दी गई स्थिति में पाठ्यक्रम की संरचना तथा पाठ्यवस्तु और पाठ्य-पुस्तकों की समीक्षा का वर्णन कीजिए।

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  शिक्षक-शिक्षा का वर्तमान पाठ्यक्रम सिर्फ व्यावसायिक कौशल पर ज्यादा बल देता है अथवा शिक्षण विधियों तक सीमित है एवं शिक्षक के व्यक्तित्व के विकास हेतु इसमें कम स्थान है अथवा उसकी सामाजिक क्षमताओं या प्रत्ययी योग्यताओं दूसरे शब्दों में रचनात्मक विचार, योजना या शोध योजना पर कम ध्यान देता है। इस तरह के शिक्षक नवीन विचारों के जनक एवं समालोचक होने के स्थान पर शैक्षिक विचारों का उपभोक्ता बन जाता है। शिक्षक निर्माण का सन्तुलित पाठ्यक्रम शिक्षक को ऐसे अवसर लेता है जिससे व्यक्ति के रूप में उसका पूर्ण विकास हो सके। उसे शिक्षण कला का विशेषज्ञ या कक्षा का प्रबन्धक न होकर सृजनात्मक कल्पना का व्यक्ति होना चाहिए।

शिक्षक-शिक्षा का व्यापक पाठ्यक्रम शिक्षक के सर्वांगीण विकास हेतु सभी पाठ्यक्रमों को अपने में समाहित करना चाहिए।

दी गई स्थिति में पाठ्यक्रम की संरचना

प्रश्न-पत्रपाठ्यक्रम
प्रथम
प्रश्न-पत्र-शिक्षा के दार्शनिक तथा समाजशास्त्रीय आधार
इकाई- I. शिक्षा तथा उसके उद्देश्य-(अ) शिक्षा की प्रकृति, (ब) शिक्षा का आधार (व्यक्तिगत एवं सामाजिक), (स) शिक्षा के कार्य, (द) शिक्षा तथा दर्शन का सम्बन्ध ।
 इकाई- II. (अ) न्याय, (ब) सांख्य, (स) योग, (द) वेदान्त दर्शन के अनुसार-शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियां ।
 इकाई- III. (अ) प्रकृतिवाद, (ब) आदर्शवाद, (स) प्रयोजनवाद, (द) यथार्थवाद के अनुसार-शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियाँ।
 इकाई- IV. भारतीय सामाजिक व्यवस्था एवं शिक्षा-(अ) | भारतीय समाज की प्रकृति एवं विशेषताएं, सामाजिक परिवर्तन गतिशीलता तथा इसका बालक की शिक्षा पर प्रभाव, बालक का समाजीकरण करने वाले तत्त्व, (स) समाजीकरण के साधन-(1) घर, (2) स्कूल, (3) समाज, (4) शिक्षा आर्थिक विकास के यन्त्र के रूप में ।
 इकाई- V. मूल्य शिक्षा तथा विचारक-(अ) मूल्य शिक्षा का अर्थ तथा आवश्यकता, (ब) बालक को मूल्य शिक्षा देने के साधन, (स) मूल्य के विकास में घर, विद्यालय, समाज की भूमिका, (द) महात्मा गाँधी, विवेकानन्द, श्री अरविन्दो एवं मॉण्टेसरी का शिक्षा में योगदान ।
द्वितीय
प्रश्न-पत्र-भारतीय शिक्षा तथा इसकी समस्याएं
इकाई I, भारतीय शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-(अ) बौद्धिक तथा बौद्धकालीन, (ब) मध्यकालीन तथा (स) आधुनिक (स्वतन्त्रता से पूर्व एवं स्वतन्त्रता के बाद)।
 इकाई II. राष्ट्रीय शिक्षा आन्दोलन के सन्दर्भ में-(अ) प्रारम्भिक शिक्षा (पूर्व-प्राथमिक एवं प्राथमिक शिक्षा), (ब) माध्यमिक |शिक्षा तथा (स) उच्च शिक्षा ।
 इकाई III. शिक्षा के विकासशील क्षेत्र – (अ) राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम, (ब) निरन्तर अथवा सतत शिक्षा का अर्थ तथा प्रकृति, (स) दूरस्थ शिक्षा।
 इकाई IV. शिक्षक-शिक्षा-(अ) भारत में शिक्षक-शिक्षा का संगठनात्मक स्वरूप तथा इसकी समस्याएं (सेवाकाल से पूर्व तथा सेवाकाल के दौरान), (ब) विविध भारतीय आयोगों द्वारा दिये गये शिक्षक-शिक्षा में गुणात्मक सुधार, (स) शिक्षक-शिक्षा की नवीन प्रवृत्तियाँ एवं N.C.TE. की भूमिका ।
 इकाई V. शिक्षा की विशिष्ट समस्याएं-(अ) शैक्षिक अवसरों की समानता, (ब) राष्ट्रीय एकता, (स) जनसंख्या शिक्षा, (द) पर्यावरण शिक्षा, (य) भाषा की समस्या
तृतीय
प्रश्न-पत्र-शिक्षा मनोविज्ञान तथा मापन
इकाई I. शैक्षिक मनोविज्ञान तथा विकास-(अ) शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति तथा क्षेत्र, (ब) विकासात्मक प्रक्रिया-किशोरावस्था में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक विकास, (स) विशिष्ट बालकों की शिक्षा ।
 इकाई II. अधिगम-(अ) अधिगम की प्रकृति, प्रक्रिया तथा अधिगम को प्रभावित करने वाले तत्त्व, (ब) स्मृति एवं विस्मृति तथा स्थानान्तरण को प्रभावित करने वाले कारक, सीखने के सिद्धान्त, (थार्नडाइक, पावलॉव, स्किनर), (स) अभिप्रेरणा की प्रकृति एवं शैक्षिक उपयोग।
 इकाई III. शैक्षिक मापन तथा मूल्यांकन की अवधारणा-(अ) शैक्षिक मापन एवं मूल्यांकन का अर्थ, (ब) निर्देशात्मक उद्देश्य (ब्लूम के आधार पर),(स) निष्पत्ति मापन का प्रमापीकृत परीक्षण, (द) निदानात्मक परीक्षण तथा उपचारात्मक उपाय, (य) क्रियात्मक अनुसन्धान ।
 इकाई IV. बुद्धि एवं व्यक्तित्व का मापन-(अ) व्यक्तित्व की अवधारणा एवं इसका मापन प्रक्षेपण तकनीकी के विशेष सन्दर्भ में, (ब) बुद्धि के मापन की अवधारणा, शाब्दिक, अशाब्दिक तथा क्रियात्मकता का परीक्षण, (स) सृजनात्मकता की अवधारणा, उसका मापन ।
 इकाई v. सांख्यिकी-शैक्षिक अनुप्रयोग तथा परिणामों की व्याख्या की अवधारणा-(अ) केन्द्रीय प्रवृत्ति का मापन,मध्यमान, मध्यांक, बहुलांक, उनकी गणना एवं प्रयोग, (ब) विचलन का मापन, रेंज, चतुर्थांक विचलन, मध्यमान विचलन, प्रामाणिक विचलन, उनकी गणना एवं प्रयोग, (स) सहसम्बन्ध तथा उसके प्रयोग एवं कोटि अन्तरविधि से उसकी गणना, (द) ग्राफ के प्रयोग (हिस्टोग्राम तथा फ्रीक्वेंसी पोलीगॉन एवं ओजाइव्स)।
चतुर्थ
प्रश्न-पत्र-विद्यालय प्रशासन तथा स्वास्थ्य शिक्षा
इकाई I. प्रशासन एवं पर्यवेक्षण-(अ) केन्द्र, उप्र. तथा जिला स्तर पर शिक्षा का प्रशासन और प्रशासनिक संगठन, (ब) विद्यालय का पर्यवेक्षण।
 इकाई II. विद्यालयी वातावरण तथा निर्देशन-(अ) शैक्षिक प्रशासन की नेता के रूप में भूमिका (अध्यापक एवं प्रधानाचार्य), (ब) विद्यालय अनुशासन, (स) विद्यालय में निर्देशन की व्यवस्था।
 इकाई III. आन्तरिक कार्यक्रम तथा आयोजन-(अ) विद्यालय का पाठ्यक्रम एवं पाठ्येतर क्रियाएं, समय तालिका, (ब) विद्यालय तथा समुदाय-(1) शिक्षक अभिभावक संघ, (2) पाठ्यक्रम की संरचना, (3) पुस्तकालय, संग्रहालय एवं कार्यशाला, (स) विद्यालय के अभिलेख-डायरियाँ, उपस्थिति रजिस्टर, संचयी अभिलेख।
 इकाई IV. स्वास्थ्य शिक्षा-(अ) उत्तम स्वास्थ्य की विशेषताएं, (ब) आंख एवं कान के सामान्य रोग, (स) सीखने वाले का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य-भारतीय परिस्थितियों के अनुसार सन्तुलित भोजन के सन्दर्भ में शारीरिक आयाम एवं आसन।
 इकाई V. स्वास्थ्य एवं वातावरण-(अ) स्वच्छता की अवधारणा-विद्यालय प्रांगण,कक्षा-कक्ष प्रयोगशाला,शौचालय एवं खेल के मैदान के विशेष सन्दर्भ में, (ब) विद्यालयी स्वास्थ्य सेवाएं, चिकित्सीय जाँच कार्यक्रम, (स) प्राथमिक चिकित्सा ।
पंचम
प्रश्न-पत्र-शैक्षिक तकनीकी
इकाई । शैक्षिक प्रौद्योगिकी का अर्थ, प्रकृति एवं क्षेत्र-(अ) शैक्षिकप्रौद्योगिकी की परिभाषाएं तथा उद्देश्य, (ब) शैक्षिक प्रौद्योगिकी के प्रकार- (i) शिक्षण तकनीकी, (ii) अनुदेशन तकनीकी, (iii) व्यवहार तकनीकी, (iv) अनुदेशन प्रारूप तकनीकी, (स) शैक्षिक प्रौद्योगिकी का क्षेत्र ।
 इकाई II शैक्षिक प्रौद्योगिकी में निर्देशात्मक नीतियाँ-(अ) अभिक्रमित अधिगम (रेखीय, शाखीय तथा गणितीय), (ब) सूक्ष्म शिक्षण, (स) कम्प्यूटर आधारित अधिगम ।
 इकाई III. शिक्षा प्रौद्योगिकी तथा जन माध्यम-(अ) सॉफ्टवेयर का ज्ञान, (ब) हार्डवेयर का ज्ञान-स्लाइड प्रोजेक्टर, फिल्म स्ट्रिप प्रोजेक्टर, टेप रिकॉर्डर, सी.सी.टी.वी., रेडियो तथा ओवरहैड प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर आधारित नई तकनीकी जैसे-ई-मेल इण्टरनेट, वी.सी.डी., टैली तथा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, कक्षा-कक्ष में जन-माध्यम।
 इकाई IV. शैक्षिक प्रतिमान-(अ) आसुबेल प्रतिमान मॉडल, (ब) सचमैन मॉडल, (स) ब्लूम मॉडल ।
 इकाई V. शैक्षिक प्रौद्योगिकी के संसाधन केन्द्र-(अ) संसाधन केन्द्रों का अर्थ तथा संगठन, (ब) संसाधन केन्द्रों के कार्य, (स) C.I.E.T., E.T. Cells एवं DIET की भूमिका
छठा
प्रश्न-पत्र-विद्यालयी विषयों का शिक्षण
नोट- 1. कोई भी दो विषय चुनें । 2. प्रत्येक विषय के 50-50 अंक होंगे। 3. विद्यार्थी को तीन यूनिटों में से हर में से एक
प्रश्न करना अनिवार्य है।
हिन्दी शिक्षण, अंग्रेजी शिक्षण तथा संस्कृत शिक्षण का पाठ्यक्रमइकाई I. उद्देश्य एवं पाठ्यक्रम-1. भाषा का स्वदेश में स्थान एवं पाठ्यक्रम, 2. विविध स्तरों पर भाषा शिक्षण के उद्देश्य, 3. भाषा की पाठ्य-पुस्तक की आवश्यकता, गुण एवं सीमाएं ।s
 इकाई II. विधियाँ, प्रविधियाँ सामग्री सूत्र एवं पद्धतियाँ-1. भाषा शिक्षण की विधियाँ, 2. भाषा शिक्षण की प्रविधियाँ एवं सहायक सामग्री, 3. पाठ-सूत्र एवं गद्य शिक्षण, कविता शिक्षण व्याकरण शिक्षण, नाटक शिक्षण, कम्पोजीशन शिक्षण एवं श्रुतिपाठ की शिक्षा देने की विधियाँ।
 इकाई III मूल्यांकन प्रविधियाँ-1. निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली-स्वरूप, विशेषता एवं सीमाएं,2. नवीन परीक्षा प्रणाली (वस्तुनिष्ठ) इसके विविध प्रकार, विशेषताएं एवं सीमाएं, 3. परीक्षकों का निर्माण |
नागरिकशास्त्र, इतिहास, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, भूगोल तथा सामाजिक विज्ञान काइकाई I. लक्ष्य तथा उद्देश्य-1. सामाजिक अध्ययन में विविध विषयों का विविध विद्यालयी स्तरों पर शिक्षण तथा उद्देश्य, 2. लक्ष्य तथा उद्देश्य प्राप्ति के लिए पाठ्यक्रम एवं प्रकरण का | पाठ्यक्रम प्रस्तुतीकरण-(a) पाठ्यक्रम विभिन्न स्तरों पर स्कूल पाठ्यक्रम के सिद्धान्त एवं समानता, (b) विषय का स्कूल पाठ्यक्रम में स्थान एवं महत्त्व, (c) अन्य स्कूली विषयों से सहसम्बन्ध ।
 इकाई II. शिक्षण विधि, प्रविधि-(a) शिक्षण की विभिन्न विधियाँ, (b) पाठ-सूत्र, (c) शिक्षण की सहायक सामग्री का प्रदर्शन एवं उपयोग, (d) सामाजिक विज्ञान कक्ष, (c) सामाजिक विज्ञान का प्रभावशाली अध्यापन ।
 इकाई III. मूल्यांकन-(a) मूल्यांकन के तत्त्व अधिगम अनुभव एवं मूल्यांकन के उद्देश्य, (b) सामाजिक विज्ञान के मूर्त्यांकन हेतु विभिन्न आइटम की तैयारी तथा निर्माण, (c) सामाजिक विज्ञान की पाठ्य-पुस्तक का मूल्यांकन ।
विज्ञान, जीवविज्ञान एवं गणित शिक्षण का पाठ्यक्रमइकाई I. विज्ञान, जीवविज्ञान एवं गणित शिक्षण के लक्ष्य तथा उद्देश्य, (a) उद्देश्य-ज्ञान, अवबोध, प्रयोग, कौशल, रुचि, अनुशंसा, मनोवृत्ति, (b) विज्ञान, जीवविज्ञान एवं गणित के पाठ्यक्रम निर्माण एवं विकास के सिद्धान्त, (c) विज्ञान, जीवविज्ञान एवं गणित के शिक्षण बिन्दुओं में निर्धारण के लिए प्रकरण का विकास।
 इकाई II. विज्ञान, जीवविज्ञान एवं गणित शिक्षण की विधियाँ तथा प्रविधियाँ-(a) विविध विधियाँ यथा-पाठ्य-पुस्तक, व्याख्यान विधि, प्रदर्शन विधि, प्रयोगशाला विधि, ह्यूरिस्टि विधि एवं प्रोजेक्ट विधि, विज्ञान एवं जीवविज्ञान के लिए आगमन निगमन विधि, (b) विज्ञान, जीवविज्ञान एवं गणित शिक्षण में विविध प्रविधियों एवं रीतियों का प्रयोग, (c) विविध सामग्री उपकरणों का प्रयोग पुस्तकालय, प्रयोगशाला, शिक्षण की सहायक सामग्री एवं पाठ्य-पुस्तक का महत्त्व,(d) उक्त विधियों का आधारित पाठ-सूत्र ।
 इकाई III. अधिगम के उद्देश्य, अनुभव एवं मूल्यांकन, विज्ञान, जीवविज्ञान एवं गणित के मूल्यांकन हेतु विविध प्रश्नों की तैयारी एवं निर्माण, (c) निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण-निदानात्मक परीक्षण की प्रकृति एवं कार्य एवं उपचारात्मक शिक्षण के लिए कार्यक्रम का विकास (विज्ञान, जीवविज्ञान एवं गणित शिक्षण के सन्दर्भ में)।

पाठ्यवस्तु-पाठ्य-पुस्तक की समीक्षा

पाठ्यवस्तु के लाभ

1. पाठ्यवस्तु संरचित होने से उसे स्मरण रखना आसान हो जाता है।

2. पाठ्यवस्तु अंशों तथा इकाइयों में विभक्त होने के कारण मानकों का निर्माण स्तरानुसार किया जा सकता है। 3. पाठ्यवस्तु के कारण ज्ञान तथा बोध का विस्तार होता है ।

4. पाठ्यवस्तु होने से ज्ञान को सीमाबद्ध किया जा सकता है।

5. पाठ्यवस्तु के कारण विषय का संश्लेषण तथा विश्लेषण आसानी से हो जाता है।

पाठ्यवस्तु की सीमाएं

पाठ्यवस्तु की कुछ सीमाएं भी हैं-

1. पाठ्यवस्तु के कारण ज्ञान को सीमाओं में बाँटा जाता है।

2. यह ज्ञात करना कठिन हो जाता है कि किस स्तर पर कितना ज्ञान देना चाहिए।

पाठ्यवस्तु प्रभावशाली बनाने के सुझाव

पाठ्यवस्तु को प्रभावशाली बनाने हेतु कुछ सुझाव दिये जा सकते हैं-

1. पाठ्यवस्तु का आकार ज्यादा बड़ा नहीं होना चाहिए।

2. पाठ्यवस्तु में प्रकरणों को स्तरानुसार विभक्त करना चाहिए।

3. पाठ्यवस्तु के भीतर से ही परीक्षा के प्रश्न-पत्र बनाने चाहिए। कोर्स के बाहर के प्रश्नों को परीक्षा में नहीं पूछना चाहिए।

4. वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को पाठ्यवस्तु से ही पूछना चाहिए।

5. परीक्षा के प्रश्न-पत्र सम्पूर्ण पाठ्यवस्तु पर आधारित करके बनाना चाहिए जिससे उनको पढ़ने वाला ही उत्तर दे सके।

पाठ्य-पुस्तकों की समीक्षा

पाठ्य-पुस्तक के लाभ

1. ये परीक्षा के समय छात्रों की मदद करती है।

2. पाठ्य-पुस्तकें छात्रों को विषय-वस्तु को संकलित करने में मदद प्रदान करती है।

3. पाठ्य-पुस्तकों के आधार पर कक्षा कार्य का मूल्यांकन संभव होता है।s

4. पाठ्य-पुस्तक के आधार पर हर राज्य में, हर कक्षा में एक निश्चित पाठ्य-वस्तु का अध्यापन सम्भव होता है एवं इससे छात्रों का मूल्यांकन सामूहिक रूप से किया जा सकता है।

5. योग्य शिक्षकों का ज्ञान भी अव्यवस्थित होता है। इसलिए उसे व्यवस्थित करने में पाठ्य-पुस्तकें मददगार होती हैं। इसी तरह छात्रों के अपूर्ण ज्ञान को परिवर्धित तथा पूर्णता प्रदान करने में भी यह मददगार होती हैं।

6. इनके माध्यम से छात्रों की स्मरण तथा तर्क शक्ति का विकास होता है।

7. पाठ्य-पुस्तकें मन्द बुद्धि तथा प्रतिभाशाली दोनों तरह के बालकों के लिए उपयोगी सिद्ध होती हैं।

8. पाठ्य-पुस्तकों से अध्ययन-अध्यापन में एकरूपता आती है।

9. पाठ्य-पुस्तकों में विषय के पाठ्यक्रम की सम्पूर्ण रूप से व्याख्या की जाती है जिससे शिक्षक उपयुक्त अधिगम अनुभव प्रदान कर सकता है।

10. पाठ्य-पुस्तकें शिक्षक तथा छात्र दोनों को विद्वानों के बहुमूल्य विचारों तथा उपयोगी अनुभवों को प्रदान करती हैं जिससे वे इन अनुभवों का लाभ उठाने में समर्थ हो सकते हैं।

11. छात्रों का मानसिक स्तर इतना ऊंचा नहीं होता कि वे विद्यालय में पढ़ाई गई विषय-वस्तु को एक ही बार आत्मसात् कर सकें । उन्हें विषय-वस्तु को कई बार पढ़ना तथा दोहराना पड़ता है। अत: पाठ्य-पुस्तक की जरूरत होती है।

12. पाठ्य-पुस्तकों द्वारा छात्रों तथा शिक्षकों के समय की बचत होती है।

पाठ्य-पुस्तक से हानियाँ/सीमाएं

1. पाठ्य-पुस्तक में पाठ्यवस्तु से ज्यादा सामग्री दी जाती है जिससे पाठ्य-पुस्तक का आकार बड़ा हो जाता है।

2. पाठ्य-पुस्तक के प्रकरण उपयोगिता के आधार पर निर्धारित नहीं होते हैं इससे पाठ्य-पुस्तकें बोझिल एवं उबाऊ हो जाती हैं।

पाठ्य-पुस्तक के निर्माण के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव

1. पाठ्य-पुस्तकों की रचना पाठ्यक्रम के उद्देश्यों के अनुरूप की जानी चाहिए।

2. पाठ्य-पुस्तकों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए।

3. मौलिक रूप से रचना करने वाले अनुभवी लेखकों से ही पाठ्य-पुस्तकें लिखवानी चाहिए।

4. उच्च शिक्षा स्तर पर पाठ्य-पुस्तक के स्थान पर अच्छे स्तर की कई पुस्तकों का निर्माण किया जाये।

5. पाठ्य-पुस्तक को प्रकाशित करने से पहले उसकी पाण्डुलिपि का अध्ययन विषय-विशेषज्ञों की एक सीमा द्वारा कराया जाना चाहिए।

6. पाठ्य-पुस्तकों में सुधार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पाठ्य-पुस्तक समिति का गठन किया जाये जो समय-समय पर उसमें गुणात्मक सुधार हेतु लेखकों तथा प्रकाशकों को उपयुक्त परामर्श देती रहे ।

7. पाठ्य-पुस्तकों के मूल्यों पर सरकार द्वारा नियन्त्रण रखा जाना चाहिए एवं मूल्य कम रखने हेतु प्रकाशकों को सहायता अनुदान दिया जाना चाहिए।

8. पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण में व्यक्तिगत वर्गगत तथा राजनीतिक हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

9. उत्तम पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण के लिए राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर अनुभवी और योग्य लेखकों की गोष्ठियाँ तथा सम्मेलन आयोजित किये जाने चाहिए।

10. पाठ्य-पुस्तकों की विषय-वस्तु किसी सम्प्रदाय एवं वर्ग विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली नहीं होनी चाहिए।

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