रिजर्ड सचमैन पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान के बारे में लिखो।

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रिजर्ड सचमैन पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान :

इस प्रतिमान के प्रवर्तक रिचर्ड सचमैन हैं। यह प्रतिमान बालक के वैयक्तिक विकास एवं मानसिक क्षमताओं में अभिवृद्धि लाता है जिससे बालकों को वैज्ञानिक दिशा तथा प्राकृतिक शक्तिशाली खोजी के लिए प्रशिक्षण प्राप्त हो सके। यह प्रतिमान वैज्ञानिक धारणा तथा वैज्ञानिक विधि पर आधारित है जो छात्रों को विद्वत्तापूर्ण पृच्छा या पूछताछ के लिये प्रशिक्षित करता है । इसमें छात्रों को पूछताछ की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है, जिससे वे अनुशासित ढंग से प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित होते हैं । इस प्रकार की पूछताछ से छात्र विषय सम्बन्धी नवीन आयामों की खोज करते हैं। इस प्रतिमान का विकास 1966 में हुआ था। इस प्रतिमान के प्रवर्तक सचमैन का विश्वास था कि बालक स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं तथा वे अपनी जिज्ञासा की सन्तुष्टि के लिये पूछताछ में आनन्द का अनुभव करते हैं। पूछताछ की प्रक्रिया से बच्चों में पूछताछ के कौशल का विकास होता है।

इस संरचना के प्रमुख तत्त्वों का वर्णन नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है –

(i) उद्देश्य – इस प्रतिमान का मुख्य उद्देश्य छात्रों में ज्ञानात्मक कौशलों का विकास करना है। छात्र स्वयं पूछताछ के माध्यम से प्रत्ययों की तार्किक ढंग से व्याख्या करता है । इसके उपयोग से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी उत्पन्न करने में सहायता मिलती है । छात्रों की जिज्ञासा अभिवृत्ति एवं अभिरुचियों का विकास होता है जिससे छात्र जटिल परिस्थितियों में उसके समाधान के लिये प्रेरित होकर क्रमबद्ध तरीके से कार्य करते हैं। पूछताछ के प्रशिक्षण से उन्हें समस्यात्मक घटनाओं की व्याख्या करने में भी सहायता मिलती है । सचमैन के अनुसार, “पूछताछ प्रशिक्षण प्रतिमान का लक्ष्य छात्रों में खोज एवं आंकड़ों के विश्लेषण में दक्षता एवं कौशल विकसित करना है जिससे वे स्वयं घटनाओं की व्याख्या कर सकें तथा उनमें विभिन्न तत्त्वों के पारस्परिक सम्बन्ध खोज सकें एवं सत्यता का पता लगा सकें।” ।

(ii) संरचना – इस प्रतिमान की संरचना की पाँच अवस्थायें होती हैं –

(a) समस्या का प्रस्तुतीकरण करना – इसमें शिक्षक के निर्देशन में छात्र समस्या का चयन करते हैं।

(b) समस्या सम्बन्धी प्रयोग करना – लगभग आधे घण्टे तक समस्या से सम्बन्धित सूचना प्राप्त करने के लिए छात्र ऐसे प्रश्न पूछता है जिनका उत्तर शिक्षक केवल हाँ या नहीं में देता है। छात्रों द्वारा यह पूछताछ उस समय तक चलती है जब तक छात्र प्रस्तुत घटना/समस्या के स्पष्टीकरण तक नहीं पहुँच जाते । शिक्षक छात्रों को बताता है कि वे उससे घटना के घटित होने का कारण एवं समस्या का हल सीधे रूप में नहीं पूछे । शिक्षक छात्रों को यह भी निर्देश देता है कि वह एक समय पर, जितने चाहे उतने प्रश्न पूछ सकते हैं एवं पूछताछ के समय अपने साथी छात्रों से परामर्श भी ले सकते हैं अथवा विचार – विमर्श भी कर सकते हैं।

(c) छात्रों व शिक्षकों के समस्या समाधान के लिए प्रयास – इसमें छात्र अन्वेषण तथा प्रत्यक्ष परीक्षण करके नये तत्त्वों से परिचित होने के लिए प्रदत्तों का संकलन करता है,परिकल्पनाओं का निर्माण करता है तथा उनके आधार पर कारण – कार्य सम्बन्धों की परीक्षा करता है।

(d) सूचनाओं का संगठन – प्रदत्त एकत्रित करते समय सूचनाओं को संगठित किया जाता है। शिक्षक छात्रों को एकत्रित प्रदत्तों से परिणाम निकलवाता है और परिणामों की व्याख्या । करता है।

(e) पूछताछ प्रक्रिया का विश्लेषण – इसमें छात्रों को उसकी पूछताछ प्रक्रिया का विश्लेषण करने के लिए कहा जाता है। साथ ही यह भी निर्णय लिया जाता है कि आवश्यक सभी सूचनाएं प्राप्त हुई हैं या नहीं। शिक्षक पूर्ण प्रक्रिया का मूल्यांकन तथा पुनर्निरीक्षण करता है और उपयुक्त निर्णय लेकर निष्कर्ष तक पहुँचने का प्रयास करता है।

(iii) सामाजिक प्राणी – शिक्षक इस प्रतिमान में नेतृत्व प्रदान करता है,छात्रों को पूछताछ के लिए प्रेरित करता है तथा प्राप्त निष्कर्षों के लिए अवसर देता है। इस प्रतिमान में शिक्षक तथा छात्र दोनों की भूमिकायें महत्त्वपूर्ण हैं। शिक्षक व छात्रों के मध्य सहयोग का खुला वातावरण होता है।

(iv) मूल्यांकन प्रणाली – इस प्रतिमान में मूल्यांकन के लिये विशेष रूप से प्रयोगात्मक परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है। इससे पता चलता है कि छात्र समस्या समाधान के माध्यम से अपना कार्य कितने और किस सीमा तक प्रभावशाली ढंग से करता है ।

विशेषतायें –

(1) यह वैज्ञानिक अध्ययनों में अधिक उपयोगी होता है।

(2) यह छात्रों में प्रश्न करने की (पूछताछ) प्रवृत्ति का निर्माण करती है।

(3) छात्रों में इससे वैज्ञानिक अभिवृत्ति का विकास होता है।

(4) इस प्रतिमान के प्रयोग से छात्रों को स्पष्ट तथा व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।

(5) छात्रों की जिज्ञासु प्रवृत्ति का विकास होता है।

(6) प्रत्येक शैक्षिक परिस्थितियों में इस प्रतिमान का प्रयोग किया जाता है।

इस प्रतिमान का विकास भौतिक विज्ञान शिक्षण हेतु किया गया था परन्तु इस प्रतिमान का प्रयोग अन्य विषयों के शिक्षण में भी किया जाने लगा है । यह सभी कक्षाओं के शिक्षण में उपयोगी सिद्ध हुआ है। इस प्रतिमान द्वारा प्रत्येक विषय के सभी प्रकरण पढ़ाये नहीं जा सकते । इसका उपयोग वहीं होता है जहाँ कोई समस्यात्मक परिस्थिति हो । यह प्रतिमान छात्रों में पारस्परिक सम्बन्धों के विकास में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है।


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