विद्यमान पाठ्यचर्या की प्रमुख समस्याओं का वर्णन करते हुए उन ज्वलंत मुद्दों का उल्लेख कीजिए जिन्हें पाठ्यचर्या में सम्मिलित कर समुचित पाठ्यचर्या बनाना आप आवश्यक समझते हैं।

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 विद्यमान पाठ्यक्रम के साथ बदलाव, नई पनपती विचारधाराओं, नए विषयों तथा प्रकरणों आदि के कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जो पाठ्यचर्या में सुधार तथा समस्याओं का उन्मूलन करने की आवश्यकता की ओर संकेत करती हैं। भारत में शालेय पाठ्यचर्या में निम्नलिखित समस्याएं प्रमुख हैं-

(1) पाठ्यचर्या का एकपक्षीय होना- विद्यमान पाठ्यचर्या प्रायः विषयों के सैद्धान्तिक ज्ञान पर अधिक बल देती है जिससे पाठ्यचर्या के व्यावहारिक, प्रयोगात्मक व क्रियात्मक ज्ञान की उपेक्षा हो जाती है। बालक के सर्वांगीण विकास हेतु सैद्धान्तिक ज्ञान के आधार पर परीक्षाएं उत्तीर्ण कर लेना पर्याप्त नहीं है। कैरियर हेतु व्यावहारिक, प्रायोगिक व क्रियात्मक ज्ञान की जीवन में अधिक आवश्यकता होती है। अत: पाठ्यचर्या को बहुपक्षीय रूप देना आवश्यक है पाठ्यचर्या के इस एकपक्षीय सैद्धान्तिक ज्ञान की समस्या के कारण बालक अपने भावी जीवन में सफलता प्राप्त करने में पीछे रह जाता है।

(2) पाठ्यचर्या की परीक्षा प्रधानता- अधिकांश परीक्षा लेने वाली संस्थाएं सभी पाठ्यचर्या के निर्माण में अधिक सक्रिय रहती हैं जिनके विषयों व प्रकरणों का चयन परीक्षा केन्द्रित होता है। ऐसी पाठ्यचर्या शिक्षक व छात्रों को सरल, सहज तथा उपयोगी लगती है। वे परीक्षा के दिनों में महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर स्मरण कर परीक्षा तो उत्तीर्ण कर लेते हैं परन्तु शिक्षा का वास्तविक व वृहत रूप उनके लिए लाभप्रद नहीं रह जाता। वर्ष भर पढ़ाई न कर अधिकांश छात्र परीक्षा के समय में कोचिंग, ट्यूशन तथा महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को याद करने में समय बिताते हैं। इस समस्या के कारण पाठ्यचर्या के बड़े लक्ष्य व उद्देश्यों से छात्र वंचित रह जाते हैं। पाठ्यचर्या में चयन किये गए अंशों का अध्ययन उन्हें संपूर्ण पाठ्यचर्या के अध्ययन से दूर ले जाता है।

(3) विषयों का आधिक्य- शिक्षा के प्रायः सभी स्तरों पर विषय विशेषज्ञ और पाठ्यक्रम निर्माता मंडल अधिकाधिक विषयों का समावेश कर देते हैं। वे नए ज्ञान को भी पाठ्यचर्या में शामिल करते रहते हैं परन्तु परंपरागत अनुपयोगी या कम उपयोगी प्रकरणों को हटाने की ओर उनकी सक्रियता उतनी नहीं रहती। परिणामस्वरूप पाठ्यचर्या विषयों के आधिक्य से बोझिल हो जाती है। प्रारंभिक स्तर पर ही इसी कारण बस्ते का बोझ बढ़ते जाने की समस्या उत्पन्न हो गई है।

नए ज्ञान का विषयों में जोड़ा जाना आवश्यक है परंतु अनुपयोगी या कम उपयोगी परम्परागत विषय ज्ञान को हटाकर इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।

(4) विषयों व उपविषयों (प्रकरणों) में एकीकरण की कमी- पाठ्यचर्या की आधुनिक दृष्टि के अनुसार एकीकृत विषयों के पाठ्यक्रम को लागू करना चाहिए। इससे विभिन्न विषयों में सहसंबद्धता के कारण अधिगम व्यापक व सरल होगा। परंतु पाठ्यक्रम निर्माताओं तथा पाठ्यक्रम विकासकर्ता शिक्षकों द्वारा श्रमसाध्य, कठिन होने के कारण एकीकृत या समेकित पाठ्यक्रम कम ही लागू होता है। अधिकांश शिक्षक जिस विधि व शैली से पुराना पाठ्यक्रम पढ़ाते चले आ रहे हैं उसी में पढ़ाना उन्हें सुविधाजनक लगता है। एकीकरण के अभाव में विषयों का आधिक्य व बोझ बढ़ता है और छात्र एकीकृत पाठ्यक्रम की अच्छाइयों से वंचित रह जाता है।

(5) ‘कोर’ (अनिवार्य) पाठ्यचर्या के साथ वैकल्पिक विषयों की कमी- अमेरिकी शिक्षा में पाठ्यचर्या में प्रमुख (कोर) विषयों के साथ-साथ विभिन्न छात्रों की रुचि सापेक्ष वैकल्पिक व ऐच्छिक विषयों के अध्ययन की व्यवस्था प्रचलित है। भारत में कुछ बोर्ड तथा विश्वविद्यालयों में ने इस नवीन व्यवस्था के अनुसार पाठ्यचर्या का निर्माण किया है परंतु व्यावहारिक रूप में है विद्यालय/महाविद्यालयों के असहयोग से इनेगिने ऐच्छिक पाठ्यक्रम लेने के लिए छात्रों को विवश किया जाता है। यदि छात्र अपनी रुचि का पाठ्यक्रम चयन भी करते हैं तो विद्यालय महाविद्यालय में ऐसी पाठ्यचर्या के अध्यापन की व्यवस्था न होने से छात्र को स्वाध्याय पर निर्भर रहना होता है। कोर तथा वैकल्पिक पाठ्यचर्या की व्यवस्था के लाभों से इस प्रकार छात्रगण वंचित रह जाते हैं।

(6) पाठ्यचर्या की जीवन से पृथकता- विद्यमान पाठ्यचर्या में सम्मिलित विषयों व प्रकरणों में सामाजिक जीवन एवं पर्यावरण से जुड़ाव की कमी परिलक्षित होती है। वस्तुतः जीवन से विमुख ज्ञान नीरस, दुष्कर तथा उपयोगहीन होता है। इधर NCERT ने प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यचर्या में विशेषकर उसे सामाजिक जीवन से जोड़ने के प्रभाव प्रारंभ किये हैं जो कुछ विषयों तक ही सीमित है। ऊंची कक्षाओं की पाठ्यचर्या को भी यथासंभव दैनिक जीवन से जोड़ने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम निर्माताओं के समक्ष जीवन से जुड़े विषयों पर अधिकाधिक कार्य करने की समस्या अभी भी विद्यमान है।

(7) तकनीकी एवं व्यावसायिक पाठ्यचर्या की कमी- आज के टेक्नोलॉजी तथा कारपोरेट विश्व की शिक्षा में टेक्नोलॉजी व प्रबंधन तथा व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्रों में पाठ्यचर्या का ऐसा निर्माण जिसमें बदलती टेक्नोलॉजी को व्यावहारिक विषयों के माध्यम से माध्यमिक व उच्च शिक्षा से जोड़ने हेतु पाठ्यचर्या का विकास अपेक्षित है। इनके जो पाठ्यक्रम शालाओं में पढ़ाए जाते हैं उनमें वर्षों तक बदलाव नहीं होता और जब वह टेक्नोलॉजी अन्य देशों में इतिहास बन जाती है हमारी पाठ्यचर्या में जीवित रहती है। नवोदित व्यवसायों की शिक्षा हेतु भी शिक्षा व प्रशिक्षण की व्यावसायिक पाठ्यचर्या की समस्या भी विद्यमान है।

(8) पाठ्यचर्या में प्रजातांत्रिक मूल्यों की कमी- हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है परंतु राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के निर्माण तथा इससे पूरे देश में क्रियान्वयन के प्रयास एक व्यवस्था के रूप में विद्यमान है। लोकतंत्र स्थापना के 70 वर्षों उपरांत भी शालेय पाठ्यचर्या के भाषा, सामाजिक अध्ययन आदि कुछ ही विषयों की पाठ्यचर्या में धर्मनिरपेक्षता, सर्वोदय, एकता, समाजवाद, नागरिक अधिकार व कर्त्तव्य आदि प्रजातांत्रिक मूल्यों में शामिल किया जा रहा है परंतु पाठ्यसहगामी क्रियाओं में प्रजातांत्रिक मूल्यों के विकास की कोई योजना विद्यमान नहीं है। प्रजातंत्र के खतरे बढ़ रहे हैं तथा आतंकवाद, भ्रष्टाचार, राजनैतिक अध्ययन आदि समस्याएं समाज में घर कर रही हैं जिनके लिए राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक विषयों को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना आवश्यक हो गया है। भाषावाद, प्रांतवाद, जातिवाद आदि विघटनकारी भावनाओं पर रोक के लिए पाठ्यचर्या में विशेषकर प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर विशेष प्रयास अपेक्षित हैं।

(9) नैतिक चारित्रिक विषयों की कमी- वर्तमान पाठ्यचर्या में नैतिकता, सदाचार, शिष्टाचार, नैतिक शिक्षा, मूल्य शिक्षा, यौन शिक्षा जैसे विषयों को पाठ्यचर्या में स्वीकार किये जाने की आवश्यकता है।

(10) नवाचार की कमी- अधिकांशत: प्रचलित पाठ्यक्रम में अधुनातन प्रवृत्तियों, विश्व में भावना व भूमंडलीकरण, पर्यावरण, शांति शिक्षा व मानववाद, नई टेक्नोलॉजी, नवीनतम विषयों-विशेष शिक्षा, जनसंख्या शिक्षा, सामुदायिक स्वास्थ्य आदि को पाठ्यचर्या में स्थान मिलना चाहिए।

पाठ्यचर्या में सम्मिलित किये जाने हेतु ज्वलंत मुद्दे

पाठ्यचर्या में सम्मिलित किये जाने हेतु ज्वलंत मुद्दे इस प्रकार हैं-

1. वैयक्तिक विभिन्नता का मुद्दा;

2. क्रियाशीलता, कार्यानुभव का मुद्दा;

3. गुणवत्ता का मुद्दा;

4. सामाजिकता का मुद्दा;

5. उपयोगिता का मुद्दा;

6. आचरण व नैतिकता का मुद्दा;

7. अन्तर्राष्ट्रीयता की शिक्षा का मुद्दा;

8. प्रजातांत्रिक मूल्यों के उपयोग का मुद्दा;

9. सुसम्बद्धता तथा सुनियोजन का मुद्दा;

10. रचनात्मकता के विकास का मुद्दा;

11. जेंडर, समावेशन तथा जनसंख्या शिक्षा का मुद्दा;

12. सतत और व्यापक शिक्षा का मुद्दा;

13. सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का मुद्दा

14. राष्ट्रीयता का मुद्दा;

15. पर्यावरण सुरक्षा तथा संसाधनों के संरक्षण का मुद्दा;

16, शैक्षिक तकनीक के व्यावहारिक इस्तेमाल का मुद्दा;

17. स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा का मुद्दा;

18. बालकों के सर्वांगीण विकास का मुद्दा;

19. यौन शिक्षा का मुद्दा

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