पाठ्यचर्या विकास के निर्धारकों तथा प्रेरक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।

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 पाठ्यचर्या के विकास में अनेक तत्त्व तथा कारक अपना प्रभाव या असर डालकर विकास की गति को प्रभावित करते हैं। पाठ्यचर्या विकास को प्रभावित करने वाले या पाठ्यचर्या विकास का निर्धारण करने वाले प्रमुख तत्त्व ये हैं-


पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाले घटक

पाठ्यक्रम का सम्पादन शैक्षिक तथा सामाजिक परिस्थितियों में किया जाता है।  इसलिये शैक्षिक तथा सामाजिक घटक पाठ्यक्रम को प्रभावित करते हैं। यहाँ पर पाठ्यक्रम को प्रभावित करने वाले घटकों का विवेचन किया गया है-

(1) शिक्षा व्यवस्था- शिक्षा के इतिहास से यह विदित होता है कि अतीत काल से ही शिक्षा व्यवस्था और पाठ्यक्रम हन संबंध रहा है और ये एक-दूसरे को प्रभावित करते रहे हैं। पाठ्यक्रम का प्रारुप लचीला तथा परिवर्तनशील रहा है। छोटे बालकों का पाठ्यक्रम अनुभव केन्द्रित रहा है। माध्यमिक स्तर का विषय-केन्द्रित रहा है। शिक्षा व्यवस्था के बदलने के साथ पाठ्यक्रम का प्रारुप भी बदल जाता है।

(2) परीक्षा प्रणाली- परीक्षा प्रणाली पाठ्यक्रम को प्रभावित करती है। निबन्धात्मक परीक्षा के पाठ्यक्रम का स्वरुप वस्तुनिष्ठ परीक्षा से बिल्कुल ही भिन्न प्रकार होता है। वस्तुनिष्ठ के परीक्षा में पाठ्यवस्तु के सूक्ष्म पाठ्यवस्तु पर ही प्रश्न पूछे जाते हैं। जबकि निबन्धात्मक परीक्षा में पाठ्यवस्तु के व्यापक-स्वरुप पर प्रश्न पूछे जाते हैं। निबन्धात्मक परीक्षा से उच्च उद्देश्यों का मापन किया जाता है जबकि वस्तुनिष्ठ से निम्न उद्देश्यों का ही मापन किया जा सकता है।

(3) शासन पद्धति- शिक्षा द्वारा राष्ट्र तथा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। शासन प्रणाली बदलने से पाठ्यक्रम के प्रारुप को बदलना होता है। केन्द्र तथा राज्य स्तर पर पार्टी की सत्ता बदलने से भी पाठ्यक्रम के प्रारुप पर प्रभाव पड़ता है। पाठ्यक्रम के विशिष्ट प्रारुप केन्द्रीय सरकार प्रभावित करती है। रुस में शासन सत्ता बदलने से पाठ्यक्रम का प्रारुप बिल्कुल ही बदला जा रहा है। भारत में शिक्षा राज्य या प्रदेश द्वारा व्यवस्थित की जाती है। इसलिये शिक्षा का राष्ट्रीय प्रारुप नहीं है। सभी प्रदेशों के पाठ्यक्रम के प्रारुप विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग हैं।

(4) अध्ययन समिति- पाठ्यक्रम के प्रारुप का निर्माण अध्ययन समितियों द्वारा किया जाता है। विभिन्न स्तरों पर अध्ययन समितियों के द्वारा पाठ्यक्रम का निर्माण तथा सुधार किया जाता है। अध्ययन समिति के सदस्य सूझ-बूझ तथा अनुभवों द्वारा ही पाठ्यक्रम के प्रारुप को विकसित करते हैं। इसलिये इन सदस्यों की अभिरुचियों, अभिवृत्तियों तथा मानसिक क्षमताओं का सीधा प्रभाव पड़ता है। साधारणत: अध्ययन समिति के अध्यक्ष ही पाठ्यक्रम का प्रारुप बनाते हैं और बदलते हैं। अन्य सदस्य मात्र अनुमोदन ही करते हैं।

(5) राष्ट्रीय आयोग तथा समितियाँ- शिक्षा सुधार और विकास हेतु राष्ट्रीय स्तर के आयोग तथा समितियाँ गठित की जाती हैं। भारत में स्वतन्त्रता के बाद से अनेक आयोग तथा समितियाँ गठित की गई। उन्होंने विश्वविद्यालय, माध्यमिक शिक्षा, प्राथमिक स्तर पर सुधार के लिये सुझाव दिये और उन सुझावों को लागू करने का प्रयास किया गया जिससे पाठ्यक्रम के प्रारुप को भी बदलना पड़ा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में व्यावसायिक शिक्षा को अधिक महत्त्व दिया है। इसलिये माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का प्रारुप विकसित किया गया है शिक्षा के आयोगों तथा समितियों के सुझाव के आधार पर भी पाठ्यक्रम का प्रारुप प्रभावित होता है।

(6) सामाजिक परिवर्तन- सामाजिक परिवर्तन से आर्थिक परिवर्तन की गति अधिक तीव्र होती है इसलिये ये आर्थिक तथा भौतिक परिवर्तन भी पाठ्यकम को प्रभावित करते हैं। विज्ञान तथा तकनीकी ने सामाजिक जीवन को अधिक प्रभावित किया है। इसलिये व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के साथ तकनीकी के (कम्प्यूटर) आदि संबंधी नये पाठ्यक्रम वि सत किये जा रहे हैं। शिक्षा के अन्तर्गत दूरवर्ती शिक्षा प्रणाली का विकास हुआ है जिसमें माध्यमों तथा सम्प्रेषण विधियों को विशेष महत्त्व दिया जाता है।

पाठ्यक्रम के घटकों के आपसी संबंधों को चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है-

उपरोक्त चित्र से स्पष्ट होता है कि सामाजिक परम्परायें तथा अतीत के मूल्य तथा पारिवारिक परम्परायें तथा मान्यतायें भी पाठ्यक्रम के प्रारुप को प्रभावित करती हैं। पाठ्यक्रम का प्रारुप भावी जीवन की तैयारी की दृष्टि से विकसित किया जाता है। छात्र, परिवार, विद्यालय व्यवस्था, सामाजिक परिवर्तन तथा आवश्यकताएँ पाठ्यक्रम के प्रारुप को विकसित करने में सहायक होते हैं परन्तु अतीत, परम्पराओं और भावी जीवन में समन्वय स्थापित करना पड़ता है छात्र की सामान्य तथा विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखना होता है

पाठ्यचर्या विकास के प्रेरक तत्त्व- पाठ्यचर्या विकास के प्रेरक तत्त्व वे तत्त्व हैं जो पाठ्यचर्या विकास को प्रेरित करते हैं और पाठ्यक्रम में बदलाव आए इसके लिए दबाव डालते हैं। इन तत्त्वों में प्रमुख हैं-

1. विषयवस्तु में नवाचार होना;

2. पाठ्यचर्या के उद्देश्यों में परिवर्तन:

3. शिक्षण पद्धति, शिक्षण अधिगम सामग्री TLM में नयापन;

4. विज्ञान टेक्नोलॉजी में विकास;

5. मूल्यांकन के तौर-तरीकों में बदलाव;

6. शिक्षाविदों, योजनाकारों, शिक्षकों की सोच में सकारात्मक बदलाव;

7. विदेशों में पाठ्यचर्या में नए बदलाव;

8. जीवनयापन का बदलाव।

(1) विषयवस्तु में नवाचार होना- ज्ञान के विकास, शोध कार्य आदि से विषयों की विषयवस्तु में नए-नए परिवर्तन होते हैं। जब ये परिवर्तन या बदलाव प्रबल हो जाते हैं तो इन नए विषयों को पाठ्यक्रम में स्थान देना आवश्यक हो जाता है। उदाहरणार्थ तीन चार दशक पूर्व विश्व में पर्यावरण प्रदूषण का अभिशाप झेला तो पाठ्यचर्या में पर्यावरण शिक्षा नया बदलाव/नवाचार आया।

(2) पाठ्यचर्या के उद्देश्यों में बदलाव- राजनैतिक परिस्थितियों में बदलाव, सामाजिक मान्यताओं में परिवर्तन आदि के कारण पाठ्यचर्या के कुछ अंशों को हटाने तथा कुछ अंशों को जोड़ने हेतु शिक्षा आयोगों, समितियों, शासन-प्रणाली का दबाव पड़ता है अत: पाठ्यचर्या विकास या बदलाव आवश्यक हो जाता है।

(3) शिक्षण प्रणाली शिक्षण अधिगुम सामग्री में परिष्कार- देश-विदेश में हुई शैक्षिक शोधों व प्रयोगों से जब नई शिक्षण विधियाँ विकसित हो जाती हैं अथवा शिक्षण अभिगम सामग्री में बदलाव आता है तो यह बदलाव पाठ्यचर्या विकास को प्रेरित करता है कि नवाचार को अपनाया जाए।

(4) विज्ञान टेक्नोलॉजी में विकास- नित्य ही विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी में नए आविष्कारों के कारण इसका उपयोग बढ़ जाता है। समाज में अभी यह नवीनता संबंधित पाठ्यचर्या के विकास को प्रेरित करती है कि पाठ्यचर्या में भी बदलाव हो।

(5) मूल्यांकन के तौर-तरीकों में बदलाव- मूल्यांकन पाठ्यचर्या विकास का महत्त्वपूर्ण सोपान है। यद्यपि शिक्षण संस्थाओं में छात्रों के मूल्यांकन के परम्परागत तरीकों का उपयोग आज भी होता है किन्तु कुछ विश्वविद्यालय या कड़े शिक्षण संस्थान नई मूल्यांकन प्रणाली को अपनाते हैं। मूल्यांकन में होने वाला यह बदलाव पाठ्यक्रम विकास को प्रेरित करता है। सतत समग्र मूल्यांकन का नवाचार इसी कारण विद्यालयों में विकसित हो रहा है।

(6) शिक्षाविदों की सोच में बदलाव- शिक्षाविद शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोग करते रहते हैं और पढ़ने-पढ़ाने की प्रणाली में बदलाव लाते हैं। धीरे-धीरे लोकप्रिय हो जाने पर यह प्रेरक अन्य योजनाकारों पाठ्यचर्या निर्यातों को आवश्यक बदलाव करने के लिए प्रेरित करता है।

(7) विदेशों में हुए पाठ्यचर्या के बदलाव- विकसित राष्ट्रों में विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों आदि के द्वारा पाठ्यचर्या में कई नए प्रतिमान स्थापित किये हैं जिनका प्रभाव कुछ वर्षों बाद हमारे देश के पाठ्यक्रम विकास पर भी पड़ता है। इस प्रकार विश्व के किसी क्षेत्र में पाठ्यचर्या विकास में सफल हुए प्रयोग प्रेरक होते हैं। उदाहरण के लिए मुक्त विश्वविद्यालयीन शिक्षा के पाठ्यक्रम वैश्विक प्रेरकों में अनुप्राणित है।

(8) जीवन समाज में बदलाव- बदलाव एक निरंतर प्रक्रिया है-प्रत्येक मानव समाज के जीवन में समय अनुसार अनेक प्रकार के बदलाव आते हैं। ये बदलाव पाठ्यचर्या विकास में भी परिवर्तन की प्रेरणा देते हैं।

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