पाठ्यचर्या के चयन, श्रेणीकरण (ग्रेडेशन) तथा संगठन की अवधारणा तथा स्वरूप पर प्रकाश डालिए।

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पाठ्यचर्या के समग्र चयन का आशय है-पाठ्यचर्या के उद्देश्यों का चयन, पाठ्यचर्या की विषयवस्तु का चयन, अधिगम अनुभवों का चयन, पाठ्यचर्या के मूल्यांकन व मापन की प्रविष्टियों का चयन । इनसे पूर्व भी पाठ्यचर्या के प्रारूप का चयन करना होता है । पाठ्यचर्या पाठ्यचर्या के प्रारूप (डिजाइन) को सेलर एवं एलेक्जेंडर ने इन शब्दों से परिभाषित किया है-“पाठ्यचर्या प्रारूप वह ढाँचा या संरचना है जिसका विद्यालय में शैक्षिक अनुभवों को चुनने, नियोजित करने तथा कार्यान्वित करने में प्रयोग किया जाता है।”

अतः पाठ्यचर्या के लिए ऐसे सामान्य प्रारूप का चयन सर्वप्रथम आवश्यक है जिसमें निम्नलिखित तथ्य समाविष्ट हो-

(i) सामाजिक आवश्यकताएं;

(ii) आवश्यकताओं के आधार पर पाठ्यचर्या के सामान्य व विशिष्ट उद्देश्यों को चुननाः

(iii) उद्देश्यों के अनुरूप विषय व विषयवस्तु और प्रकरणों (टॉपिक) को चुनना;

(iv) विषयवस्तु का इकाइयों में संयोजन;

(v) निर्धारित समय का सम्यक आंकलन तथा

(vi) पाठ्यचर्या प्रतिवेदन (प्रारूप) का लेखन।

प्रारूप (डिजाइन) चयन के उपरांत पाठ्यचर्या के विभिन्न प्रतिमानों (मॉडल्स) में से किसी प्रतिमान अथवा ऐसा सामान्य प्रतिमान जिससे बिना किसी विशिष्ट प्रतिमान का अनुसरण किये पाठ्यचर्या की सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का समावेश से का चयन आवश्यक है। सामान्य प्रतिमान में निम्नलिखित चयन (स्टेप्स) सम्मिलित रहते हैं

(i) पाठ्यचर्या के क्षेत्र का सर्वेक्षण;

(ii) शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण;

(iii) विषयवस्तु का चयन;

(iv) पूर्व परीक्षण;

(v) पूर्व परीक्षण के परिणामों के आधार पर आवश्यक सुधार;

(vi) पाठ्यचर्या का प्रकाशन;

(vii) क्रियान्वयन;

(viii) छात्र मूल्यांकन तथा प्राप्त फीडबैक (पृष्ठ पोषण) के आधार पर आवश्यक संशोधन

मॉडल या डिजाइन के चयन के उपरांत फील्ड को सर्वेक्षण के आधार पर तथा जिस स्तर व वर्ग का पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है, उसके लिए उद्देश्यों का चयन व निर्धारण प्रथम सीढ़ी है। उद्देश्यों के अनुरूप विषयों तथा उनकी विषयवस्तु का चयन एवं उनसे सहसंबंधित अधिगम अनुभवों का चयन किया जाता है। चयनित विषयवस्तु में समन्वय का गुण होना चाहिए अर्थात् उनमें एकीकरण आवश्यक है। इसके अभाव में विभिन्न विषयवस्तुओं में कोई तारतम्य नहीं रह जाएगा। इसी प्रकार जिन अधिगम के अनुभवों का चयन किया जाए वे भी विषयवस्तु से संबंधित और संगतिपूर्ण होने चाहिए । अधिगम अनुभवों में छात्रों द्वारा किये जाने वाले प्रयोग, हस्तकार्य, कार्यानुभव, प्रोजेक्ट कार्य, पाठ्य सहगामी क्रियाएं, शैक्षिक भ्रमण तथा शिक्षक छात्रों की कक्षागत अन्तक्रियाएं प्रमुख हैं। इनके उपयुक्त चयन का पाठ्यचर्या में ध्यान रखा जाना आवश्यक है । अंत में छात्र के अधिगम के मूल्यांकन हेतु मापन प्रविधियों का चयन करना होता है । छात्र के अधिगम के मूल्यांकन में यह देखा जाता है कि पाठ्यचर्या के उद्देश्यों से छात्र में क्या व्यवहारगत परिवर्तन और कितने परिवर्तन आए हैं। मूल्यांकन के आंकलन हेतु मापन प्रविधियों का चयन भी आवश्यक है। नई शैक्षिक मान्यताओं में मूल्यांकन का सतत (निरंतर) तथा समग्र (सभी पक्षों का) होना आवश्यक है। आशय यह है कि एक बार वार्षिक परीक्षा (या दो या तीन बार) अर्द्धवार्षिक, त्रैमासिक परीक्षा न होकर प्रत्येक इकाई के उपरांत सैद्धान्तिक ज्ञान की परीक्षा हो साथ ही प्रायोगिक ज्ञान एवं विभिन्न विद्यालयीन गतिविधियों में छात्र की भागीदारी का भी मूल्यांकन हो । सैद्धान्तिक ज्ञान के आंकलन में निबंधात्मक, लघुउत्तरात्मक तथा वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्नों का चयन किया जाता है। इसके अतिरिक्त रुचि परीक्षण, अभिवृद्धि परीक्षण, उपलब्धि परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, निष्पादन परीक्षण आदि प्रविधियाँ भी छात्रों के मूल्यांकन हेतु प्रयुक्त होती हैं।

इस प्रकार पाठ्यचर्या का चयर एक समग्र सम्यक और संगत प्रक्रिया है।

(2) पाठ्यक्रम का श्रेणीकरण (ग्रेडेशन)

पाठ्यचर्या के श्रेणीकरण से आशय वर्गीकरण से है। पाठ्यचर्या को इन स्वरूपों में वर्गीकृत किया जाता है

(i) ज्ञान आधारित पाठ्यचर्या;

(ii) रोजगार आधारित पाठ्यचर्या;

(iii) विषय आश्रित पाठ्यचर्या;

(iv) मूल्य आधारित पाठ्यचर्या;

(v) क्रिया आधारित पाठ्यचर्या

(vi) प्रयोग आधारित पाठ्यचर्या;

(vii) संस्कृति आधारित पाठ्यचर्याः

(viii) मूल्यांकन आधारित पाठ्यचर्या;

(ix) उद्देश्य आधारित पाठ्यचर्या;

(x) विधि आधारित पाठ्यचर्या आदि ।

यों तो सभी पाठ्यक्रम ज्ञान आधारित होते हैं परंतु जिन पाठ्यक्रमों का लक्ष्य ही छात्रों में ज्ञान भंडार विकसित करता है वे ज्ञान आधारित पाठ्यचर्या की श्रेणी में आते हैं। जैसे भाषा या व्याकरण का ज्ञान देने वाला पाठ्यक्रम आदि ।

रोजगार आधारित पाठ्यचर्या वह है जिसका उद्देश्य छात्रों को किसी व्यवसाय का व्यावहारिक प्रशिक्षण देना है ताकि कौशल सीखकर छात्र उस व्यवसाय में लगकर या स्वयं का रोजगार स्थापित कर आजीविका अर्जित कर सकें। आशुलिपि का प्रशिक्षण, इलेक्ट्रीशियन कौशल, मोबाइल रिपेयर कोर्स आदि रोजगार आधारित पाठ्यचर्या के उदाहरण हैं। इसमें सैद्धान्तिक तथा व्यावसायिक ज्ञान छात्रों को संबंधित रोजगार प्रधान पाठ्यचर्या का दिया जाता है।

विषय आश्रित पाठ्यक्रम में जिस विषय का पाठ्यक्रम है उस विषय का सैद्धान्तिक व व्यावहारिक ज्ञान छात्रों को उपलब्ध कराने के लिए विषय से संबंधित पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है जैसे गणित की पाठ्यचर्या, पर्यावरण शिक्षा की पाठ्यचर्या आदि ।

मूल्य आधारित पाठ्यचर्या नैतिक मूल्यों अथवा राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, आचरण मूल्यों, धार्मिक मूल्यों, मानवाधिकार के मूल्यों, सांस्कृतिक मूल्यों के छात्रों के विकास हेतु विशेष रूप से सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ छात्रों से मूल्य संवर्द्धन की गतिविधियों, कार्यक्रमों के साथ तैयार किया जाता है।

क्रिया या गतिविधि आधारित पाठ्यचर्या में अधिगम क्रियाओं की प्रधानता होती है इसमें सैद्धान्तिक ज्ञान की प्रमुखता न होकर स्वयं करके सीखने के क्रियाओं को प्रधानता दी जाती है।

प्रयोग आधारित पाठ्यचर्या उन विषयों हेतु विशेष रूप से तैयार की जाती है जिसमें प्रयोगों (प्रेक्टिकल कार्यो) की प्रधानता होती है जैसे रसायन विज्ञान या भौतिक विज्ञान में प्रायोगिक कार्यों से संबंधित पाठ्यचर्या ।

संस्कृति आधारित पाठ्यचर्या प्राचीन या अर्वाचीन विभिन्न संस्कृतियों के अध्ययन से संबंधित रहती है। विश्व में अनेक संस्कृतियाँ प्रचलन में हैं तथा अनेक संस्कृतियाँ विलुप्त भी हो गयी हैं। इन संस्कृतियों का अध्ययन संस्कृति आधारित पाठ्यचर्या के अंतर्गत आता है।

मूल्यांकन आधारित पाठ्यचर्या में प्रश्नविधि द्वारा छात्रों के सीखे हुए ज्ञान का आंकलन शिक्षक कक्षा में, गृह कार्य में, कक्षा कार्य में, इकाई परीक्षण आदि में तथा सामाजिक परीक्षाओं में करता है। ऐसे पाठ्यक्रम में छात्रों के लिए कक्षा कार्य अभ्यास, प्रयोग आदि की प्रधानता होती है। सतत व समग्र मूल्यांकन छात्रों के अधिगम को दिशा देता है।

उद्देश्य आधारित पाठ्यक्रम में पाठ्यचर्या के प्रारंभ में जिन उद्देश्यों का निर्धारण किया गया है उन्हें लक्ष्य कर विषयवस्तु प्रकरणों तथा शैक्षिक अनुभव, मूल्यांकन आदि का ध्यान रखा जाता है। जैसे नागरिकशास्त्र विषय की पाठ्यचर्या जिसके उद्देश्य छात्रों में प्रजातांत्रिक मूल्यों का विकास करना हो।

विधि आधारित पाठ्यक्रमों में विभिन्न शिक्षण विधियों के उपयोग की प्रधानता होती है ताकि छात्रों के अधिगम में वृद्धि हो। पाठ्यचर्या के श्रेणीकरण के इस प्रकार विभिन्न रूप हो सकते हैं परंतु पाठ्यचर्या प्रारूप में सोपानों का पालन थोड़े-बहुत हेरफेर के साथ सभी में होती है। प्रधानता के आधार पर पाठ्यचर्या का श्रेणीकरण किया गया है।

(3) पाठ्यचर्या का संगठन

विभिन्नताओं या अनेकताओं को एकसूत्रता में पिरोना संगठन है । पाठ्यचर्या में विषयों और विषयवस्तु का बिखराव, पाठ्यचर्या के विभिन्न चरणों का एकीकरण, उनकी क्रमबद्धता व व्यवस्था, पाठ्यचर्या की विषयवस्तु को अन्तर्सम्बन्धित करना या सहसंबंधित करना पाठ्यचर्या का संगठन है। जेम्स एमली के अनुसार पाठ्यचर्या की संरचना का निर्माण इन छह पृथक तत्त्वों से होता है-प्रारूप या डिवाइन, क्षेत्र, अनुक्रम, सांतत्य, संतुलन व विस्तार तथा एकीकरण । इन तत्त्वों का एकीकरण ही संगठन है।

जेम्स एमली ने पाठ्यचर्या संगठन के दो प्रकल्प (डिजाइन) बताई हैं-अंशों में विभाजित प्रकल्प तथा एकीकृत प्रकल्प। अंशों में विभाजित प्रकल्प में प्रत्येक विषय को पृथक से संगठित किया जाता है जबकि एकीकृत प्रकल्प के अंतर्गत विविध विषयों का एकीकरण किया जाता है। पाठ्यचर्या के संगठन हेतु निम्नलिखित प्रयास आवश्यक हैं-

(1) समन्वित या एकीकृत पाठ्यक्रम संगठन- अमेरिका के विश्वविद्यालयों में समन्वित या एकीकृत पाठ्यचर्या को प्रमुखता दी जा रही है जिसमें विविध विषयों के समन्वय या एकीकरण के लिए उन्हें सहसंबंधित करने के प्रयास किये जाते हैं। विभिन्न विषयों को सहसंबंधित करने से ज्ञान के स्थानांतर का सिद्धान्त लागू होता है और ज्ञान को एकीकृत रूप से समझाने से छात्र की अधिगम क्षमता में वृद्धि होती है। विभिन्न विषयों का एकीकरण पाठ्यचर्या का संगठन ही है।

(2) क्रमबद्ध पाठ्यचर्या संगठन- पाठ्यचर्या के विविध विषयों में क्रमबद्धता होती है एक विषय के बाद दूसरा विषय मनोवैज्ञानिक सम्बद्धता के साथ संगठित किया जाता है। इसमें पहले सरल और फिर कठिन संप्रत्यय रखे जाते हैं। साथ ही विषय के संप्रत्यय को स्पष्ट करने वाले प्रकरण विषय की व्याख्या या स्वरूप के पूर्व रखे जाते हैं।

(3) पाठ्य विषयों की निरंतरता- संगठित पाठ्यचर्या में पाठ्य विषयों का चयन निरंतरता के क्रम में किया जाता है। इससे पाठ्यचर्या में गतिशीलता आती है और पाठ्यक्रम सुबोध हो जाता है

(4) पाठ्य सहगामी क्रियाओं का संगठन- पाठ्यक्रम के साथ-साथ पाठ्य सहगामी क्रियाएं भी चलती रहनी चाहिए। ये पाठ्य सहगामी क्रियाएं विषय को समझने में सरलता लाती हैं। अतः पाठ्यचर्या के साथ पाठ्य सहगामी गतिविधियों को भी संगठित करना चाहिए।

(5) सैद्धान्तिक व प्रायोगिक पक्ष का संगठन- पाठ्यक्रम जिस विषय से भी संबंधित हो उसका विकास करते समय शिक्षक को सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ प्रायोगिक ज्ञान भी संगठित कर पढ़ाना चाहिए। अधिगम को सुबोध तथा स्थायी बनाने के लिए दोनों पक्षों का संगठन आवश्यक है।

(6) विषयवस्तुक साथ शैक्षिक अनुभवों का संगठन- अधिगम अनुभव पाठ्य विषय को समझने व स्मृति में स्थायी करने का कार्य करते हैं। पाठ्यचर्या का विकास करते समय शिक्षक को अधिकाधिक अधिगम अनुभव पाठ्यचर्या की विषयवस्तु के साथ संगठित कर पढ़ाए जाने चाहिए।

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