अधिगम निर्योग्य बालक किसे कहते हैं? इन बालकों के अध्ययन में होने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालिए।

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अधिगम निर्योग्य बालक का सर्वप्रथम उपयोग सेमुअल कर्क ने किया । हेमिल, लेथ, मेक, नट के अनुसार– अधिगम निर्योग्यता एक ऐसा शब्द है जो असमान रूप से सुनने, बोलने, लिखने, पढ़ने जैसी योग्यताओं में परेशानी का अनुभव होता है । यह परेशानियों आंतरिक होती हैं जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के विकृत क्रिया के परिणामस्वरूप घटित होती है । अधिगम निर्योग्यता असामान्य परिस्थितियाँ या परिवेशीय प्रभाव के कारणों के परिणाम से हो सकती है । कुकशैक, वाइस, वेलेन के अनुसार यदि कोई विद्यार्थी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता अर्जित करता है व उसकी बुद्धि– लब्धि न्यून है तो समझा जाता है कि बालक की न्यूनता का कारण बुद्धि– लब्धि की न्यूनता हैं । इस धारणा के विश्लेषण के आधार पर सेमुअल कर्क ने ऐसे बालकों को अधिगम नियोग्य कहते हुए तर्क प्रस्तुत किया कि ये अधिगम निर्योग्य इसलिए है कि इनमें कोई न्यूनतम मस्तिष्कीय क्षतिग्रस्तता नहीं है, पढ्ने की दक्षता में समस्याएं नहीं हैं, अतिक्रियाशील नहीं है, बल्कि यह

इन सभी गणों से संयक्त रूप से ग्रसित है अर्थात कोई बालक अधिगम निर्योग्य है तो इसमें शैक्षिक न्यूनता होगी और वह न्यूनता उसके आन्तरिक एवं बाह्य दशा के मानकीय परिणाम के कारण नहीं बल्कि उनमें शैक्षिक दशाओं की न्यूनतम उपलब्धता के कारण भी सम्भव है।

अधिगम निर्योग्य बालकों के प्रकार

बौद्धिक क्रियाकलाप में इस वर्ग के बच्चे अन्य बच्चों की तरह ही होते हैं। इनमें किसी भी प्रकार का मानसिक पिछड़ापन नहीं होता है। इनमें न तो कोई या किसी प्रकार का दृष्टिकोण या श्रवणबोध भी नहीं होता है लेकिन पढ़ने– लिखने, वर्तनी की शुद्धता तथा गणित के प्रश्न हल करने आदि बातों की दिक्कत होती है। ये सभी प्रक्रिया सम्बन्धी दोष मनोवैज्ञानिक कारणों का परिणाम होता है खासकर उनकी परिकल्पना क्षमता दुर्बल होती है।

सीखने– बोलने– समझने तथा गणित के प्रश्न आदि हल करने में इनको काफी कठिनाई होती है। ये कभी कठिनाइयाँ इनमें कोई मस्तिष्क की गड़बड़ी या संवेगात्मक अथवा व्यवहार विषयक कमी के कारण होती है। ये कठिनाइयाँ मानसिक गड़बड़ी के कारण बिल्कुल नहीं होती हैं । इनकी दो कोटियाँ हो सकती हैं–

(I) सामान्य अधिगम विकलांगता तथा (II) भयंकर अधिगम विकलांगता।

(I) सामान्य अधिगम विकलांगता– सामान्य स्कूलों में सामान्य रूप से अधिगमयुक्त विकलांग बच्चे को सिखाया– पढ़ाया जा सकता है । वे नियमित रूप से स्कूलों में ही शिक्षा ग्रहण करते हैं। प्रारम्भिक दौर मं् उनकी पहचान काफी कठिन होती है। आधारभूत अधिगम सम्बन्धी कौशल को सीखने में भी उनकी समस्याओं से जूझना पड़ता है। अधिगम के एक या दूसरे क्षेत्र में यह समस्या उत्पन्न हो सकती है लेकिन यह समस्या सामान्य कोरी की होती है। यदि शुरू में पता लग जाए तो बच्चे की मदद की जा सकती है। यह काम उसे उचित प्रशिक्षण देकर तथा अभ्यास के द्वारा किया जा सकता है चूँकि उनकी समस्या सामान्य किस्म की होती है। अतः उनको आम स्कूलों की ऊंची कक्षाओं में भी एकीकृत किया जा सकता है। इसके लिए पाठ्यक्रम में सामान्य प्रकार का परिवर्तन करना होता है।

(II) अधिगम सम्बन्धी भयंकर अपंगता– इस कोटि में उन बच्चों की गिनती की जाती है जिनको आधारभूत अकादमिक कौशल हासिल करने में भी दिक्कत होती है जैसे– पढ़ना– लिखना आदि । यह समस्या उनके मस्तिष्क में किसी विकार या पर्यावरण विषयक के अभाव के कारण हो सकता है। इन बच्चों को स्कूलों में एकीकृत करने में बहुत अधिक कठिनाई होती है। जिन बच्चों में अधिगम सम्बन्धी दोष होता है उनकी व्यवहार सम्बन्धी विशेषताएं अलग– अलग होती हैं। लेकिन इन सब की उपलब्धियाँ तथा बौद्धिक क्षमता के बीच बहुत अधिक कमी होती है। यही वह आधारभूत कमी है जिसका वे सामना करते हैं। लेकिन इससे जुड़ी अन्य दिक्कतें भी हो सकती हैं जैसे– आधारभूत दक्षता से जुड़ी संवेगात्मक समस्या अथवा सामाजिक अनुकूलन की समस्या । अतः इन समस्याओं का वर्णन आगे किया जा रहा है।

(i) पढ़ने की असमर्थता– इस प्रकार के दोष ग्रस्त बच्चे पढ़ने में असमर्थ होते हैं इसके भी दो रूप देखने को मिलते हैं जिन बच्चों पर इसका सामान्य प्रभाव होता है उनको पढ़ने में दिक्कत होती है। लेकिन जिन बच्चों पर इसका भयंकर असर होता है वे पढ़ने लिखने में बिल्कुल अशक्त (लाचार) होते हैं। इसे कभी– कभी शब्द– अंधता के नाम से भी पुकारा जाता है। जिन बच्चों पर इसका मामूली असर होता है कोटि के बच्चे पहले वे ही कक्षा में मौजूद होते हैं । यदि आरम्भिक अवस्था में यह रोग पकड़ में आ जाये तो आवश्यक उपचार के बाद इसकी भयंकर चपेट में होता है उसके उपचार में गम्भीर प्रयास तथा अभ्यास की आवश्यकता होती है।

(ii) लेखन की अशक्तता– इस रोग से प्रभावित बच्चे स्वतः स्फूर्ति रूप से लिखने में अशक्त होते हैं । इस अशक्तता के भी दो रूप होते हैं सामान्य तथा भयंकर। जिन बच्चों में यह समस्या साधारण किस्म की होती है उनको साफ– साफ लिखने की कला को सीखने में कठिनाई होती है। यदि इनकी पहचान शुरू में ही कर ली जाए तथा समय से इनकी मदद की जाए तो उनको शेष कक्षा की मुख्य धारा में सम्मिलित किया जा सकता है। लेकिन जिन बच्चों में यह दिक्कत अधिक गम्भीर प्रकार की होती है वह किसी की नकल तो बिना उसका रूप बिगाड़े ही कर सकते हैं। लेकिन वह स्वतः स्फूर्ति के रूप से नहीं लिख सकते हैं। वह लिखने सीखने में असमर्थ होते हैं । यही उनकी पहचान है। भयंकर रूप से इस रोग से ग्रस्त बच्चों को उपचार सम्बन्धी व्यायाम की जरूरत होती है।

(iii) सम्प्रेषण को समझने की समस्या– इस प्रकार के विचारग्रस्त बच्चे लेखन– बोलने तथा पढ़ने में दिक्कतों का सामना करते हैं। जिनको यह रोग सामान्य किस्म का होता है उनको बोली गई लिखाई गई भाषा को समझने में दिक्कत होती है। यहाँ तक कि बच्चा सकते तथा हावभाव भी नहीं समझ पाता है। यदि समझ रहते उपचार किया जाये तो इन बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ समेकित किया जा सकता है। अन्यथा इस बात की सम्भावना बनी रहती है कि स्पष्ट प्रभाव युक्त भाषा बोलने में बच्चों के सामने दिक्कतें आयेंगी। जिन बच्चों में यह रोग गम्भीर रूप धारण कर चुका होता है वह न किसी भाषण को समझ पाता है और न सीखी भाषा ही उसकी समझ में आती है वह लिखना– पढ़ना और बोलना भी नहीं सीख सकता है। सम्प्रेषण विषयक उसकी यह असमर्थता इस हद तक भी हो सकती है कि वह संकेतों तथा हाव– भाव द्वारा भी अपनी बात को दूसरों तक पहुँचाने में असमर्थ होता है। हो सकता है इस तरह के बच्चों की कक्षा के साथ एकीकृत करना कठिन होता है। इनको गहन औपचारिक, व्यायाम की आवश्यकता होती है।

(iv) संख्या विषयक अयोग्यता– जो बच्चा इस रोग से ग्रसित होता है, उसे साधारण अको का हिसाब लगाने में भी समस्या का सामना करना पड़ता है क्योंकि उसे अंक चिह्नों को समझने में तथा उनके आपसी सम्बन्धों के जानने– समझने में भी दिक्कत होती है। यह रोग भी दो प्रकार का होता है– साधारण तथा असाधारण (असाध्य)। सामान्य बच्चों के लिए गणित में जो प्रश्न बहुत आसान होते हैं, उन सवालों को हल करने में भी बच्चों को काफी कठिनाई होती है। संख्याओं तथा उनके आपसी सम्बन्धों के विषय में सीखना इनके लिए अपेक्षाकृत कठिन होता है। इस तरह के साधारण रोग वाले बच्चे कक्षा में पहले से मौजूद हो सकते हैं प्राथमिक स्तर पर उनको आसानी से नहीं पहचाना जा सकता है। इनकी अयोग्यता उस समय सामने आती है जब वह संख्याओं के द्वारा गणित सीखने का श्रीगणेश करते हैं । जोड़ और घटाना चालू करते ह। याद इनका पहचान वही पर ली जाए तथा उनके सुधार के लिए कदम उठाए जाएं, ऊंची कक्षाआ में भी सीख सकते हैं । परन्तु जब रोग का रूप असाध्य हो चूका है तो बच्चे के लिए सिफ दिक्कत ही नहीं होती,उसे अंक प्रतीकों का तथा उनके सम्बन्ध को समझने और सिखाने में भी कठिनाई होती है, अर्थात् वह असमर्थ होता है। इसको अगणितीय योग्यता का हास भी कहा जाता है । इस तरह के असाध्य मामलों का शेष कक्षा के साथ तालमेल नहीं बैठ पाता है। अतः इसके लिए गम्भीर उपचार की आवश्यकता होती है। नीचे दी गई सूचनी के आधार पर उन बच्चों को पहचाना जा सकता है जिनकी चर्चा ऊपर की पंक्तियों में की गई है।

अधिगम की दृष्टि से अशक्त बच्चों की पहचान के लिए लक्षण सूची

(1) अपना काम संगठित करने में कठिनाई महसूस करता है तथा बहुधा वह कक्षा का कार्य देर में करके देता है।

(2) दूसरों के जवाब देने में सुस्त और धीमा लगता है।

(3) समय बताने में एवं दिन, महीना तथा ऋतुओं का क्रम में नामोल्लेख करने में और गणित की सारणी याद करने में दिक्कत महसूस करता है।

(4) लगता है कि कक्षा या घर में दी जाने वाली हिदायतों को नहीं सुनता है। (बार– बार दुहराने का आग्रह करता है।)

(5) मौखिक हिदायतों को सही– सही याद नहीं रख सकता है और जब दुहराने को कहा जाए तो दुहरा नहीं सकता।

(6) कक्षा में उसके निष्पादन में बहुत ज्यादा असंगति होती है। समय– समय पर उसको देखकर लगता है काफी प्रतिभाशाली है– लेकिन स्कूल में बहुत कम अंक पाता है।

(7) थोड़े से भी व्यवधान से उसका ध्यान भंग हो जाता है।

(8) दाएं और बाएं को लेकर भ्रम में पड़ जाता है।

(9) इतना अधिक उत्तेजित हो जाता है कि क्षण भर के लिए कक्षा में शांत होकर नहीं बैठ सकता है।

(10) पढ़ते समय पंक्तियाँ छोड़ देता है अथवा एक ही पंक्ति को दो बार पढ़ जाता

(11) वर्तनी को अलग– अलग पढ़ने के बाद भी उससे शब्द बनाकर उसका उच्चारण करने में दिक्कत महसूस करता है। जैसे अ/ल/ग तो बोलेगा लेकिन अलग शब्द कहने में कठिनाई महसूस करेगा। इसे वह ‘अलग’ भी कह सकता है।

(12) शब्दों के बारे में विचित्र प्रकार के अनुभव लगाते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं निकलता है (जैसे– हटी के लिए ‘घूसा’ शब्द तथा ट्रैनर के लिए ‘टर्नड’)

(13) शब्दों को विपरीत क्रम में पढ़ता है जैसे कल’ को ‘लक’ ‘सब को बस आदि ।

(14) वर्णों को गलत क्रम मे रखता है जैसे प्लेट को लेफ्ट और ऐक्ट को कैट (कट) पढ़ जाता है।

(15) शब्दों को छोटा बनाकर उसका उच्चारण करता है जैसे सडेनली’ को ‘सनली’ और रिमेंबर को देंबर।

(16) एक जैसे दिखने वाले शब्दों को गलत पढ़ता है जैसे– हेल्प को हैण्ड, हाउस को हॉर्स।

(17) शब्दों को याद करने में दिक्कत महसूस करता है वह सही वाक्य भी आसानी से नहीं बना सकता है।

(18) अंकों को गलत पढ़ता है, जैसे 6 की जगह 9 पढ़ जाता है 3 को 8 । लिखने में अक्षरों के क्रम उलट देता है।

(19) जैसे ‘नकल’ को ‘नलक’ बना देता है।

(20) ‘प’ की जगह ‘प’ तथा ‘व’ को ‘क’ लिख जाता है।

(21) 6 को 9 की तरह बना देता है।

(22) बीच में अक्षर छोड़ जाता है जैसे– ‘अमल’ को ‘अक’ या ‘शावक’ का ‘शाक’ लिख जाता है।

(23) अपनी तरफ से कभी– कभी अक्षर जोड़ देता है जैसे अंग्रेजी के स्कूल को इस्कूल तथा बस्तों को इस्बस्ता लिख जाता है।

(24) उच्चारण करने पर सही अक्षर नहीं लिख पाता है।

(25) जब किसी अक्षर को निकालने के लिए कहा जाता है तो वह इस प्रकार का कार्य करने में असमर्थ होता है।

(26) कहने पर वही अक्षर नहीं बता पाता है।

(27) अकादमिक विषयों में दिक्कत महसूस करता है। कभी एक विषय में कमजोर होता है कभी कई विषयों में जो मिलकर एक विषय के रूप में पढ़ाए जाते हैं।

शैक्षिक दृष्टि से ऊपर जो परिभाषा दी गई है तथा जो वर्गीकरण किया गया है उससे एकीकृत दिशा की योजना को क्रियान्वयन से जुड़ी हुई कई समस्याएं स्पष्ट हो जाती हैं। इन जानकारी की मदद से अध्यापक बच्चों की साधारण कोटि की अपंगता या विकलांगता को पहचान सकता है।

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