पाठ्यचर्या के विभिन्न प्रकारों तथा उनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

Estimated reading: 1 minute 100 views

पाठ्यक्रम संगठन के विषय में अलग-अलग दृष्टिकोण होते हैं। इसलिए पाठ्यक्रम भी अनेक प्रकार के होते हैं। निम्नलिखित पंक्तियों में पाठ्यक्रम के विभिन्न प्रकारों पर प्रकाश डाला गया है

(1) विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम- विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें बालकों की अपेक्षा विषयों को अधिक महत्व दिया जाता है। चूँकि इस प्रकार के पाठ्यक्रम में पुस्तकों का विशेष महत्व होता है, इसलिए इस पाठ्यक्रम को ‘पुस्तक केन्द्रित पाठ्यक्रम’ भी कहते हैं। हमारे देश में इसी प्रकार का पाठ्यक्रम प्रचलित है।

विषय-केन्द्रित पाठ्यक्रम- (1) अमनोवैज्ञानिक है अर्थात इसके अन्तर्गत बालकों की रुचियों, आवश्यकताओं तथा योग्यताओं का कोई ध्यान नहीं रखा जाता, (2) यह कठोर होता है, (3) इसके द्वारा बालक का सर्वागीण विकास नहीं किया जा सकता, (4) इसके द्वारा बालकों में जनतान्त्रिक भावनाओं का विकास नहीं किया जा सकता है तथा (5) यह पाठ्यक्रम बालकों में रटने की आदत एवं केवल परीक्षा पर ही बल देता है। उक्त दोषों के होते हुए भी विषय केन्द्रित पाठ्यक्रम के अनेक लाभ हैं; उदाहरण के लिए- (1) इस पाठ्यक्रम में उद्देश्य स्पष्ट होता है, (2) इसका संगठन सरल होता है अर्थात् यह आसानी से समझ में आ जाता है, (3) इसमें आसानी से परिवर्तन भी किया जा सकता है, (4) इसकी विषय-वस्तु पहले से ही निश्चित होती है जिससे शिक्षक तथा बालक दोनों को पहले से ही इस बात का पता चल जाता है कि उन्हें क्या-क्या पढ़ाना है अथवा कैसे-कैसे पढ़ना है, (5) यह एक निश्चित सामाजिक तथा शैक्षिक विचारधारा पर आधारित होता है, (6) इसके द्वारा विभिन्न विषयों में सह-संबंध स्थापित किया जा सकता है तथा (7) इसके द्वारा परीक्षा लेने में भी आसानी होती है। उक्त गुणों के कारण विशेष केन्द्रित पाठ्यक्रम को बालक, शिक्षक तथा अभिभावक सभी वर्ग हृदय से पसन्द करते हैं।

(2) अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम- अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें बालक के विकास हेतु अनुभवों को विशेष महत्व दिया जाता है। दूसरे शब्दों में अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम विषयों की अपेक्षा अनुभवों पर आधारित होता है। वस्तुस्थिति यह है कि- (1) अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम अस्पष्ट होता है अर्थात् इसके अन्तर्गत शिक्षा का उद्देश्य स्पष्ट नहीं होता, (2) इसके प्रयोग में समय अधिक लगता है, (3) अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम के ज्ञान का क्रम भी नहीं होता, (4) इसके अन्तर्गत क्रियाओं और अनुभवों का निश्चित क्रम भी नहीं होता, (5) इस पाठ्यक्रम को क्रियान्वित करने के लिये अधिक धन की आवश्यकता है, (6) अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम को सफल बनाने के लिए बुद्धिमान शिक्षकों की आवश्यकता है, (7) इसके द्वारा बालकों की प्रगति का मूल्यांकन बहुत कठिन है तथा (8) अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम के द्वारा विभिन्न अनुभवों का एक दूसरे से सह-संबंध भी स्थापित नहीं किया जा सकता। उक्त दोषों के होते हुए भी अनुभव केन्द्रित पाठ्यक्रम के अनेक लाभ हैं; उदाहरण के लिए- (1) यह मनोवैज्ञानिक है अर्थात् इस पाठ्यक्रम का बालकों की रुचियों, आवश्यकताओं, तथा योग्यताओं से संबंध होता है, (2) यह लचीला तथा प्रगतिशील होता है, (3) इसके द्वारा बालक का सर्वांगीण विकास सम्भव है, (4) यह भौतिक तथा सामाजिक वातावरण का अधिक से अधिक प्रयोग करता है, (5) इसका आधार भी जनतान्त्रिक होता है, (6) अनुभव-केन्द्रित पाठ्यक्रम द्वारा स्कूल और समाज में संबध स्थापित किया जाता है। तथा (7) यह बालकों की मानसिक एवं सर्जनात्मक योग्यताओं को विकसित करके उनमें नेतृत्व और अनुशासन का विकास करता है।

(3) कार्य-केन्द्रित पाठ्यक्रम- कार्य-केन्द्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें विषयों के विभिन्न कार्यों को विशेष स्थान दिया जाता है। जॉन डीवी का मत है कि कार्य-केन्द्रित पाठ्यक्रम द्वारा बालक समाज उपयोगी कार्यों को करने में रुचि लेने लगता है जिससे उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होना निश्चित है।

(4) बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम- बाल-केन्द्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें विषयों की अपेक्षा बालक को मुख्य स्थान दिया जाता है। ऐसे पाठ्यक्रम का निर्माण बालक की विभिन्न अवस्थाओं की रुचियों, आवश्यकताओं,क्षमताओं तथा योग्यताओं के अनुसार किया जाता है जिससे व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता रहे। मान्टेसरी, किन्डरगार्टन तथा योजना पद्धतियाँ बाल केन्द्रित-पाठ्यक्रम के ही उदाहरण हैं।

(5) शिल्पकला-केन्द्रित पाठ्यक्रम- शिल्पकला-केन्द्रित पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें विभिन्न प्रकार की शिल्प-कलाओं जैसे कताई, बुनाई, चमड़े तथा लकड़ी के काम आदि को केन्द्र मानकर दूसरे विषयों की शिक्षा दी जाये। हमारे देश की वर्तमान बेसिक शिक्षा’ में इस प्रकार के पाठ्यक्रम का विशेष महत्व है।

(6) सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम- सुसम्बद्ध-पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें विभिन्न विषयों को अलग-अलग न पढ़ा कर एक दूसरे से संबंधित करके पढ़ाने की व्यवस्था होती है। वस्तुस्थिति यह है कि ज्ञान एक इकाई है। अतः सुसम्बद्ध पाठ्यक्रम इस बात पर बल देता है कि बालक के सामने ज्ञान को विभिन्न विषयों में अलग-अलग न बांट कर संबंधित रुप में प्रस्तुत किया जाना चाहिये।

(7) मूल-पाठ्यक्रम- कोर-पाठ्यक्रम उस पाठ्यक्रम को कहते हैं जिसमें कुछ विषय तो अनिवार्य होते हैं तथा अधिक विषय ऐच्छिक। अनिवार्य विषयों का अध्ययन करना प्रत्येक बालक के लिए अनिवार्य होता है तथा ऐच्छिक विषयों को व्यक्तिगत रुचियों तथा क्षमताओं के अनुसार चुना जा सकता है। यह पाठ्यक्रम अमरीका की देन है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक बालक को व्यक्तिगत तथा सामाजिक दोनों प्रकार की समस्याओं के संबंध में ऐसे अनुभव प्रदान किये जाते हैं जिनके द्वारा वह अपने भावी जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्या को सरलतापूर्वक सुलझाते हुए कुशल तथा समाजोपयोगी एवं उत्तम नागरिक बन जाए। इस पाठ्यक्रम का लक्ष्य व्यक्ति तथा समाज दोनों का अधिक से अधिक से विकास करना है। इस पाठ्यक्रम की कई है विशेषतायें भी हैं। पहली विशेषता यह है कि इसके अन्तर्गत कई विषयों को एक साथ पढ़ाया जाता है। दूसरे, विभिन्न विषयों को पढ़ाने का समय निश्चित होता है। तीसरे, यह पाठ्यकम बाल-केन्द्रित है तथा चौथे, इसके द्वारा बालकों को कार्यों के द्वारा सामाजिक समस्याओं के सुलझाने का अभ्यास कराया जाता है।

Leave a Comment

CONTENTS