पाठ्यचर्या के अर्थ को स्पष्ट कीजिए। पाठ्यचर्या का संकुचित और विस्तृत अर्थ बताइए। पाठ्यचर्या की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।

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अंग्रेजी भाषा में पाठ्यक्रम के लिये ‘करीक्यूलम’ (Curriculum) शब्द का प्रयोग किया जाता है। परन्तु ‘करीक्यूलम’ लेटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है-‘दौड़ का मैदान’। शिक्षा के अन्तर्गत इसका अर्थ है, “छात्रों का कार्य क्षेत्र” अथवा छात्रों का दौड़ का मैदान। यहाँ पर दो शब्द- दौड़ तथा मैदान प्रयुक्त किये गये हैं। ‘मैदान’ का अर्थ पाठ्यक्रम से है और दौड़ का अर्थ छात्रों द्वारा अनुभव एवं उनकी क्रियाओं से है। शिक्षक पाठ्यक्रम की सहायता से अपनी शिक्षण क्रियाओं का सम्पादन करता है जिसमें छात्र अनुभव तथा क्रियायें करके अपना विकास करता है और अपने गन्तव्य स्थान तक पहुँच जाता है। इस प्रकार छात्र मैदान में दौड़ करके अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सफलता प्राप्त करता है। शिक्षक की दृष्टि से पाठ्यक्रम एक दिशा एवं साधन है जिसका अनुसरण करके शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। पाठ्यक्रम एक दिशा एवं साधन है जिसका अनुसरण करके शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। पाठ्यवस्तु के व्यवस्थित रुप को पाठ्यक्रम की संज्ञा देते हैं। जो छात्रों की आवश्यकता की पूर्ति के लिये तैयार किया जाता है।

पाठ्यक्रम के अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास दार्शनिकों, समाजशास्त्रियों तथा मनोवैज्ञानिकों ने भी किया है। समाजशास्त्री पाठ्यक्रम का अर्थ अधिक व्यापक लगाते हैं। उनके अनुसार ‘पाठ्यक्रम’ शब्द का अर्थ- उन सभी क्रियाओं एवं परिस्थितियों से होता है जिनका नियोजन एवं सम्पादन विद्यालय द्वारा बालकों के विकास के लिए किया जाता है। शिक्षा के उद्देश्य बदलते रहे हैं इसलिये पाठ्यक्रम का अर्थ भी बदलता रहा है। अतीत में पाठ्यक्रम का अर्थ संकुचित था। कुछ विषयों में शिक्षा के प्रारुप को ही पाठ्यक्रम कहते थे परन्तु आज के सन्दर्भ में इसका अधिक व्यापक अर्थ है। बालक को भावी जीवन के लिये तैयार कर सकें ऐसा पाठ्यक्रम होना चाहिए यह केवल ज्ञान देने तक सीमित नहीं है। पाठ्यक्रम विकास सदैव भविष्य के लिए किया जाता है।

पाठ्यक्रम की परिभाषा

(1) कनिंघम के अनुसार- “कलाकार (शिक्षक) के हाथ में यह (पाठ्यक्रम) एक साधन है जिससे वह पदार्थ (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श उद्देश्य के अनुसार अपने स्टूडियो (स्कूल) में ढाल सके।”

(2) फ्रोबेल के अनुसार- “पाठ्यक्रम को मानव जाति के सम्पूर्ण ज्ञान तथा अनुभवों का सार समझना चाहिये।”

(3) मुनरो के अनुसार- “पाठ्यक्रम में वे सब क्रियायें सम्मिलित हैं जिनका हम शिक्षा ” के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालय में उपयोग करते हैं।”

(4) हार्न के अनुसार- “पाठ्यक्रम वह है जो बालकों को पढ़ाया जाता है। यह शान्तिपूर्ण पढ़ने या सीखने से अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन, अभ्यास और क्रियायें सम्मिलित हैं।”

(5) कैसबैल के अनुसार- “पाठ्यक्रम में वे सभी वस्तुयें आती हैं जो बालकों के. उनके माता-पिता एवं शिक्षकों के जीवन से होकर गुजरती हैं। पाठ्यक्रम उन सभी चीजों से बनता है जो सीखने वालों को काम करने के घण्टों में घेरे रहती हैं। वास्तव में पाठ्यक्रम को गतिमान वातावरण कहा जाता है।”

(6) माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार- “पाठ्यक्रम का अर्थ रुढ़िवादी ढंग से पढ़ाये जाने वाले बौद्धिक विषयों से नहीं है परन्तु उसके अन्दर वे सभी क्रिया-कलाप आ जाते हैं जो बालकों को कक्षा के बाहर तथा भीतर प्राप्त होते हैं।”

(7) जॉन.एफ. कर्र के अनुसार- “विद्यालय द्वारा सभी प्रकार के अधिगम तथा निर्देशन का नियोजन किया जाता है चाहे वह व्यक्तिगत रूप से हो या सामूहिक रुप में, विद्यालय के अन्दर एवं बाहर व्यवस्थित की जायें वे सभी पाठ्यक्रम का प्रारुप होती हैं।”

(8) फिलिप एच. टेलर के अनुसार- “पाठ्यक्रम के अन्तर्गत, पाठ्यवस्तु, शिक्षण, शिक्षण विधियाँ तथा उद्देश्यों को सम्मिलित किया जाता है तथा इन क्रियाओं को कैसे आरम्भ किया जाये। इन तीनों पक्षों की अन्त प्रक्रिया को पाठ्यक्रम कहते हैं।”

(9) पाल हिस्ट के अनुसार- “उन सभी क्रियाओं का प्रारुप जिनके द्वारा छात्र शैक्षिक लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों को प्राप्त कर लेंगे उन्हें पाठ्यक्रम की संज्ञा दी जाती है।’

इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि पाठ्यक्रम केवल विद्यालय शिक्षण विषयों तक ही सीमित नहीं होता है अपितु विद्यालय में नियोजित एवं सम्पादित सभी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो बालक के विकास में सहायक होती हैं। पाठ्यक्रम में सम्पूर्ण क्रियाओं एवं अनुभवों को सम्मिलित किया जाता है जो बालक में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन में सहायक होते है।

पाठ्यचर्या का संकुचित एवं विस्तृत अर्थ- पाठ्यचर्या का संकुचित अर्थ विषयवस्तु या विषय अध्ययन क्रम तक ही सीमित है। संकुचित अर्थ में पाठ्यचर्या किसी विषय की विषयवस्तु को तथा उसमें वर्णित अध्ययन सामग्री को संक्षिप्त रूपरेखा के रूप तक ही सीमित रखता है। यह पाठ्यचर्या की प्राचीन अवधारणा है।

आधुनिक काल में पाठ्यचर्या का क्षेत्र अतिविस्तृत हो गया है। पाठ्यचर्या के विस्तृत अर्थ में पाठ्यचर्या के शैक्षिक उद्देश्यों से लेकर पाठ्यचर्या का व्यावहारिक पक्ष, पाठ्यचर्या का विकास और पाठ्यचर्या का क्रियान्वयन, पाठ्यचर्या का मूल्यांकन पक्ष भी सम्मिलित है। पाठ्यचर्या का विस्तृत अर्थ कक्षा के अंदर तथा कक्षा के बाहर छात्र की प्राप्त होने वाली सभी अनुभव से संबंधित है जो विद्यालय द्वारा प्रायोजित किये जाते हैं। क्रो एवं क्रो ने पाठ्यचर्या के विस्तृत अर्थ को इस परिभाषा में समाहित किया है-“पाठ्यचर्या के विद्यार्थी द्वारा विद्यालय में और विद्यालय के बाहर अर्जित किए हुए वे सभी अनुभव सम्मिलित हैं जिन्हें उसे शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक आदि रूप में विकसित करने हेतु सहायता प्रदान करने के लिए शामिल किया जाता है।”

वस्तुतः पाठ्यचर्या का विस्तृत रूप विद्यार्थियों को प्रदान किये जाने वाले इन सभी अधिगम अनुभवों को-चाहे वे औपचारिक हो या अनौपचारिक, विद्यालय के भीतर हों या बाहर को पाठ्यचर्या माना जाता है जो शिक्षकों द्वारा पाठ्यक्रम के उद्देश्यों के अनुसार नियोजित, निर्देशित व नियंत्रित किये जाते हों।

पाठ्यवस्तु और पाठ्यचर्या में अंतर- पाठ्यवस्तु अंग्रेजी शब्द ‘सिलेवस’ तथा पाठ्यचर्या अंग्रेजी शब्द ‘कैरीकुलम’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। पाठ्यवस्तु पाठ्यचर्या का संकुचित रूप है। पाठ्यचर्या का स्वरूप व्यापक है। पाठ्यचर्या में विद्यार्थी को कक्षा में तथा कक्षा के बाहर विद्यालय में तथा विद्यालय के बाहर दिया जाने वाला अधिगम सम्मिलित है। 

पाठ्यचर्या में पाठ्यवस्तु के अतिरिक्त विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाएं, पाठ्यक्रमेतर गतिविधियाँ और खेलकूद इत्यादि शामिल हैं। विद्यालय द्वारा अधिगमकर्ता को जो भी शैक्षिक अनुभव और गतिविधियाँ दी जाती हैं वे पाठ्यचर्या के अंतर्गत आती हैं। सभी तथ्य को माध्यमिक शिक्षा आयोग (1954-1956) ने इस रूप में कहा है-“पाठ्यचर्या का अर्थ केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है जो शालाओं में परम्परागत रूप से पढ़ाए जाते हैं, बल्कि इसमें अनुभवों की वह संपूर्णता भी सम्मिलित होती है, जिनको विद्यार्थी, विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला, खेल के मैदान तथा छात्रों के अनेक औपचारिक संपर्कों से प्राप्त करता है। इस प्रकार संपूर्ण जीवन पाठ्यचर्या हो जाता है जो छात्रों के जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है और उसके संतुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।”

पाठ्यचर्या की प्रकृति- जिस प्रकार मानव की प्रकृति, मानव की सोच, अनुभव, क्रियाशीलता, स्वभाव आदि उसके लक्षणों से संबंधित हैं, उसी प्रकार पाठ्यचर्या के लक्षणों को उसकी प्रकृति माना जाता है। पाठ्यचर्या की प्रकृति में ये सामान्य लक्षण पाए जाते हैं

1. पाठ्यचर्या निरंतर विकासशील है। ज्ञान, समाज, समय की परिवर्तनशीलता का प्रभाव समय-समय पर पाठ्यचर्या पर होता है। समय के अनुसार पाठ्यचर्या परिवर्तित होती है। पाठ्यचर्या रुका हुआ पानी न होकर बहता हुआ पानी है।

2. पाठ्यचर्या विद्यार्थियों के सर्वांगीण (व्यक्तिगत, सामाजिक, भावात्मक, बौद्धिक, शारीरिक, चारित्रिक, नैतिक आदि) विकास से संबंधित है।

3. पाठ्यचर्या की आधुनिक धारणा के अनुसार कक्षा में, शाला में तथा शाला के बाहर के सभी अधिगम अनुभव पाठ्यचर्या की सीमा में सम्मिलित हैं।

4. ज्ञान तथा उसके अंतरण से पाठ्यचर्या का घनिष्ठ संबंध है।

5. पाठ्यचर्या में विषय विशेष के सैद्धान्तिक तथा प्रायोगिक दोनों पक्षों के ज्ञान कौशलों का समन्वय होता है।

6. पाठ्यचर्या में विषय की पाठ्यसहगामी तथा पाठ्यक्रमेतर गतिविधियाँ शामिल होती हैं।

7. पाठ्यचर्या बालकेन्द्रित, छात्र केन्द्रित तथा छात्र के स्तर, छात्र के मनोविज्ञान से संबंधित होती हैं।

8. पाठ्यचर्या का विशेष कार्य बालक की सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों (स्मरण शक्ति, तर्क शक्ति, चिंतन शक्ति, मनन शक्ति, सोच, जिज्ञासा, सूक्ष्मावलोकन क्षमता, अन्वेषणशक्ति आदि) का विकास है।

9. पाठ्यचर्या उद्देश्य अनुप्रेरित होती है। उद्देश्यों के अनुरूप विषय सामग्री का चयन व विस्तार पाठ्यचर्या में होता है।

10. पाठ्यचर्या में सम्मिलित विषयों में अन्तर्सम्बन्ध आधुनिक विचारधारा के अनुसार आवश्यक है।

11. आधुनिक पाठ्यचर्या में अनिवार्य (कोर) विषयों के साथ वैकल्पिक विषय का भी समावेश होता है।

12. पाठ्यचर्या में क्रियाशीलता, प्रयोजनशीलता, छात्र स्तर के अनुकूलन, रोचकता व विविधता, सुसम्बद्धता, सामाजिकता, व्यापकता, नवीनता, लचीलापन, सहसम्बन्धता आवश्यकता ये पाठ्यक्रम के लक्षण या उनकी प्रकृति का अविभाज्य गुण

13 नित्य नवीनीकरण पाठ्यचर्या की महत्त्वपूर्ण प्रकृति है।

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