सूक्ष्म – शिक्षण से क्या अभिप्राय है ? इसकी प्रकृति व अर्थ को स्पष्ट कीजिए।

Estimated reading: 0 minutes 76 views

प्राचीन काल से यह धारणा रही है कि शिक्षक बनाए नहीं जा सकते परन्तु वर्तमान काल में यह धारणा बन रही है कि शिक्षक केवल जन्मजात ही नहीं होते बल्कि बनाए भी जा सकते हैं । अध्यापक तैयार करने का उत्तरदायित्व प्रशिक्षण संस्थाओं का है। इसी धारणा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शिक्षक व्यवहार में सुधार करना सम्भव है। प्रभावशाली शिक्षक तैयार करने के लिए जिस विधि का आविष्कार किया गया है उसे सक्षम शिक्षण का नाम दिया गया है।

सूक्ष्म – शिक्षण का विकास ऐलन ने 1963 में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षण व्यवहारों,शैक्षणिक क्रियाओं के विकास के लिए किया । इन शिक्षण व्यवहारों या शिक्षण क्रियाओं को शिक्षण – कौशलों का नाम दिया गया।

सूक्ष्म – शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य छात्र – अध्यापक को सूक्ष्म – शिक्षण द्वारा शिक्षण – कौशलों का प्रशिक्षण देना है।

ऐलन के अनुसार, “सूक्ष्म – शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाँटना है”।

ऐलन ने इसमें वीडियो – टेप का प्रयोग पर्यवेक्षक के स्थान पर किया जो अध्यापक के समय छात्राध्यापक के व्यवहारों को सस्पष्टता के साथ अंकित कर लेता था। छात्राध्यापक अपने अध्यापक के गुण – दोषों को समझता था तथा उनमें सुधार करने का प्रयास करता था।

माइक्रो का अर्थ है सूक्ष्म, लघु। सूक्ष्म इसलिए कि इसमें कक्षा – शिक्षण की अनुमाप का न्यूनीकरण कर दिया गया है। सिखाने की सामग्री, पढ़ाने का घंटा, छात्रों की संख्या सभी सामान्य कक्षा – शिक्षण से लघु होते हैं।

इसमें पाठ्यक्रम की बड़ी/लघु इकाई अथवा शिक्षण – कौशल का एक ही प्रत्यय लिया जाता है । शिक्षण अवधि 8 – 10 मिनट की होती है। छात्रसंख्या 8 – 10 होती है । प्रशिक्षणार्थी के अध्यापन को वीडियो टेप में रिकॉर्ड कर लिया जाता है। पर्यवेक्षक पूर्वनिर्मित प्रपत्रों में भी अध्यापन का विवरण करता है। पढ़ाने के तुरन्त बाद उसका निष्पादन कैसे हुआ है वह उसे बता दिया जाता है । छात्र अध्यापक अपनी कमियों को सुधार कर पुन: इसका शिक्षण करता है और अंत में उस कौशल में निपुणता हासिल करता है ।

Leave a Comment

CONTENTS