अच्छी बी.एड. (शिक्षा स्नातक) पाठ्यचर्या कैसी होनी चाहिए। आपके विश्वविद्यालय की बी.एड. पाठ्यचर्या के मूल्यांकन हेतु उसकी विशेषताएं तथा सीमाओं की विवेचना कीजिए।

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एक कुशल व दक्ष शिक्षक की शिक्षा में उपाधि की पाठ्यचर्या ऐसी होनी चाहिए जो उसमें बालक (अधिगमकर्ता) के विकास और उसके मनोविज्ञान के ज्ञान, विभिन्न शिक्षण कौशलों तथा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में कुशलता, पाठ्यसहगामी क्रियाओं के आयोजन में दक्षता, निर्देशन-मार्गदर्शन सेवाओं तथा मापन मूल्यांकन की विधियों में प्रवीणता, नवीन शिक्षण व तकनीकी तथा अपने द्वारा पढ़ाए जाने वाले विषय के सैद्धान्तिक तथा शिक्षाशास्त्रीय ज्ञान को छात्राध्यापकों (भावी शिक्षकों) में उत्पन्न कर सके। शिक्षक शिक्षा की पाठ्यचर्या में सैद्धान्तिक पक्ष तथा शिक्षण अभ्यास आदि के प्रायोगिक ज्ञान का समुचित अनुपातिक प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद् (NCTE) द्वारा निर्मित बी.एड. पाठ्यचर्या की संरचना में निम्नलिखित तीन प्रमुख किन्तु अन्तर्सम्बन्धित क्षेत्रों (फीस्ड) को पाठ्यचर्या में सम्मिलित किया गया है-

(1) शिक्षा के परिप्रेक्ष्य क्षेत्र के अंतर्गत बाल्यावस्था, बालक का विकास और किशोरावस्था, समसामयिक भाग तथा शिक्षा, पाठ्यचर्या का ज्ञान व सैद्धान्तिक आधार, शिक्षण व अधिगम, पाठशाला व समाज के संदर्भ में जेंडर व समेकित शिक्षा की शाला के सृजन को सम्मिलित किया गया है। यह पाठ्यचर्या छात्राध्यापकों में कुशल शिक्षक की समझ तथा क्षमता उत्पन्न करने में सहायक है।

(2) पाठ्यचर्या तथा शिक्षण शास्त्रीय अध्ययन के क्षेत्र में विषयों/ अनुशासनों की समझ, विद्यालय की पाठ्यचर्या, पाठ्यचर्या के परे भाषा, अधिगम के आंकलन के विषयों के साथ-साथ शाला में पढ़ाए जाने विषयों में से चयनित विषय सम्मिलित किये गए हैं वैकल्पिक/ऐच्छिक विषयों के रूप में कार्य अनुभव/व्यावसायिक शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा, शांति शिक्षा, मार्गदर्शन व निर्देशन को शामिल किया गया है। यह क्षेत्र छात्राध्यापकों में व्यावहारिक तथा वृत्तिगत (प्रोफेशनल) क्षमताओं के विकास हेतु नियोजित किए गए हैं।

(3) क्षेत्र में जुड़ाव में छात्राध्यापक के स्वयं से, विद्यार्थी समुदाय तथा विद्यालय से जुड़ाव के पक्ष सम्मिलित किये गए हैं जिनमें ये तीन प्रमुख घटक हैं-

(i) निर्दिष्ट कार्य व गृहकार्य जो सभी पाठ्यचर्या के विषयों से संबंधित हो;

(ii) स्कूल इंटर्नशिप जिसमें कक्षा शिक्षण का प्रायोगिक नियोजित अभ्यास हो;

 (iii) वृत्तिगत क्षमताओं के विकास हेतु पठन व पाठ्य पर परावर्तन, शिक्षा में ड्रामा (रंगमंच अभिनय) तथा कला, सूचना संचार प्रौद्योगिकी की समीक्षात्मक समझ एवं स्वयं की समझ सम्मिलित है।

राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) ने वर्ष 2014-15 से बी.एड. पाठ्यचर्या कैसी हो इसकी रूपरेखा बनाई गई तथा इस रूपरेखा के आधार पर स्वायत्तशासी विश्वविद्यालयों ने अपने-अपने बी.एड. पाठ्यक्रम को जारी किया गया। मध्य प्रदेश के विश्वविद्यालयों में दो वर्षीय (चार सेमेस्टर) वाली यह पाठ्यचर्या जारी की गई-

शिक्षा स्नातक पाठ्यचर्या प्रथम सेमेस्टर

शिक्षण में इंटर्नशिप- इसमें प्रत्येक शालेय विषय के शिक्षण में अंकों का वितरण तथा गतिविधियाँ इस प्रकार होंगी-

क्र. प्रायोगिक                    सेमेस्टर III अंक

1. आठ शिक्षण कौशलों (अनुरूपण स्थिति में)

2. पाठ योजना

3. वास्तविक कक्षा-कक्ष स्थिति में पाठ पढ़ना

4. इकाई योजना

5. इकाई परीक्षण-प्रशासन,मूल्यांकनात्मक व्याख्या

6. स्रोत इकाई/औजार किट/वर्कबुक/वर्किंग माडल्स

7. पर्यवेक्षण रिकॉर्ड

कुल                     350

(ब) शिक्षा में भविष्य शास्त्र

(स) स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा

(द) शाला में निर्देशन व परामर्श

(ई) पर्यावरण शिक्षा

(फ) क्रियात्मक अनुसंधान

5. वृत्तिगत क्षमता विकास-3 स्वयं की समझ 50 20 30

6. वृत्तिगत क्षमता विकास-4 सूचना संचार तकनीकी की समझ

50     20     50

500     100   360

कुल

आंतरिक मूल्यांकन- सैद्धान्तिक प्रश्नपत्रों में निम्नानुसार आंतरिक अंक होंगे-

1. उपस्थिति     5 अंक

2. प्रथम परीक्षण    5 अंक

3. द्वितीय परीक्षण   5 अंक

4. निर्दिष्ट कार्य (असाइन्मेंट)     5 अंक

सामुदायिक कार्यों (1) SUPW (2) PE/Games (3) नागरिकता प्रशिक्षण केन्द्र में आंतरिक मूल्यांकन ग्रेड होंगे-

A ग्रेड = उत्कृष्ट B ग्रेड = अच्छा C ग्रेड = औसत

पाठ्यचर्या का मूल्यांकन : इसकी विशेषताएं व सीमाएं- क्या विश्वविद्यालय की बी.एड. पाठ्यचर्या शिक्षक स्नातक पाठ्यक्रम के उद्देश्यों की पूर्ति करती है? क्या जो पाठ्यचर्या क्षेत्र NCTE ने निश्चित किये हैं वे इस शिक्षक शिक्षा कार्यक्रम को समग्रता से अभिव्यंजित करते हैं? क्या क्षेत्रों में समाहित पाठ्य विषयों के उद्देश्य उनके प्रकरण (टॉपिक) पाठ्यचर्या निर्माण के अपेक्षित सिद्धान्तों की कसौटी पर खरे हैं? क्या वृत्तिगत क्षमताओं की प्रासंगिकता व उपादेयता है। क्या निर्दिष्ट गृह कार्य (असाइन्मेंट्स) पाठ्य विषय से संगति रखते हैं? क्या वैकल्पिक विषय उपयोगी है ? क्या स्कूल इंटर्नशिप कार्यक्रम का नियोजन छात्राध्यापकों के प्रायोगिक अधिगम अनुभवों हेतु पर्याप्त है? क्या सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक ज्ञान हेतु आनुपातिक व उपयुक्त प्रावधान किये गए हैं? क्या समग्र रूप से अंकों (आंतरिक व बाह्य) का विभाजन यथोचित है? इन पर विचार के लिए इस पाठ्यचर्या की इन विशेषताओं तथा न्यूनताओं (सीमाओं) पर विचार करना होगा-

(1) शिक्षक शिक्षा के स्नातक पाठ्यचर्या के उद्देश्यों की पूर्ति- बी.एड. कार्यक्रम का उद्देश्य माध्यमिक शालाओं में शिक्षण कार्य करने वाले ऐसे उपयुक्त विषय शिक्षकों को तैयार करना है जिन्हें बाल मनोविज्ञान व बाल विकास के समुचित ज्ञान के साथ माध्यमिक शालाओं में पढ़ाए जा रहे विभिन्न विषयों तथा उनकी शिक्षण शास्त्र का व्यावहारिक ज्ञान हो। इस पाठ्यचर्या के अधिगम तथा शिक्षण, बाल्यावस्था व उनका विकास, विषयों व अनुशासनों की समझ, शालेय विषयों के शिक्षण शास्त्र के साथ व्यापक स्कूल इंटर्नशिप का अनुभव हो । स्कूल इंटर्नशिप में पाठयोजना बनाकर शिक्षण अभ्यासों को करना, सूक्ष्म शिक्षण तथा विभिन्न पाठ्यसहगामी क्रियाओं के आयोजन का अनुभव विशेष है।

प्रस्तुत शिक्षक शिक्षा की पाठ्यचर्या में ऐसी क्षमताओं के विकास हेतु कला (आर्ट) तथा नाटक (ड्रामा) की वृत्तिगत क्षमताओं का विकास सम्मिलित है । भावी शिक्षकों को मूल्यांकन तथा निर्देशन व परामर्श का कार्य भी अपनी शालाओं में करना होगा जिसकी तैयारी हेतु प्रस्तुत पाठ्यचर्या में एक वैकल्पिक प्रश्नपत्र निर्देशन व परामर्श तथा छात्राध्यापकों के सत्रीय कार्यों में सतत व समग्र मूल्यांकन का प्रावधान है। अधिगम तथा शिक्षण का अनिवार्य प्रश्न पत्र द्वितीय सेमेस्टर में है। विद्यालय इंटर्नशिप (प्रशिक्षण) के दौरान छात्राध्यापक वास्तविक स्कूली जीवन के दैनिक पक्ष का पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान अर्जित कर सकें इस हेतु पाठ्यचर्या संरचना में तृतीय सेमेस्टर में 20 सप्ताह का (लगभग 5 माह) का विस्तृत समय रखा गया है । इस प्रकार सैद्धान्तिक तथा व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति इस पाठ्यचर्या से होती है ।

(2) शिक्षा कार्यक्रमों की समग्रता- NCTE की पाठ्यक्रम संरचना में तीन विविधमुखी क्षेत्रों-शिक्षा के परिप्रेक्ष्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण शास्त्रीय अध्ययन तथा क्षेत्र से जुड़ाव को सम्मिलित करते हुए इस पाठ्यचर्या में 11 विषय, 4 वृत्तिगत क्षमता का विकास तथा क्षेत्र से जुड़ाव (स्वयं, बालक, समुदाय व शाला से) के पर्याप्त व विविधमुखी रूप इस पाठ्यचर्या की विशेषता है।

(3) विषयों तथा विषयवस्तु की पूर्णता- शिक्षा स्नातक पाठ्यचर्या में समाहित अध्ययन विषयों में उनके शिक्षण के उद्देश्य, उनके सामाजिक पक्ष, शालेय शिक्षा से उनके जुड़ाव, अन्य विषयों से अन्तर्सम्बन्ध, क्रियाशीलता, उपयोगिता आदि का ध्यान रखा गया है जिससे पाठ्यचर्या निर्माण के सिद्धान्तों के अनुरूप समाहित विषयों की परिपूर्णता परिलक्षित होती है। उदाहरणार्थ ‘बाल्यावस्था तथा उसके विकास’ के कोर विषय में माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले बालकों की अवस्था व अभिवृद्धि को उनकी सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में समझने, विविध विशेष बालकों को समझने के प्रयास सम्मिलित हैं। इसी प्रकार भारत में यथास्थिति, समस्सयाएं तथा मुद्दे पाठ्य विषय में बालकों की विविधता, असमानता तथा भारत में शिक्षा नीति के निर्माण में ऐतिहासिक दृष्टि तथा वर्तमान योजनाओं व शैक्षिक कार्यक्रमों का समावेश पाठ्यचर्या की पूर्णता स्पष्ट करता है। विषयवस्तु के चयन में नए शैक्षिक शोध कार्यों में प्राप्त निष्कर्षों को ध्यान मैं रखते हुए भी कई नई चुनौतियों जैसे जेंडर व समावेशी शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा आदि को पाठ्यचर्या में स्थान दिया गया है।

(4) वृत्तिगत क्षमताओं में वृद्धि की प्रासंगिकता- इस पाठ्यचर्या संरचना में बी.एड. उपाधि कार्यक्रम में इन चार वृत्तिगत क्षमताओं को सम्मिलित किया है जो शिक्षकीय वृत्ति में संलग्न शिक्षकों के लिए प्रासंगिक हैं-

(i) पठन तथा पाठ्य पर प्रतिक्रिया;

(ii) शिक्षा में कला व नाटक (रंगमंच एवं अभिनय);

(iii) सूचना संचार प्रौद्योगिकी की समीक्षात्मक समझ;

(iv) स्वयं की समझ।

ये चारों क्षमताओं भावी शिक्षक हेतु आवश्यक हैं। पठन तथा पाठ्य पर प्रतिक्रिया शिक्षक वृत्ति का अभिन्न अंग है। नाटक व कला का संबंध विद्यालय की पाठ्यसहगामी व पाठ्यक्रमेतर गतिविधियों हेतु छात्राध्यापकों को भावी जीवन में अपने छात्रों हेतु तैयार करना है। सूचना एवं संचार तकनीकी की समीक्षात्मक समझ अब शिक्षकों हेतु अनिवार्य सी है क्योंकि सभी क्षेत्रों की तरह शिक्षण में हाई टेक्नोलॉजी का निरंतर प्रयोग प्रारंभ हो चुका है। यहाँ तक कि ब्लैकबोर्ड को प्राचीन परम्परागत मानकर डिजिटल क्लास रूम अनेक शालाओं में लगने शुरू हो गए हैं। छात्राध्यापक स्वयं की समझ के द्वारा अपनी योग्यताओं-क्षमताओं, धारणाओं, दृष्टिकोणों, गुणों तथा अवगुणों को समझकर विद्यार्थियों के विकास में अपेक्षाकृत बेहतर ढंग से योगदान करने में सक्षम हो सकेगा ।

(5) निर्दिष्ट गृह कार्यों की सभी विषयों से संगति- पाठ्यचर्या में क्षेत्र से जुड़ाव के अंतर्गत सभी पाठ्य विषयों में निर्दिष्ट गृहकार्य छात्राध्यापकों से करवाने का प्रावधान है जिनकी आंतरिक मूल्यांकन में प्रश्न पत्र के अंक प्रदान करने का प्रावधान है। ऐसा छात्राध्यापकों की पाठ्यविषयों पर विस्तृत अध्ययन कर असाइन्मेंट जमा करने की शैक्षिक व क्रियात्मक प्रवृत्ति की समझ विकसित करने हेतु प्रावधानित है क्योंकि निर्दिष्ट गृह कार्य पाठ्य विषयों के प्रकरणों से प्रत्यक्षतः या परोक्षतः संबंधित होंगे अतः उनकी पाठ्य विषय से संगति सुस्पष्ट है।

(6) स्कूल इंटर्नशिप कार्यक्रम से शालागत अनुभवों का विकास- बी.एड. की पाठ्यचर्या में सर्वाधिक आंतरिक अंक (350) का महत्त्वांक (वेटेज) शालेय अनुभवों पर निर्धारित है । शाला में छात्राध्यापक पाठ योजनाएं बनाकर शिक्षण विधियों का समुचित प्रयोग करते हुए 15 हप्तों की दीर्घावधि शालेय शिक्षण कार्य तथा अन्य शालेय गतिविधियों का अभ्यास करते हैं। यह अवधि छात्राध्यापकों हेतु शालेय जगत से जुड़ाव के लिए पर्याप्त है !

(7) वैकल्पिक पाठ्य विषयों के चयन की स्वतंत्रता- बी.एड. पाठ्यक्रम में कुछ विषय में कोर विषय है जिन्हें सभी छात्राध्यापकों द्वारा लेना होता है परंतु इसके अतिरिक्त कुछ विषय वैकल्पिक हैं जिनमें सुझाए गए विषयों में से कोई एक विषय का चयन छात्राध्यापक को करना होता है-

(i) मूल्य शिक्षा;

(ii) शिक्षा में भविष्यशास्त्र;

(iii) स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा;

(iv) पर्यावरण शिक्षाः

(v) क्रियात्मक अनुसंधान।

इस प्रकार के वैकल्पिक पाठ्यक्रम के प्रावधान से छात्रों को स्वतंत्रता से विषय चयन में सहायता मिलती है।

(8) सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक विषयों का आनुपातिक प्रतिनिधित्व- बी.एड. पाठ्यचर्या में कुल 200 अंक हैं जिसमें 885 आंतरिक मूल्यांकन तथा 1215 बाह्य मूल्यांकन के लिए प्रावधानित हैं। इस प्रकार कोरे सैद्धान्तिक विषयों को महत्त्व न देते हुए व्यावहारिक पक्ष को भी अनुपातिक उचित महत्त्व दिया गया है।

(9) पाठ्यचर्या की कमियाँ (न्यूनताएं) – पाठ्यचर्या में शिक्षा सांख्यिकी, शिक्षाविदों व दार्शनिकों के दर्शन व सिद्धान्त आदि जो पूर्व में पाठ्यचर्या में सम्मिलित विषय थे अब इस नवीन दो वर्षीय पाठ्यचर्या में हटा दिए गए हैं। फिर भी इस पाठ्यचर्या का महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि सैद्धान्तिक प्रश्न पत्रों में आंतरिक मूल्यांकन में 25 अंक जोड़े जाने का प्रावधान किया गया है तथा उसका विभाजन इस प्रकार (प्रत्येक प्रश्नपत्र हेतु) किया गया है-उपस्थिति (5 अंक), प्रथम परीक्षण (5 अंक), द्वितीय परीक्षा (5 अंक) निर्धारित कार्य असाइन्मेंट 10 अंक । सामुदायिक । स्थिति निर्धारण में आंतरिक मूल्यांकन में अंकों के स्थान पर ग्रेडिंग की व्यवस्था की गई है।

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