ष कथनों का प्रयोग – प्रारम्भिक कथनों के द्वारा प्रारम्भ में ही यह घोषणा की जाती है कि अध्यापक को किस विचार या संप्रत्यय विशेष की व्याख्या करनी है । इस घोषणा से विद्यार्थी व्याख्या को सुनने और समझने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाते हैं । दूसरी ओर, निष्कर्ष कथनों का प्रयोग व्याख्या के तुरन्त बाद सम्पूर्ण व्याख्या को सार रूप में प्रस्तुत करने के लिए किया जाता है।

(2) व्याख्या सेतुओं का प्रयोग – किसी संप्रत्यय या नियम आदि की व्याख्या करने के लिए काम में लाये जाने वाले विभिन्न कथनों में निरन्तरता या तारतम्य बनाये रखने हेतु शब्द सेतुओं का प्रयोग किया जाता है।

(3) आवश्यक बिन्दुओं पर ध्यान देना – किसी संप्रत्यय अथवा नियम को समझने से संबंधित व्याख्या अपने आप में अधिक से अधिक पूर्ण होनी चाहिए। जो भी मुख्य और आवश्यक बातें संप्रत्यय या नियम को भली – भाँति स्पष्ट करके अधिक से अधिक बोधगम्य बना सके, उनकी ओर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।

(4) बोध परीक्षण – व्याख्या के अन्त में तथा बीच – बीच में पूछे जाने वाले प्रश्न अध्यापक की इस बात को जाँचने में सहायता करेंगे कि क्या वह तथ्यों की व्याख्या करने में सफल हुआ और साथ ही साथ विद्यार्थियों के बोध का परीक्षण करने में सहायता करेंगे। परन्तु यह ध्यान रखना चाहिए कि बहुत ज्यादा प्रश्न न पूछे जाएं ।

अवांछित व्यवहार :

(1) निरर्थक कथनों का प्रयोग – ऐसे कथनों का प्रयोग जिनके द्वारा सम्बन्धित संप्रत्यय अथवा नियम की व्याख्या करने में कोई सहायता नहीं मिलती, इसी श्रेणी में आते हैं। ये कथन अस्पष्टता एवं अव्यवस्था उत्पन्न कर विद्यार्थियों को लक्ष्य से दूर ले जाते हैं।

(2) कथनों में निरन्तरता का अभाव – इन कथनों को जोड़ने के लिए जो वाक्य अथवा शब्द होते हैं या तो उन्हें नदारद पाया जाता है अथवा कथनों में पारस्परिक सम्बद्धता और क्रम सम्बन्धी कमी नजर आती है।

(3) प्रवाहिकता का अभाव – जितने कथन किसी संप्रत्यय अथवा सिद्धान्त की व्याख्या करने के लिए प्रयोग में लाए जाएं उनमें बिना किसी रुकावट के एक स्वाभाविक गति और प्रवाह देखने को मिलना चाहिए। इसका अभाव होने पर शिक्षक व्यवहार में निम्न बातें देखने को मिलती हैं –

(i) वह स्पष्ट रूप से नहीं बोल पाता।

(ii) वह अपूर्ण अथवा अधूरे वाक्य बोलता है।

(iii) वह वाक्य और कथन को पूरा न कर बीच में ही उसे नये सिरे से बोलने और सुधारने का प्रयत्न करता है।

(iv) वह अस्थिर विचारों और अनुपयुक्त अस्पष्ट शब्दों और मुहावरों का प्रयोग करता है।

(4) अनुपयुक्त शब्दावली और अस्पष्ट शब्दों तथा मुहावरों का प्रयोग – इस प्रकार के अवांछित अध्यापक व्यवहार में निम्न बातें शामिल हो सकती हैं –

(i) विद्यार्थियों के लिए सर्वथा अपरिचित अथवा उनके स्तर से अधिक कठिन शब्दावली का प्रयोग।

(ii) ऐसे अस्पष्ट और निरर्थक शब्दों का प्रयोग करना जिनसे व्याख्या कार्य में बाधा पहुँचे।

(iii) गलत और बिना मौके के अनुपयुक्त मुहावरों का प्रयोग करना।

क्रम घटकगणना मिनिट1   2   3  4  5  6
(वांछनीय घटक) 
1. स्पष्ट प्रारम्भिक कथन 
2. कथनों में समन्वय 
3. भाषा प्रवाह 
4. भाषा कड़ियों का प्रयोजन 
5. उदा. देना 
6. सहायक सामग्री का प्रयोग 
7. मूल्यांकन 
8. मुहावरे व लोकोक्ती 
9. निष्कर्ष 
(अवांछनीय घटक) 
1. अप्रासंगिक कथनों का प्रयोग 
2. अनुचित शब्दों का प्रयोग 

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