पुनर्बलन कौशल से क्या अभिप्राय है? छात्रों की कक्षा में अनुक्रियाओं का पुनर्बलन किस प्रकार किया जा सकता है?

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पुनर्बलन प्रदान करने का कौशल शिक्षण – अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली तथा तीव्र करने में महत्त्वपूर्ण है। शिक्षक को इसके लिए अनेक प्रकार की युक्तियों की सहायता लेनी पड़ती है। छात्र सही उत्तर देने का प्रयास करते हैं। शिक्षक छात्रों के सही उत्तरों की प्रशंसा करते हैं, छात्रों को प्रोत्साहन देते हैं। यदि शिक्षक ऐसा करने में असफल रहते हैं तब छात्र अपनी अनुक्रियाओं में उत्साह नहीं दिखाते हैं। शिक्षक की वह क्रिया जो छात्रों को अनुक्रियाओं के लिए प्रोत्साहित करती है उसे पुनर्बलन कहते हैं।

पुनर्बलन कौशल दो प्रकार का होता है –

(1) सकारात्मक पुनर्बलन – इसके द्वारा छात्रों के वांछित व्यवहार को प्रबल बनाया जाता है।

(2) नकारात्मक पुनर्बलन – इससे छात्रों के गलत या अवांछित व्यवहार को दुर्बल या दूर करने की चेष्टा की जाती है।

सकारात्मक पुनर्बलन हेतु अध्यापक ऐसे व्यवहार अपनाता है, जिससे छात्र पाठ में अधिकाधिक भाग लें। इनमें ‘शाबाश’, ‘अच्छा’, ‘हाँ – हाँ’, ठीक है आदि कहना या उत्तर ठीक होने पर मुस्कुराना, सिर हिलाना, हाथ से संकेत करना आदि शामिल हैं। इनका छात्रों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वे प्रोत्साहित होते हैं, उत्साह से प्रश्नों के उत्तर देते हैं और अपनी बात कहते हैं।

नकारात्मक पुनर्बलन में अध्यापक का वह व्यवहार आता है जिससे छात्रों को गलत व्यवहार से रोकना अभीष्ट है। गलत, उत्तर आने पर अध्यापक का ‘नहीं’, ऐसा नहीं है कहना, उहूँ, नकारात्मक सिर हिलाना, हाथ से बैठ जाने का संकेत करना आदि शामिल हैं।

वांछित व्यवहार में निम्न घटक आते हैं –

(1) सकारात्मक शाब्दिक प्रबलन – अध्यापक का बहुत अच्छा,शाबाश ‘ठीक है’ आदि का बोलना इसी श्रेणी में आते हैं इनका तात्पर्य यह है कि अध्यापक छात्रों की भावना का आदर करता है।

(2) सकारात्मक अशाब्दिक प्रबलन – अध्यापक बिना बोले या शब्दों का प्रयोग किए मुस्कराकर सिर या हाथ के संकेतों से अथवा चलकर समीप जाने आदि से छात्रों का प्रोत्साहन बढ़ता है और उनके व्यवहार का प्रबलन करता है।

(3) नकारात्मक शाब्दिक प्रबलन – अध्यापक मौखिक या शाब्दिक रूप से छात्रों में अनुचित या गलत व्यवहार या उत्तर के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है जिससे छात्र पुनः ऐसा व्यवहार न करे। इसमें अध्यापक का नहीं, उहूँ, गलत है । ‘रुको’, ‘सोचकर बोलिए’ आदि कथन आते हैं।

(4) नकारात्मक अशाब्दिक प्रबलन – अध्यापक द्वारा नाराजगी से छात्र की ओर देखना नकारात्मक सिर हिलाना, घूर कर देखना, पैर से जमीन थपथपाना, तेज – तेज चलना आदि ऐसे व्यवहार आते हैं जिसके द्वारा छात्रों को गलत उत्तर देने या अनुचित बात कहने पर अध्यापक अपनी अस्वीकृति का प्रदर्शन करता है और उनके व्यवहार को रोकता है।

इसके अतिरिक्त निम्नलिखित बातों का ध्यान भी रखना चाहिए –

(1) उत्तर देने वाले कुछ छात्रों को ही नहीं वरन अध्यापक को अधिक से अधिक छात्रों को प्रोत्साहित कर पाठ में उनका सहयोग प्राप्त करना चाहिये। केवल थोड़े से छात्रों के सहारे पाठ प्रभावी नहीं बन सकता है।

(2) कुछ ही प्रबलन शब्दों का उपयोग कुछ अध्यापक जैसे ‘ठीक है अच्छा आदि शब्दों का बार – बार उपयोग करते हैं। परिणाम यह होता है कि छात्र उन पर ध्यान देना बन्द कर देते हैं।

(3) प्रबलन का अत्यधिक प्रयोग – प्रबलन का जरूरत से ज्यादा प्रयोग भी इसकी महत्ता को कम करता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे अध्यापक कृत्रिम व्यवहार कर रहा है।

पुनर्बलन कौशल के विभिन्न तत्त्वों का आवृत्ति अंकन पर्यवेक्षण अनुसूची पर अंकित किया जायेगा और इनका आवृत्ति मूल्यांकन अनुसूची पर अंकित किया जायेगा।

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