Output Devices (आउटपुट डिवाइस)

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जिस उपकरण की सहायता से CPU से आने वाली सूचनाओं या परिणामों को हम प्राप्त कर सकते हैं उस डिवाइस को हम आउटपुट डिवाइस कहते हैं। कम्प्यूटर से प्राप्त परिणाम दो प्रकार के होते हैं-

(1) Soft Copy         

(2) Hard Copy

(1) Soft Copy 

यदि परिणाम से प्राप्त सूचनाओं को किसी प्रोग्राम के माध्यम से Screen पर देखा जा सके किया जा सके या आवाज के रूप में प्राप्त किया जा सके तथा जिसे बार बार परिवर्तित भी किया जा सके जो कम्प्यूटर या मेमोरी के अन्दर स्टोर रहती हो या दिखाई देती हो उसे सॉफ्ट कॉपी कहते हैं।

(2) Hard Copy

जिन परिणामों या आउटपु़ट को किसी कागज़ के माध्यम से या अन्य माध्यम से अपने हाथों से स्पर्श कर सकें उसे हार्ड कॉपी कहते हैं।

Monitor (मॉनिटर)

  • Output उपकरणों में सबसे अधिक काम आने वाला उपकरण मॉनिटर है यह Main Output Device है User Monitor के द्वारा ही कम्प्यूटर से संवाद करता हैं। कम्प्यूटर पर हो रहे कार्यों को मॉनिटर पर ही दर्शाया जाता है।मॉनिटर को VDU (Visual Display Unit) भी कहते है। सामान्यतः प्रदर्शित रंगों के आधार पर मॉनिटर को तीन भागों में बाँटा गया है-
  1. Monochrome (मोनोक्रोम) :- यह दो शब्द मोनो (एकल/Single) तथा क्रोम (रंग) से मिलकर बना है। इस प्रकार के मॉनिटर आउटपुट को Black & White रूप में प्रदर्शित करते हैं।
  2. Grey Scale (ग्रे स्केल) :- यह विशेष प्रकार के मोनो क्रोम मॉनिटर होते हैं जो Grey Shade में आउटपुट प्रदर्शित करते हैं।
  3. Color Monitor (रंगीन मॉनिटर) :- RGB (Red Green Blue) विकिरणों के आउटपुट को प्रदर्शित करता हैं।
  • RGB के सिद्धान्त के कारण ऐसे मॉनिटर उच्च Resolution पर Graphics को प्रदर्शित करते है। Computer के मेमोरी की क्षमता के अनुसार ऐसे मॉनिटर 16 से लेकर 16 लाख तक के रंगों में आउटपुट प्रदर्शित करने की क्षमता रखते हैं।

मॉनिटर निम्न प्रकार के होते हैं-

CRT (Cathode Ray Tube)

LCD (Liquid Crystal Display)

LED (Light Emitting Diode)

CRT Monitor:- 

  • अधिकतर कम्प्यूटर में इस प्रकार का मॉनिटर काम में लिया जाता है। यह Television के समान ही कार्य करता है, इस प्रकार के मॉनिटर में ज्यादातर CRT (Cathod Rays Tube) Monitor काम में लेते हैं। CRT Monitor में Phosphor Coated Screen होती है। जब इलेक्ट्रॉन इस Screen पर गिरते हैं तो Screen पर रोशनी दिखाई देती है। इसकी Picture quality अच्छी होती है।
  • Black & White Monitor को Monochrome कहते हैं। Monochrome Monitor में इलेक्ट्रॉन की एक किरण उत्पन्न होती है, जबकि रंगीन कम्प्यूटर में RGB (Red, Green, Blue) की तीन किरणें उत्पन्न होती हैं।

CRT Monitor की बनावट:-

  • CRT Monitor में सबसे पीछे एक Tube होती है जिसे CRT (Cathod Ray Tube) कहते हैं। इसमें एक Filament लगा रहता है, जो गर्म होता है। CRT के आगे की तरफ तीन Electron Gun होती है, जिसमें से तीन अलग-अलग रंग निकलते हैं, इसमें आगे की तरफ एक Focusing Device होता है। यह Focusing Device Rays को एक सीधी रेखा में बनाए रखता है। इससे आगे की तरफ Magnetic Deflection Coil होती है, जो Rays के direction को Decide करती है जो कि आगे की तरफ Phosphor Coated Screen पर गिरती है जिससे यह Screen Glow करती है।

LCD – (Liquid Crystal Display):-

  •  यह एक Digital Display System है। जिसमें काँच की दो परतों के मध्य पारदर्शी द्रवीय पदार्थ होते हैं। LCD की बाहरी परत Tin Oxide द्वारा Coated होती है LCD Monitor अधिकांशतः लेपटॉप कम्प्यूटर में काम में लिये जाते हैं, इस तरह की Screen Lap Top के अतिरिक्त Calculator, Videogame व Digital Camera में काम ली जाती है।

लाभ :-

(1) इसमें कम बिजली का उपयोग होता है।

(2) इनका आकार छोटा होता है।

हानि :-

(1) यह अधिक महँगा होता है।                 

(2) Resolution अधिक अच्छा नहीं होता है।

LED (Light Emmitting Diode) – 

  • यह स्क्रीन फ्लेट पैनल डिस्प्ले मॉनिटर होता है, इस स्क्रीन पर इमेज को दिखाने के लिए पिक्सल के रूप में लाइट इमिटिंग डायोड का उपयोग किया जाता है। इस स्क्रीन में ज्यादा ब्राइटनेस होती है , जिससे की आसानी से इमेज को अच्छे से देखा जा सकें तथा कम पॉवर की आवश्यकता होती है।

TFT (Thin Film Transistor) – 

  • यह फ्लेट स्क्रीन का ही एक रूप है जो आजकल मॉनिटर तथा अन्य डिवाइस में अधिक प्रयोग किया जाता है। यह हल्का और साइज में पतला होता है। यह LCD का ही अन्य रूप हो सकता है।

प्लाज़्मा मॉनिटर (Plasma Monitor):- 

  • प्लाज़्मा मॉनिटर मोटाई में बिल्कुल पतला होता है जो शीशे (Glass) के दो शीट के बीच में एक विशेष प्रकार के गैस को डालकर बनाया जाता है। यह विशेष प्रकार का गैस नियोन (Neon) या जे़नन (Xenon) होता हैं जब गैस को छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉड (Electrodes) के ग्रिड (Grid) के माध्यम से विद्युतीकरण (Electrified) किया जाता है, तब यह चमकता है। ग्रिड के विभिन्न बिन्दुओं पर जब एक विशेष माप पर वोल्टेज दिया जाता तब यह पिक्सल के रूप में कार्य करता है तथा कोई आकृति (Image) प्रदर्शित होता है।

मॉनिटर की विशेषताएँ (Main Characteristics Of A Monitor) :-

  • स्क्रीन पर बने हुए छोटे-छोटे डॉट्स (Dots), पिक्सल (Pixels) कहलाते है। यहाँ पिक्सेल (Pixel) शब्द पिक्चर एलीमेंट (Picture Element) का संक्षिप्त रूप है। स्क्रीन पर इकाई क्षेत्रफल में पिक्सलों की संख्या रेजोल्यूशन (Resolution) को व्यक्त करती है।
  • स्क्रीन पर जितने अधिक पिक्सेल होगें, स्क्रीन का रेजोल्यूशन (Resolution) भी उतना ही अधिक होगा अर्थात् चित्र उतना ही स्पष्ट होगा। एक डिस्प्ले रेजोल्यूशन माना 640 by 840 है तो इसका अर्थ है कि स्क्रीन 640 डॉट के स्तम्भ (Column) और 840 डॉट की पंक्तियों (Rows) से बनी है।

रिफ्रेश रेट (Refresh Rate) :- कम्प्यूटर मॉनिटर लगातार कार्य करता रहता है। यद्यपि इसका अनुभव हम साधारण आँखों से नहीं कर पाते हैं। कम्प्यूटर स्क्रीन पर इमेज बाएँ से दाएँ तथा ऊपर से नीचे इलेक्ट्रॉन गन के द्वारा परिवर्तित होती रहती है। परन्तु इसका अनुभव हम तभी कर पाते हैं जब स्क्रीन ‘क्लिक’ करती है। प्रायः क्लियर (स्क्रीन का Refresh होना) का अनुभव हम तब कर पाते है जब स्क्रीन तेजी से परिवर्तित नहीं होती है। मॉनिटर की रिफ्रेश रेट (Refresh Rate) को हर्ट्ज में मापा जाता है।

डॉट पिच (Dot Pitch) – डॉट पिच एक प्रकार की मापन तकनीक है, जो कि दर्शाती है कि प्रत्येक पिक्सल (Pixel) के मध्य कितना Vertical अन्तर है।

बिट मैपिंग (Bit Mapping) – ग्राफिक्स आउटपुट Display करने के लिये जो तकनीक काम में लायी जाती है, वह बिट मैपिंग (Bit Mapping) कहलाती है। इस तकनीक में बिट मैप ग्राफिक्स का प्रत्येक पिक्सल ऑपरेटर द्वारा स्क्रीन पर नियन्त्रित होता है। इससे ऑपरेटर किसी भी आकृति की ग्राफिक्स स्क्रीन पर बना सकता है।

मॉनिटर का आकार विकर्ण से मापा जाता है।

अस्पेक्ट रेशियों मॉनिटर स्क्रीन की चौड़ाई व ऊँचाई का जो अनुपात होता है। उसे अस्पेक्ट रेशियों कहते हैं।

रिज़ोल्यूशन मॉनिटर की स्क्रीन पर प्रदर्शित हॉरिज़ॉन्टल व वर्टीकल पिक्सल के गुणनफल को रिज़ोल्यूशन कहा जाता है। रिज़ोल्यूशन इकाई क्षेत्रफल में उपस्थित बिन्दुओं या पिक्सेल की संख्या होती है।

Printer : (प्रिंटर)

  • यह एक आउटपुट डिवाइस है तथा इसकी सहायता से सूचनाओं को Print Form में लिया जाता है। यह एक Hard Copy device है। इन्हें निम्न प्रकार वर्गीकृत कर सकते हैं –

(1) Impact Printer

(2) Non Impact Printer

  1. Impact Printer – Type Writer के सिद्धान्त पर बना हुआ Device है जो Ribbon या Paper पर प्रहार करके अक्षर छापता है यह Striking Theory पर काम करता है।
  2. Non Impact Printer – ये रिबन पर प्रहार नहीं करते हैं तथा इनमें रासायनिक inkjet अथवा प्रकाशीय विधि से अक्षर छापता है। इनके अलावा Printer को अन्य तीन श्रेणी में रखा गया है-
  • Character Printer – एक बार में एक Character Print करता है।
  • Line Printer – एक बार में एक पूरी लाइन Print करता है।
  • Page Printer – एक बार में पूरा पेज प्रिन्ट करता है।

मुख्य Printer निम्न प्रकार के होते हैं-

Dot Matrix Printers :-

  • यह एक Impact Printer है तथा यह Character Printer की श्रेणी में आता है, इसके Printer Head में अनेक Pins का एक Matrix बनता है तथा प्रत्येक Pin के Ribbon व Paper पर स्पर्श से एक डॉट बनता है तथा अनेक डॉट मिलकर एक Character या Image बनते हैं। एक बार में किसी एक Particular Character को Print करने वाली Pins ही Printer Head से बाहर निकलकर डॉट को छापती है। कुछ Dot Matrix Printer लाइनों को दाएँ से बाएँ तथा बाएँ से दाएँ दोनों दिशाओं में प्रिन्ट करने की क्षमता रखते हैं। इन प्रिन्टर की गति 30 से 600 Character /Second हो सकती है। अनेक Dots मिलकर एक Character बनाते हैं। दोनों तरफ चलने वाले Printer Bi-Directional Printer कहलाते हैं।

विशेषताएँ –

  1. D.M.P. अधिक महँगे नहीं होते हैं।
  2. इनकी printing Speed Fast होती है।
  3. ये ज्यादा समय तक काम आते हैं।
  4. इनकी पेपर Printing Quality Better नहीं होती है।
  5. इनका प्रति पेपर प्रिन्टिंग मूल्य सबसे कम है।
  6. इनमें किसी भी प्रकार की आकृति प्रिन्ट की जा सकती है।
  7. ये आवाज ज्यादा करते हैं।
  8. केवल Black & White Printing की जा सकती है।
  9. Font की Size Change की जा सकती है।

Inkjet Printer :-

  • यह एक Non-impact Printer है तथा Character Printer की श्रेणी में आता है। इसमें प्रिन्टिंग के लिए Ink काम में ली जाती है जो कि Cartridge में भरी होती है। इनमें छोटे-छोटे Nozzels होते हैं जिससे Ink की बूँदों को Spray करके Character व आकृतियाँ छापी जाती है। इसमें एक Megnatic Plate होती है जो Ink के direction को decide करती है। Print Head के Nozzel में Ink की बूँदों को आवेशित करके कागज़ पर उचित दिशा में छोड़ा जाता है। इस प्रिन्टर का आउटपुट अधिक स्पष्ट होता है। ये आवाज कम करते हैं।

Laser Printer :-

  • लेज़र प्रिंटर नॉन इम्पैक्ट पेज प्रिंटर है। लेज़र प्रिंटर का उपयोग कम्प्यूटर सिस्टम में 1970 के दशक से हो रहा है। पहले ये मेनफ्रेम कम्प्यूटर में प्रयोग किये जाते थे। ये प्रिंटर आजकल अधिक लोकप्रिय है, क्योंकि ये अपेक्षाकृत अधिक तेज़ और उच्च क्वालिटी में टैक्स्ट और ग्राफिक्स छापने में सक्षम हैं।
  • लेज़र प्रिंटर पृष्ठ पर आकृति (Images) को ज़ेरोग्राफी (Xerography) तकनीक से छापता है। ज़ेरोग्राफी (Xerography) तकनीक का विकास जेरॉक्स (Xerox) मशीन (फोटोकॉपीयर मशीन) के लिये हुआ था। ज़ेरोग्राफी एक फोटोग्राफी जैसी तकनीक है, जिसमें फिल्म, एक आवेशित पदार्थ का लेपन युक्त ड्रम (Drum) होती है यह ड्रम फोटो-संवेदित होता है। इसके द्वारा कागज़ पर आउटपुट को छापा जाता है। इस ड्रम पर आउटपुट इस प्रकार आता है।
  • कम्प्यूटर से प्राप्त आउटपुट, लेजर-स्त्रोत से लेज़र किरण के रूप में उत्सर्जित होता है। यह किरण लैन्सों से एक घूमते हुए बहुभुजाकार (Polygon shaped) दर्पण पर फोकस की जाती है। इसमें  ड्रम घूमता है तो आवेशित स्थानों पर टोनर (Toner-एक विशेष स्याही का पाउडर) चिपका लेता है। इसके बाद यह टोनर कागज़ पर स्थानान्तरित हो जाता है जिससे आउटपुट कागज़ पर छप जाता है। यह आउटपुट अस्थायी होता है, टोनर को स्थायी रूप से कागज़ पर सील (Seal) करने के लिए इसे गर्म रोलर से गुजारा जाता है।
  • अधिकतर लेज़र प्रिंटर्स में एक अतिरिक्त माइक्रोप्रोसेसर (Microprocessor), रैम (RAM) और रोम (ROM) होते हैं। रोम (ROM) में फॉन्ट (Font) और पृष्ठ को व्यवस्थित करने के प्रोग्राम संगृहीत रहते हैं। लेज़र प्रिंटर सर्वश्रेष्ठ आउटपुट छापता है। प्रायः यह 300 Dpi से लेकर 600 तक या उससे भी अधिक रेज़ोल्यूशन की छपाई करता है।
  • रंगीन लेज़र प्रिंटर उच्च क्वालिटी का रंगीन आउटपुट देता है। इसमें विशेष टोनर होता है, जिसमें विविध रंगों के कण उपलब्ध रहते हैं।
  • लेज़र प्रिंटर महँगे होते हैं, लेकिन इनकी छापने की गति उच्च होती है। प्लास्टिक की शीट या अन्य किसी शीट पर भी यह प्रिंटर आउटपुट को छाप सकते हैं। इनका उपयोग छपाई की ऑफसेट मशीन की मास्टर (Master) कॉपी छापने में होता है जिनसे आउटपुट की प्रतिलिपियाँ अधिक संख्या में छापी जाती है।

विशेषताएँ –

  1. इनकी Printing Speed सबसे अधिक होती है।
  2. इनकी Printing Quality सबसे अच्छी होती है।
  3. ज्यादातर Designing में काम आता है।
  4. इनकी Printing Cost ज्यादा होती है।
  5. Black & White तथा Colour दोनों ही प्रकार की प्रिन्टिंग की जा सकती है।
  6. इनका रख-रखाव कठिन है।

Thermal Printer (थर्मल प्रिंटर)

  • यह प्रिंटर कागज़ पर अक्षर को प्रिंट करने के लिए ऊष्मा या गर्म तत्त्वों का प्रयोग करता है। इस प्रिंटर में स्याही को पिघलाकर कागज़ पर प्रिंट किया जाता है। थर्मल प्रिंटर में एक विशेष कागज़ का प्रयोग किया जाता है।

Plotter (प्लॉटर)

यह एक Output Device हैं जो Charts Drawing, Maps, 3-D रेखाचित्र, Graph तथा अन्य प्रकार के Hard Copy Print करने के काम में लेते हैं। इसमें Arms होते हैं, जिसमें Pens लगे होते हैं वे Arms Move करती है तथा जहाँ पेपर लगे होते हैं, वहाँ Image Create हो जाती है।

ये दो प्रकार के होते हैं-

(1) Flat Bed Plotter

(2) Drum Plotter

(1) Flat Bed Plotter:- इस Plotter में कागज़ को स्थिर अवस्था में एक बेड (Bed) या ट्रे (Tray) में रखा जाता है। एक भुजा (Arm) पर पेन (Pen) चढ़ा रहता है, जो मोटर में कागज़ पर ऊपर-नीचे (Y-अक्ष) और दाएँ-बाएँ (X-अक्ष) गतिशील होता है। कम्प्यूटर पेन को X-Y अक्ष की दिशाओं में नियंत्रित करता है और कागज़ पर आकृति चित्रित करता है।

(2) Drum Plotter :- यह एक ऐसी आउटपुट डिवाइस है, जिसमें पेन (Pen) प्रयुक्त होते हैं, जो गतिशील होकर कागज़ की सतह पर आकृति तैयार करते हैं। कागज़ एक ड्रम पर चढ़ा रहता है, जो आगे खिसकता जाता है। पेन (Pen) कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित होता है। कई पेन प्लॉटरों में फाइबर टिप्ड पेन (Fiber tipped pen) होते हैं। यदि उच्च क्वालिटी की आवश्यकता हो तो तकनीकी ड्राफ्टिंग पेन (Technical Drafting Pen) प्रयोग किया जाता है। पेन (Pen) की गति एक बार में एक इंच (inch) के हजारवें हिस्से के बराबर होती है। कई रंगीन प्लॉटरों में चार या चार से अधिक पेन (Pen) होते हैं। प्लॉटर एक सम्पूर्ण चित्र (Drawing) को कुछ इंच प्रति सेकंड की दर से प्लॉट करता हैं।

Multimedia Projector (प्रोजेक्टर)

  • यह Video संकेतों को Input के रूप में ग्रहण करता है तथा लैंस का प्रयोग कर Screen पर उसके अनुसार Image को प्रदर्शित करता है। सभी प्रकार के Projector बहुत ही तेज़ रोशनी का प्रयोग कर Image को प्रदर्शित करने में करते हैं। आधुनिक Projectors में Manual Settings के द्वारा Image इत्यादि को सुधारने की क्षमता होती है। आजकल इसका प्रयोग Conference तथा Presentation इत्यादि में किया जाता है।

स्पीकर (Speaker)

  • यह कम्प्यूटर की एक मुख्य आउटपुट डिवाइस है, जिसके द्वारा कम्प्यूटर की आवाज़ को या उसमें चल रहे किसी ऑडियो, वीडियो की आवाज़ को बाहर सुनाया जाता है।

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