पाठ्यक्रम विकास की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए पाठ्यक्रम विकास की चक्रीय, प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।

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पाठ्यचर्या विकास की अवधारणा विशद व व्यापक है। पाठ्यचर्या विकास को एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया माना जाता है, जो अंतहीन है। विद्यालय में अधिगम अवसरों के नियोजन के द्वारा छात्रों के व्यवहार में ऐसा परिवर्तन लाना जो पाठ्यचर्या के उद्देश्यों के अनुरूप हो और छात्रों की वास्तविक किन्तु सर्वांगीण उन्नति का मूल्यांकन करना पाठ्यक्रम विकास के अंतर्गत आता है।

पाठ्यक्रम विकास के अर्थ और अवधारणा को इन परिभाषाओं से समझा जा सकता है-

(1) फियेरीस, फिआरियो तथा नोवाक (1970)- पाठ्यचर्या विकास मूल रूप में किसी परिवेश विशेष को इस प्रकार संगठित करने की योजना है जिसके माध्यम से समय, स्थान, सामग्री, उपकरण तथा व्यक्तियों से संबंधित घटकों को संबंधित क्रम में समन्वित करने का प्रयास किया जाता है।

(2) आर्मस्ट्रोंग तथा हंकिंस (1988)- पाठ्यक्रम विकास पद यह बताता है कि पाठ्यक्रम किस तरह प्रकाश में आता है अथवा नियोजित किया जाता है। इसका क्रियान्वयन तथा मूल्यांकन कैसे होता है और पाठ्यक्रम की सूचना या निर्माण से किस प्रकार से व्यक्ति, प्रक्रियाएं तथा कार्यविधियों को सम्मिलित किया जाता है।

(3) डॉ. एस.के. मंगल- पाठ्यक्रम विकास को एक ऐसी प्रक्रिया या प्रक्रम के रूप में समझा जा सकता है जिसमें वांछित शैक्षिक उद्देश्यों की उपलब्धि के संदर्भ में पाठ्यक्रम नियोजन, विषयवस्तु तथा अधिगम अनुभवों का चयन और आयोजन, इनको प्रदान की जाने वाली विधियाँ और तरीके सुझाना तथा अधिगम परिणामों का मूल्यांकन आदि गतिविधियों का संपादन किया जाता है।

पाठ्यक्रम विकास को समाज या समुदाय की प्रकृति के साथ अधिगमकर्ता के अधिगम अनुभवों, जरूरतों, योग्यताओं, रुचियों की प्रक्रिया, चयन, संगठन, क्रियान्वयन तथा मूल्यांकन के रूप में देखा जाता है।

पाठ्यक्रम विकास की चक्रीय प्रक्रिया- किसी शिक्षण या प्रशिक्षण संस्था में पाठ्यचर्या विकास एक अंतहीन निरंतर गतिशील चक्रीय प्रक्रिया माना जाता है।

पाठ्यक्रम-विकास पाठ्यक्रम प्रबंधन का व्यावहारिक पक्ष है। प्रबंधन की मूल अवधारणा यह है कि कोई भी प्रणाली अपने में पूर्ण नहीं होती है। प्रत्येक प्रणाली में विकास के लिए अवसर रहता है। अनुभवों के आधार पर प्रत्येक प्रणाली में सुधार तथा विकास किया जा सकता है। पाठ्यक्रम सम्पादन ‘अनुदेशनात्मक प्रारुप’ का एक पक्ष माना जाता है। इसके अन्तर्गत तीन आयामों- प्रशिक्षण मनोविज्ञान, पृष्ठपोषण सिद्धान्त (साइबरनेटिक्स) तथा प्रणाली विश्लेषण को प्रयुक्त किया जाता है। पाठ्यक्रम विकास को पाठ्यक्रम प्रबंधन का एक आयाम भी मानते हैं। इसे चार सोपानों की चक्रीय प्रक्रिया मानते हैं। यह चार सोपान- 1. उद्देश्य, 2. अनुदेशनात्मक विधि,3. मूल्यांकन तथा 4. पृष्ठपोषण होते हैं।

इस प्रक्रिया का उपयोग विशिष्ट अवस्था के विशिष्ट पाठ्यक्रम के विकास में किया जाता है। इससे यह विदित होता है कि पाठ्यक्रम विकास तथा पाठ्यक्रम सम्पादन में अन्तर होता है। दोनों प्रत्यय एक दूसरे से भिन्न हैं तथा इनमें सार्थक अन्तर है

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