माध्यमिक कक्षा के किसी शालेय विषय की पाठ्यचर्या का प्रारूप (डिजाइन) तैयार कीजिए।

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मध्यप्रदेश में कक्षा आठवीं (हिन्दी माध्यम) के लिए हिन्दी व्याकरण विषय हेतु पाठ्यचर्या प्रारूप (डिजाइन)

(1) उद्देश्य निर्धारण- (i) ज्ञानात्मक, कौशलात्मक, सृजनात्मक तथा रक्षात्मक विकास विद्यार्थियों में उत्पन्न करना ।

(ii) विद्यार्थियों के भाषा एवं व्याकरण के पूर्व ज्ञान (जिन्हें वे कक्षा 7 तक प्राप्त कर चुके हैं) के आधार पर हिन्दी व्याकरण के अग्रिम ज्ञान को विकसित करना।

(iii) हिन्दी रचना के विभिन्न रूपों (विशेषतः निबंध, कहानी, पत्र, अनुच्छेद व सारांश लेखन) का विद्यार्थियों में अभ्यास करना।

(iv) आगमन प्रणाली का विशेष उपयोग कर उदाहरणों व प्रयोगों द्वारा व्याकरण के नियम बनाना।

(v) हिन्दी काव्य में प्रयुक्त रस, छंद, अलंकारों से छात्रों को परिचित करना।

(vi) विद्यार्थियों हेतु निर्धारित हिन्दी विशिष्ट की पाठ्यपुस्तक में प्रयुक्त नवीन शब्दों, मुहावरों, कहावतों, रचनाओं, काव्यरूपों से व्याकरण को सहसंबंधित कर व्याकरण का सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान देना।

(2) विषय वस्तु- (पूर्व ज्ञान कक्षा 7वीं तक विद्यार्थी लिंग, वचन, पुरुष, शब्द-भेद, समास, संधि की सामान्य जानकारी,शब्द रचना, विराम चिह्न, छंद (दोहा, चौपाई, सोरठा), अलंकार (उपमा, रूपक, अनुप्रास), रस (वात्सल्य, भक्ति, शांत रस, वीर रस) उपसर्ग व प्रत्यय आदि का सामान्य ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। इस पूर्व ज्ञान से अग्रिम अध्ययन आगे है।

(I) शब्द-भेद- (i) आगमन विधि द्वारा संधि के प्रकार, परिभाषा और उदाहरण ।

(ii) समास के प्रकार, परिभाषा व उदाहरण ।

(iii) उपसर्ग व प्रत्यय ।

(iv) क्रिया विशेषण, संबंध बोधक, समुच्चय बोधक, विस्मयादि बोधक ।

(II) वाक्य रचना- उद्देश्य, विधेय, अर्थ, परिभाषा, उदाहरण । वाक्य पृथक्करण ।

(III) गद्य रचना- (i) मुहावरों, लोकोक्तियों का वाक्यों में प्रयोग संयुक्त व मिश्रित वाक्य लेखन सारांश लेखन ।

(ii) पत्र लेखन व डायरी लेखन।

(iii) निबंध लेखन व कहानी लेखन ।

(iv) काव्य रचना- रस (नौ रस), छंद (भाषिक व वर्णित छंद, मुक्त छंद) अलंकार (शब्दालंकार व अर्थालंकार) श्लेष, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिश्योक्ति ।

(3) अधिगम (सीखने के) अनुभव

(a) श्रुत लेख (डिक्टेशन) अभ्यास तथा जाँच

(b) कक्षा अभ्यास कार्य-वस्तुनिष्ठ तथा लघुउत्तरात्मक प्रश्न

(c) पाठ्य सहगामी क्रियाएं

(i) शब्द कोष से शब्द खोजना, प्रतियोगिता आयोजन

(ii) क्विज प्रतियोगिता (संधि, समास विग्रह कर अर्थ बताना, शुद्ध, अशुद्ध शब्द लेखन);

(iii) काव्य पंक्तियों में रस,छंद, अलंकार छाँटना;

(iv) निबंध व भाषण प्रतियोगिताओं का आयोजन;

(v) उच्चारण दोष निवारण (भाषा प्रयोगशाला में);

(vi) दीवार पत्रिका, शालेय पत्रिका, हस्तलिखित पत्रिका, प्रकाशन-छात्रों की रचनाओं सहित;

(vii) एकांकी रंगमंचन, वार्तालाप, अभिनय, भाषा में उतार चढ़ाव संहिता।

(4) संगठन तथा क्रियान्वयन- पाठ्यचर्या में विषयवस्तु अनुक्रम इस प्रकार होगा-

शब्द रचना → वाक्य रचाना → गद्य रचना → पद्य रचना

पाठ्यचर्या का क्रियान्वयन इस प्रकार होगा-

(i) पाठ्य विषयवस्तु का इकाइयों में माहवार विभाजन कर पाठ योजनाएं बनाकर शिक्षक कक्षा शिक्षण में आगमन विधि (उदाहरणों से नियम तक पहुँचना) द्वारा

पाठ का विकास करेंगे। शिक्षक अनेक उदाहरण प्रस्तुत करेंगे जिसे छात्र विश्लेषण कर उदाहरणों की समानता ज्ञात करेंगे। इसके उपरांत नियमीकरण तथा परीक्षण होगा।

(ii) शिक्षक समवाय या सहसंबंध विधि का प्रयोग कर पाठ्यवस्तु के उदाहरणों से संबंध जोड़ेंगे ताकि पाठ्यपुस्तक की सामग्री तथा व्याकरण शिक्षण में ‘अधिगम का स्थानांतर’ संभव हो।

(iii) शिक्षक दृश्य-श्रव्य सामग्री (यथासंभव स्वयं तैयार कर) कक्षा में प्रदर्शित कर पाठ का विकास प्रश्नोत्तर पद्धति से करेंगे।

(iv) शिक्षण में शिक्षण सूत्रों जैसे स्थूल से सूक्ष्म की ओर मूर्त से अमूर्त की ओर, ज्ञात से अज्ञात की ओर तथा विशिष्ट से सामान्य की ओर का उपयोग शिक्षक करेंगे।

(v) पाठ्यसहगामी क्रियाओं तथा उपरोक्त वर्णित अधिगम अनुभवों के द्वारा शिक्षक छात्रों में व्याकरण के नियमों तथा दृष्टांतों का रोचक व उपयोगी प्रदर्शन करेंगे।

(vi) गृहकार्यों तथा अभ्यास कार्यों से सीखे हुए ज्ञान को चिरस्थायी बनाने का प्रयास शिक्षक करेंगे।

(5) मूल्यांकन- छात्रों के अधिगम का मूल्यांकन सतत व समग्र रूप से प्रत्येक इकाई के उपरांत तथा शिक्षण के दौरान किया जाता रहेगा। मूल्यांकन में शिक्षक यह देखेंगे कि अधिगम का शिक्षार्थी के व्यवहार में निर्धारित किये गए उद्देश्यों की प्राप्ति से कितना परिवर्तन हुआ है। इससे शिक्षक को विभिन्न छात्रों की उपलब्धि का पृष्ठ पोषण (फीडबैक) मिलेगा और तदनुसार वे पाठ्यचर्या में संशोधन हेतु (आवश्यकता हुई तो) उन्मुख होंगे।

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