उद्दीपन परिवर्तन कौशल से क्या अभिप्राय है? समझाइए।

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शिक्षण की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि शिक्षक छात्रों के ध्यान को आकर्षित कर पाठ्यवस्तु पर केन्द्रित कराये रखे । इस प्रयोजन के लिए वह कभी अपनी जगह से चलकर श्यामपट्ट के समीप आता है, कभी उनके बीच जाकर उनसे प्रश्न पूछता है, कभी हाथ से इशारे करता है, कभी चेहरे पर हाव – भाव लाकर अपनी बात कहता है। कभी वह प्रश्न पूछता है. कभी छात्रों के उत्तर देता है । कभी चित्र या वस्तु दिखाकर उसका विवरण करता है । इस प्रकार वह विभिन्न उद्दीपक क्रियाओं द्वारा छात्रों का ध्यान आकर्षित करता है और पाठ को प्रभावशील बनाता है । इस कौशल को उद्दीपन परिवर्तन कहा जाता है।

उद्दीपन परिवर्तन कौशल के निम्न घटक हैं –

(1) संचालन – अध्यापक यदि पढ़ाते समय अधिक देर तक एक ही स्थिति में, एक ही जगह; एक ही जगह पर खड़ा रहे तो थोड़ी देर बाद छात्र उसकी ओर ध्यान न देकर इधर – उधर देखने लगते हैं या आपस में बात करने लगते हैं। यदि अध्यापक हिलता डुलता है, कक्षा में आवश्यकतानुसार अपनी जगह बदलता है हाथ – पैर हिलाता है तो छात्रों का ध्यान उसकी ओर लगा रहता है।

बहुत अधिक संचलन अथवा अनावश्यक हिलना – डुलना शिक्षण में व्यवधान पैदा करता है। इसलिए स्वाभाविक एवं आवश्यक संचलन ही श्रेयस्कर है।

(2) हाव – भाव – पाठ पढ़ाते हुए अध्यापक को पाठ्यवस्तु के अनुसार हाव – भाव करने चाहिए। केवल मौखिक विवरण उतना प्रभावशाली नहीं होता जितना कि उसके साथ जुड़े हाव – भाव । ये हाव – भाव चेहरे पर आने वाली भाव भंगिमा भी हो सकती है और हाथ पैरों के इशारे भी हो सकते हैं। शरीर को अन्य भागों द्वारा भी पाठ्यवस्तु में आने वाली भावनाओं, परिणाम, वजन, संचलन आदि को स्पष्ट किया जा सकता है।

(3) वाक – संरूप परिवर्तन – हाव – भावों को शारीरिक रूप से प्रदर्शित किये बिना केवल आवाज के उतार – चढाव या उसी में परिवर्तन करके अनेक भावों से छात्रों को समझाया जाता है। विभिन्न शब्दों पर जोर देने से उनका अर्थ गहराई लिये हो जाता है। अध्यापक की आवाज में परिवर्तन कई तरह के हो सकते हैं – ऊंची आवाज, तीव्र गति, किसी शब्द पर दबाव डालकर बोलना आदि विभिन्न स्थितियों एवं भावों को स्पष्ट करते हैं।

(4) केन्द्रण – इस घटक का प्रयोग उस स्थिति में किया जाता है जब छात्रों के ध्यान को पाठ के किसी विशिष्ट बिन्दु पर केन्द्रित करना हो ताकि छात्र उनकी व्याख्या ठीक तरह समझ जायें। जब अध्यापक कहता है ‘इधर ध्यान दो’ या इस चित्र को देखें तो उसका तात्पर्य छात्रों के ध्यान को विशिष्ट बिन्दुओं पर केन्द्रित करना है । अध्यापक जब चित्र पर एक निश्चित बिन्दु पर हाथ रखकर कुछ बताता है तो सभी छात्रों का ध्यान उस बिन्दु पर आकर्षित करने से होता है|

अन्तरक्रिया शैली परिवर्तन – जब दो या अधिक व्यक्ति एक दूसरे से मौलिक वार्तालाप करते हैं तो इसे मौलिक अन्तरक्रिया की संज्ञा दी जाती है। कक्षा में कई प्रकार की अन्तरक्रिया होती है। छात्र सहभागिता को अन्तरक्रिया परिवर्तन में प्रोत्साहन मिलता है और अध्यापक कक्षा में ऐसा वातावरण उत्पन्न करता है कि पाठ में सभी का सहयोग प्राप्त हो और अध्यापक का पाठन केवल भाषण या व्याख्यान होकर ही न रह जाये।

(5) विराम – विराम का तात्पर्य ऐसे मौन से है जो अध्यापक बोलते – बोलते रुक जाये ताकि छात्रों का ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो । अध्यापक यदि स्वयं ही बोलता रहे और छात्रों को कुछ कहने या पूछने का अवसर न दे तो पाठ नीरस हो जाता है और छात्र पाठ में रुचि लेना कम कर देते हैं । अगर कुछ लम्बी वक्तृता देनी हो तो अध्यापक को बीच – बीच में रुककर छात्रों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहिए । प्रश्न पूछे तो और अच्छा होगा।

(6) मौखिक दृश्य बदलाव – पाठ – पढ़ाते हुए मौखिक विवरण के साथ – साथ कभी अध्यापक प्रयोग दिखाता है, कभी चित्र दिखाकर, श्यामपट पर रेखाचित्र बनाकर या लिखकर समझाता है कभी वह बोलते – बोलते मॉडल दिखाने लगता है, कभी चित्र दिखाते – दिखाते वह विवरण देने लगता है, कभी – कभी वह बोलता भी है और चित्र या प्रयोग दिखाता है । सभी क्रियाओं को मौखिक दृश्य बदलाव का नाम दिया गया है ।

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