. विद्यमान पाठ्यचर्या में 20वीं शताब्दी में कौन-कौनसे प्रमुख परिवर्तन आए हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।

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संपूर्ण विश्व में वर्तमान समय पाठ्यचर्या में अनेक परिवर्तन हुए हैं।

महत्त्वपूर्ण परिवर्तन निम्नलिखित हैं –

1. उदार शिक्षा- पुरानी निरंकुश शिक्षा के स्थान पर उदार शिक्षा का विकास हुआ है। पुरानी शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक को ही सब कुछ माना जाता था और वह दंड या पुरस्कार देने के लिए अधिकृत था। उस शिक्षण में छात्रों को कोई स्वतंत्रता नहीं थी। शिक्षा कुछ विषयों तक ही सीमित थी, परंतु अब अधिकांश लोगों ने उदार शिक्षा को अपनाया है और उचित माना है। उदारवादी शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि शिक्षा का अर्थ सीखने वाले के मस्तिष्क को स्वतंत्रता प्रदान करना है और बिना किसी भेदभाव के सबको शिक्षा प्रदान करना चाहिए। पुराने पाठ्यचर्या के विपरीत आधुनिक पाठ्यचर्या में प्राकृतिक एवं आधुनिक विज्ञान और आधुनिक शाखा पर जोर दिया जाता है। इस पाठ्यचर्या में रहने की जगह समझने पर जोर दिया जाता है, जिससे सीखने वाला अपनी सीखी हुई बातों को स्वयं अभिव्यक्त कर सके। आज की पाठ्यचर्या धर्मनिरपेक्षता पर विशेष जोर देती है

2. भूमण्डलीय शिक्षा- आज विश्व के सभी देश अपनी आवश्यकताओं के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं। विभिन्न देशों का संबंध का आज एक जाल बन गया है। ऐसे में इन बंधों को मजबूत बनाने के लिए भूमण्डलीय शिक्षा आवश्यक हो गई है। मानव जीवन के किसी भी पक्ष को लिया जाए तो पता चलता है कि उसकी पूर्ति बिना भूमण्डलीय सहायता के नहीं हो सकती। पेय जल, कपड़े, यातायात, कर नीति, मुद्रास्फीति, रोजगार, समाचार पत्र की

विषय-वस्तु, पुस्तकों की कीमत, ईंधन आपूर्ति, आतंकवाद और शांति आदि सभी भूमण्डलीय अंतर्निभरता से प्रभावित हैं।

सामयिक विश्व की आवश्यकताओं और व्यवस्थाओं को समझने के लिए भूमण्डलीय शिक्षा उत्तरदायी है। छात्रों को अपने में जीवन में ऐसे अनेक उदाहरण मिल सकते हैं जिनमें भूमण्डलीय शिक्षा की आवश्यकता है। ऐसे में उन्हें विश्व के बारे में विस्तार से जानना आवश्यक है। पिर स्वयं वे विश्व के ही एक अंग हैं। इसलिए अब ऐसी पाठ्यचर्या की आवश्यकता है जो विश्व के विषय में जानकारी प्रदान करें। छात्रों को अब विश्व में हो रहे परिवर्तनों की गति को समझने की आवश्यकता है। परिवर्तनों की तैयारी के लिए कार्ययुक्त कौशलों के विकास एवं अभ्यास की आवश्यकता है। ये कौशल निर्णय निर्धारण, समस्या समाधान, सर्जनात्मक चिंतन, भविष्य की परियोजना आदि ही कर सकते हैं जो समूह प्रक्रियाओं में सहभागिता को प्रोत्साहित करते हों।

भूमण्डलीय शिक्षा की पाठ्यचर्या अधिगमकर्ताओं को भूमण्डलीय ज्ञान प्रदान करती है। भूमण्डलीय शिक्षा के निम्नलिखित पांच उदेश्य होते हैं –

(i) व्यवस्था चेतना का विकास

(ii) भविष्य के प्रति चेतना

(iii) ग्रहीय स्वास्थ्य के प्रति चेतना

(iv) लगन के प्रति चेतना

(v) तैयारी और प्रक्रिया के प्रति चेतना

छात्रों के लिए इन सबकी प्राप्ति आवश्यक है।

3. अंतर्विषयगत विषय-वस्तु- आधुनिक युग के अनेक पाठ्यचर्या अंतर्विषयगत से बहुत दूर हैं। विभिन्न सामाजिक और प्राकृतिक विज्ञानों से विभिन्न विषय जैसे, सामाजिक अध्ययन, वातावरणीय अध्ययन, जैव रसायन, व्यापार अध्ययन, व्यापार गणित, आदि का जन्म हुआ है। पाठ्यचर्या में अंतर्विषयगत उपागम छात्रों को विभिन्न विषयों के विषय को अच्छी तरह समझने में सहायता करते हैं। ये मानव समाज की अनेक समस्याओं को प्रभावशाली ढंग से हल करने में भी सहायता देती है। प्रत्येक नवयुवक विभिन्न विषयों के सामान्य विचारों और अवधारणाओं की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। ऐसे में अंतर्विषयगत विषय-वस्तु का महत्त्व बढ़ जाता है।

(4) धर्म निरपेक्षता एवं शिक्षा- आज सभी समाज के लोग विभिन्न धर्मों और विचारों में विश्वास करते हैं। एक प्रजातांत्रिक समाज धर्मनिरपेक्षता में अटूट श्रद्धा रखता है जिसके द्वारा वे अपने विचारों और धर्मों में स्वतंत्रता महसूस करते हैं और राज्य भी इनके धर्मों में हस्तक्षेप नहीं करता है। किसी भी विद्यालय में विभिन्न विचारों और धर्मों के छात्र अध्ययन करते हैं किसी विद्यालय को एक धर्म या विश्वास में ढालना खतरनाक हो सकता है और उससे संस्था की छवि खराब हो सकती है। यही कारण है कि प्रत्येक राज्य अपने औपचारिक पाठ्यचर्या के द्वारा छात्रों को धर्मनिरपेक्षता का पाठ सिखाता है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में जब शिक्षा के धर्मनिरपेक्षीकरण पर बल दिया गया तो सभी ने इसका समर्थन किया। उदारवाद ने तो इसको और अधिक बढ़ावा दिया और आशा की कि इसके द्वारा सार्वभौमिक समझ को वैज्ञानिक ढंग से विकसित किया जा सकता है और राजनैतिक तथा आर्थिक क्षेत्र के प्रति सजगता जागृत की जा सकती है।।

(5) मनोविज्ञान और पाठ्यचर्या- पाठ्यचर्या के निर्माण के समय मनोवैज्ञानिक विशेषताओं की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है, क्योंकि ये विशेष विषय के अधिगम को प्रभावित करते हैं। पाठ्यचर्या की रचना करते समय मानव विकास, संप्रत्यय निर्माण, विभिन्न प्रकार के विषय-वस्तु का अधिगम, अभिप्रेरणात्मक कारकों, शैक्षिक तकनीकी और मूल्यांकन विधियों का ध्यान रखना पड़ता है। किसी विषय के विषय-वस्तु का संगठन करते समय पाठ्यचर्या निर्माता तार्किक और मनोवैज्ञानिक अपीलों और प्रबंध को अपने मस्तिष्क में रखता है। अधिगम की भिन्नता की आवश्यकता, और व्यक्तिगत भिन्नता आदि अधिगम अनुभवों के चुनाव के आधार होते हैं। इस प्रकार मनोविज्ञान का अध्ययन पाठ्यचर्या निर्धारण को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

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