पाठ्यक्रम के संगठन के बारे में लिखो।

Estimated reading: 1 minute 92 views

पाठ्यक्रम-विकास के विभिन्न सोपानों के अन्तर्गत शैक्षिक उद्देश्यों के निर्धारण, अधिगम-अनुभवों के चयन तथा अन्तर्वस्तु के चयन के पश्चात् प्रमुख समस्या अन्तर्वस्तु को संगठित करने की होती है। हैरिक एवं हाइटलर के अनुसार तो अधिगम-अनुभवों एवं अन्तर्वस्तु संग्रथन एवं संगठन ही पाठ्यक्रम प्रक्रिया की केन्द्रीयभूत समस्या है। इनकी दृष्टि में शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण, शिक्षार्थी की प्रकृति का अध्ययन आदि की उपयोगिता पाठ्यक्रम के संगठन के कार्य की तैयारी के रूप में ही होती है।

पिछले अध्यायों में हम शैक्षिक उद्देश्यों के निर्धारण तथा अधिगम-अनुभवों एवं अन्तर्वस्तु के चयन के विभिन्न पक्षों की चर्चा कर चुके हैं। इस अध्याय में हमारा उद्देश्य चयन की हुई विषय-वस्तु को किन-किन स्वरूपों में रखा जा सकता है, इसका विवेचन करना है । जेम्स एम.ली. के अनुसार पाठ्यक्रम की संरचना का निर्माण छः पृथक तत्त्व मिलकर करते हैं। ये तत्त्व हैं-आयोजन या प्रकल्प, क्षेत्र, अनुक्रम, सातत्य, सन्तुलन अथवा विस्तार तथा एकीकरण । पाठ्यक्रम का आयोजन जिस ढंग से किया जायेगा, वह पाठ्यक्रम को एक स्वरूप प्रदान करेगा। इस प्रकार आयोजन के तरीकों में जितने प्रकार के अन्तर या भेद हो सकते हैं, उतनी ही प्रकार के पाठ्यक्रम के स्वरूप होंगे। दूसरे शब्दों में उतने ही पाठ्यक्रम के प्रकार होंगे।

सेलर एवं एलेक्जेण्डर ने पाठ्यक्रम आयोजन का प्रकल्प के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है-

“पाठ्यक्रम प्रकल्प (आयोजन) वह ढाँचा या संरचना है जिसका विद्यालय में शैक्षिक अनुभवों के चुनने, नियोजित करने तथा कार्यान्वित करने में प्रयोग किया जाता है। अतः प्रकल्प वह योजना है जिसका सीखने की क्रियाओं को प्रदान करने के लिए शिक्षक द्वारा अनुसरण किया जाता है।”

(Curriculum design is the pattern or frame work of Structural Organisation used in selecting, planning and carrying and forward educational experience in the school. Design is thus the plan that teachers follow in providing learning activities).

Saylor & Alexander

अत: संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्रकल्प वह ढंग है जिसको अपनाकर सीखने का अनुभवों एवं चयनित अन्तर्वस्तु को संगठित तथा निर्मित किया जाता है।

पाठ्यक्रम संगठन के प्रतिमान

जेम्स एम.ली. के अनुसार पाठ्यक्रम संगठन के दो प्रमुख प्रकल्प हैं

1. अंशों में विभाजित प्रकल्प

2. एकीकृत प्रकल्प

अंशों में विभाजित प्रकल्प के अन्तर्गत प्रत्येक विषय को पृथक रूप से संगठित किया जाता है तथा उसे अपरिवर्तनीय समझा जाता है। इसके अनुसार शिक्षण सम्पूर्ण कक्षा समूह के लिए होता है। इसमें निर्देशात्मक प्रक्रिया दृढ़ एवं परम्परागत ढंग से होती है।

एकीकृत प्रकल्प या प्रतिमान के अन्तर्गत विषय-वस्तु की पृथकता के स्थान पर अध्ययन की जाने वाली समस्या के आधार पर विषयों को एकीकृत किया जाता है। इसमें शिक्षक एवं शिक्षार्थियों की सहयोगी क्रियाओं, नियोजन आदि को भी स्थान प्रदान किया जाता है। इसमें सम्पूर्ण कक्षा समूहों के साथ-साथ वैयक्तिक अध्ययन तथा छोटे-छोटे समूहों के कार्यों को भी महत्त्व दिया जाता है। इसमें निर्देशात्मक प्रक्रिया लचीली होती है।

विषय-आधारित प्रतिमान जिसके अन्तर्गत अन्तर्वस्तु को पृथक स्पष्ट विषयों के रूप में आयोजित या प्रारूपित करने का प्रयास किया जाता है, एक सुपरिचित एवं परम्परित प्रतिमान है। विगत वर्षों में पाठ्यक्रम संगठन के क्षेत्र में जो अनेक प्रयोग किये गये हैं उनके परिणामस्वरूप अनेक नवीन प्रतिमान प्रकाश आये हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका इस कार्य में अग्रणी रहा है यहाँ प्रचलित प्रतिमानों को तीन प्रमुख वर्गों में रखा जा सकता है

1. पाठ्यक्रम के सामान्य प्रतिमान,

2. पाठ्यक्रम के विशिष्ट प्रतिमान,

3. पाठ्यक्रम का तृतीय प्रतिमान अथवा छात्र प्रवृत्तियाँ ।

1. पाठ्यक्रम का सामान्य प्रतिमान- इसे सामान्य पाठ्यक्रम कहा जाता है। इसके अन्तर्गत वे विषय-समूह तथा अन्य अधिगम क्रियाएं सम्मिलित की जाती हैं जो सभी छात्र-छात्राओं के लिए अनिवार्य होती हैं तथा जिनका उद्देश्य उन्हें उत्तम नागरिक बनाना होता है। अमेरिका में इस प्रकार के पाठ्यक्रम की घोषणा वहाँ स्वतन्त्रता की घोषणा के समय प्राचीन विश्व-प्रणाली से आगे एक प्रगतिशील कदम के रूप में की गई थी।

2. पाठ्यक्रम का विशिष्ट प्रतिमान- इसके अन्तर्गत वे विभिन्न विषय-समूह तथा अन्य सम्बन्धित अधिगम क्रियाएं सम्मिलित की जाती हैं जिनमें से विद्यार्थी अपनी अभिरुचियों एवं भावी व्यावसायिक जीवन की आवश्यकताओं एवं योजनाओं के अनुसार चयन कर लेते हैं अर्थात् इसमें अनेक वैकल्पिक विषयों एवं क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है।

3. तृतीय पाठ्यक्रम या छात्र क्रियाएं- इसके अन्तर्गत खेलकूद, सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक तथा अन्य मनोरंजनात्मक क्रियाएं अथवा प्रवृत्तियाँ सम्मिलित होती हैं जिनमें से कुछ का चयन विद्यार्थी अपनी रुचि एवं अभियोग्यता के अनुसार कर लेते हैं। इस प्रतिमान को पाठ्य-सहगामी क्रियाओं के नाम से भी जाना जाता है।

इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों ने पाठ्यक्रम संगठन को अपने-अपने ढंग से वर्गीकृत किया है-

बर्टन का वर्गीकरण- बर्टन ने पाठ्यक्रम के विभिन्न प्रतिमानों को दो वर्गों में विभाजित किया है-

1. एसाइन-स्टडी-रिसाइट रेस्ट

2. इकाई योजना

बर्टन के अनुसार, समस्याएं एवं उद्देश्य तो पाठ्यक्रम का केन्द्र हैं तथा सामग्री एवं अनुभव इसके साधन हैं।

हैरिफ का वर्गीकरण- हैरिक ने पाठ्यक्रम-संगठन के चार प्रतिमान प्रस्तुत किये हैं-

1. विषय आधारित संगठन

2. व्यापक क्षेत्रीय संगठन

3. समस्या आधारित संगठन

4. आवश्यकता आधारित संगठन

हिल्डा टाबा का वर्गीकरण- हिल्डा टाबा ने विभिन्न पाठ्यक्रम-संगठनों को चार वर्गों में विभाजित किया है

1. व्यापक क्षेत्रीय पाठ्यक्रम

2. सामाजिक प्रक्रियाओं तथा जीवन कार्यों पर आधारित पाठ्यक्रम

3. क्रिया आधारित पाठ्यक्रम

4. समन्वित सामान्य पाठ्यक्रम

गुडलैंड का वर्गीकरण- गुडलैंड प्रचलित पाठ्यक्रमों को तीन वर्गों में विभाजित करते हैं। उनकी दृष्टि में जब संगठन-केन्द्रों का चयन किसी एक ही क्षेत्र में से किया जाता है तब एकिक प्रतिमान विकसित होते हैं, किन्तु जब एक साथ विभिन्न तत्त्वों के विकास का प्रयास किया जाता है तब व्यापक क्षेत्रीय तथा समन्वित प्रतिमान विकसित होते हैं। अत: ये तीन वर्ग हैं-

1. एकिक प्रतिमान

2. व्यापक क्षेत्रीय प्रतिमान

3. समन्वित प्रतिमान

स्मिथ, स्टेनली एवं शोर्स का वर्गीकरण- पाठ्यक्रम-योजनाओं के सूक्ष्म विश्लेषक स्मिथ, स्टेनली एवं शोर्स की दृष्टि से भी पाठ्यक्रम के प्रमुख तीन प्रतिमान हैं-

1. विषयगत प्रतिमान

2. क्रियागत प्रतिमान

3. समन्वित प्रतिमान

नवीन प्रतिमान (पूर्णतया मुक्त पाठ्यक्रम)

सबसे लचीले उपागम के रूप में ‘एमजिंग करीक्युलम’ अथवा पूर्णतया मुक्त पाठ्यक्रम प्रकाश में आया है । इसकी कोई भी निश्चित संगठनात्मक संरचना नहीं होती है।

मैकेन्जी ने विभिन्न पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि उनमें मुख्य सैद्धान्तिक भेद यह है कि कुछ लोग पाठ्यक्रम के संगठन का आधार छात्रों की अभिरुचियों, आवश्यकताओं एवं अनुभवों को मानते हैं, जबकि दूसरे लोग विषयगत संगठन का समर्थन करते हैं।

उपर्युक्त सभी प्रतिमानों की अपनी-अपनी विशेषताएं एवं सीमाएं हैं। आवश्यकता अनुसार किसी भी प्रतिमान को अपनाया जा सकता है ।

Leave a Comment

CONTENTS