पाठ्यक्रम प्रारूप (डिजाइन) या प्रकल्प के संप्रत्यय को स्पष्ट कीजिए। पाठ्यक्रम प्रारूप के प्रकारों का वर्णन कीजिए।

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 पाठ्यक्रम प्रारूप या प्रकल्प (डिजाइन) पाठ्यचर्या निर्माण की दशा में प्रथम पग है यह पाठ्यचर्या निर्माण की प्रक्रिया की दिशा निर्देशित करता है। पाठ्यक्रम एक परिवर्तनशील तत्त्व है इसलिए उसकी डिजाइन या प्रारूप में भी बदलाव होता रहता है। यह बदलाव परिवर्तित होती हुई सामाजिक शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यक हो जाता है। इन बदलावों के परिणामस्वरूप पाठ्यचर्या प्रारूप के अनेक प्रकार भी सामने आए हैं।

पाठ्यचर्या प्रारूप के अर्थ को लेकर एवं अलेक्जेंडर ने इन शब्दों द्वारा व्यक्त किया है-पाठ्यचर्या प्रारूप वह ढाँचा या रूपरेखा है जो विद्यालय में शैक्षणिक अनुभवों का चयन करने, योजना तैयार करने तथा क्रियान्वित करने में प्रयुक्त की जाती है। यह वह योजना है जिसका अधिगम (सीखने) की गतिविधियों में शिक्षण अनुसरण करते हैं। जेम्स एम.ली के अनुसार विद्यार्थी पाठ्यचर्या की रूपरेखा का निर्माण इन छह भिन्न-भिन्न तत्त्व मिलकर करते हैं-

1. आयोजन का प्रारूप;

2. क्षेत्र:

3. अनुक्रम;

4. निरंतरता;

5. संतुलन या विचार;

6. एकीकरण।

पाठ्यचर्या प्रारूप के प्रकार- पाठ्यचर्या प्रारूप के ये तीन भाग या प्रकार हैं-

1. विषयकेन्द्रित प्रारूप;

2. छात्र केन्द्रित प्रारूप;

3. समस्या केन्द्रित प्रारूप

(1) विषय केन्द्रित प्रारूप- पाठ्यचर्या की यह डिजाइन विभिन्न विषयों को केन्द्र में रखती है। इस प्रारूप के तहत अधिगम के पारंपरिक क्षेत्रों के लिए पारंपरिक विषयों की अंतर्भानुशासनिक विषयों के लिए समस्या समाधान संबंधी तथा निर्णयन क्षमता संबंधी प्रक्रिया को इस उद्देश्य के साथ सम्मिलित किया जाता है कि छात्र इससे प्राप्त सूचनाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कर सकें। विषय केन्द्रित प्रारूप की प्रमुख विशेषताएं हैं-

1. अत्यधिक संरचनात्मक स्वरूप के कारण इसका निर्माण काफी सरल होता है।

2. यह प्रारूप इस बात पर जोर देता है कि छात्र किसी विशेष विषय या कोर्स से संबंधित ज्ञान का अधिकतम अर्जन कर सकें।

रेखाचित्र

विषयकेन्द्रित प्रारूप की सीमाएं

1. इसमें अधिगम अत्यंत सीमित हो जाता है।

2. यह विषयवस्तु पर इतना ध्यान देता है कि बालक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों एवं रुचियों की ओर ध्यान नहीं दे पाता।

(2) विद्यार्थी केन्द्रित प्रारूप- पाठ्यचर्या का यह प्रारूप मुख्यतः विद्यार्थियों की रुचि और आवश्यकता को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। इस प्रकार के प्रारूप में कुछ सामान्य क्रियाकलाप जैसे खेल, चित्रकला, कहानी आदि जिसमें बच्चों को शामिल किया जा सकता है, को अध्ययन-अध्यापन के केन्द्र में रखा जाता है। पाठ्यवस्तु अलग-अलग पाठ्य विषयों (गणित भाषा, विज्ञान) आदि में विभाजित होकर कार्यकलापों (खेलना, कहानी कथन) में विभाजित रहता है। विद्यालय पूर्व स्तर पर इस प्रकार के पाठ्यचर्या प्रारूप को काफी महत्त्व दिया जाता है।

इस पाठ्यचर्या प्रारूप की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें थ्री आर (रीडिंग, राइटिंग एवं अर्थमेटिक) के संप्रत्यय को विभिन्न कार्यकलापों में समाहित कर दिया जाता है।

विद्यार्थी केन्द्रित पाठ्यचर्या की सीमा यह है कि यह छात्र के बौद्धिक विकास के पक्ष को नकारता है।

(3) समस्या केन्द्रित पाठ्यचर्या प्रारूप- किसी वास्तविक समस्या को केन्द्र में रखकर पाठ्यवस्तु को संगठित करने के लिए जब पाठ्यचर्या प्रारूप का निर्माण किया जाता है तो इसे समस्या केन्द्रित पाठ्यचर्या प्रारूप कहा जाता है। पाठ्यचर्या के इस प्रारूप में विद्यार्थी अधिक शामिल होते हैं क्योंकि उनका उद्देश्य अपनी समस्या का समाधान करना होता है। इस प्रकार की पाठ्यचर्या में जीवन की वास्तविक समस्याएं, विद्यालयीन जीवन की समस्याएं, स्थानीय परिस्थिति जनित समस्याएं, दार्शनिक व नैतिक समस्याओं को ध्यान में रखा जाता है इस प्रकार के पाठ्यचर्या प्रारूप की प्रमुख सीमा यह है कि समय, धन व आवश्यक संसाधनों के अभाव में इसका क्रियान्वयन समुचित रूप से नहीं हो पाता है।

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