पाठ्यचर्या विकास के सामान्य, तकनीकी और गैर तकनीकी प्रतिमानों (मॉडल) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

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 प्रतिमान शब्द अंग्रेजी के ‘मॉडल’ शब्द का पर्याय है। पाठ्यचर्या प्रतिमान का अर्थ पाठ्यचर्या के स्वरूप से है। अनेक शिक्षाविदों और मनोवैज्ञानिकों ने पाठ्यचर्या के विभिन्न प्रतिमान विकसित किये हैं। यहाँ पाठ्यचर्या के सामान्य, तकनीकी और गैर-तकनीकी प्रतिमानों का संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है-

(अ) सामान्य प्रतिमान- जब पाठ्यचर्या का विकास बिना किसी विशिष्ट प्रतिमान का अनुसरण किये सामान्य रूप से शिक्षकों तथा अन्य संबंधितों के सहयोग से आवश्यकतानुसार कर लिया जाता है तो वह सामान्य प्रतिमान कहलाता है। यद्यपि इनमें भी पाठ्यचर्या विकास की आवश्यक प्रक्रिया निहित होती है। इसके प्रमुख चरण हैं-

1. पाठ्यचर्या क्षेत्र विशेष का सर्वेक्षण;

2. शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण;

3. विषय तथा विषयवस्तु का चयन;

4. पूर्व परीक्षणः

5. पूर्व परीक्षण के आधार पर संशोधन;

6. पाठ्यचर्या का प्रकाशन;

7. क्रियान्वयन;

8. छात्र मूल्यांकन और आवश्यकतानुसार संशोधन।

(ब) तकनीकी/वैज्ञानिक प्रतिमान- विभिन्न शिक्षाविदों तथा योजनाकारों द्वारा बौद्धिक व तार्किक आधार पर वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के साथ विधिपूर्वक रूपरेखा तैयार कर पाठ्यर्चा के तकनीकी व वैज्ञानिक प्रतिमान निर्मित किये हैं जिनमें ये प्रमुख हैं-टेलर प्रतिमान, ताबा प्रतिमान, सेलर व अलेक्जेंडर प्रतिमान, गुडलैंड प्रतिमान, हनकिस प्रतिमान, भिल्लर,सैल्लर प्रतिमान आदि। इनका संक्षिप्त विवरण नियमानुसार है

(1) टेलर प्रतिमान- इस प्रतिमान में ये चार मूलभूत अंग हैं-

(i) विद्यालय के प्रयोजन;

(ii) प्रयोजनों से संबंधित शैक्षिक अनुभव;

(iii) अनुभवों का संगठन;

(iv) प्रयोजनों की प्राप्ति हेतु छात्र मूल्यांकन।

इस प्रतिमान में प्रयोजन का उद्देश्यों के निर्धारण हेतु समाज, विद्यार्थी और विषयवस्तु, इन तीन स्रोतों के द्वारा शैक्षिक अनुभवों का चयन तथा उक्त में परीक्षण कार्य किया जाता हैं।

(2) हिल्डा ताबा प्रतिमान- इस प्रतिमान में पाठ्यचर्या का वास्तविक उपयोग करने वाले शिक्षक व छात्रों को सहयोगी बनाकर शिक्षण अधिगम अनुभव प्रदान किये जाते हैं। इस पाठ्यचर्या विकास प्रतिमान के ये सात सोपान हैं

(i) शिक्षक/छात्रों की आवश्यकताओं का निर्धारण;

(ii) शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण;

(iii) विषयवस्तु का चयन;

(iv) विषयवस्तु का संगठन;

(v) अधिगम अनुभवों का चयन;

(vi) शिक्षण अनुभवों का संगठन;

(vii) मूल्यांकन।

(3) सेलर अलेक्जेंडर प्रतिमान- इस व्यवस्थित प्रतिमान के ये पाँच भाग हैं-

(i) लक्ष्य, उद्देश्य व क्षेत्र;

(ii) पाठ्यचर्या अभिकलन/डिजाइन;

(iii) पाठ्यचर्या क्रियान्वयन;

(iv) पाठ्यचर्या मूल्यांकन;

(v) प्रतिपुष्टि तथा समायोजन।


(4) गुडलैक प्रतिमान- इस पाठ्यचर्या प्रतिमान के सोपान हैं-

(i) वर्तमान सांस्कृतिक मूल्यों का विश्लेषण;

(ii) शैक्षिक लक्ष्यों का निर्धारण;

(iii) व्यावहारिक अधिगम;

(iv) निष्पत्ति और अधिगम अवसर;

(v) पाठ्यचर्या विशेष तथा अध्ययन सामग्री विशेष।

(5) हनिकन्स प्रतिमान- इस प्रतिमान में पाठ्यचर्या कार्यों में लगे शिक्षक छात्र अलग-अलग परिस्थितियों में अपने निर्णयों को बदल सकते हैं। यह लचीले प्रतिमान का रूप है तथा परिस्थितिजन्य शैक्षिक अधिगम अनुभवों की उचत मानता है। इस प्रतिमान में दार्शनिक नियोजनों व चिंतन के परिप्रेक्ष्य में पाठ्यचर्या गतिविधियों को आकार दिया जा सकता है।

(6) भिल्लर सेल्लर प्रतिमान- इस सामान्य प्रतिमान में प्रत्येक मॉडल को प्रारंभिक अवस्था, संचालन अवस्था तथा रूपांतर अवस्था में प्रदर्शित कर निम्नलिखित पाँच सोपान बनाए गए हैं-

(i) अभिविन्यास;

(ii) उद्देश्य;

(iii) शिक्षण योजना;

(iv) क्रियान्वयन योजना;

(v) मूल्यांकन

(स) तकनीकी/गैर वैज्ञानिक प्रतिमान- पाठ्यचर्या के गैर तकनीकी/गैर वैज्ञानिक प्रतिमान ऐसे हैं जिनमें विशिष्ट तकनीक या वैज्ञानिक प्रविधि का प्रयोग नहीं होता। इनमें मुक्त बाधा प्रतिमान, विन्स्टीन फोटनी प्रतिमान, रोजर्स प्रतिमान प्रमुख हैं।

(1) मुक्त कक्षा प्रतिमान- यह प्रतिमान क्रिया आधारित है। इसमें विभिन्न क्रियाकलापों का प्रयोग होता है। इसमें छात्र स्वयं करके (लर्निंग बाई डूइंग) सीखते हैं। इस प्रतिमान के अनुसार पाठ्यचर्या छात्र की रुचि, आवश्यकता, स्वतंत्रता पर आधारित होती है।

(2) विन्स्टीन फोटिनी प्रतिमान- यह प्रतिमान शिक्षक की स्वतंत्रता का पक्षधर है इसमें वर्तमान पाठ्यचर्या की विषयवस्तु व शिक्षण विधियों की उपयुक्तता का आंकलन शिक्षक स्वयं कर अपनी नवीन विषय सामग्री तथा शिक्षण विधियों को तैयार कर पाठ्यचर्या को नवीन रूप देना है। वह छात्र की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वर्तमान पाठ्यचर्या में सुधार कर लेता है। इस प्रतिमान में छात्र ही पाठ्यचर्या का केन्द्र बिन्दु होता है। इसमें विषयवस्तु के ये स्रोत हैं- व्यक्तियों के अनुभव, छात्र के अनुभवों का ज्ञान तथा छात्रों के निजी सामाजिक पर्यावरण का ज्ञान।

(3) रोजर्स का अन्तर्वैयक्तिक संबंध प्रतिमान- कार्ल रोजर्स द्वारा व्यक्तियों के परस्पर अनुभवों की जाँच हेतु इस प्रतिमान को विकसित किया था। इसमें समूह के सदस्य स्वयं तथा समूह के लोगों को ईमानदारी से जाँचते हैं। समूह द्वारा विकसित अनुभव पाठ्यचर्या के विकास के लिए प्रयुक्त होते हैं।

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