बी.एड और डी.एड के सैद्धान्तिक पाठ्यक्रमों के बारे में लिखो।

Estimated reading: 1 minute 62 views

बी.एड. और डी.एड. प्रशिक्षण कार्यक्रम में निम्न पाठ्यक्रमों को सिद्धान्त में सम्मिलित किया जा सकता है-

1. शिक्षा का प्रजातान्त्रिक सामाजिक दर्शन- अध्यापक छात्रों को प्रजातान्त्रिक जीवन पद्धति, नागरिकता, सामाजिक और संवेगात्मक एकता के लिए, अभिप्रेरित एवं तैयार कर सकते हैं। उन्हें विद्यालय की इस भूमिका का बोध होना चाहिए। उन्हें भावी दायित्व का भी बोध होना चाहिए। इसके लिए उन्हें प्रजातांत्रिक सामाजिक प्रणाली के मूल्यों का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए।

2. समूह प्रक्रिया एवं सामाजिक व्यवहार- अध्यापक को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि किस प्रक्रिया के द्वारा बालकों में सामाजिक व्यवहार की उत्पत्ति होती है। उसे समूह गत्यात्मकता का ज्ञान होना चाहिए जो उसका मूलमंत्र हे । उसे इस बात का भी ज्ञान होना चाहिए कि इसे कैसे प्राप्त किया जाए।

3. अधिगम मनोविज्ञान तथा शिक्षण सिद्धान्त- अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम की अति आवश्यकता है ।

4. विकास का मनोविज्ञान- छात्र अध्यापक बालकों की वृद्धि तथा उनके संवेगात्मक एवं शैक्षिक आवश्यकताओं विशेषकर किशोरावस्था का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए।

5. स्वास्थ्य शिक्षा- छात्र अध्यापक को छात्रों के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए ।

6. विद्यालय प्रशासन एवं मानवीय सम्बन्ध- शैक्षिक प्रशासन एक एम.एड. स्तर पर विस्तार से वर्णन किया जा सकता है। बी.एड. और डी.एड. स्तर पर छात्र अध्यापक को स्कूल प्रशासन के उन तथ्यों तथा क्रियाओं को जानने की आवश्यकता है जो अध्यापक को प्रभावित करते हैं उसे उन क्षेत्रों के बारे में ज्ञान होना चाहिए जो राजकीय अनुदान से सम्बन्धित हैं और उसके प्रशासनिक कर्तव्यों से सम्बन्धित हैं। प्रशिक्षार्थियों को उन सभी विधियों एवं प्रविधियों

से परिचित कराना चाहिए जिनसे विद्यालय प्रशासन के विभिन्न घटकों; जैसे-सहयोगियों, अभिभावकों तथा जनता से मधुर सम्बन्धों का विकास हो सके।

7. विशिष्ट विधियाँ- इस पाठ्यक्रम में अभ्यास शिक्षण के साथ और इसके नियमित पृष्ठ-पोषण के लिए अच्छा और घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिए। प्रायः विचारगोष्ठी के रूप में छात्र-अध्यापक अपने अभ्यास शिक्षण के अपने अनुभवों तथा उन समस्याओं को स्पष्ट कर सकते हैं जो उनके सम्मुख आती हैं। उन्हें जिन विभिन्न शिक्षण स्थितियों से निपटना होता है उनका कक्षा की विभिन्न इकाइयों को पढ़ाने से सम्बन्ध होना चाहिए।

8. शैक्षिक तकनीकी- राष्ट्रीय शिक्षा-नीति ने राष्ट्र के लिए शैक्षिक तकनीकी पर अधिक बल दिया है।

पाठ्यक्रम की रूपरेखा

1. व्यक्तिगत एवं सामाजिक कौशल

(i) शिक्षक का स्वास्थ्य एवं व्यक्तित्व विकास

(ii) वार्ता तथा संचार तकनीकी

(iii) अध्यापक का मानसिक स्वास्थ्य

(iv) अध्यापक के मानवीय सम्बन्ध

(v) अध्यापक और समाज

(vi) समुदाय के नेता के रूप में अध्यापक ।

2. व्यावसायिक कौशल

(i) शिक्षा का आधार

(ii) शिक्षण विधियाँ

(iii) विद्यालय संगठन एवं प्रशासन

(iv) कक्षा शिक्षण

(v) शिक्षा मनोविज्ञान

(vi) शिक्षा में मापन एवं मूल्यांकन

(vii) विद्यालय में निर्देशन सेवा

(viii) शैक्षिक तकनीकी तथा विशेष शिक्षक ।

3. प्रत्यय सम्बन्धी कौशल

(i) शिक्षा में योजना

(ii) शैक्षिक समस्याओं का बोध

(iii) विद्यालय में कार्य एवं अनुसंधान

(iv) शिक्षा में अन्त: अनुशासन उपागम

(v) शैक्षिक प्रक्रिया एवं नवाचार

(vi) शिक्षा में सांख्यिकी एवं अनुसंधान ।

इन क्षेत्रों में परिवर्तन संशोधन तथा परिवर्धन स्वयं सिद्धियों के आधार पर किए जा सकते हैं। वर्तमान में सरकार द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर एक अलग विशेष समिति की स्थापना की गई है जो अध्यापक शिक्षा का एक राष्ट्रीय आधार तैयार करती है जो राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप हो।


अध्यापक शिक्षा के उद्देश्य

अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य शिक्षा एवं व्यक्तिगत संस्कृति का विकास करना होना चाहिए । उसे शिक्षण की योग्यताओं को विकसित करना चाहिए। उसे शिक्षण के उन सिद्धान्तों के प्रति जागरूक बनाए रखना चाहिए जो स्नेहपूर्ण मानवीय सम्बन्धों के लिए आवश्यक हों तथा जिसमें उत्तरदायित्व की भावना हो, जो शिक्षण के माध्यम से सहयोग दे और समाज के लिए आदर्श बने । यूनेस्को के अनुसार, अध्यापक शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्यों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

(i) बोध, (ii) कौशल, तथा (iii) अभिवृत्ति ।

1. व्यापक बोधात्मक उद्देश्य

(i) समाज की संरचना, कार्य एवं अन्तःक्रिया का ज्ञान

(ii) बाल विकास एवं अधिगम प्रक्रिया का बोध

(iii) विकासशील बालकों की समस्याओं का बोध

(iv) विद्यालयीय संगठन एवं प्रशासन का ज्ञान

(v) परीक्षा एवं मूल्यांकन की विधियों का ज्ञान एवं बोध ।

2. कौशल उद्देश्य

(i) विभिन्न शिक्षण विधियों के प्रयोग की योग्यता एवं कौशल

(ii) शिक्षण विधियों का विकास एवं विषय के प्रयोग की योग्यता

(iii) प्रभावपूर्ण कौशल एवं अभिप्रेरणा

(iv) शिक्षण के विशेष उद्देश्यों को बनाने की योग्यता

(v) मूल्यांकन प्रविधियों के प्रयोग तथा पाठ्य-सहगामी क्रियाओं के संगठन को योग्यता।

3. अभिवृत्ति से सम्बन्धित उद्देश्य

(i) शिक्षण व्यवसाय के प्रति स्वस्थ एवं सकारात्मक दृष्टिकोण

(ii) शिक्षण समस्याओं के प्रति वैज्ञानिक एवं वस्तुपरक दृष्टिकोण

(iii) अध्यापक में प्रजातान्त्रिक एवं राष्ट्रीय दृष्टिकोण, छात्रों की समस्याओं के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण तथा उन्हें उचित राय देना।

बी.एड. कार्यक्रम

सैद्धान्तिक पाठ्यक्रम 100 अंक का होता है ।

शिक्षण अभ्यास 200 अंक का होता है।

कार्यक्रम में निम्नलिखित सैद्धान्तिक पाठ्यक्रम सम्मिलित हैं-

1. शिक्षा के सिद्धान्त या शिक्षा के सामाजिक और दार्शनिक आधार ।

2. शैक्षिक मनोविज्ञान एवं प्रारम्भिक शैक्षिक सांख्यिकी ।

3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में भारतीय शिक्षा की समस्याएं ।

4. शिक्षण या शिक्षण तकनीकी विधियाँ ।

5. विद्यालयी विषयों की शिक्षण विधियाँ प्रारम्भिक पाठ्यक्रम के रूप में या एक विद्यालय विषय विशिष्ट पाठ्यक्रम के रूप में।

6. निम्न में से एक विशिष्ट या ऐच्छिक पाठ्यक्रम होता है-

(i) शैक्षिक मापन और मूल्यांकन

(ii) शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन

(iii) शैक्षिक प्रशासन और पर्यवेक्षण

(iv) विद्यालय संगठन

(v) जनसंख्या शिक्षा

(vi) स्वास्थ्य शिक्षा

(vii) बुनियादी शिक्षा

7. शिक्षण विधियाँ, विद्यालय में पढ़ाये जाने वाले दो विषय ।

निम्नलिखित विषयों में से किन्हीं दो को अभ्यास शिक्षण के लिए चुना जाता है-

(अ) 1. भौतिक विज्ञान, 2. रसायन विज्ञान, 3. वनस्पति और 4. सामान्य विज्ञान ।

(ब) 5. गणित, 6. गृह विज्ञान, 7. हिन्दी, 8. संस्कृत, 9. अंग्रेजी, 10. इतिहास, 11. भूगोल, 12. अर्थशास्त्र,13. नागरिकशास्त्र, 14. सामाजिक अध्ययन, 15. कृषि और 16. वाणिज्य।

प्रत्येक छात्र-अध्यापक को प्रत्येक विषय के 20 पाठ पढ़ाने होते हैं। अन्तिम परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए 40 पाठ पढ़ाना आवश्यक है। आदर्श पाठ एवं प्रदर्शन-पाठ विषय विशेषज्ञ द्वारा पढ़ाये जाते हैं। बी.एड. पाठ्यक्रम में इस समय विभिन्न शिक्षा विभागों में सूक्ष्म शिक्षण एवं अनुकरणीय शिक्षण का संगठन किया जाता है । अन्तिम परीक्षा में प्रत्येक छात्राध्यापक द्वारा दो पाठ पढ़ाये जाते हैं जिसमें से एक पाठ विशिष्ट विषय में पढ़ाना आवश्यक है । प्रायोगिक परीक्षा के पहले सत्रीय कार्य जमा करना आवश्यक है। प्रायोगिक परीक्षा का तरीका एक विश्वविद्यालय से दूसरे विश्वविद्यालय में बदलता है, परन्तु सभी विश्वविद्यालयों में एक जैसा प्रतिमान है। बी.एड. परीक्षा में सिद्धान्त तथा प्रयोगात्मक विषयों में अलग-अलग श्रेणियाँ प्रदान की जाती हैं।


विद्यालय एवं शिक्षा की समस्या पर विचारगोष्ठी

छात्र अध्यापक का माध्यमिक विद्यालयों की कुछ समस्याओं से परिचय करने तथा उन्हें भारतीय शिक्षा की समस्याओं से परिचित कराने और राष्ट्र के सम्बन्ध में अपनी व्यावसायिक भूमिका समझने के लिए विचारगोष्ठी एवं चर्चाएं होनी चाहिए। यह आवश्यक है कि छात्राध्यापकों को दो-चार ऐसी विचार-गोष्ठियाँ करायी जाएं, जिससे वे विद्यालय एवं शिक्षा की समस्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सकें।


पाठ्यक्रम सम्बन्धी आलोचनाएं

(i) वर्तमान बी.एड. और एम.एड. पाठ्यक्रमों में सैद्धान्तिक विषयों की संख्या वही पुरानी ही है।

(ii) वर्तमान बी.एड. एवं एम.एड. के सैद्धान्तिक प्रश्न-पत्रों में पाठ्यवस्तु की अधिकता होती है जो प्रभावी अध्यापक तैयार करने में सीधा सहयोग नहीं देतीं।

(iii) सर्वोत्तम पाठ्यक्रम उसे कहा जाता है जिसे पूरा करने के लिए (12-14) व्याख्यानों की आवश्यकता होती है।

सुधार के सुझाव- छात्र अध्यापकों को केवल सुसंरचित एवं सैद्धान्तिक पाठ्यक्रम केन्द्रित पाठ्यक्रम के सहारे ही नहीं छोड़ा जा सकता। उन्हें इस प्रकार से पढ़ाया जाना चाहिए जिससे वे बुद्धिमान बने, सक्रिय होकर ज्ञान प्राप्त करें, वांछित कौशलों की प्राप्ति करें, वांछित रुचि पैदा करें, और वांछित दृष्टिकोण का विकास करें। यह व्याख्यानात्मक उपदेश के द्वारा नहीं बल्कि व्यावहारिक कार्य एवं उनकी सीधी संलग्नता से संभव है। जब तक शिक्षण को प्रभावी नहीं बनाया जाएगा, व्याख्यान को कम नहीं किया जाएगा, छात्राध्यापकों को वार्तालाप में अधिक संलग्न नहीं किया जाएगा, उन्हें शैक्षिक सिद्धान्त और उनके प्रयोग के सम्बन्ध में निर्णय लेने योग्य नहीं बनाया जाएगा, तब तक हम समर्थ अध्यापक निर्माण नहीं कर सकते जो अपने बारे में सोचे तथा उन विधियों एवं उपागमों के विकास के बारे में सोचे जो उनकी योग्यताओं के अनुरूप हों तथा जो विद्यालय की आवश्यकताओं से जुड़ी हों। आज छात्र अध्यापकों की सृजनात्मक योग्यताओं को विकसित करने की जरूरत है। उनको सर्वोत्तम संभव प्रशिक्षण पाने का अधिकार है, ताकि वे इस पुनीत कार्य को पूरा कर सकें।

Leave a Comment

CONTENTS