अनिवार्य (कोर) पाठ्यक्रम की विशेषताएं बताए ।

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अनिवार्य (कोर) पाठ्यक्रम से तात्पर्य

अनिवार्य (कोर) पाठ्यक्रम का तात्पर्य ऐसे पाठ्यक्रम से है जो शिक्षा के हर शैक्षिक स्तर-प्राथमिक, माध्यमिक (मिडिल), उच्च माध्यमिक (हाईस्कूल) एवं उच्चतर माध्यमिक (+2) में अनिवार्य रूप से लागू किया जाय और जिसके अन्तर्गत पढ़ाये जाने वाले अनिवार्य तथा ऐच्छिक विषयों का उल्लेख किया जाय। मुदालियर कमीशन, माध्यमिक शिक्षा आयोग, कोठारी कमीशन आदि सभी ने हर स्तर पर पाठ्यक्रम में कुछ अनिवार्य विषयों के समावेश की बात कही थी। इन अनिवार्य विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर इसलिए बल दिया गया कि निर्धारित शैक्षिक स्तर तक विभिन्न विषयों का अध्ययन-अध्यापन कराकर बालकों में ऐसे ज्ञान-कौशल तथा क्षमताओं का विकास किया जा सके जिससे कि उनका सर्वांगीण विकास ही न हो वरन् वे जीवन में प्रवेश के लिए तैयार किये जा सकें।


अनिवार्य पाठ्यक्रम की विशेषताएँ

वर्तमान में हर शैक्षिक स्तर की संरचना तथा अवधि का निर्धारण करते हुए उनके लिए अनिवार्य पाठ्यक्रम भी निर्धारित किया गया। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं-

(1) दो-तीन वर्ष से 5 वर्ष तक की पूर्व विद्यालय शिक्षा, पूर्व प्राथमिक विद्यालय में दी जायेगी। इसमें नर्सरी,मान्टेसरी तथा किंडर गार्टन पद्धति से शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी। इसका पाठ्यक्रम बालकों की रुचियों के अनुरूप ज्यादातर मौखिक होगा। खेल-खेल में शिक्षा देना तथा आदतों का निर्माण एवं बाल विकास करना इसका मुख्य उद्देश्य होगा। इस स्तर पर शिक्षा का स्वरूप बालकेन्द्रित होगा।

(2) छ: वर्ष से 10 वर्ष तक के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालयों में प्रदान की जायेगी। इसका अनिवार्य पाठ्यक्रम होगा एक भाषा-हिन्दी या मातृभाषा अथवा अंग्रेजी। अगर हिन्दी न ली जाय तो दूसरी भाषा के रूप में सामान्य हिन्दी को लेना अनिवार्य है। गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन विषय अनिवार्य विषयों एवं अनिवार्य पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आते हैं। इसके अतिरिक्त हर छात्र को एक हस्तकला कार्य, कृषि, बागवानी, डलिया बनाना, चित्रकारी, मूर्ति तथा खिलौने बनाना आदि में से एक का चयन अनिवार्य रूप से करना होगा।

(3) माध्यमिक शिक्षा (मिडिल) 11 से 14 वर्ष के बालकों हेतु तीन वर्ष की रखी गई है। इसमें छात्र को एक भाषा हिन्दी या मातृभाषा अथवा अंग्रेजी और अगर हिन्दी न ली गई हो तो दूसरी भाषा के रूप में सामान्य हिन्दी लेना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त संस्कृत एवं अंग्रेजी विषयों का अध्ययन जरूरी है। भाषाओं के अतिरिक्त गणित, विज्ञान, सामाजिक-विज्ञान एवं एक हस्तकौशल का भी अध्ययन अनिवार्य है। इस तरह इस शैक्षणिक स्तर पर दो अथवा तीन भाषायें पढ़ना अनिवार्य पाठ्यक्रम के अन्तर्गत शामिल रहता है।

(4) उच्च माध्यमिक (हाई स्कूल) शिक्षा 14-15 से 15-16 वर्ष के बालकों हेतु दो वर्षीय होती है। इसमें प्रत्येक छात्र को तीन भाषायें अनिवार्य रूप से पढ़नी पड़ती हैं-मातृभाषा अथवा उच्च हिन्दी, उच्च अंग्रेजी या सामान्य अंग्रेजी। अगर मातृभाषा हिन्दी न हो या उच्च अंग्रेजी ली गई हो तो सामान्य हिन्दी अनिवार्य रूप से पढ़ना पड़ती है। तीसरी भाषा के रूप में मातृभाषा-देशी भाषा में से एक या विदेशी भाषा में से एक या क्लासीकल भाषाओं में एक अनिवार्य रूप से पढ़ना पड़ती है। इसके अतिरिक्त गणित, विज्ञान, सामाजिक-विज्ञान तथा दो समाजोपयोगी कार्य जैसे बागवानी, नर्सिग, सिलाई, बढ़ईगिरी, फोटोग्राफी आदि का भी अध्ययन अनिवार्य है। इस स्तर पर नैतिक तथा शारीरिक शिक्षा का भी अनिवार्य पाठ्यक्रम होता है

(5) उच्चतर माध्यमिक (हायर सेकेण्ड्री) शिक्षा (+2) 15-16 से 16-17 वर्ष के बालकों हेतु होती है। इसमें अंग्रेजी, हिन्दी दो भाषायें उच्च अथवा निम्न भाषा के रूप में अनिवार्य रूप से पढ़ना जरूरी है। मातृभाषा अगर हिन्दी नहीं है एवं उसे उच्च भाषा के रूप में नहीं लिया गया है तो सामान्य हिन्दी पढ़ना अनिवार्य होता है। इस स्तर पर कला समूह, विज्ञान समूह, ललितकला समूह, व्यापार समूह, कृषि समूह अथवा गृहविज्ञान समूह, व्यावसायिक समूह में से तीन विषयों का चयन अनिवार्य रूप से करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त दो समाजोपयोगी विषय भी लेने पड़ते हैं जिससे व्यावसायिक कार्य-कुशलता बढ़ सके।

(6) +2 शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् ज्यादातर छात्र शिक्षा समाप्त कर अपने जीवन में प्रवेश करते हैं। क्योंकि उन्हें समाजोपयोगी कार्य के माध्यम से उनकी रुचि अनुसार व्यावसायिक शिक्षा मिल जाती है इसलिए उन्हें जीविकोपार्जन हेतु नौकरियों के लिए नहीं भटकना पड़ता है। जो छात्र +2 की शिक्षा समाप्त करते हैं तथा उनकी शैक्षिक उपलब्धि अच्छी होती है वे उच्चशिक्षा के लिए महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों में प्रवेश ले सकते हैं। ऐसे छात्रों में 3 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम-विज्ञान, कला, कृषि-गृहविज्ञान, ललितकला में से किसी एक समूह का चयन कर अध्ययन करना पड़ता है।

(7) अनिवार्य पाठ्यक्रम (कोर कैरीकुलम) की व्यवस्था के कारण शिक्षा के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सुविधा होती है क्योंकि ये अनिवार्य विषयों (कोर सब्जेक्ट्स) का समावेश करते हैं। इनके कारण जहाँ एक तरफ अच्छी शिक्षा की व्यवस्था हो जाती है वहीं उच्चतर माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा की भीड़-भाड़ को भी कम किया जाना संभव होता है। अनिवार्य पाठ्यक्रम ज्ञान, कौशल, क्षमताओं के साथ बालक का सर्वांगीण विकास करता है एवं है जीविकोपार्जन के साधन चुनने में भी सहायक सिद्ध होता है। इस तरह यह यर्थाथवादी एवं जीवनोपयोगी शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति करता है।

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