कम दिखाई देने वाले बालकों की शैक्षिक सुविधाओं पर लेख लिखें।

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सामान्य तौर पर देखा जाये तो किसी भी विद्यालय में कम दिखाई देने वाले विद्यार्थियों की संख्या बहुतायत होती है । बालकों की पहचान करते हुए, उनकी संख्याओं का निर्धारण करते हुए अध्यापक इस बात का निर्णय कर सकता है कि उनके लिये विशेष कक्षा का आयोजन किया जाये या सामान्य कक्षा में विशेष सुविधाओं की सहायता से उन्हें शिक्षण दिया जा सकता है । सबसे पहले प्राथमिक श्रेणियों के विद्यार्थियों के लिए शिक्षा का आयोजन किया जाना चाहिए क्योंकि जितनी जल्दी कम देखने वाले बालकों को शैक्षिक सुविधाएं दी जायेगी, उतनी ही अधिक सफलता की प्राप्ति होगी इन बालकों को निम्न शैक्षिक सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं।

(1) शैक्षिक माध्यम– आंशिक रूप से देखने वाले विद्यार्थियों के लिये कोर्स की किताबें सामान्य बालकों से अलग प्रकार की होनी चाहिए जैसे–

(i) एक सामान्य बालक के लिये किताब 10 या 12 पाइंट टाइप होती है आंशिक देखने वाले विद्यार्थियों के लिए 18 स 24 पाइंट टाइप होना चाहिए।

(ii) प्रिंट साफ तथा विस्तृत होना चाहिए।

(iii) सफेद कागज पर काले से लिखा होना चाहिए।

(iv) दो शब्दों के बीच जगह होनी चाहिए।

(v) हाशिया होना चाहिए।

(vi) मानचित्र तथा चित्र होना चाहिए।

(vii) आर्ट एवं क्राफ्ट के सामानों का प्रयोग होना चाहिए।

(2) प्रकाश की उचित व्यवस्था– आंशिक रूप से देखने वाले विद्यार्थियों के लिये प्राकृतिक व बनावटी दोनों प्रकार की रोशनी महत्त्व रखती है। ऐसे बालकों के लिये कमरा पूर्णरूप से व हर स्थान से रोशनीयुक्त होना चाहिये। उसमें चमक नहीं होना चाहिये कक्षा की छतें सफेद तथा दीवारें हल्के रंग से रंगी होना चाहिये।

(3) फर्नीचर– एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाला फर्नीचर कक्षा में उपयोग किया जाना चाहिये इन्हें बालक किसी भी स्थान पर ले जा कर उपयोग कर सकते हैं फर्नीचर बढ़ते हुए बालकों के लिये भी उपयुक्त होना चाहिये।

(4) कक्षायें– विशेष कक्षायें या अलग कक्षायें आधुनिक शैक्षिक सिद्धान्तों के अनुरूप नहीं है अतः एक सहकारिता योजना का विकास किया जाना चाहिये जिसके द्वारा कम देखने वाले विद्यार्थियों हेतु एक विशेष सामान से युक्त कक्षा व योग्य शिक्षक की व्यवस्था की जाती है अन्य कार्यों के लिये वह औसत बालकों के साथ मिल जाते हैं।

(5) सहकारिता– बालक के स्वास्थ्य तथा शिक्षा का उत्तरदायित्व अधीक्षक. प्रधानाध्यापक,स्कूल,स्वस्थ– सेवा अध्यापक तथा विशेष अध्यापक साथ ही बालक के माता– पिता पर है। इस सहयोग को प्रभावी बनाने के लिये आवश्यक है कि प्रत्येक को शिक्षा के विशेष उद्देश्यों से परिचित होना चाहिये। इन सभी को अलग से व सहकारी रूप में समस्या समाधान में पूर्ण सहयोग देना चाहिये। आंशिक रूप से दिखने वाले बालकों का विशेष कक्षा में तथा सामान्य कक्षा में भली प्रकार स्वागत करना चाहिये जिससे वह अपनी कठिनाइयों को समझ कर सबके साथ सामंजस्य कर पायेगा।

(6) पाठ्यक्रम– औसत प्रकार के बालकों का व आंशिक दिखाई देने वाले बालकों का पाठ्यक्रम एक सा होता है। अध्यापकों को इस बात का ध्यान रखना जरूरी है जिससे इन बालकों की आंखों पर जोर न पड़े।

(7) मेडिकल परीक्षण – समय– समय पर स्कूल द्वारा विद्यार्थियों का परीक्षण करवाते रहना चाहिये। डॉक्टर द्वारा आंख संबंधी निरीक्षण, सामान्य स्वास्थ्य, आंख की बीमारियों का इलाज, शरीर की बीमारियों का इलाज, चश्मे की जाँच आदि कार्य इन बालकों के लिये किया जाना जरूरी है। डॉक्टरों द्वारा बच्चे के स्वास्थ्य व आंखों से संबंधित बीमारियों का एक रिकॉर्ड बनाया जाना चाहिये। आंख की कसरत तथा इलाज के सुझाव दिया जाना चाहिये । बालक के माता– पिता को भी बालक से संबंधित सुझाव देना चाहिए।

(8) शैक्षिक निरीक्षण– स्थानीय व राजकीय स्तर पर समय– समय पर शैक्षिक निरीक्षण किया जाना चाहिए । राजकीय निरीक्षक को विशेष शैक्षिक सुविधाओं को बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिये साथ ही इन बालकों की शैक्षिक व सामाजिक कठिनाइयाँ दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।

(9) विशेष अध्यापक– आंशिक रूप से देखने वाले बालकों व दृष्टि बाधित सभी विद्यार्थियों के लिये विशेष शिक्षक का अत्यन्त महत्त्व है। इन अध्यापकों को आंख की बनावट, सफाई, आंख की सामान्य बीमारियाँ व कठिनाइयों से परिचित होना चाहिये। इन बालकों के लिये दवाइयों, रौशनी, शारीरिक सामान, शैक्षिक सामान का प्रबन्ध करना चाहिये। विशेष व प्रभावशाली विधियों का प्रयोग कर विद्यार्थियों को सीखने में सहयोग करना चाहिये । एक कुशल अध्यापक बालक में ऐसे गुणों का विकास कर सकता है जिससे बालक अच्छा सामाजिक,शैक्षिक व व्यावसायिक समायोजन कर सके ।

(10) व्यावसायिक निर्देशन– एक सफल शैक्षिक निर्देशन के लिये यह आवश्यक है कि बालक के व्यक्तित्व की प्रत्येक बात ध्यान रखनी चाहिये जैसे– शारीरिक तथा मानसिक योग्यताएं, अयोग्यताएं, संवेगात्मक विकास, सामाजिक गुण, इच्छाएं,रुचियाँ, अभिवृत्तियाँ आदि । यह भी देखा जाना आवश्यक है कि व्यक्ति की इच्छायें स्वयं की हैं या किसी से प्रभावित हैं। व्यावसायिक निर्देशन हेतु विभिन्न व्यावसायिक रुचि परीक्षण किये जा सकते हैं जिससे बालक की रुचि व अभियोग्यता भी जानी जा सके। सफल निर्देशन के लिये माता– पिता, अभिभावक, अध्यापक, डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक आदि का सहयोग होना आवश्यक है।

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